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संकिरा का रहस्य | Sankira Ka Rahasya

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Satish Kumar
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संकिरा का रहस्य | Sankira Ka Rahasya

 का रहस्य Sankira Ka Rahasya

संकिरा का रहस्य | Sankira Ka Rahasya

कजरी वो कजरी.....अपनी बकरीया सम्भाल देख मेरी सारी सब्जीया खा रही है......

ये आवाज सुनकर कजरी भागते हुए घर से बाहर नीकलती है, और अपनी बकरीयों को पकड़ कर बांधती है।

अगर तू अपनी बकरीयां सम्भाल नही पाती तो बकरीया पालती क्यूं है?

कजरी-- क्या करु दीदी.....घर में कोई कमाने वाला है नही, घर का सारा खर्चा इन बकरीयों की वजह से ही चलता है।

अरे तो एक सांड जैसा बेटा पैदा कीया है...उसे क्यूं नही बोलती की कुछ काम धंधा करे। देख एक मेरा लड़का है ठाकुर साहब के यहां काम करता है....उसे भी क्यूं नही लगा देती ठाकुर साहब के यहां काम पर।

कजरी-- बात तो ठीक है रज्जो दीदी, लेकीन मेरा लड़का तो दीन रात बस गांव में मटरगस्ती करता रहता है......क्या बोलू मैं उसे?

कहानी के पात्र--

कजरी (40)
कजरी एक बहुत ही खुबसुरत औरत है....इतनी खुबसुरत है की पुरा गांव उसके फीराक में लगा रहता है। उसकी गरीबी उसकी सबसे बड़ी दुश्मन है...जीसका फायदा गांव के लाला.....ठाकुर और दुकानदार उठाने के फीराक में लगे रहते है। लेकीन कजरी आज तक अपने आप को पवीत्र रखी थी.....गांव भर में उसके खुबसुरती के चर्चे चलते रहते है और पता नही कीतने मर्द उसके नाम से मुठ मार मार कर कमजोर दीलवाले बन गये है।

रीतेश (22)
कजरी के जीने का सहारा यहीं जनाब है.....लेकीन इन जनाब को अपनी मां की परेशानीयो के बारे में कोइ फिक्र नही.....ये तो बस अपने आवारा दोस्तो के साथ दीनभर घुमते फीरते रहते है.....अगर बाप होता तो थोड़ा बहुत डर लगा रहता लेकीन बाप तो ना जाने 3 साल पहले घर छोड़ कर पता नही कहां नीकल गये थे।

रज्जो (40)
रज्जो कजरी की पड़ोसन है.....ये मुहतरमां की एक ही परेशानी है, और वो है कजरी......इनको कजरी के खुबसुरती से बहुत जलन होती है। हमेशा सज संवर के रहने के बाद भी कजरी की खुबसुरती के आगे पानी कम चाय वाला हाल हो जाता है।

पप्पू (22)
पप्पू रज्जो का लाडला....इनका सीर्फ नाम पप्पू नही बल्की ये खुद पप्पू है। क्यूकीं पप्पू का चप्पू 2 मीनट ही चलता है.....क्यूकीं इन्होने बचपन से अपना चप्पू अपने हाथों की मदद से कुछ ज्यादा ही चला दीया था।

सलोनी(24)
रज्जो की छिनाल बेटी......इनकी बुर में इतने चप्पू चले हैं की पुछों मत लेकीन इस बात की भनक अभी तक रज्जो को भी नही चला है।

संगीता(42)
कजरी की सबसे अच्छी सहेली....अगर कजरी को खुबसुरती में कोई अजू बाजू पहुंच सकता है तो यही मुतरमा है।अ

आंचल(20)
संगीता की लाडली और रितेश के दील की धड़कन......इनको सचने संवरने का बहुत शौक है.....अगर ये गांव में नीकल दे
तो बेचारे लड़को के लंड और धड़कन की रफ्तार तेज हो जाती है......

ठाकुर परम सींह (48)
ईनका काम दो नबंर का धंधा करना , और कीसी तरह कजरी की जवानी का रस पी सके

कहानी में और भी कीरेदार जीसका जीक्र हम आगे करते चलेंगे.......हम और आप मीलकर

तो चलीये कहानी शुरु करते है......और मज़े लेते है...

To be Continued

 

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Satish Kumar
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संकिरा का रहस्य | Sankira Ka Rahasya | Update 1

रोज रोज ये सुखी रोटी.....और बकरी का दुध खाकर थक चुका हूं मैं॥

कजरी-- अरे बेटा...यही सुखी रोटी और बकरी का दुध खाकर पहलवान बन गया है....देख जरा खुद को पुरे गांव भर में कीसी का भी शरीर तेरे जैसा नही है।

रितेश.(गुस्से में)-- तो इसका मतलब मैं यही सुखी रोटी खाउं?

कजरी-- गुस्सा मत हो मेरे लाल....आज खा ले कल कुछ इंतजाम करुगीं, और तुझे तो अपनी हालत पता ही है बेटा।

रीतेश(गुस्से में)-- जब हालात ठीक नही थे तो पैदा क्यूं कीया .....ये सुखी रोटी खीलाने के लीये....नही खाना है मुझे ये तू ही खा।

' इतना कह कर रितेश खाने की थाली गुस्से में अपनी मां की तरफ करता है और घर से बाहर की ओर जाने लगता है।

कजरी-- अरे.....बेटा सुना तो...रुक जा थोड़ा ही खा ले। लेकीन तब तक रितेश घर से बाहर जा चुका था।

कजरी वहीं बैठी रितेश को बाहर जाते देखती रहती है.....उसकी आंखो में आंशु आ चुके थे.....वो अपनी कीस्मत को कोस रही थी.....लेकीन कीसी ने सच कहा है ना जो तकदीर में लीखा है भला उसे कौन मीटा पाये फीर कीस्मत को कोस कर क्या फायदा।

* * *

कजरी वो....कजरी....कहां है तू।

कजरी के कानो में जैसे ही ये आवाज़ पहुचीं वो रसोई घर से बाहर आती है।

कजरी-- अरे संगीता तू आ बैठ।

संगीता-- तू तो मेरी ख़बर लेने से रही तो सोचा मैं ही तेरी खबर ले आती हूं॥

कजरी-- अरे संगीता अब क्या बताऊ तूझे तो सब पता ही है.....घर का काम और सब चीजे करते करते समय का पता ही नही चलता.....

संगीता-- अच्छा अब रहने दे....चल जल्दी तैयार हो जा।

कजरी-- क्यूं कहां जाना है?

संगीता-- अरे आज ठाकुर साहब का प्रधानी का प्रचार है....और उसमे शामील होने वालो को एक हजार रुपये मील रहे है.....तो गांव की औरते जा रही थी तो सोचा मैं और तुम भी चलते है अपना भी काम हो जायेगा।

कजरी-- बात तो तू ठीक कह रही है.....लेकीन मेरा बेटा?

संगीता-- तेरा बेटा क्या?

कजरी-- अगर कहीं मेरे बेटे ने गांव में घुमते हुए देख लीया तो मेरी खैर नही।

संगीता-- अरे क्या खैर नही लगा रखी है.....एक तो तू इधर उधर से ला के तू उसको खीलाती है.....खुद तो कुछ करता नही और तेरे उपर रौब जमाता है।

कजरी-- ऐसा मत बोल संगीता वो जीदंगी है मेरी....उसके लीये तो सब कुछ कुर्बान।

संगीता-- हां तो वो बच्चा थोड़ी है उसे भी तो सोचना चाहीये....तू चल मै देखती हूं की क्या बोलेगा वो तूझे फीर मैं उसे जवाब दूंगी।

कजरी-- ठीक है रुक चलती हूं॥

कजरी घर के अंदर जाती है और एक लाल साड़ी अपने बक्से में नीकालती है......।

कजरी अपनी पहनी हुई साड़ी अपने बदन पर से नीकाल देती है .....वो अब सीर्फ ब्लाउज और पेटीकोट मे थी....उसका कसा हुआ दुधीया गोरा बदन और ब्लाउज में कसी हुई गोल गोल बड़ी चुचीयां जो शायद ब्लाउज फाड़ कर बाहर आने को उतावली हो रही थी.....कजरी की पतली गोरी कमर तो सुराही दार एक बार कोई देख ले तो उसके कमर को हाथो से रगड़ने को जी मचल जाये......और गांड तो उफ.....क्या बनावट थी उपर वाले की .....एकदम कसी हुई बाहर की तरफ नीकली हुई कयामत ढ़ा रही थी.....ये सब नज़ारा देख कर संगीता की नज़रे ही नही हट रही थी।

कजरी-- ऐसे क्या देख रही है तू?

संगीता-- देख रही हूं की भगवान ने तूझे सच में फुरसत से बनाया है.....कीतनी खुबसुरत है तू कजरी।

कजरी-- अरे अब क्या करुगीं ये खुबसुरती ले के पती तो रहे नही तो फीर इस खुबसुरती का क्या मतलब?

संगीता-- सही कहां तूने....हम दोनो की कीस्मत तो फूटी है.....अच्छा तेरा मन नही करता कजरी की तेरे ये खुबसुरत जीस्म को कोई मसल मसल कर रख दे.....।

कजरी-- अच्छा अब बस कर तू अब चल....मैं तैयार हो गयी हूं॥

संगीता-- हां चल गांव के तेरे सारे आशीक तो आज मर ही जायेगें...।

कह कर दोनो हंसने लगती है.....और घर से बाहर नीकल पड़ते है।

ठाकुर परम सींह के घर के सामने भारी संख्या में भीड़ लगी थी.....ठाकुर के गाड़ीयो में पोस्टर लगे हुए थे.....उनका चुनाव चीन्ह था खाट, कुछ लोगो के हाथों मे झंडे भी थे...।

गांव की कयी सारी औरते एक तरफ खड़ी थी.....उन औरतो में रज्जो एकदम सज धज कर खड़ी थी और कुछ औरतो से बात कर रही थी.....की तभी उनमे से एक औरत बोली.......हाय राम देखो कजरी आ रही है कीतनी सुंदर लग रही है।

ये सुनते ही सारी औरतों की नज़र कजरी पर पड़ती है।

हां....सच में कीतनी सुदंर है कजरी देखो ना सारे मर्दो की नज़र सीर्फ कजरी पर ही है.....काश भगवान ने मुझे इतना सुँदर बनाया होता तो जींदगी के मजे खुब लुटती ॥

उस औरत की बात सुनकर रज्जो बोली॥

रज्जो-- हां लेकीन ये महारानी तो अपने आप को पता नही क्या समझती है....कीसी को घास ही नही डालती।

रज्जो अंदर ही अँदर खुब जल रही थी....॥

संगीता-- देख कजरी सब हरामजादे मर्दो की नज़र तुझ पर ही है....कैसे खा जाने वाली नज़रो से देख रहे है तूझे।

कजरी-- छोड़ जाने दे तू .....चल सीधा प्रचार करेगें और घर चलेंगे....॥

और फीर दोनो ठाकुर के द्वार पर आ जाते है।

ठाकुर अपने दोस्तो के साथ हवेली के अंदर बैठा था.....तभी उसे कीसी ने आवाज़ दी।

ठाकुर साहब......ठाकुर साहब.....। ठाकुर ने पीछे मुड़ कर देखा....

ठाकुर-- अरे दीवान क्यू चील्ला रहा है.....।

दिवान-- वो....वो कजरी आयी है।

इतना सुनना था की 48 साल का ठाकुर कीसी 20 साल के जवान लौडें की तरह बाहर भागते हुए नीकला....।

वहां बैठे ठाकुर के दोस्त सब हैरान रह गये की आखीर ये कजरी कौन है जीसके बारे में सुनते ही ठाकुर कीसी कुत्ते की तरह भागते हुए गया.....यही उत्सुकता ठाकुर के दोस्तो को भी बाहर ले के चला।

ठाकुर-- अरे कजरी.....तुम , आज मेरे घर का रास्ता कैसे याद आ गया?

कजरी तो एकदम से डर गयी थी....क्यूकीं ठाकुर उससे सीधा जो बात करने लगा था.....और गांव के सभी लोग की नज़र उन पर ही थी.....वो सोचने लगी की गांव वाले कही कुछ उल्टा सीधा ना सोच ले.....और कुछ गलत बात गांव में फैल गयी तो मेरा बेटा क्या सोचेगा.....

ठाकुर-- क्या हुआ कजरी क्या सोचने लगी?

कजरी जैसे नीदं से जागी॥

कजरी-- क.....कुछ नही ठाकुर साहब। वो....वो मैने सोचा की मैं भी प्रचार में हीस्सा लूं तो चली आयी।

ठाकुर के खुशी का ठीकाना ना था....वो यकीन नही कर रहा था की कजरी खुद चल कर उसके घर आयी है......

ठाकुर-- बहुत अच्छा कीया.....कजरी।

दिवान-- ठाकुर साहब रैली नीकालने का वक्त हो गया है.....चलीये आप गाड़ी मे बैठ जाईये....।

ठाकुर-- हां....हां चलो कजरी तुम भी गाड़ी में ही मेरे साथ बैठ जाओ।

कजरी-- अरे.....नही ठाकुर साहब.....गांव की औरतो के साथ ही प्रचार कर लूगीं.....और वैसे भी मुझे बहुत अजीब लगेगा अगर मैं अकेली आपके साथ गाड़ी में बैठुगीं तो।

ठाकुर-- हां.....तो संगीता को भी बीठा लो गाड़ी में क्यू संगीता तुम भी बैठ जाओ।

संगीता-- ठीक है ठाकुर साहब....जैसा आप कहे।

कजरी-- लेकीन संगीता?

ठाकुर-- लेकीन वेकीन कुछ नही.....मेरा प्रचार करने आयी हो तो मेरे साथ ही करना होगा।

कजरी और संगीता को अच्छा तो नही लग रहा था लेकीन फीर भी कुछ बोल नही पाई और जीप में बैठ गयी......।

दिवान ने ठाकुर को इशारा करके एक कोने में बुलाया.....ठाकुर दीवान के तरफ चल दीया।

ठाकुर-- अब क्या हुआ दीवान.....?

दिवान-- ठाकुर साहब......राजकरन की रैली नीकल पड़ी है.....आपने जैसा कहा था मैने सब गांव वालो को पैसा देकर बुला लीया है.....मुझे लगता है की उसके चुनाव प्रचार में सीर्फ राजकरन का परीवार ही होगा।

ठाकुर(हंसते हुए)-- हा......हा......हा, अब इस राजकरन को अपनी औकात का पता चलेगा.....ये दलीत नीचे जाती वाला साला ठाकुर परम सींह से टक्कर ले रहा है मादरचोद। देखते है क्या करेगा ?

* * *

यार रितेश लगता है चुनाव में पापा खड़े होकर गलती कर गये.....

रितेश-- तू ऐसा क्यू बोल रहा है अजय?

अजय(रितेश का दोस्त)-- अरे देख ना सारे गांव वाले उस ठाकुर के तरफ़ चल दीये एक तू ही है जो गांव से आया है।

रितेश-- अरे भोसड़ी के ये चुनावी दावपेच है दीखाने को कुछ और करने को कुछ वाली हाल है....ये तो सिर्फ रैली है गांव के सारे वोट तो तेरे पापा को ही मीलेंगे।

अजय-- तू बोलता है तो ठीक ही होगा.....चल अब अपनी भी रैली नीकालते है।

रितेश अजय के साथ.....चल देता है राजकरन के रैली में कुछ बीस से पच्चीस आदमी ही होगें वो भी घर वाले और यार दोस्त।

दोनो तरफ से रैली चली आ रही थी ठाकुर जीप में खड़ा हाथ जोड़े और उसके साथ दीवान, कजरी और संगीता थे और पिछे भारी भीड़ जो नारा लगा रहे थे ' वोट हमारा खाट पे, ठाकुर साहब राज पे।

ये नारा ठाकुर के तरफ से लग रहे थे.....राजकरन का चुनाव चिन्ह था इट , लेकीन उनका नारा तो सीधा साधा था.....हमारा प्रधान कैसा हो, राजकरन जी जैसा हो।

इन नारो में जोश था....रितेश अजय के साथ बाकी दोस्त भी जोर जोर से चिल्ला रहे थे।

दोनो की रैली गांव भर से गुजर रही थी.....और फीर आमने सामने भी पहुचं गयी।

अजय-- अरे....यार रितेश तेरी मां तो ठाकुर के तरफ से प्रचार कर रही है लगता है।

ये सुनते ही रितेश चक्का बक्का हो गया.....और नज़र उठा कर देखा तो सच में उसकी मां ही थी जो ठाकुर के जीप में बैठी नारा लगा रही थी......।

रितेश को बहुत गुस्सा आ रहा था......आखीर कार दोनो की रैली आमने सामने पहुचं गयी।

कजरी ने जैसे ही रितेश को देखा तो उसके होश ही उड़ गये कजरी का बदन थर थर कापंने लगा और उसे पसीने आने लगा।

रितेश के गुस्से का ठीकाना न था....लेकीन फीर भी वो अपनी मां को नज़र अदांज कर के चुनाव प्रचार में लग गया......।

पुरे दीन प्रचार हुआ.....शाम को कजरी और संगीता बीना ठाकुर से मीले घर चली आती है.....

संगीता-- अरे कजरी तू इतना घबरा क्यूं रही है...रितेश पुछेगा तो बोल देना सिर्फ प्रचार करने ही तो गयी थी।

कजरी-- पता नही क्यूं मेरा दील घबरा सा रहा है तू रुक जा ना रितेश के आने तक।

संगीता-- अच्छा तू घबरा मत मैं रुकती हू....।

शाम से रात हो गयी करीब 9 बज गये लेकीन रितेश अभी तक घर नही आया था...।

कजरी की तो धड़कन बढ़ने लगी.....वो परेशान होने लगी। अब संगीता भी परेशान होने लगी।

संगीता-- अरे कजरी , होगा वो अपने दोस्तो के साथ आ जायेगा बच्चा थोड़ी है वो....

* * *

और इधर रितेश अजय के साथ गांव के पुलीया पर बैठ कर पहली बार शराब पी रहे थे......

अजय-- यार रितेश ये दारु भी कमाल की चिज है....एक बेकार आदमी भी पीने के बाद अपने आप को बादशाह समझने लगता है।

रितेश-- सही कहा यार......मज़ा आ गया।

अजय-- भाई रितेश आज तो बुर चोदने का मन कर रहा है।

रितेश अपनी खाली हो चुकी ग्लास में दारु डालते हुए....

रितेश-- अरे भोसड़ी के मन तो मेरा भी कर रहा है .....लेकीन बुर कोई ऐसी वैसी चीज थोड़ी है जो मील जायेगी....।

अजय-- एक जुगाड़ है.....बोल तो बताऊं॥

रितेश-- अरे बोल तू जल्दी.....।

अजय-- पप्पू की बहन है.....बड़ी चुदक्कड़ है मादरचोद और तेरे घर के बगल में ही रहती है.....पटा ले साली को फीर मजे लूट खूब।

रितेश-- सही कह रहा है.....वैसे भी जब भी वो साली मुझे देखती है तो मचलने लगती है।

अजय-- तो चोद दे साली को......।

रितेश-- हां यार और वैसे भी लंड खड़ा हो कर के झुल जाता है.....ईसको भी अब बुर की जरुरत है...।

अजय-- हां यार सही कहा.....चल अब घर चलते है बहुत देर हो गयी है.....10 बज गया है मेरी मां तो आज चपेट लगायेगी जरुर मुझे।

फीर दोनो उठते है और अपने अपने घर की तरफ नीकल पड़ते है......

* * *

अजय अपने घर की तरफ बढ़ा जा रहा था.....रात काफी ज्यादा हो गया था अंधेरा था....रास्ते भी ठीक से नही दीख रहा था।

वो गांव के पुराने स्कूल से जैसे ही गुजर रहा था उसे कुछ खुसुर फुसुर की आवाज सुनाई दीया.....वो थोड़ा हैरान हो गया की ये आवाज़ कहा से आ रही है।

वो वहीं रुक गया और ध्यान से सुनने लगा तो आवाज़ उसे स्कूल के एक कमरे से आती हुई सुनाई दी......

उसने आवाज़ का पीछा कीया और स्कूल के उस कमरे की तरफ बढ़ा.....अजय धीरे धिरे कमरे की तरफ बढ़ रहा था.....वो जैसे ही कमरे के नज़दीक पहुचां तो उसने अंदर झांका उसे एक औरत की सीसकने की आवाज़ आई........आ......ई.......आ.......ह।

आवाज़ इतनी धीमी थी की अजय पता ना लगा सका की ये गांव की कौन औरत है.....लेकीन उसे इतना तो पता चल गया था की इस कमरे में चुदाई हो रही है,॥

अजय ने पहले सोचा की रुक कर पता करता हू की कौन है ये लोग.....लेकीन फीर बाद में सोचा की इस गांव में तो बहुत सी छिनाल औरते है....इन लोग के उपर समय बरबाद करके क्या मतलब....और फीर वो पीछे मुड़ा और घर की तरफ नीकल गया।

* * *

रितेश जैसे ही घर पहुचां तो कजरी और संगीता दोनो बैठ कर रितेश का इतंजार कर रहे थे.....रितेश के पैर डगमगा रहे थे।
कजरी और संगीता को समझने में देर नही लगी की रितेश दारु पी के आया है.....।

रितेश की हालत देख कर कजरी को बहुत गुस्सा आया की उसने दारु पीया है।

कजरी(गुस्से में)-- तू दारु पी कर आया है घर पर।

रितेश की आंखे अधखुली थी.....उसने इतना पीया था की ठीक से चलना तो दुर ठीक से खड़ा भी नही हो पा रहा था.....रितेश ने अपने लड़खड़ाते हुए जबान से बोला।

रितेश-- हां.....पी है मैने....तो क्या हुआ तेरी तरह बेशरमो की तरह गांव के ठाकुर के साथ थोड़ी घुम रहा था।

ये सुनते ही कजरी का गुस्सा सातवे आसमान पर पहुंच गया......कजरी ने खीच कर रितेश को 3 , 4 थप्पड़ जमा दीया।

कजरी-- नालायक अपनी मां को बारे में ऐसा बोलते हुए शरम नही आयी तूझे।

रितेश-- ओ.....हो मुझे बोलने में शरम आनी चाहीए और तूझे शरम नही आ रही थी ठाकुर के साथ घुमने में और वो भी ठाकुर के जीप पर......॥

कजरी-- मैं अपने मन से नही बैठी थी....ठाकुर साहब ने जबरजस्ती बैठने पर मजबुर कीया तो बैठी।

रितेश-- सही है....यार, तू मुझे ये बता गांव में बहुत सारी औरते है ठाकुर ने तूझे ही बैठने के लीये क्यूं बोला?

रितेश की बात सुनकर कजरी घबरा गयी और समझ नही पा रही थी की क्या जवाब दे और यही हाल संगीता का भी था....क्यूकीं वो दोनो अच्छी तरह से जानती थी की ठाकुर की नीयत उस पर खराब है लेकीन ये बात रितेश को बोलना मतलब खुद के पैर पर कुल्हाड़ी चलाने जैसा था।

इतने में वहां खड़ी संगीता ने बोला.....

संगीता-- तू पागल हो गया है क्या रितेश क्या अनाब शनाब बक रहा है....तूझे पता है हम वहां क्यूं गये थे.....पैसो के लीये गये थे। तूझे सुखी रोटी अच्छी नही लगती ना....तो तेरी मां और मै ठाकुर के चुनाव प्रचार में गये थे हज़ार रुपये मील रहे थे....वो अपने लीये नही गयी थी तेरे लीये गयी थी ताकी तूझे कुछ अच्छा खीला सके.....और एक तू है की अपनी देवी जैसी मां पर ही शक कर रहा है थू।

संगीता की बात सुनकर कजरी रोने लगती है। संगीता कजरी को संभालने लगती है.....और उसे गले से लगा कर बोली।

संगीता-- तू क्यूं रो रही है.....तूने तो अपने मां होने का फर्ज बखुबी नीभाई है....लेकीन ये अपने बेटे होने का फर्ज आज तक नही नीभाया......पुरा गांव इसे नालायक बोलता है......और तूझे एक बात बताती हूं कजरी जो मैने तूझे नही बताया था।

कजरी-- कैसी बात?

संगीता-- ये सच में नालायक है.....मेरी बेटी स्कूल से आती है तो....ये अपने आवारा दोस्तो के साथ उसे छेड़ता है....कल मेरी बेटी आकर मुझे बताने लगी और रोने भी लगी.......।

कजरी को फीर से गुस्सा आया और वो रितेश को मारने के लीए जैसे ही उठी संगीता ने उसे फीर से पकड़ लीया.....

कजरी-- ये इकदम हरामी हो गया है.....अब लड़कीया भी छेड़ने लगा नालायक।

बहुत देर से सुन रहा रितेश ने गुस्से में बोला।

रितेश-- छेड़ता नही उसको पसंद है वो मुझे, प्यार करता हू मैं उससे।

संगीता-- ओ.....हो बड़ा प्यार करता है। खीलायेगा क्या उसको काम धंधा तो कुछ करता नही तूझे तो खुद तेरी मां पाल रही है.....अरे तुझ जैसे नालायक को तो कोइ अपनी लगंड़ी लड़की भी ना दे....... मैं मेरी बेटी भला क्यूं दूगीं?

रितेश को अब इतना गुस्सा आया की॥

रितेश-- हां तो ठीक है तू जा और अपनी बेटी की शादी उस ठाकुर के छोकरो से कर दे।

संगीता-- हां तो कर दूंगी वो खुश तो रहेगी वहां यहां करुगीं तो तील तील कर मर जायेगी।

रितेश खड़ा ये सब बाते सुन कर उसे अपनी बेइज्जती महेसुस होने लगी तो वो घर से बाहर लड़खड़ाते हुए नीकलने लगा तो उसे उसकी मां कजरी और संगीता दोनो ने पकड़ लीया।

कजरी-- कहां जा रहा है तू?

रितेश(अपने आप को छुड़ाते हुए)-- कहीं भी जाऊं तूझे उससे क्या ? मैं यहा अपनी बेइज्जती कराने आया हूं क्या.....और तूझसे नही बोला गया तो इसे लेकर आयी है मेरी बेइज्जती करने।

रितेश की आंखो में आशुं आ गये थे.....जिसे देख कजरी और संगीता दोनो घबरा गये उन्होने ने तो ये बात सीर्फ उसे सुधरने के लिये बोला था.....लेकीन ये बात रितेश को लग सी गयी।

रितेश ने अपना हाथ झटका और वो नाजुक सी दोनो औरते इधर उधर गीर गयी......और रितेश अपना आंशु पोछता लड़खड़ाते हुए तेजी से बाहर नीकल गया......और कजरी , संगीता उसे देखती रहती है।

To be Continued

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रितेश ने अपना हाथ झटका और वो नाजुक सी दोनो औरते इधर उधर गीर गयी......और रितेश अपना आंशु पोछता लड़खड़ाते हुए तेजी से बाहर नीकल गया......और कजरी , संगीता उसे देखती रहती है।

संकिरा का रहस्य | Sankira Ka Rahasya | Update 2

रात को रितेश गांव के बाहर पुलीया पर बैठा था। आंखो में आशुं लीये यही सोच रहा था की.....यार मैने गलत कर दीया अपनी ही मां के बारे मैं बुरा भला कह दीया......जाकर माफी मांग लूगां॥

और यही सोचते सोचते वह उस पुलीया पर लेट गया.......और उसे पता नही कब नींद आ गयी पता ही नही चला॥

घर में संगीता और कजरी दोनो फीर से परेशान होने लगीं क्यूकीं बहुत ज्यादा रात हो चुकी थी......

कजरी -- सब मेरी गलती थी......गलती मैने की और थप्पड़ भी मार दीया। अगर नही जाती ठाकुर के चुनाव प्रचार में तो कुछ नही होता....ना जाने कहां होगा?

संगीता-- अरे होगा कहीं अपने दोस्त के घर आ जायेगा सुबह चल तू सो जा..।

कजरी-- नही संगीता मुझे नींद नही आ रही है...तू सो जा। और वैसे भी ओ सुबह से कुछ खाया पीया नही है.....।

कजरी और संगीता दोनो कुछ रात तक ऐसै ही बात करते रहे फीर उन लोग को भी नीदं आ गयी और नींद की आगोश में चले गये।

सुबह के करीब 5 बजे थे जब रितेश की नीदं खुली.....

रितेश-- अरे यार.....मैं यहां कैसे सो गया....अच्छा हुआ कीसी ने देखा नही ॥ चल बेटा जल्दी घर नीकल ले

और रितेश फीर घर की तरफ नीकल पड़ा....

घर पहुचां तो देखा उसकी मां बकरीयों को चारा डाल रही थी....संगीता अपने घर नीकल चुकी थी।

कजरी ने जैसे ही रितेश को देखा दौड़ कर उसे गले लगा लीया....। और रोने लगती है.....

कजरी-- मेरी बातो का इतना बुरा मान गया की रात भर घर से बाहर चला गया.....मेरा थोड़ा भी खयाल नही आया।

कजरी के इस तरह रोने और बात करने से रितेश के भी आंखो में आशुं आ गया....

कजरी-- हां मुझे पता है....की मैं तुझे तेरे पंसद का खाना नही खीला पाती, लेकीन क्या करुं औरत हूं ना...

कजरी अभी बोल ही रही थी की...रितेश ने कजरी को और कस के अपनी बांहो में समेट लीया......कजरी को भी अपने बेटे पर ईतना प्यार आया की वो भी रितेश से कसकर चीपक गयी।

मां बेटे का ये प्यार करीब पांच से दस मीनट तक एक दुसरे को चीपकाये रखा....उसके बाद रितेश ने अपनी मां को अलग कीया और बोला....

रितेश-- मां अब तूझे परेशान होने की जरुरत नही हैं॥ अब से सारी जीम्मेदारी मेरी।

कजरी ये सुनते ही उसके चेहरे पर लालीमा बीखर गयी......

कजरी-- कल से कुछ खाया नही है तू.....कुछ खा ले।

रितेश-- खाइ तो तू भी नही है....खाना ला दोनो साथ में खाते है।

कजरी-- नही बेटा तू खा ले.....मैं बकरीयो को चारा डालने के बाद खा लूगीं॥

रितेश-- अरे....मां मेरे होते अब तूझे काम करने की जरुरत नही है.....मैं डाल देता हू चारा।

आज कजरी को ऐसा लग रहा था......जैसे उसकी कमजोर बांहो को मजबुत कंधे का सहारा मील गया हो.....।

* * *

ठाकुर परम सींह अपने बैठक में अपने दोस्त के साथ बैठा था......तभी उसके घर की नौकरानी चम्पा हाथ में चाय ले कर आयी।

चम्पा गांव की ही औरत थी जो करीब करीब दो दीन पहले ही ठाकुर के घर में काम पर लगी थी.....उसका पती दीना जो की ठाकुर के खेतो में और घर के बाहर के काम काज को सम्भालता था.....उसी ने उसे ठाकुर के घर में काम पर रखा था....।

चम्पां मांसल बदन की सांवली औरत थी.....उसके बड़े बड़े गांड उसका सबसे बड़ा आकर्षक केद्रं था.....।

चम्पा चाय की थाली में से चाय का कप नीकाल कर ठाकुर और उसको दोस्तो को पकड़ा दीया...... और फीर अपनी बड़ी बड़ी गांड मटकाती वहां से चली गयी।

ठाकुर और उसके दोस्तो की नज़र चम्पा की गांड पर बराबर गड़ी थी.....।

अरे ठाकुर साहब .......अपके गांव की औरते तो कसम से कहर ठा रही है.....ये आपकी नौकरानी तो जबरजस्त माल है।

ठाकुर-- अरे सेठ जी......लगता है आपको पसंद आ गयी ये साली।

सेठ जी-- पसंद तो आ गयी.....ठाकुर साहब , लेकीन सीर्फ पसंद आने से ही क्या होता है वो चीज भी तो मीलनी चाहीए।

ठाकुर-- चीज तो आपको मील जायेगी सेठ जी.....लेकीन मुझे क्या मीलेगा?

सेठ जी-- वाह ठाकुर साहब कमजोरी का फायदा उठाना तो कोई आप से सीखे......बोलीए क्या चाहीए आपको।

ठाकुर-- इस बार मेरे गांजे से लदा हुआ ट्रक वीरहान पुर जा रहा है......लेकीन अपके छेत्र में पुलीस का कड़ा प्रशाशन होने की वजह से.......मेरा माल वहां तक पहुचं नही पा रहा है....तो अगर आप इसमें मेरी कुछ मदद कर सके तो।

सेठ-- ठाकुर साहब......इतने बड़े रीस्की काम का इनाम ये सीर्फ आपकी नौकरानी सौदा कुछ ठीक नही।

ठाकुर-- तो फीर सेठ जी आपकी कैसी सेवा कर सकता हूं॥

सेठ-- अगर आप को ये रीस्की काम को करवाना है तो.....आप अपने बेटे की शादी मेरे बेटी से कर दो......इस से हम रिश्तेदार भी बन जायेगे।

ठाकुर-- वाह सेठ जी....क्या बात कहा है आपने.....ये तो सच में खरा सौदा है।

सेठ-- हां लेकीन आपकी नौकरानी के जवानी का रस ?

ठाकुर-- सेठ जी वो तो मैं आपको आज चखा दूगां आप उसके बारे में चीतां मत करो।

ठाकुर और सेठ की बाते चम्पा छुप कर सुन रही थी.....ये बात सुन कर की सेठ उसे चोदने की फीराक में है चम्पा के चेहरे पर कातीलाना मुस्कान फैल जाती है......

ठाकुर वहां से उठ कर सीधा......चम्पा के पास ही आता है।

चम्पा जैसे ही ठाकुर को देखती है की वो उसके पास ही आ रहा है तो....वो दबे पावं पीछे की ओर चल देती है......और रसोई घर में चली जाती है।

चम्पा को रसोई घर में जाते ठाकुर ने देख लीया ......तो वो भी चम्पा के पीछे सीधा रसोई घर में आ जाता हो।

रसोई घर में चम्पा खड़ी थी......उसके करीब आ कर ठाकुर बोला-

ठाकुर-- तूने तो सब कुछ सुन ही लीया होगा चम्पा......अब मैं तेरी राय जानना चाहता हू। देख मना मत करना .....इसके बदले तू जो कहेगी मैं वो तूझे दूगां॥

चम्पा की तो मारे खुशी का ठीकाना न था.....चम्पा ने सोचा , यही सही मौका है.....पैसे ऐठने का...।

चम्पा-- ठाकुर साहब......ये गलत है। अगर कीसी को पता चला गया तो मै तो बदनाम हो जाउगीं और मेरा मरद तो जान से मार देगा.....।

ठाकुर-- अरे चम्पा कीसी को कुछ पता नही चलेगा....ये मै वादा करता हूं और रही बात तेरे मरद की तो वो मादरचोद को तो मैँ आज पुरी रात खेत के काम पर ही लगा रखुगां......बात ये है की तू मान जा बस।

चम्पा-- आपने तो सेठ जी से सौदा कर लीया....पर मुझे क्या मीलेगा?

चम्पा की ये बात सुनकर ठाकुर को यकीन हो गया की ये पैसे की बात कर रही है।

ठाकुर-- अरे चम्पा रानी....एक बार सेठ को खुश कर दे तू जो बोलेगी तूझे वो मीलेगा।

चम्पा-- आप उसकी चींता मत करो ठाकुर साहब सेठ जी की तो मै वो सेवा करुगीं की वो पागल हो जायेगें।

चम्पा की बात सुनकर ठाकुर खुश हो गया....उसने चम्पा को खीचकर अपनी बांहो में कस लीया.....।

ठाकुर-- अह.......चम्पा रानी सीर्फ सेठ को ही खुश करेगी ......मुझे नही।

चम्पा ने अपनी बाहें ठाकुर के गले में डाल दीया.....

चम्पा-- कहो तो अभी खुश कर दूं॥

चम्पा की बात सुनकर ठाकुर को जोश आ गया उसने चम्पा की बड़ी बड़ी चुचीयां मसलने लगा।

ठाकुर-- तेरा भोसड़ा तो मैं बाद में भी फाड़ दूगां लेकीन पहले तू सेठ से फड़वा ले।

चम्पा-- आह.....ठाकुर साहब थोड़ा धीरे मसलो.....दर्द होता है.....मेरा भोसड़ा तो....आ...ह सेठ जी पता नही फाड़ अ....ह....पायेगें की नही।

ठाकुर चम्पा की चुचीयों को और जोर से मसलने लगा....।

ठाकुर-- क्यूं क्या सेठ में दम नही दीख रहा तूझे।

चम्पा-- आह.....वो तो आज रात को पता चल ही जायेगा. ..इ...इ.....आह।

ठाकुर ने चम्पा की चुचींयो को छोड़ दीया....।

ठाकुर-- ठीक है चम्पा रानी आज रात को तैयार रहना.....और एक बार कस कर चम्पा की चुचीं को दबा देता है और फीर बाहर चला जाता है........।

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ठीक है चम्पा रानी आज रात को तैयार रहना.....और एक बार कस कर चम्पा की चुचीं को दबा देता है और फीर बाहर चला जाता है.

संकिरा का रहस्य | Sankira Ka Rahasya | Update 3

कजरी.......और रीतेश आज सुबह सुबह ही खाना खा लिये थ........हालाकीँ कजरी नही खा रही थी....लकीन रितेश ने जबरदस्ती खाना खीला दीया।

कजरी-- बेटा सुबह सुबह ही तूने खाना खीला दीया.....अभी तक तो मैं नहायी भी नही थी...।

रितेश-- तो क्या हुआ मा.....कल से कुछ खायी भी तो नही थी......॥

कजरी-- अच्छा जी....मेरे बेटे को कब से मेरी फीक्र होने लगी?

रितेश-- बस यूं ही।

कजरी और रितेश दोनो बाते कर ही रहे थे की ......उसकी पड़ोसन रज्जो आ गयी....।

रज्जो-- क्या बातें हो रही है मां बेटे में?

रज्जो की बात सुनकर , दोनो ने अपनी नज़र उठायी तो देखा , पास में रज्जो खड़ी थी.....॥

कजरी-- अरे , रज्जो कुछ नही बस ऐसे ही...। बैठ तू .....।
वैसे तो रज्जो हमेशा सज संवर कर ही रहती है.....लेकीन आज उसने एक हरे रंग की साड़ी पहन रखी थी.....जो उसकी भारी भरकम शरीर से चीपकी हुई थी.....जीसमे उसकी मोटी गांड का उभार साफ दीख रहा था.......ब्लाउज तो इतने कसे हुए थे की.....उसकी आधी से ज्यादा चुचींया ब्लाउज के बाहर ही उछल कूद कर रही थी..।

रज्जो के बैठते ही....रितेश की नज़र सीधा रज्जो की बाहर नीकली हुई चुचीयों पर पड़ी।

रज्जो-- आज नही चलेगी.....कजरी ठाकुर के प्रचार में?

कजरी-- नही रज्जो.....अब तो मैं कीसी प्रचार व्रचार में नही जाउगीं॥

रज्जो-- अच्छा.....तो रितेश बेटा तू क्यू नही चलता?

रितेश के उपर रज्जो के बात का कोई असर ही नही पड़ा.....उसकी नज़र तो....रज्जो की अधखुली चुचींयो पर थी....वो एकटक रज्जो की चुचीयों को नीहारे जा रहा था।

रज्जो के एक बार बुलाने पर जब रितेश को कोई फरक नही पड़ा तो....रज्जो और कजरी दोनो की नज़रे रितेश के नज़रो का पीछा कीया तो.....पाया की रितेश की नज़र तो रज्जो की चुचीयों पर टीकी थी।

ये देख रज्जो ने....रितेश को छिंछोड़ाते हुए बोली-

रज्जो-- कहां ध्यान है तेरा बेटा.....मै तूझसे बात कर रही हूं॥
इतना सुनते ही रितेश .....जैसे होश में आया।

रितेश-- क....क.....कहीं नही काकी। वो मैं कुछ सोच रहा था।

रज्जो ये सुनकर मुस्कुरा देती है......और अपनी चुचींयो पर से साड़ी का पल्लू थोड़ा और हटाते हुए बोली-

रज्जो-- अरे बेटा.....अभी तू बच्चा है....ज्यादा सोचा मत कीया कर.....है की नही कजरी?

कजरी-- हां.....सही कहा रज्जो ने।

कजरी(मन में)- - छीनाल.....एक तो अपनी चुचींया दीखा कर मेरे बेटे को भड़का रही है.....और उपर से कह रही है की ज्यादा सोचा मत कीया कर , छिनाल कही की इससे तो अपने बेटे को दूर रखना पड़ेगा नही तो ये छिनाल मेरे बेटे को बिगाड़ कर रख देगी......यही सोचते हुए.....

कजरी-- अरे.....बेटा, तूझे आज अजय के साथ प्रचार में नही जाना है क्या?

रितेश-- हां ......मां बस जा रहा हूं॥

और रितेश उठ कर खड़ा हो जाता है....।

रज्जो-- अरे बेटा रितेश मैं भी ठाकुर के यहां जा रही हूं तो तेरे साथ ही कुछ दूर तक चली चलती हूं॥

इतना सुनते ही.....रितेश की बाछें खील गयी.....उसने सोचा क्या बात है साली की चुचींया देखने का थोड़ा और मौका मील जायेगा।

रितेश-- हां.....काकी चलो ना।

और फीर रज्जो रितेश के साथ चल देती है॥

कजरी बैठे बैठे उन दोनो को जाते हुए देखती रहती है.....और रज्जो के उपर उसका गुस्सा चढ़ा चला जाता हे...।

कजरी(मन में)-- ये छिनाल कहीं मेरे बेटे को बिगाड़ ना दे....क्या करू कुछ समझ में नही आ रहा है.....कैसे दुर रखु अपने बेटे को इस छिनाल से......यही सोचते हुए कजरी उठ कर घर के अँदर चली जाती है।

रास्ते में रितेश रज्जो की चुचींयो को कनखी से ताड़े जा रहा था....जीसका पता रज्जो को था।

रज्जो(मन में)-- अरे रज्जो......इससे अच्छा मौका नही मीलेगा .....रितेश के मोटे और लम्बे लंड से अपने बुर की खुजली मीटवाने का......इस बेचारे को तो इतना भी नही पता है की इसने अपने पास कीतना दमदार हथीयार छुपा रखा है.......आह.....क्या बताउं जब से इसे घर के पिछवाड़े मुतते समय इसका लंड देखा है.....मेरी बुर तो फड़क रही है.....साले का क्या लंड है.....मेरी बुर का भी कचुम्बर बना दे....ऐसा लंड है इसका।

रितेश लगातार रज्जो की चुचीयों पर अपनी नज़र जमाये था.....ये देख रज्जो ने बोला-

रज्जो-- बेटा रितश क्या देख रहा है?

ये सुनकर रितेश थोड़ा घबरा गया....और हकलाते हुए बोला।

रितेश-- क.....कुछ नही काकी।

रज्जो-- देख झूठ मत बोल.....मैं जानती हू तू कब से क्या देख रहा है.....लेकीन तू सच सच बता की क्या देख रहा था?

रज्जो की इस बात से तो रितेश की गांड ही फट गयी.....उसने सोचा की कही साली ने मुझे इसकी चुचींया देखते हुए तो नही देख ली।

रज्जो-- क्या सोचने लगा......बता ना की क्या देख रहा था?

रितेश(हकलाते हुए)-- सच कह रहा हूं काकी....कुछ नही देख रहा था।

रज्जो-- अच्छा.....चल ठीक है....लेकीन तूझे एक बात बता दू....की कुछ चीजें देखने के लीये नही होती।

रितेश-- मैं कुछ समझा......नही काकी।

रज्जो-- धिरे.....धिरे सब समझ जायेगा बेटा....की कुछ चीजे देखने के लीये नही होती(कहकर रज्जो ने अपनी एक चुचीं खो हल्के से दबा देती है)

रज्जो के ऐसा करते देख.....रितेश की हालत खराब हो जाती है.....उसके लंड में खुन का प्रवाह होने लगता है......और फीर धीरे धिरे उसका लंड खड़ा होने लगता हे।

रज्जो की नज़र अचानक ही रितेश क पैटं पर पड़ा जो अब तक उभार ले चुका था.....जीसै देख रज्जो ये समझ गयी थी की ये रितेश का घोड़े जैसा लंड ही है.....रज्जो के कल्पना मात्र से ही उसके बुर में झनझनाहट होने लगती है.....।

गांव के कच्चे सड़क पर चल रहे रज्जो और रितेश दोनो ही अपने अपने हथीयार को समझा कर चल रहे थे......की तभी कुछ दुर आगे......एक कुत्ता एक कुतीया के उपर चढ़ कर चुदाई कर रहा था.....जिस पर उन दोनो की नज़र पड़ जाती है।

उन दोनो की गरमी बढ़ाने के लीये......ये नज़ारा कीसी आग में पड़ रहे घी की तरह था.....।

कुतीया......मुह फाड़ कर चील्ला रही थी.....और कुत्ता जोर जोर से.....उस कुतीया को चोदे जा रहा था.....।

वो दोनो जैसे ही पास में पहुंचते हे.....कुत्ता और कुतीया भाग खड़े होते है....।

रितेश तो चुप था......लेकीन रज्जो से रहा नही जा रहा था....।

रज्जो-- ये आज कल कुत्ते भी ना.....कही भी चालू हो जाते है।

रितश-- हां काकी.....थोड़ा भी दीमाग नही है इन कुत्तो को.....॥

रज्जो-- हां ......अब देख ना की कुतीया मुह फाड़ फाड़ कर चील्ला रही थी लेकीन.....कुत्ता साला जबरजस्ती कीये जा रहा था....।

रज्जो के मुहं से ऐसी बाते सुनकर रितेश का.....लंड उफान पर पहुच गया.....उसका पैट तो मानो जैसे फट जायेगा उसके लंड के तनाव से......रज्जो ने देखा की रितेश का लंड झटके मार रहा है.....तो छिनाल रज्जो ने अपना चाल चलते हुए कहा-

रज्जो-- अरे......बेटा रितेश क्या हुआ तूझे?

रितेश-- कहां क्या हुआ काकी?

रज्जो-- इशारा करते हुए .....ये तेरे नुन्नी को क्या हुआ.....पैटं में झटके मार रहा है।

रितेश की तो सिट्टी पिट्टी गुल हो.....गयी क्यूकीं उसे थोड़ा भी अदांजा नही था की, रज्जो काकी ऐसी बाते कह देगी.....रितेश तो इकदम शरमा गया.....वो समझ नही पा रहा था की क्या बोले।

रज्जो-- अरे क्या हुआ बेटा.....शरमा क्यूं रहा है.....पेशाब लगी है क्या? जो ये तेरा नुन्नी झटके मार रहा है।

रितेश-- ह......हां काकी.....मुझे पेशाब ही लगी है।

रज्जो-- तो कर ले ना, इसमे शरमाने वाली कौन सी बात है....।

रितेश(मन में)-- अरे.....रंडी साली तेरे मुह में पेशाब करने का मन कर रहा है....।

रज्जो-- अरे अब क्या सोचने लगा.....जगह पसंद नही आयी क्या? की अपनी काकी के मुह में मुतेगा।

रितेश तो ये सुनकर दंग रह गया.....ये तो वो बात हो गयी की जैसे उसके मन की बात रज्जो ने सुन ली हो......रितेश ने सोचा की ये साली तो पुरी चुदासी है.....और इतना खुल कर बात कर रही है......तो मैं क्यूं शरमा रहा हूं॥

रितेश-- काकी मन तो मेरा भी है.....की मैं तेरे मुह में ही मुतु ......लेकीन तू थोड़ी ही मेरा मुत पीयेगी......।

ये.......बात सुनकर तो रज्जो पहले तो दंग रह गयी लेकीन फीर उसके दुसर छंड़ ही उसके चेहरे पर एक कातीलाना मुस्कान भी फैली...।

रज्जो-- हे.....भगवान तू.....मेरे मुह में मुतेगा। कीतना गंदा है रे तू......ऐसा सोचता है तू मेरे बारे मे......चल आज तो मैं तेरे मां से मीलुगीं॥

रितेश की सीट्टी पिट्टी गुल......रज्जो की बात उसके होश उड़ा दीये थे.....।

रितेश-- नही.....काकी गलती से.....नीकल गया.....तूने मुह में मुतने की बात की तो मेरे भी मुहं से नीकल गया......माफ़ कर दे काकी मां से कुछ मत कहना(रितेश एक हद तक गीड़गीड़ा कर बोला)

रितेश की हवा टाइट होते देख.....रज्जो की तो बांछे खील गयी.....उसने थोड़ा बनावटी गुस्से में बोली।

रज्जो-- तो क्या....अगर मैं बोलूगीं की मुझे चोद तो तू मुझे चोद देगा....आं.....बोल।

अब तो रितेश और ज्यादा घबरा गया.....उसके पास कोई जवाब ही न था....तो चुपचाप खड़ा रहा।

रज्जो-- खड़ा.....क्यूं हैं बोल.....चोदेगा मुझे तू......अगर मैं बोलूगीं तो.....हा.....बोलता क्यूं नही.....तू अपना मुसल घोड़े जैसा लंड मेरी बुर में डालकर चोदेगा.....बोल।

रितेश तो हक्का बक्का रह गया.....रज्जो के मुह से ऐसी बाते सुनकर।

रितेश-- नही काकी.....गलती हो गयी माफ़ कर दे.....।

रज्जो-- नही....कुछ गलती नही....अब तो तूझे सज़ा मीलेगी ही.....अगर तू चाहता है...की ये बात तेरी मां तक ना पहुचें तो आज.....रात को चुपके से मेरे घर में आ जाना। तूझे तेरी सज़ा वही सुनाउगीं......समझा।

रितेश बेचारा मरता क्या ना करता.....उसे रज्जो की बात माननी पड़ी.....और हां में सर हीला कर.....अजय के घर की तरफ़ चल दीया......और रज्जो ठाकुर की तरफ।

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रितेश बेचारा मरता क्या ना करता.....उसे रज्जो की बात माननी पड़ी.....और हां में सर हीला कर.....अजय के घर की तरफ़ चल दीया......और रज्जो ठाकुर की तरफ।

संकिरा का रहस्य | Sankira Ka Rahasya | Update 4

रितेश अजय के घर पहुचता है......जंहा अजय पहले से ही चुनाव प्रचार की तैयारी में था।

अजय-- अरे भाई इतनी देरी से आ रहा है.....।

रितेश-- अरे.....हाँ यार खल थोड़ा देर से सोया था तो नीद नही खुली...॥

अजय-- चल कोइ बात नही......वैसे आज तुझे चुनाव प्रचार करने में बहुत मज़ा आयेगा!

रितेश-- वो क्यूं बे?

अजय-- अरे भाई क्यूकीं आज तेरी जान आई है....मेरी बहन के साथ चुनाव प्रचार करने में॥

ये सुनकर एक समय के लीये रितेश के चेहरे पर चमक आ जाती है....जो साफ साफ अजय देख सकता था....लेकीन कुछ पल बाद ही उसका चेहरा उतर जाता है.....।

अजय-- क्या हुआ बे....तेरा चेहरा उतर क्यूं गया? तूझे खुशी नही हुइ क्या?

रितेश-- अरे काहे की खुशी बे......वो मुझे पसंद ही नही करती......मेरी शिकायत अपने मां से करती है की मै उसे छेड़ता हूं।

अजय-- चल ठीक है.....यारा छोड़ जाने दे। ऐसी लड़कीयां प्यार को नही समझती.....सुना है.....आंचल के पीछे ठाकुर का छोटा बेटा लगा है.....स्कूल में दोनो की बहुत पटती है....।

रितेश-- तू सही कह रहा है.....मेरे जीवन का कालचक्र ये ठाकुर का ही परीवार है......एक तो ये ठाकुर मेरी मां के पीछे लगा है.....और ये दुसरा उसका बेटा मेरी जान के पीछे......कुछ समझ ही नही आता की क्या करुं?

अजय -- यार सही कह रहा है तू.....जब कोई अपनी मां को गदीं नीगाह से देखता है ना तो खून खौल जाता है.....।

रितेश-- हां सही कहा तूने.....और हद तो तब हो जाती है जब वही मां हंस हंस कर उन लोगो से बात करने लगती है.....।

अजय-- एक बात बोलू भाई?

रितेश-- हां बोल ना।

अजय-- ये जो मां है ना......भाई ये भी औरत ही है.....भगवान ने इनको भी भोसड़ा दीया है.....तो लंड तो चाहीए ही ना।

रितेश-- तो इसका मतलब कीसी का भी लंड ले लेंगी ये लोग।

अजय-- सही कहा यारा......कभी कभी तो मन करता है की मै ही चोद दू और जीतना लंड चाहीए उतना अंदर डाल कर इनका भोसड़ा फाड़ दूं।

ये सुनकर रितेश हंसने लगता है और बोला--

रितेश-- अरे तो तू अपनी मां चोदेगा?

अजय-- हां तो क्या करुं ? दुसरे से चुदवायेगीं तो इससे अच्छा हमसे ही चुदवाले ना....। साला घर की बात घर में.
....और मज़ा अलग से...।

रितेश-- अरे भोसड़ी के 5 इचं का लंड लेकर तू अपनी मां के भोसड़े में क्या गदर मचायेगा?

अजय-- तो भोसड़ी के तू चोद ना.....तेरे पास तो घोड़े का है ना......कसम से तेरे जैसा लंड मेरे पास होता ना तो अपनी मां कब का चोद देता।

रितेश.......ये सुनकर सोच में पड़ गया की यार अजय के बात में तो दम है......साला ठाकुर पिछे पड़ा है......कही साले ने कुछ इधर उधर की पट्टी पढ़ा कर मां को फंसा लीया तो गड़बड़ हो जायेगा.....कहीं मुह दीखाने लायक नही रहूंगा......लेकीन क्या मां के साथ ये सब करना......मां क्या सोचेगी......वो तो जान से मार देगी मुझे।

रितेश यही सब सोच रहा था की तभी अजय ने उसे झींझोड़ा....।

अजय-- क्या सोचने लग गया बे?

रितेश-- क......कुछ तो नही। चल......प्रचार करते है।

और रितेश जाने ही वाला था की अजय ने कहा--

अजय-- भाई तू जो सोच रहा था ना एक बार कर के देख.....कसम से उससे ज्यादा मज़ा जींदगी में और कुछ नही।

ये सुनकर रितेश थोड़ा मुस्कुराया और बोला@

रितेश-- भाई अगर कही गड़बड़ हो गया तो उससे बड़ा तकलीफ भी जींदगी में कही नही...।

ये सुनकर अजय भी हंस पड़ा......दोनो हंस ही रहे थे की तभी अजय के घर के अँदर से उसकी बहन निलम के साथ आंचल बाहर नीकली.....

दोनो को हंसता देख आंचल ने नीलम से कहा-

आंचल-- नीलम तूझे एक बात बता दूं की तू अपने भाई को इस लोफड़ से दूर रखा कर नही तो वो भी बर्बाद हो जायेगा।

नीलम-- मुझे तू एक बात बता ? आखीर तू रितेश से इतना जलती क्यूं है?

आंचल-- तो इसमें पसंद करने जैसा है ही क्या? दीन भर आवारा गरदी करता है.....बेचारी काकी इधर उधर से हाथं पैर मार के पैसा लाती है तो इसको खीलाती है....ईसको जब अपनी मां की नही पड़ी है तो मेरा क्या खयाल रखेगा?

आंचल की बात सुनकर नीलम हंसने लगी....नीलम को हंसता देख आंचल न कहा-

आंचल-- तू हंस क्यू रही है?

निलम-- हंस इसलीये रही हूँ की तेरे ख्याल रखने वाली तो मैने की नही.....तू ही बोल रही है की....वो मेरा खयाल क्या रखेगा? इसका मतलब वो तूझे पंसद है सीर्फ वो कुछ काम धाम नही करता इसलीये तू उसपे गुस्सा होती है.....!

निलम की बात सुनकर आंचल शरम से लाल हो जाती है....जो नीलम अच्छी तरह से देख सकती थी।

निलम-- ओ....हो शरमा क्यूं रही हो.....प्यार करती है की नही....अगर नही करती तो बोल दे मैं अपना जुगाड़ लगा लूं........।

आंचल-- मुंह तोड़ दूंगी तेरे....जो उसकी तरफ देखा भी तो।

निलम-- ओ हो....बड़ा प्यार आ रहा है....।
आंचल-- हां तो आ रहा है तो तूझे क्या चल चुनाव प्रचार करने.....।

और फीर सब लोग.....चुनाव प्रचार मेँ चल देते है॥

* * * 

दोपहर का समय था......कजरी घर पर थी....पेड़ के छांव में अपनी बकरीया बांध कर उसे चारा डाल रही थी.....की तभी उसके घर पर एक गाड़ी आकर रुकती है....कजरी गाड़ी को देख कर बकरीयो को चारा डाल छोड़ खड़ी हो जाती है....।

गाड़ी में से ठाकुर बाहर नीकलता है.....जीसे देख कजरी हील जाती है.....उसने सोचा की ठाकुर क्यूं आया है उसके घर?

ठाकुर मुनीम के साथ सीधा कजरी के पास आता है.....।

ठाकुर-- अरे......कजरी कैसी हो तूम?

कजरी-- ठ.....ठीक हूं ठाकुर साहब.....बोलीये कैसे आना हुआ?

ठाकुर-- अगर कुछ काम होगा तो ही आ सकता हूं क्या?

कजरी-- न....नही ठाकुर साहब मेरे कहने का मतलब ये नही था....।

ठाकुर-- अच्छा ठीक है.....मैं तो ये पुछने आया था.....की आज तुम चुनाव प्रचार में क्यूं नही आयी?

कजरी-- वो.....वो ठाकुर साहब.....घर पर इतना काम है की.....मैं आ नही पाती...।

ठाकुर-- अरे......घर का काम तो रोज ही रहता है.....लेकीन मेरा चुनाव प्रचार तो कुछ ही दीनो का है.....मुझे तो लगता है की तुम जानबुछ कर नही आती....।

कजरी-- नही.....ठाकुर साहब ऐसी कोई बात नही है......दरशल बात ये है की....मेरे बेटे को अच्छा नही लगता की मैं गांव में घुमु। तो इसीलीये मैं नही आती....।

ठाकुर-- ये तो बिल्कुल सही बात है कजरी....की कीसी का भी बेटा ऐसा नही चाहता की उसकी मां पुरे गांव में घुमे.....खास कर वो बेटा जीसका बाप ना हो...। कोई बात नही कजरी अगर तुम्हारे बेटे को अच्छा नही लगता तो मुझे तुम्हारे उपर जोर जबरदस्ती करके कुछ मतलब नही है.....ठीक है तो फीर मैं चलता हूं.....।

ठाकुर जाने के लीये जैसे ही मुड़ा.....की अचानक रुक कर बोला-

ठाकुर-- अच्छा.....तुम्हारा वोट तो मीलेगा ना.....की वोट भी बेटे के मन से डालोगी?

कजरी-- वो...वो.....मै.....तो।

ठाकुर-- कोई बात नही जंहा मन हो वहीं डालना.....लेकीन फीर भी एक बार हाथ जोड़ कर विनती करुगां की वोट खाट के चुनाव चिन्ह पर डालना.....और बोलकर ठाकुर मुनीम के साथ गाड़ी में बैठकर चल देता है......।

कजरी वही खड़ी ठाकुर को देखती रहती है......उसे समझ में नही आ रहा था.....क्यूकीं जीस तरीके से ठाकुर ने आज बात की थी....कही ना कही कजरी को ठाकुर के बारे में सोचने पर मजबुर कर दीया था.....।

कजरी(मन में)-- आज ठाकुर साहब कीतने अच्छे से बात कर रहे थे......क्या सच में ठाकुर साहब ऐसे ही है.....या फीर कुछ और.....।

और इधर ठाकुर के साथ गाड़ी में मुनीम बैठा था.....और गाड़ी हवेली की तरफ बढ़ रही थी....।

ठाकुर-- मुनीम.....क्या लगता है तूझे.....तेरा तरकीब काम करेगा?

मुनीम-- 100 प्रतिशत ठाकुर साहब.....बस मैं जैसा कह रहा हूं बस आप वैसा करते जाइये.......याद है आपको जब कजरी के...।

ठाकुर-- खामोश मुनीम! वो बात अगर कभी दुबारा तेरी जुबां पर आया तो.....हलक से जुबान खींच लूगा....मुझे तेरी तरकीब पर भरोसा है....।

मुनीम-- गलती माफ हो ठाकुर साहब......लेकीन कजरी के जवानी का रस आपको लूटना है.....तो उसके बेटे का कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा...।

ठाकुर-- अब तू ही कोई तरकीब लगा मुनीम की उसका क्या करना है....।

और फीर गाड़ी तेज रफ्तार के साथ हवेली में दाखील हो जाती है........

* * *

दीन भर चुनाव प्रचार करके आंचल अपने घर आ चुकी थी.....वो आज थोड़ा परेशान लग रही थी.....वो सीधा चुपचाप अपने कमरे में चली गयी.....यहां तक की बाहर उसकी मां संगीता बैठी थी....उसे भी बीना कुछ बोले वो अंदर चली गयी..।

ये देख संगीता भी हैरान रह गयी की इसको क्या हो गया बीना कुछ बोले ही अंदर चली गयी...।

तो संगीता भी उठ कर आंचल के कमरे में चली आती है.....।

आंचल खाट पर लेटी .....अपना चेहरा तकीये में घुसा कर रो रही थी....।

संगीता-- आंचल.....क्या हुआ बेटी क्यूं रो रही है...।

आंचल वैसे ही पड़ी रो रही थी......और बोली-

आंचल-- कुछ नही मां तू जा...।

संगीता आंचल के सिरहाने बैठ जाती है और प्यार से उसकै सर पर हाथ फीराती हुई बोली-

संगीता-- रितेश ने फीर छेड़ां क्या तूझे.....तू बोल मैं उसकी खबर लेती हूं.....छेंड़ा क्या उसने तूझ?

आंचल रोते हुए खाट पर उठकर बैठते हुए बोली-

आंचल-- नही छेंड़ा मां ......इसी लीये तो रो रही हूं।

'आंचल की बात सुनकर संगीता दंग रही है.....उसने सोचा की ये लड़की क्या बोल रही हो।

संगीता-- तू क्या बोल रही है....मुझे कुछ समझ नही आ रहा है....।

आंचल(अपने आंशु पोछते)-- अ...आज मै.....नीलम के यहां चुनाव प्रचार में गयी थी.....पुरा दीन मेरे आजू बाजू ही था.....लेकीन एक बार भी मेरी तरफ नही देखा.....उसने....वो क्या सोचता है मां......की मै उसको नीचा दीखाती हूं तो क्या मैं उससे प्यार नही करती....।

आंचल की बातो ने तो संगीता के बदन में चीटीया दौड़ा दी.....वो सोचने लगी की ये कैसी लड़की है.....जीस लड़के की बुराईया करते थकती नही थी......आज उसी के लीये ये रो रही है वो भी इसलीये की उसने आज एक बार भी इसे देखा नही..।

संगीता-- तो तू रितेश को पंसद करती है?

आंचल-- पसंद.......मेरी तो दीन उसके खयालो से और रात उसके हसीं सपनो से कटती है.....मै उस पर चिल्लाती थी की ताकी वो अपनी जीम्मेदारीयो को समझे और घर परीवार के बारे में सोचे.....।

कसम से संगीता के लीये ये सब एक सपना सा लग रहा था.....क्यूकीं उसने आज तक आंचल के जुबान पर रितेश के लिये कड़वे शब्द छोड़ कुछ नही सुनी थी...।

वह यह जानती थी की रितेश ने आंचल को क्यूं नही देखा एक बार भी! क्यूकीं उस दीन उसने रितेश को इतना सुना जो दीया था.....।

संगीता ने ठहरे हुए लफ्जो में कहा-- कुछ नही मेरी बीटीया रानी अगर तुझे रितेश पंसद है तो तेरी शादी मैं उससे करा कर ही रहूंगी।

ये सुनते ही आंचल खुश हो जाती है....और अपनी माँ के सीने से लग जाती है.....॥

कुछ समय बाद संगीता.......कजरी के घर की तरफ नीकल देती है......कजरी घर पर बैठी थी.....और रितेश का इतंजार कर रही थी.....की तभी वहां संगीता पहुचं जाती है....।

संगीता(पहुचंते ही)-- क्या हो रहा है....कजरी मुझे तो कुछ समझ में ही नही आ रहा है।

कजरी-- मुझे भी कुछ समझ में नही आ रहा है....।

ये सुन संगीता बोली-- तेरे साथ क्या हुआ जो तुझे समझ में नही आ रहा है.....।

फीर कजरी ने आज की बात संगीता से बताई और संगीता ने आंचल की बात कजरी को बताई....॥

दोनो हैरान परेशान थे.....की तभी संगीता बोली-

संगीता-- देख कजरी कभी कभी सच्चाई वो नही जो हमे दीखता है.... मुझे तो लगता है.....ठाकुर साहब भी भले इंसान है......वो तो गांव वालो ने उनके बारे मे खीचड़ी कर रखी है...। हां ठाकुर की नज़र तेरे उपर है.....लेकीन वैसे देखा जाये तो खुबसुरत औरतो पर नज़र तो हर कीसी पर होती है.....तो इसका मतलब ये तो नही की वो इंसान ही बुरा है.....।

संगीता की बात सुनकर कजरी सोच मे पड़ गयी फीर बोली-

कजरी-- मुझे तो कुछ समझ में नही आ रहा है की खौन बुरा है और कौन भला!

संगीता-- तो ठीक है.....ये सारी चीजें हालात पर छोड़ दे....क्यूकीं हालात सबकी सच्चाई बाहर लाती है....।

* * *

इधर रितेश अजय के घर से सिधा अपने घर चला आ रहा था........और आज उसके भी मन में बहुत सारे खयाल उठ रहे थे......एक तो आज सबसे ज्यादा परेशान करने वाली बात ये थी की सुबह ही अजय ने उसके लंड मे जो आग लगाई थी की अपनी ही मां पटा के चोदो.....घर की बात घर मे और मज़े भी।
दुसरी ये की आज रात रज्जो पता नही उसके साथ क्या गुल खीलाने वाली है......और तीसरी ये की ठाकुर भी उसके मां के पिछे पड़ा है......और उसका बेटा उसके प्यार के।

इतने सारे सवालों से झुझता......रितेश के कदम उसके घर की तरफ बढ़ रहे थे......

To be Continued

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