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Incest मां के हाथ के छाले | Maa Ke Hath Ke Chhale

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Sahil
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मां के हाथ के छाले
Part: 5
फिर मैं कमरे में आकर अपने जगह पर जा लेट गया, कुछ देर बाद आंख लग गई और मैं सो गया। अगले दिन संडे था और सुबह करीब 6 बजे जब मेरी आंख खुली तो खिड़की के बाहर बारिश आ रही थी, मां अभी भी सोई थी। उनकी गांड़ मेरी तरफ थी। मुझे रात का सीन एकदम याद आ गया और दिल किया के मां की नाइटी ऊपर करके उनकी गांड़ चाट लूं, सोचा कुछ ना कुछ प्लान तो बनाना ही पड़ेगा मां की गांड़ चाटने का। फिर मैं बिस्तर से उठा और बाथरूम में गया तो मां की रात वाली पैंटी याद जिसे सुंग कर मैनें अपने आप को शांत किया। शांत होने के बाद मैं सब गलत सोच भूल गया और उनके छालों का ध्यान कर किचन में चाय बनाने लगा। चाय बनाकर मैं उसे एक गर्म केतली में डालकर अंदर कमरे में लेकर गया तो मां उठ ही रही थी बिस्तर से के मेरे हाथ में चाय देखकर बोली : अरे वाह बेटा, मैं तो तुझे यूंही बुद्धू समझती थी, तु तो बहोत समझदार है
मैं: अच्छा जी, चलो आओ चाय पी लो
फिर हमने मिलकर चाय पी और बातें की, फिर मां बोली : बेटा क्या तु मुझे नहाने में मदद कर देगा?
मैं: हां मां, क्यूं नही
मां : ठीक है, वो अलमारी तो खोल जरा, उसमे ये कपड़ो के पीछे से मेरी एक ब्रा पैंटी उठा और नीचे ये सूट और पजामी पड़ी है वो भी
मैंने ठीक वैसा ही किया। फिर वो बाथरूम में घुसी और मुझे बोली
मां : बेटा मुझे पहले फ्रैश होना है, फिर नहाऊंगी
मैं: ठीक है मां, आप हो जाओ फ्रैश
मां : क्या हां?
मैं: अरे हां, मैं भूल ही गया था
मां सीट के पास खड़ी हुई फिर मैनें उनकी नाइटी ऊपर की और वो बैठ गई और बोली : बेटा थोड़ा टाइम लगेगा, तु खड़ा रहेगा ना, कोई परेशानी तो नहीं ना?
मैं: नहीं मां कोई बात नहीं
मां ने फिर अपना काम करना शुरू किया और मुझसे बाते करने लगी, थोड़ी देर बाद उनकी गांड़ मैनें धुलवाई और फिर नाइटी उतार कर उन्हे नहाने के लिए एक छोटी सी टेबल में बिठाया , उन्हे पहली बार पूरा नंगा देख कर मेरा मन डोलने लगा और लंड टाइट हो गया। मैनें उनकी चूत, गांड़, बूब्स सब पर साबुन लगाया और धीरे धीरे सब मसल कर उन्हे नहलाया। उन्हे नहलाते नहलाते मेरे भी कपड़े भीग गए जिसमे से लंड का शेप दिखने लगा। मां ने उसे देख लिया और दूसरी तरफ मुंह करके मुस्कुराने लगी। फिर उन्हे नहलाने के बाद मैं और मां उनके रूम में घुसे और मैनें पहले उन्हे ब्रा, पैंटी डाली फिर उन्हे कमीज और जब पजामी डालने लगा तो मां बोली : बेटा ये वाली पजामी ना थोड़ी टाइट है, ध्यान से ऊपर करना कहीं फट ना जाए तुझसे।
मैनें जैसे तैसे करके पजामी पैरों से तो ऊपर कर दी पर जैसे ही उनकी गांड़ पर चढ़ाने लगा वो चढ़ी ना, और मैं बिना सोचे समझे धीरे से खुद को बोला : इतनी मोटी गांड़ में कहां ही ये पजामी चढ़ेगी, मेरी ये बात मां ने सुन ली और हंसते हुए बोली : चढ़ जाएगी बेटा, कोशिश तो कर।
मैं ये सुनकर चुप हो गया और खुदका कोसा के इतना तेज क्यूं बोल गया मैं ये बात। फिर मैंने उन्हे बैड के पास घोड़ी की तरह थोड़ा बैंड करके खड़ा किया और पजामी खींचने लगा के मां बोली : बेटा ये वाली पैंटी ना थोड़ी रफ है इसलिए नहीं चढ़ रही शायद, थोड़ी चिकनी होती ना अगर, शनील के कपड़े वाली तो शायद जल्दी चढ़ जाती इसपर से पजामी।
मैं: हां मां शायद, अच्छा मां क्या आपके पास शनील के कपड़े वाली पैंटी है?
मां : नहीं बेटा सोच रही थी लेने की पर ली नहीं अब तक
मैं: फिर अब पजामी चेंज करूं या कुछ और ?
मां : एक बार बिना पैंटी के डालकर देख ले बेटा, क्या पता चढ़ ही जाए।
मैं: ठीक है मां
मैनें उनकी पजामी पहले निकली , फिर पैंटी निकली, फिर दोबारा से पजामी उनके पैरों में डालकर ऊपर चढ़ाने की कोशिश करने लगा। इस वक्त मैं और मां दोनो ही मस्त हो चुके थे पर हमारा रिश्ता हम दोनो को कुछ भी करने से रोक रहा था। मां भी मुड़ में आकर घोड़ी की तरह बैड के साइड में खड़ी रही और पजामी के ऊपर होने का इंतजार करती रही। मेरा भी खुदपर काबू अब ना के बराबर ही था।
मां बोली : बेटा सुन , अगर इसे थोड़ा चिकना करेंगे ना नीचे तो शायद पजामी चढ़ जाए।
मैं जानता था के ये कोई अंगूठी नहीं है जो चिकने करने से चढ़ जाएगी, ये कपड़ा है और शायद मां मस्त होकर ऐसी बात कर रही है, उनकी इस पहल का साथ देते देते मैं भी बोल पड़ा : हां मां, शायद ऐसा हो सकता है।
मैं : फिर मां बताओ, क्या चिकना करूं और कैसे?
मां : ये कर ना...
मैं: क्या?
मां (मस्त होकर) : अरे वही बुद्धू, जिसे तु गांड़ गांड़ कहता है
मैं मुस्कुरा पड़ा और बोला : अच्छा ये मां।
मां : हां, मेरे बुद्धू, कर अब।
मैं: पर मां इसे चिकना केसे करूं?
मां : थूक लगा कर देख ले बेटा, क्या पता काम कर जाए।
ये सुनकर मैनें मस्ती में अपना थूक उनकी घोड़ी बनी हुई गांड़ पर थूका और उसे धीरे धीरे मसलने लगा के उनकी सिसकियां निकलने लगी : आ आह।
मैनें और थूक लगाया और थूक उनकी गांड़ की दरार से होकर नीचे टपकने लगा, जब मेरा थूक खत्म सा हो गया तो मां हल्की सी आहें भरती बोली : क्या हुआ बेटा?
मैं: मां , थूक और आ नहीं रहा।
मां : रुक बेटा, ले मेरा थूक भी लगा और पजामी ऊपर करने की कोशिश कर।
मैनें अपना हाथ अपनी घोड़ी बनी मां के मुंह के पास ले जाने के लिए आगे किया के मैं उनसे पीछे से जा चिपक सा गया, उनकी गांड़ नंगी थी और मेरा लोवर गिला जिस से वो उसपर रगड़ने लगा, मां और मदहोश सी होकर मेरे हाथ अपने मुंह में लेकर उसे थूक से भरने लगी और हम दोनो इस वक्त अपार सीमा पर थे के रिश्ते भी शायद भूल चुके थे। फिर अचानक से मां का फोन बजने लगा और हम होश में आए, फोन देखा तो पापा का था , मैनें फटाक से उनकी पजामी ऊपर की और इस बार बिना किसी अड़चन के पजामी ऊपर हो भी गई, फिर मां पापा से बात करने लगी फोन स्पीकर पर रख कर। पापा ने हाल चाल पूछा, मम्मी ने उन्हें छालों के बारे में कुछ भी ना बताया

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Sahil
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Satish Kumar
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Hot Booty..

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Sahil
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कुछ इस तरह का था वो समा जब मां की पजामी ऊपर नहीं चढ़ रही थी और वो बैड के बगल में घोड़ी बनी थी। इस तरह अगर किसी की भी मां खड़ी हो तो मन का और लंड का डोल जाना तो स्वाभाविक सी बात ही है। ❤️🍑

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Sahil
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Joined: 4 months ago

मां के हाथ के छाले
Part:6

करीब 5-7 मिनट के बाद फोन कट हो गया और तब तक हम दोनों अपनी मस्ती भुला चुके थे। मैंने फोन साइड में रखा और अपने कमरे में चला गया। थोड़ी देर बाद मैं नहा कर, कपड़े डाल कर बाहर आया तो मां सोफे पर बैठी थी और मुझे देखते ही बोली : सोनू बेटा, बहुत भूख लग रही है, कुछ खाने को बना ले या फिर बाहर से ले आ।
मैं: ठीक है मां , मैं देखता हूं कुछ खाने का।
थोड़ी देर बाद मैं खाना लेकर आया, हमने मिल के कल की तरह खाना खाया। फिर उसके थोड़ी देर बाद मैने उन्हे दवाई दी और ट्यूब लगाई। ट्यूब लगा कर मैं घर से जाने लगा के मां ने आवाज लगाई : कहां जा रहा है सोनू।
मैं : मां वो, पापा ने कहा था ना के कार का ऐसी ठीक करवाना है तो बस वहीं जा रहा हूं
मां : ओ अच्छा, वो....
मैं: क्या हुआ मां, कुछ काम था क्या आपको?
मां : हां बेटा वो कुछ सामान लाना था मार्केट से।
मैं : हां मां बताओ, मैं ला देता हूं
मां : ये मेरे फोन से सीमा आंटी को फोन तो मिला एक बार, मैं उन्हें पूछती हूं उनकी दुकान पर मिलेगी या नहीं
सीमा आंटी मम्मी की सहेली थी और उनका मार्केट में एक जनरल स्टोर था और मां अक्सर वहीं से सामान लाया करती थी। मैंने उनके फोन से सीमा आंटी को कॉल मिलाया और मम्मी बोली : ये फोन मेरे कान पर लगा दे बेटा।
मैंने वैसा ही किया, जब आंटी ने फोन उठाया तो मां बोली : हैलो सीमा, कैसी है?
सीमा आंटी : मैं बढ़िया , तु बता।
मां : मैं भी एक दम मस्त। , अच्छा वो नेहा को भेज दे गी क्या?, मुझे थोड़ा काम करवाना था
सीमा आंटी : यार नेहा तो अपने गांव गई है। अगले हफ्ते तक आएगी।
मां : क्या?...अरे यार,
ऐसा बोलकर मां थोड़ी देर सोचने लगी और फिर बोली : चल कोई बात नहीं, अच्छा सुन मैं ना अभी सोनू को भेजूंगी तेरी दुकान पर, उसे वो क्रीम दे देना।
सीमा : ठीक है और कुछ?
मां : नहीं बस थैंक्यू यार।
सीमा : चल ओके, बाय।
मां : बाय
मां के बाय बोलने पर मैंने फोन उनके कान से हटाया और कट किया के मां बोली : बेटा सीमा आंटी के पास चले जाना और ले आना, बोल दिया है मैनें।
मैं: हां मां वो तो सुना मैनें। और अच्छा ये नेहा से क्या काम था आपको, कुछ अर्जेंट है तो मुझे बतादो, मैं कर दूंगा।
नेहा सीमा आंटी की दुकान पर काम करने वाली लड़की थी।
मां : अर्जेंट तो है बेटा, पर अब नेहा हफ्ते तक आएगी, तब तक शायद ऐसे ही रहना पड़ेगा मुझे।
मैं: अरे मां बताओ कुछ ज्यादा अर्जेंट है तो , मैं हूं ना।
मां कुछ सोची और बोली : चल ठीक है, बता दूंगी, तु जा पहले अपना काम कर के आ और वो सामान लाना मत भूलना।
मैं: ठीक है मां, आप इतना आराम करो मैं आता हूं फिर।
मैं घर से गाड़ी लेकर निकला। मैकेनिक के पास गया। फिर तकरीबन 2 घंटे बाद गाड़ी का ऐसी ठीक हुआ। फिर वहां से मैं सीमा आंटी की दुकान पर गया।
मैं: नमस्ते आंटी।
आंटी : नमस्ते बेटा, आओ बैठो। क्या लोगे चाय या कॉफी?
मैं: नहीं नहीं आंटी, कुछ नहीं , थैंक्यू। मैं बस वो मां ने कुछ सामान मंगवाया था तो वो लेने आया था।
आंटी : अभी लाती हूं बेटा।
सीमा आंटी ने दूसरे काउंटर के नीचे से एक लिफाफा निकाला ब्राउन कलर का और मुझे देकर बोली : ये लो बेटा।
मैं: ओके आंटी, थैंक्यू।
आंटी : ओके बेटा।
फिर मैं वहां से गाड़ी लेकर निकला और सोचा दुपहर हो ही गई है, कुछ खाने का ले चलता हूं, फिर कहां दोबारा दोबारा आता रहूंगा। फिर मैंने रोटी सभी पैक करवाई और गाड़ी में रखा और जब चलने लगा तो सोचा मां ने कोनसी क्रीम मंगवाई होगी? सोचा एक बार लिफाफा खोल के देखता हूं। जब लिफाफा खोला तो उसमें वीट हेयर रिमूवल क्रीम थी, जिस से औरतें अपने बाल हटाया करती थी। फिर मैं मुस्कुराया और खुद से बोला : अच्छा तो मां इस काम की बात कर रही थी, शायद उनकी वो झांटे उन्हे अब बेचैन कर रही है, तभी नेहा को उन्हे कटवाने के लिए बुला रही थी। फिर सोचा इस मौके का पूरा फायदा उठाया जाए और अनजान बनकर मां को यह काम भी मेरे हाथों से करने के लिए मनाया जाए।
फिर मैं तकरीबन दो बजे घर पहुंचा। गेट खोला, अंदर जाके मां को देखने लगा तो मां अपने कमरे में सोई हुई थी। उनकी गांड़ बाहर को निकली थी। ये देख के मुझे सुबह वाला सीन याद आ गया और दिल किया की एक बाद मां ये चाटने के लिए दे अगर तो दिन बन जाए। फिर मैंने अपने हल्के हाथ उनकी गांड़ पर रखे और धीरे से हिलाते हुए मां को आवाज लगाने लगा और उनकी गर्म और नर्म गांड़ का एहसास लेने लगा। मेरे 3-4 बार आवाज लगाने से मां उठ गई और अंगड़ाई लेकर मुड़ते हुए बोला : आ गया मेरा बुद्धू बेटा।
मैं: हां मां।
मां : हो क्या वो ऐसी ठीक।
मैं: हां मां और मैं सीमा आंटी से सामान भी ले आया हूं आपका।
मां : थैंक्यू बेटा।
मैं: मैं खाना भी लाया हूं, आप आ जाओ बाहर, इतना मैं खाना परोसता हूं।
मां : ठीक है बेटा, अच्छा सुन वो, दरअसल तु था नहीं घर पर और मुझे पेशाब लगी थी तेज से तो मैं जब बाथरूम में करने गई तो मुझसे....
मैं: क्या हुआ मां
मां : वो बेटा, ये छाले अभी पूरे ठीक नहीं हुए तो....
मैं: तो क्या मां?
मां : तो मुझसे अच्छे से पैंटी नीचे नहीं हुई और थोड़ा पेशाब इसी में हो गया।
मैं हसने लगा और बोला : अरे कोई बात नहीं मां। और सॉरी मुझे आने में देर हो गई, इसलिए शायद ये हो गया।
मां : बेटा वो...
मैं: क्या मां, शरमाओ नहीं, एक साथ बोल दो जो कुछ भी है
मां : वो ना, ये पैंटी भी अब बदलनी पड़ेगी और बेटा धोनी भी पड़ेगी, मेरी बाकी सारी पैंटी मैली पड़ी है, सन्डे को धोने का होता है तो वो इसलिए कोई धुली नहीं।
मैं: अरे कोई बात नहीं मां, सब हो जाएगा, आप टेंशन मत लो, आओ खाना खाते हैं पहले।

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Sahil
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मां के हाथ के छाले

Part :7

फिर हम मिलकर खाना खाने बैठे। खाना खाते खाते मां बार बार अपनी टांगो को एक दूजे से मसल रही थी के मैंने उनसे पूछा : क्या हुआ मां, कोई परेशानी है क्या?

मां : बेटा वो मेरी पैंटी गीली हो रखी है ना थोड़ी सी, तो वो पेशाब को वजह से खुजली हो रही है थोड़ी थोड़ी।

मैंने बिना सोचे समझे बोल दिया : तो मैं खुजा दूं क्या मां?

मां चुप रही फिर सोच कर बोली : नहीं बेटा कोई बात नहीं, तू रहने दे।

अब मां के गर्म पेशाब का जलवा था ही ऐसा के उनकी झांटों में गुजली रुकना मुस्किल था तो जब कुछ मिनटों बाद मां से बर्दाश्त ना हुआ तो बोली : अच्छा बेटा सुन

मैं: हां मां?

मां : बेटा वो अब खुजली बर्दास्त नहीं हो रही, तेरे हाथों से करवा लेती पर इन हाथों से तु खाना भी खा रहा है और मुझे भी खिला रहा है, और अब साथ साथ खुजलाएगा तो हाथ भी गंदे हो जाएंगे।

मैं: अरे कोई बात नहीं मां। मैं एक हाथ से खुजा दूंगा और दूसरे हाथ से आपको खाना खिला दूंगा।

मैं फिर सोचने लगा के अब बार बार सामने हाथ ले जाना, खुजलाने के लिए तो बार बार उठ कर खुजाना पड़ेगा तो इस से अच्छा मां को इधर अपने सोफे पर ही बुला लेता हूं।

मैं फिर बोला : मां क्यूं ना एक काम करें, आप ऐसा करो सामने से उठ कर मेरे साथ बैठ जाओ जिस से आपको सही खाना खिलाया जाएगा

पहले सिचुएशन ऐसी थी के मां और मैं सिंगल सिंगल सोफे पर बीच में एक टेबल पर खाना रख कर बैठे थे और मैं उन्हें हाथ दूर कर कर खिला रहा था पर जब मैंने उन्हें अपने पास आने बोला तो वो मेरे वाले सोफे की साइड पर आ बैठी और बोली : अब ठीक है बेटा?

मैं: हां मां।

फिर मैनें उन्हे खाना खिलाते हुए कहा : मां जब खुजली हो तो बता देना।

मां : बेटा हो ही रही है, जरा सा खुजला तो जरा।

मैं: हां मां, खुजलाता हूं, बोलो किधर खुजलाऊं?

मां : बेटा ये थोड़ा पेट के नीचे जहां ये पैंटी है।

मैनें मुड़ में आकर सीधा मां की चूत पर हाथ रख दिया और मासूम बनकर बोला : यहां पर मां?

मां भी मस्ती में बोली : हां बेटा यही, और थोड़ा और नीचे भी।

मैं एक हाथ से धीरे धीरे खुजलाता और दूसरे हाथ से खाना खिलाता, उनको जब और मस्ती चढ़ने लगी तो बोली : बेटा ये कपड़ा पहले ही गिला है और तु खुजला रहा है तो अंदर घुस रहा है ये

मैं भी मस्ती में बोला : इसे थोड़ा सा हटा दूं क्या मां?

मां : हां मेरे बुद्धू।

मैनें उनकी कमीज थोड़ी सी ऊपर की और उनके क्लीवेज वाले एरिया में उसे हल्का सा फसा दिया मोड़ कर। फिर उनका गोरा पेट मुझे नजर आने लगा। मन किया की उनकी वो नाभि में जीभ फेर दूं। फिर सोचा जीभ ना सही फिलहाल के लिए कम से कम उंगली तो फेर ही सकता हूं। फिर मैं पजामी पर से खुजाने लगा के मां बोली : बेटा इसके अंदर हाथ डालके कर ना।

मैं ये सुनकर खुश हुआ और धीरे से उनकी पजामी में पेट से होता हुआ एक हाथ ले गया। अंदर हाथ जाते ही पैंटी पर पड़ा जो मेरी उम्मीद से कुछ ज्यादा ही गीली हो रखी थी पेशाब की वजह से। मैनें सोचा मां को ही सब कहने का मोका दिया जाए और जानकर उस पैंटी के ऊपर से ही रगड़ने लगा के मां खाते खाते हल्का हल्का सा सिसकियां भरने लगी और : आ आह आह करने लगी।

फिर बोली : बेटा अब अच्छा लग रहा है, ऐसे ही करता रह बस।

मैं भी कुछ देर ऐसे ही करता रहा और मेरे हाथ इस वक्त उनके पेशाब से पूरे भीग चुके थे। खाना तो अब खत्म हो ही चुका था और पेट की भूख भी और अब शायद बारी थी चूत और लन्ड की भूख शांत करने की। मैंने बिना उनके कहे उनकी पैन्टी में अंदर हाथ डाला और खुजाने लगा के मां और सिसकियां लेने लगी : आह उई सोनू बेटा, आ.. ब ब ब स करता रह ऐसे ही थोड़ी देर।

मेरा मन किया के उनका हाथ पकड़ कर अपने लन्ड पर रख दू पर ये छाले बीच में आ गए और मैं अपने मन में बोला : वाह रे छाले, पहले तूने ही ये सबके दर्शन करवाए और अब तू ही मुझे मजे लेने से रोक रहा है।

फिर जैसे ही मैनें खुजली करने के बजाए 1 उंगली उनकी चूत की छेद में डालकर खुजली के बहाने आगे पीछे करना चालू किया के 2 मिनट बाद ही मां झड़ गई और सीधा सोफे के साइड से हटके मेरे ऊपर आ गिरी। मेरा लन्ड उस वक्त पूरा टाइट और गर्म हो रखा था। ये पहली बार था के मैंने किसी की चूत में उंगली डाली हो। मां की चूत का रस टपक टपक के उनकी पैन्टी में ही छुट गया और मेरे उंगली भी उस से भर गई। फिर जैसे ही मां मेरे ऊपर गिरी उन्हे मेरे गर्म लन्ड का एहसास जरूर हुआ होगा अपनी गांड़ पर, 1 मिनट के लिए तो मानों फिर हम चुप से ही हो गए। पर जैसे ही मां का रस पूरा उनकी चूत से बाहर बह गया वो होश में आई और मुझसे खड़ी होकर अपने कमरे में जाने लगी और बिना मेरे तरफ देखे बोली : बेटा मैं थोड़ी देर आराम करने जा रही हूं।

मां अपने कमरे में चली गई और मैंने वो मां की चूत के रस से भरी उंगली चाट कर साफ की ओर मानों मैं भी कहीं खो सा गया और सोचने लगा के : ये चूत का रस इतना जबरदस्त है तो चूत कितनी जबरदस्त होगी भला। फिर खुदसे बाते करते करते बोला : शायद मां का रस छुटने के बाद उन्हें मेरे साथ ऐसा करने के खयाल से बुरा लगा और वो बिना कुछ कहे ही चली गई, या फिर मेरे लन्ड की वजह से तो नहीं ये। फिर मैं दोबारा खुद से बोला : चलो जो भी हुआ अच्छा ही हुआ, अब चूत मिलने में शायद ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। और मैं फिर वहां से उठा, मां के पेशाब और रस से सना हाथ धोकर, बर्तन उठाए और अपने कमरे में जाकर मूवी देखने लगा।

 

 

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