मुस्कुराती हुई माया देवी धीरे कदमों से चलती मदन के एकदम पास पहुंच गई…इतने पास की उसकी दोनो चूचियों का अगला नुकिला भाग लगभग मदन की छातियों को टच कर रहा था, और उसकी बनियान में कसी छाती पर हल्के से हाथ मरती बोली,
“पूरा सांड़ हो गया है…तु… मैं इतनी भारी हुं…मुझे ऐसे फ़ूल सा टांग लिया…। चल आम उठा ले।"
चौधराइन की रंगीन दुनियाँ | Choudharayin Ki Rangin Duniya
भाग 9- चौधराइन आम चूसने के या खाने के | Choudharayin Aam Chusne Ke ya Khane Ke
मदन का दिल किया कि, ब्लाउज में कसे दोनो आमो को अपनी मुठ्ठी में भर कर पूछे “इन्हें चाची।” पर टार्च चौधराइन के हाथ में पकड़ा, नीचे गिरे आमो को उठाकर अपनी मुठ्ठी में भर दबाता हुआ, उसकी पत्थर जैसी सख्त नुकिली चूचियों को घूरता हुआ बोला,
“पक गये है…चूस चूस…खाने में…।"
माया देवी मुस्कुराती हुई शरमाई सी बोली,
“हां,,,,चूस के खाने लायक,,,इसस्स्…ज्यादा जोर से मत दबा…। सारा रस निकल जायेगा…आराम से खाना ।"
चलते-चलते माया देवी ने एक दूसरे पेड़ की डाल पर टार्च की रोशनी को फोकस किया और बोली,
“इधर देख मदन…ये तो एकदम पका आम है…। इसको भी तोड़…थोड़ा ऊपर है…तु लम्बा है…जरा इस बार तु चढ़ के…”
मदन भी उधर देखते हुए बोला,
“हां,,, है तो एकदम पका हुआ, और काफ़ी बड़ा भी…है…तुम चढ़ो ना…अभी तो चढ़ने में एक्ष्पर्ट बता रही थी।”
“ना रे, गिरते-गिरते बची हुं…फिर तु ठीक से टार्च भी नही दिखाता…कहती हुं हाथ पर तो दिखाता है, पैर पर.”
“हाथ हिल जाता है…।”
धीरे से बोली मगर मदन ने सुन लिया,
“तेरा तो सब कुछ हिलता है…तु चढ़ना…ऊपर…”
मदन ने लुंगी को दोहरा करके लपेटा लिया। इस से लुंगी उसके घुटनो के ऊपर तक आ गई। लण्ड अभी भी खड़ा था, मगर अन्धेरा होने के कारण पता नही चल रहा था। माया देवी उसके पैरो पर टार्च दिखा रही थी।
थोड़ी देर में ही मदन काफी उंचा चढ़ गया था। अभी भी वो उस जगह से दूर था जहां आम लटका हुआ था। दो डालो के ऊपर पैर रख जब मदन खड़ा हुआ, तब माया देवी ने नीचे से टार्च की रोशनी सीधी उसकी लुंगी के बीच डाली। चौड़ी-चकली जांघो के बीच मदन का ढाई इंच मोटा लण्ड आराम से दिखने लगा। लण्ड अभी पूरा खड़ा नही था. पेड़ पर चढ़ने की मेहनत ने उसके लण्ड को ढीला कर दिया था, मगर अभी भी काफी लम्बा और मोटा दिख रहा था। माया देवी का हाथ अपने आप अपनी जांघो के बीच चला गया। नीचे से लण्ड लाल लग रहा था, शायद सुपाड़े पर से चमड़ी हटी हुई थी। जांघो को भींचती, होठों पर जीभ फेरती, अपनी नजरो को जमाये भुखी आंखो से देख रही थी।
“अरे,,,, आप रोशनी तो दिखाओ, हाथों पर…।”
“आ,,,हां,,हां,,,,,,तु चढ़ रहा था…। इसलिये पैरों पर दिखा…।”,
कहते हुए उसके हाथों पर दिखाने लगी। मदन ने हाथ बढ़ा कर आम तोड़ लिया।
“लो पकड़ो…।"
माया देवी ने जल्दी से टार्च को अपनी कांखो में दबा कर अपने दोनो हाथ जोड़ लिये. मदन ने आम फेंका और माया देवी ने उसको अपनी चूचियों के ऊपर, उनकी सहायता लेते हुए केच कर लिया। फिर मदन नीचे उतर गया और माया देवी ने उसके नीचे उतरते समय भी अपनी आंखो की उसके लटकते लण्ड और अंडकोशो को देख कर अच्छी तरह से सिकाई की। मदन के लण्ड ने चूत को पनिया दिया।
मदन के नीचे उतरते ही बारिश की मोटी बुंदे गिरने लगी। मदन हडबड़ाता हुआ बोला,
“चलो जल्दी,,,,,भीग जायेंगे........”
दोनो तेज कदमो से खलिहान की तरफ चल पडे। अन्दर पहुंचते पहुंचते थोड़ा बहुत तो भीग ही गये। माया देवी का ब्लाउज और मदन की बनियान दोनो पतले कपड़ों के थे. भीग कर बदन से ऐसे चिपक गये थे, जैसे दोनो उसी में पैदा हुए हो। बाल भी गीले हो चुके थे।
मदन ने जल्दी से अपनी बनियान उतार दी और पलट कर चौधराइन की तरफ देखा की वो अपने बालों को तौलिये से रगड़ रही थी। भीगे ब्लाउज में कसी चूचियाँ अब और जालिम लग रही थी। चूचियों की चोंच स्पष्ट दिख रही थी। ऊपर का एक बटन खुला था जिस के कारण चूचियों के बीच की गहरी घाटी भी अपनी चमक बिखेर रही थी। तौलिये से बाल रगड़ के सुखाने के कारण उसका बदन हिल रहा था और साथ में उसके बड़ी बड़ी चूचियाँ लक्का कबूतरों सी फ़ड़फ़ड़ा रहीं थीं। उसकी आंखे हिलती चूचियों ओर उनकी घाटी से हटाये नही हट रही थी। तभी माया देवी धीरे से बोली,
“तौलिया ले…और जा कर मुंह हाथ अच्छी तरह से धो कर आ…।"
मदन चुप-चाप बाथरुम में घुस गया और दरवाजा उसने खुला छोड़ दिया था। कमोड पर खड़ा हो चर-चर मुतने के बाद हाथ पैर धो कर वापस कमरे में आया, तो देखा की माया देवी बिस्तर पर बैठ अपने घुटनो को मोड़ बैठी थी, और एक पैर का पायल निकाल कर देख रही थीं।
मदन ने हाथ पैर पोंछे और बिस्तर पर बैठते हुए पुछा…,
“क्या हुआ…?”
“पता नही कैसे पायल का हुक खुल गया…!?”
“लाओ, मैं देखता हुं…”,
कहते हुए मदन ने पायल अपने हाथ में ले लिया।
“इसका तो हुक सीधा हो गया है, लगता है टूट…”
कहते हुए मदन हुक मोड़ के पायल को माया देवी के पैर में पहनाने की कोशिश करने लगा, पर वो फिट नही हो पा रहा था। माया देवी पेटिकोट को घुटनों तक चढ़ाये एक पैर मोड़ कर, दूसरे पैर को मदन की तरफ आगे बढ़ाये हुए बैठी थी।
मदन ने पायल पहनाने के बहाने माया देवी के कोमल पैरों को एक-दो बार हल्के से सहला दिया। माया देवी उसके हाथों को पैरों पर से हटा ते हुए, रुआंसी होकर बोली,
“रहने दे…ये पायल ठीक नही होगी…शायद टूट गयी है…”
“हां,,,,शायद टूट गयी…दूसरी मंगवा लेना……आप भी इतनी मामुली सी बात… कौन सी आप को पैसे की कमी है ।”
माया देवी मुंह बनाती हुई बोली,
“बात पैसे की नहीं शहर में मिलेगी कौन ला के देगा पायल,,,? …तेरे चाचा तो न जाने किस दुनिया में रहते हैं उनसे तो आशा है नही, और …तु तो,,,, !!! ?”,
कहते हुए एक ठंडी सांस भरी।
माया देवी की बात सुन एक बार मदन के चेहरे का रंग उड़ गया। फिर हकलाते हुए बोला,
“क्यों ऐसा क्या चौधराइन चाची,,,,?....मैं शहर चला जाऊँगा… वैसे भी इस शनिवार को शहर से…”
“रहने दे…तू कहाँ काम का हरजा कर परेशान होगा??”,
कहती हुई पेटिकोट के कपड़े को ठीक करती हुई बगल में रखे तकिये पर लेट गई। मदन पैर के तलवे को सहलाता और हल्के हल्के दबाता हुआ बोला,
“अरे, छोड़ो ना,,,,, चौधराइन चाची।
पर माया देवी ने कोई जवाब नही दिया। खिड़की खुली थी, कमरे में बिजली का बल्ब जल रहा था, बाहर जोरो की बारिश शुरु हो चुकी थी। मौसम एकदम सुहाना हो गया था और ठंडी हवाओं के साथ पानी की एक दो बुंदे भी अन्दर आ जाती थी। मदन कुछ पल तक उसके तलवे को सहलाता रहा फिर बोला,
“चौधराइन चाची,,,,, ब्लाउज तो बदल लो…। गीला ब्लाउज पहन…”
“ऊं…रहने दे, थोड़ी देर में सुख जायेगा. दूसरा ब्लाउज कहाँ लाई, जो…?”
“तौलिया लपेट लेना…”
मदन ने धीरे से झिझकते हुए कहा।
माया देवी ने कोई जवाब नही दिया।
मदन हल्के हल्के पैर दबाते हुए बोला,
“आम नही खाओगी…?”
“ना, रहने दे, मन नही है…”
“क्या चौधराइन चाची ?,,,, क्यों उदास हो रही हो…?”
“ना, मुझे सोने दे…तु आम,,,खा.....”
“ना,,,, पहले आप खाओ …!!।",
कहते हुए मदन ने आम के उपरी सिरे को नोच कर माया देवी के हाथ में एक आम थमा दिया, और उसके पैर फिर से दबाने लगा। माया देवी अनमने भाव से आम को हाथ में रखे रही। ये देख कर मदन ने कहा,
“क्या हुआ…? आम अच्छे नही लगते क्या ?,,,,,चूस ना…पेड़ पर चढ़ के तोड़ा और इतनी मेहनत की…चूसो ना...!!!!”
मदन की नजरे तो माया देवी की नारियल की तरह खड़ी चूचियों से हट ही नही रही थी। दोनो चूचियों को एक-टक घूरते हुए, वो अपनी चौधराइन चाची को देख रहा था। माया देवी ने बड़ी अदा के साथ अनमने भाव से अपने रस भरे होठों को खोला, और आम को एक बार चुसा फिर बोली,
“तु नही खायेगा…?”
“खाऊँगा ना…?!।”,
कहते हुए मदन ने दूसरा आम उठाया और उसको चुसा तो फिर बुरा सा मुंह बनाता हुआ बोला,
“ये तो एकदम खट्टा है…।"
“ये ले मेरा आम चूस…बहुत मीठा है…”,
धीमी आवाज में माया देवी अपनी एक चूची को ब्लाउज के ऊपर से खुजलाती हुई बोली, और अपना आम मदन को पकड़ा दिया।
“मुझे तो पहले ही पता था…तेरा वाला मीठा होगा…”,
धीरे से बोलते हुए मदन ने माया देवी के हाथ से आम ले लिया, और मुंह में ले कर ऐसे चूसने लगा, जैसे चूची चूस रहा हो।
माया देवी चेहरे पर अब हल्की सी मुस्कान लिये बोली,
“बड़े मजे से चूस रहा है !! मीठा है ना,,,,,,!? ”
माया देवी और मदन के दोनो के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट खेल रही थी।
मदन प्यार से आम चूसता हुआ बोला,
“हां चौधराइन चाची, आपका आम,,,,,,,,,बहुत मीठा है(!!!)..... ले ना, तू भी चूस…”
“ना, तू चूस,,… मुझे नही खाना…”,
फिर मुस्कुराती हुई, धीरे से बोली,
“देखा, मेरे बाग के आम कितने मीठे हैं खाया कर…”
“मिलते ही …नहीं…”
मदन उसकी चूचियों को घूरते हुए बोला।
“कोशिश…कर के देख…!!!!”,
उसकी आंखो में झांकती माया देवी बोली।
दोनो को अब दोहरे अर्थो वाली बातों में मजा आ रहा था। मदन अपने हाथ को लुंगी के ऊपर से लण्ड पर लगा हल्के से सहलाता हुआ, उसकी चूचियों को घूरता हुआ बोला,
“तू मेरा वाला,,,(!) चूस… खट्टा है….,,,,, औरतों को तो खट्टा…।”
“हां, ला मैं तेरा,,,(!) चूसती हुं…खट्टे आम भी अच्छे होते…”,
कहते हुए माया देवी ने खट्टा वाला आम ले लिया और चूसने लगी।
अब माया देवी के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट् आ गई थी, अपने रसीले होठों से धीरे-धीरे आम को चूस रही थी। उसके चूसने की इस अदा और दोहरे अर्थो वाली बात-चीत ने अब तक मदन और माया देवी दोनो की अन्दर आग लगा दी थी। दोनो अब उत्तेजित होकर वासना की आग में धीरे धीरे सुलग रहे थे। पेड़ के ऊपर चढ़ने पर दोनो ने एक दूसरे के पेटिकोट और लुंगी के अन्दर छुपे सामान को देखा था, ये दोनो को पता था। दोनो के मन में बस यही था, की कैसे भी करके पेटिकोट के माल का मिलन लुंगी के हथियार के साथ हो जाये।
मदन अब उसके कोमल पैरो को सहलाते हुए, उसके एक पैर में पड़ी पायल से खेल रहा था. माया देवी आम चूसते हुए उसको देख रही थी। बार-बार मदन का हाथ उसकी कोमल, चिकनी पिन्ड्लियों तक फिसलता हुआ चला जाता। पेटिकोट घुटनो तक उठा हुआ था। एक पैर पसारे, एक पैर घुटने के पास से मोडे हुए माया देवी बैठी हुई थी। कमरे में पूरा सन्नाटा पसरा हुआ था, दोनो चुप-चाप नजरो को नीचे किये बैठे थे। बाहर से तेज बारिश की आवाज आ रही थी।
आगे कैसे बढ़े ये सोचते हुए मदन बोला,
“कल सुबह शहर जा आपकी पायल मैं ले आऊँगा.,,,,,,।”
“रहने दे, मुझे नही मंगवानी तुझसे पायल…।”
“…मैं आप जैसी बताओगी वैसी पायल,,,,,ला,,,,,,“
“ना रहने दे, तू…पायल लायेगा,,,,,,फिर मेरे से…उसके बदले,,,,,,”,
धीरे से मुंह बनाते हुए माया देवी ने कहा, जैसे नाराज हो।
मदन के चेहरे क रंग उड़ गया। धीरे से हकलाता हुआ बोला,
“बदले में,,,,,,,क्या,,,???…मतलब…???”
आंखो को नचाती, मुंह फुलाये हुए धीरे से बोली,
“,,,,,लाजो को भी,,,,,पायल,,,,,”
इस से ज्यादा मदन सुन नही पाया, लाजो का नाम ही काफी था। उसका चेहरा कानो तक लाल हो गया, और दिमाग हवा में तैरने लगा. तभी माया देवी के होठों के किनारों पर लगा आम का रस छलक कर उसके सीने के उभार पर गिर पड़ा। माया देवी उसको जल्दी से से पोंछने लगी, तो मदन ने गीला तौलिया उठा अपने हाथ को आगे बढ़ाया तो उसके हाथ को रोकती हुई बोली,
“…ना, ना, रहने दे,,,(!?),, अभी तो मैंने तेरे से पायल मंगवाई भी नहीं, जो,,,,,,(!!!!!!!)…”
ये माया देवी की तरफ से दूसरा खुल्लम-खुल्ला सिग्नल था की आगे बढ़ । माया देवी के पैर की पिन्डलियों पर से कांपते हाथों को सरका कर उसके घुटनो तक ले जाते हुए धीरे से बोला,
“मतलब पा,,,,पायल ला दूँगा तो,,,,,,तो …(??!!)”
धीरे से माया देवी बोली,
“…पा,,,,,,यल लायेगा,,,,तो,,,,,क्या? ”
“आम,,,,,!! स…आफ…करने…दोगी…??”,
धीरे से मदन बोला। आम के रस की जगह, आम साफ करने की बात शायद मदन ने जानबूझ कर कही थी।
“तो तू गाँव का पायल एक्स्पर्ट है…सबको…पायल,,,,,,लाता है, क्या…?”,
सरसराती आवाज में माया देवी ने पुछा
“नही…”
“लाजो के लिए लाया था,,, …”
मदन चुप-चाप बैठा रहा।
“फ़िर उसके आ……म सा…फ… किये…तूने…?!!।”