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चौधराइन की रंगीन दुनियाँ | Choudharayin Ki Rangin Duniya

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मुस्कुराती हुई माया देवी धीरे कदमों से चलती मदन के एकदम पास पहुंच गई…इतने पास की उसकी दोनो चूचियों का अगला नुकिला भाग लगभग मदन की छातियों को टच कर रहा था, और उसकी बनियान में कसी छाती पर हल्के से हाथ मरती बोली,

“पूरा सांड़ हो गया है…तु… मैं इतनी भारी हुं…मुझे ऐसे फ़ूल सा टांग लिया…। चल आम उठा ले।"

चौधराइन की रंगीन दुनियाँ | Choudharayin Ki Rangin Duniya
भाग 9- चौधराइन आम चूसने के या खाने के | Choudharayin Aam Chusne Ke ya Khane Ke

मदन का दिल किया कि, ब्लाउज में कसे दोनो आमो को अपनी मुठ्ठी में भर कर पूछे “इन्हें चाची।” पर टार्च चौधराइन के हाथ में पकड़ा, नीचे गिरे आमो को उठाकर अपनी मुठ्ठी में भर दबाता हुआ, उसकी पत्थर जैसी सख्त नुकिली चूचियों को घूरता हुआ बोला,

“पक गये है…चूस चूस…खाने में…।"

माया देवी मुस्कुराती हुई शरमाई सी बोली,

“हां,,,,चूस के खाने लायक,,,इसस्स्…ज्यादा जोर से मत दबा…। सारा रस निकल जायेगा…आराम से खाना ।"

चलते-चलते माया देवी ने एक दूसरे पेड़ की डाल पर टार्च की रोशनी को फोकस किया और बोली,

“इधर देख मदन…ये तो एकदम पका आम है…। इसको भी तोड़…थोड़ा ऊपर है…तु लम्बा है…जरा इस बार तु चढ़ के…”

मदन भी उधर देखते हुए बोला,

“हां,,, है तो एकदम पका हुआ, और काफ़ी बड़ा भी…है…तुम चढ़ो ना…अभी तो चढ़ने में एक्ष्पर्ट बता रही थी।”

“ना रे, गिरते-गिरते बची हुं…फिर तु ठीक से टार्च भी नही दिखाता…कहती हुं हाथ पर तो दिखाता है, पैर पर.”

“हाथ हिल जाता है…।”

धीरे से बोली मगर मदन ने सुन लिया,

“तेरा तो सब कुछ हिलता है…तु चढ़ना…ऊपर…”

मदन ने लुंगी को दोहरा करके लपेटा लिया। इस से लुंगी उसके घुटनो के ऊपर तक आ गई। लण्ड अभी भी खड़ा था, मगर अन्धेरा होने के कारण पता नही चल रहा था। माया देवी उसके पैरो पर टार्च दिखा रही थी।

थोड़ी देर में ही मदन काफी उंचा चढ़ गया था। अभी भी वो उस जगह से दूर था जहां आम लटका हुआ था। दो डालो के ऊपर पैर रख जब मदन खड़ा हुआ, तब माया देवी ने नीचे से टार्च की रोशनी सीधी उसकी लुंगी के बीच डाली। चौड़ी-चकली जांघो के बीच मदन का ढाई इंच मोटा लण्ड आराम से दिखने लगा। लण्ड अभी पूरा खड़ा नही था. पेड़ पर चढ़ने की मेहनत ने उसके लण्ड को ढीला कर दिया था, मगर अभी भी काफी लम्बा और मोटा दिख रहा था। माया देवी का हाथ अपने आप अपनी जांघो के बीच चला गया। नीचे से लण्ड लाल लग रहा था, शायद सुपाड़े पर से चमड़ी हटी हुई थी। जांघो को भींचती, होठों पर जीभ फेरती, अपनी नजरो को जमाये भुखी आंखो से देख रही थी।

“अरे,,,, आप रोशनी तो दिखाओ, हाथों पर…।”

“आ,,,हां,,हां,,,,,,तु चढ़ रहा था…। इसलिये पैरों पर दिखा…।”,

कहते हुए उसके हाथों पर दिखाने लगी। मदन ने हाथ बढ़ा कर आम तोड़ लिया।

“लो पकड़ो…।"

माया देवी ने जल्दी से टार्च को अपनी कांखो में दबा कर अपने दोनो हाथ जोड़ लिये. मदन ने आम फेंका और माया देवी ने उसको अपनी चूचियों के ऊपर, उनकी सहायता लेते हुए केच कर लिया। फिर मदन नीचे उतर गया और माया देवी ने उसके नीचे उतरते समय भी अपनी आंखो की उसके लटकते लण्ड और अंडकोशो को देख कर अच्छी तरह से सिकाई की। मदन के लण्ड ने चूत को पनिया दिया।

मदन के नीचे उतरते ही बारिश की मोटी बुंदे गिरने लगी। मदन हडबड़ाता हुआ बोला,

“चलो जल्दी,,,,,भीग जायेंगे........”

दोनो तेज कदमो से खलिहान की तरफ चल पडे। अन्दर पहुंचते पहुंचते थोड़ा बहुत तो भीग ही गये। माया देवी का ब्लाउज और मदन की बनियान दोनो पतले कपड़ों के थे. भीग कर बदन से ऐसे चिपक गये थे, जैसे दोनो उसी में पैदा हुए हो। बाल भी गीले हो चुके थे।

मदन ने जल्दी से अपनी बनियान उतार दी और पलट कर चौधराइन की तरफ देखा की वो अपने बालों को तौलिये से रगड़ रही थी। भीगे ब्लाउज में कसी चूचियाँ अब और जालिम लग रही थी। चूचियों की चोंच स्पष्ट दिख रही थी। ऊपर का एक बटन खुला था जिस के कारण चूचियों के बीच की गहरी घाटी भी अपनी चमक बिखेर रही थी। तौलिये से बाल रगड़ के सुखाने के कारण उसका बदन हिल रहा था और साथ में उसके बड़ी बड़ी चूचियाँ लक्का कबूतरों सी फ़ड़फ़ड़ा रहीं थीं। उसकी आंखे हिलती चूचियों ओर उनकी घाटी से हटाये नही हट रही थी। तभी माया देवी धीरे से बोली,

“तौलिया ले…और जा कर मुंह हाथ अच्छी तरह से धो कर आ…।"

मदन चुप-चाप बाथरुम में घुस गया और दरवाजा उसने खुला छोड़ दिया था। कमोड पर खड़ा हो चर-चर मुतने के बाद हाथ पैर धो कर वापस कमरे में आया, तो देखा की माया देवी बिस्तर पर बैठ अपने घुटनो को मोड़ बैठी थी, और एक पैर का पायल निकाल कर देख रही थीं।
मदन ने हाथ पैर पोंछे और बिस्तर पर बैठते हुए पुछा…,

“क्या हुआ…?”

“पता नही कैसे पायल का हुक खुल गया…!?”

“लाओ, मैं देखता हुं…”,

कहते हुए मदन ने पायल अपने हाथ में ले लिया।

“इसका तो हुक सीधा हो गया है, लगता है टूट…”

कहते हुए मदन हुक मोड़ के पायल को माया देवी के पैर में पहनाने की कोशिश करने लगा, पर वो फिट नही हो पा रहा था। माया देवी पेटिकोट को घुटनों तक चढ़ाये एक पैर मोड़ कर, दूसरे पैर को मदन की तरफ आगे बढ़ाये हुए बैठी थी।

मदन ने पायल पहनाने के बहाने माया देवी के कोमल पैरों को एक-दो बार हल्के से सहला दिया। माया देवी उसके हाथों को पैरों पर से हटा ते हुए, रुआंसी होकर बोली,

“रहने दे…ये पायल ठीक नही होगी…शायद टूट गयी है…”

“हां,,,,शायद टूट गयी…दूसरी मंगवा लेना……आप भी इतनी मामुली सी बात… कौन सी आप को पैसे की कमी है ।”

माया देवी मुंह बनाती हुई बोली,

“बात पैसे की नहीं शहर में मिलेगी कौन ला के देगा पायल,,,? …तेरे चाचा तो न जाने किस दुनिया में रहते हैं उनसे तो आशा है नही, और …तु तो,,,, !!! ?”,

कहते हुए एक ठंडी सांस भरी।

माया देवी की बात सुन एक बार मदन के चेहरे का रंग उड़ गया। फिर हकलाते हुए बोला,

“क्यों ऐसा क्या चौधराइन चाची,,,,?....मैं शहर चला जाऊँगा… वैसे भी इस शनिवार को शहर से…”

“रहने दे…तू कहाँ काम का हरजा कर परेशान होगा??”,

कहती हुई पेटिकोट के कपड़े को ठीक करती हुई बगल में रखे तकिये पर लेट गई। मदन पैर के तलवे को सहलाता और हल्के हल्के दबाता हुआ बोला,

“अरे, छोड़ो ना,,,,, चौधराइन चाची।

पर माया देवी ने कोई जवाब नही दिया। खिड़की खुली थी, कमरे में बिजली का बल्ब जल रहा था, बाहर जोरो की बारिश शुरु हो चुकी थी। मौसम एकदम सुहाना हो गया था और ठंडी हवाओं के साथ पानी की एक दो बुंदे भी अन्दर आ जाती थी। मदन कुछ पल तक उसके तलवे को सहलाता रहा फिर बोला,

“चौधराइन चाची,,,,, ब्लाउज तो बदल लो…। गीला ब्लाउज पहन…”

“ऊं…रहने दे, थोड़ी देर में सुख जायेगा. दूसरा ब्लाउज कहाँ लाई, जो…?”

“तौलिया लपेट लेना…”

मदन ने धीरे से झिझकते हुए कहा।
माया देवी ने कोई जवाब नही दिया।
मदन हल्के हल्के पैर दबाते हुए बोला,

“आम नही खाओगी…?”

“ना, रहने दे, मन नही है…”

“क्या चौधराइन चाची ?,,,, क्यों उदास हो रही हो…?”

“ना, मुझे सोने दे…तु आम,,,खा.....”

“ना,,,, पहले आप खाओ …!!।",

कहते हुए मदन ने आम के उपरी सिरे को नोच कर माया देवी के हाथ में एक आम थमा दिया, और उसके पैर फिर से दबाने लगा। माया देवी अनमने भाव से आम को हाथ में रखे रही। ये देख कर मदन ने कहा,

“क्या हुआ…? आम अच्छे नही लगते क्या ?,,,,,चूस ना…पेड़ पर चढ़ के तोड़ा और इतनी मेहनत की…चूसो ना...!!!!”

मदन की नजरे तो माया देवी की नारियल की तरह खड़ी चूचियों से हट ही नही रही थी। दोनो चूचियों को एक-टक घूरते हुए, वो अपनी चौधराइन चाची को देख रहा था। माया देवी ने बड़ी अदा के साथ अनमने भाव से अपने रस भरे होठों को खोला, और आम को एक बार चुसा फिर बोली,

“तु नही खायेगा…?”

“खाऊँगा ना…?!।”,

कहते हुए मदन ने दूसरा आम उठाया और उसको चुसा तो फिर बुरा सा मुंह बनाता हुआ बोला,

“ये तो एकदम खट्टा है…।"

“ये ले मेरा आम चूस…बहुत मीठा है…”,

धीमी आवाज में माया देवी अपनी एक चूची को ब्लाउज के ऊपर से खुजलाती हुई बोली, और अपना आम मदन को पकड़ा दिया।

“मुझे तो पहले ही पता था…तेरा वाला मीठा होगा…”,

धीरे से बोलते हुए मदन ने माया देवी के हाथ से आम ले लिया, और मुंह में ले कर ऐसे चूसने लगा, जैसे चूची चूस रहा हो।

माया देवी चेहरे पर अब हल्की सी मुस्कान लिये बोली,

“बड़े मजे से चूस रहा है !! मीठा है ना,,,,,,!? ”

माया देवी और मदन के दोनो के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट खेल रही थी।

मदन प्यार से आम चूसता हुआ बोला,

“हां चौधराइन चाची, आपका आम,,,,,,,,,बहुत मीठा है(!!!)..... ले ना, तू भी चूस…”

“ना, तू चूस,,… मुझे नही खाना…”,

फिर मुस्कुराती हुई, धीरे से बोली,

“देखा, मेरे बाग के आम कितने मीठे हैं खाया कर…”

“मिलते ही …नहीं…”

मदन उसकी चूचियों को घूरते हुए बोला।

“कोशिश…कर के देख…!!!!”,

उसकी आंखो में झांकती माया देवी बोली।

दोनो को अब दोहरे अर्थो वाली बातों में मजा आ रहा था। मदन अपने हाथ को लुंगी के ऊपर से लण्ड पर लगा हल्के से सहलाता हुआ, उसकी चूचियों को घूरता हुआ बोला,

“तू मेरा वाला,,,(!) चूस… खट्टा है….,,,,, औरतों को तो खट्टा…।”

“हां, ला मैं तेरा,,,(!) चूसती हुं…खट्टे आम भी अच्छे होते…”,

कहते हुए माया देवी ने खट्टा वाला आम ले लिया और चूसने लगी।

अब माया देवी के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट् आ गई थी, अपने रसीले होठों से धीरे-धीरे आम को चूस रही थी। उसके चूसने की इस अदा और दोहरे अर्थो वाली बात-चीत ने अब तक मदन और माया देवी दोनो की अन्दर आग लगा दी थी। दोनो अब उत्तेजित होकर वासना की आग में धीरे धीरे सुलग रहे थे। पेड़ के ऊपर चढ़ने पर दोनो ने एक दूसरे के पेटिकोट और लुंगी के अन्दर छुपे सामान को देखा था, ये दोनो को पता था। दोनो के मन में बस यही था, की कैसे भी करके पेटिकोट के माल का मिलन लुंगी के हथियार के साथ हो जाये।

मदन अब उसके कोमल पैरो को सहलाते हुए, उसके एक पैर में पड़ी पायल से खेल रहा था. माया देवी आम चूसते हुए उसको देख रही थी। बार-बार मदन का हाथ उसकी कोमल, चिकनी पिन्ड्लियों तक फिसलता हुआ चला जाता। पेटिकोट घुटनो तक उठा हुआ था। एक पैर पसारे, एक पैर घुटने के पास से मोडे हुए माया देवी बैठी हुई थी। कमरे में पूरा सन्नाटा पसरा हुआ था, दोनो चुप-चाप नजरो को नीचे किये बैठे थे। बाहर से तेज बारिश की आवाज आ रही थी।

आगे कैसे बढ़े ये सोचते हुए मदन बोला,

“कल सुबह शहर जा आपकी पायल मैं ले आऊँगा.,,,,,,।”

“रहने दे, मुझे नही मंगवानी तुझसे पायल…।”

“…मैं आप जैसी बताओगी वैसी पायल,,,,,ला,,,,,,“

“ना रहने दे, तू…पायल लायेगा,,,,,,फिर मेरे से…उसके बदले,,,,,,”,

धीरे से मुंह बनाते हुए माया देवी ने कहा, जैसे नाराज हो।
मदन के चेहरे क रंग उड़ गया। धीरे से हकलाता हुआ बोला,

“बदले में,,,,,,,क्या,,,???…मतलब…???”

आंखो को नचाती, मुंह फुलाये हुए धीरे से बोली,

“,,,,,लाजो को भी,,,,,पायल,,,,,”

इस से ज्यादा मदन सुन नही पाया, लाजो का नाम ही काफी था। उसका चेहरा कानो तक लाल हो गया, और दिमाग हवा में तैरने लगा. तभी माया देवी के होठों के किनारों पर लगा आम का रस छलक कर उसके सीने के उभार पर गिर पड़ा। माया देवी उसको जल्दी से से पोंछने लगी, तो मदन ने गीला तौलिया उठा अपने हाथ को आगे बढ़ाया तो उसके हाथ को रोकती हुई बोली,

“…ना, ना, रहने दे,,,(!?),, अभी तो मैंने तेरे से पायल मंगवाई भी नहीं, जो,,,,,,(!!!!!!!)…”

ये माया देवी की तरफ से दूसरा खुल्लम-खुल्ला सिग्नल था की आगे बढ़ । माया देवी के पैर की पिन्डलियों पर से कांपते हाथों को सरका कर उसके घुटनो तक ले जाते हुए धीरे से बोला,

“मतलब पा,,,,पायल ला दूँगा तो,,,,,,तो …(??!!)”

धीरे से माया देवी बोली,

“…पा,,,,,,यल लायेगा,,,,तो,,,,,क्या? ”

“आम,,,,,!! स…आफ…करने…दोगी…??”,

धीरे से मदन बोला। आम के रस की जगह, आम साफ करने की बात शायद मदन ने जानबूझ कर कही थी।

“तो तू गाँव का पायल एक्स्पर्ट है…सबको…पायल,,,,,,लाता है, क्या…?”,

सरसराती आवाज में माया देवी ने पुछा

“नही…”

“लाजो के लिए लाया था,,, …”

मदन चुप-चाप बैठा रहा।

“फ़िर उसके आ……म सा…फ… किये…तूने…?!!।”

To be Continued

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“आम,,,,,!! स…आफ…करने…दोगी…??”,

धीरे से मदन बोला। आम के रस की जगह, आम साफ करने की बात शायद मदन ने जानबूझ कर कही थी।

“तो तू गाँव का पायल एक्स्पर्ट है…सबको…पायल,,,,,,लाता है, क्या…?”,

सरसराती आवाज में माया देवी ने पुछा

“नही…”

“लाजो के लिए लाया था,,, …”

मदन चुप-चाप बैठा रहा।

“फ़िर उसके आ……म सा…फ… किये…तूने…?!!।”

चौधराइन की रंगीन दुनियाँ | Choudharayin Ki Rangin Duniya
भाग 10 - खूब चुसे आम चौधराइन के | Khub Chuse Aam Choudharayin Ke

मदन की समझ में आ गया की माया देवी क्या चाहती है।

“आपही ने तो कहा आपके पेड़ के आम खाने को अब मैं खाना चाह रहा हूँ तो”,
इतना कहते हुए, मदन आगे बढ़ अपना एक हाथ माया देवी के पेट पर रख दिया और उसकी वासना से जलती नशीली आंखो में झांक कर देखा।

“तो खा…ना…!!। मैं तो कब से…!!।”

चाहत और अनुरोध से भरी आंखो ने मदन को हिम्मत दी, और उसने छाती पर झुक कर अपनी लम्बी गरम जुबान बाहर निकाल कर, चूचियों के ऊपर लगे आम के रस को चाट लिया।

इतनी देर से गीला ब्लाउज पहन ने के कारण माया देवी की चूचियाँ एकदम ठंडी हो चुकी थी। ठंडी चूचियों पर ब्लाउज के ऊपर मदन की गरम जीभ जब सरसराती हुई धीरे से चली, तो उसके बदन में सिहरन दौड़ गई। कसमसाती हुई अपने रसीले होठों को अपने दांतो से दबाती हुई बोली,

“चा,,,,ट कर,,,,,,सा…फ करेगा…!!?।

मदन ने कोई जवाब नही दिया।

“आम तो चूस…ने(!!) मैं तो…चुस,,,,,,वाने ही आई थी…।"

माया देवी ने सीधी बात करने का फैसला कर लिया था।

“हाय तो चूसूँ चाची!!?”

चूची चूसने की इस खुल्लम-खुल्ला आमंत्रण ने लण्ड को फनफना दिया, उत्तेजना अब सीमा पार कर रही थी।

पेट पर रखे हाथ को धीरे से पकड़ कर अपनी छाती पर रखती हुई, माया देवी मुस्कुराती हुई धीरे से बोली,

“ ले चू,,,,,,स…बहुत मीठा है…।"

मदन ने अपनी बांई हथेली में उसकी एक चूची को कस लिया और जोर से दबा दिया, माया देवी के मुंह से सिसकारी निकल गई,

“चूसने के लिये,,,बोला तो… ”

“दबा के देखने तो दे…चूसने लायक पके है,,,,, या,,,????”,

शैतानी से मुस्कुराता धीरे से बोला।

“तो धीरे से दबा…जोर से दबा के… तो,,,सारा रस,,,,निकल,,,,,,”

मदन की चालाकी पर धीरे से हँस दी।

“सच में चूसूँ चाची…??????”,

मदन ने वासना से जलती आंखो में झांकते हुए पुछा।

“और कैसे…!!! बोलूँ क्या लिख के दूँ …?”,

उत्तेजना से कांपती, गुस्से से मुंह बिचकाती बोली।

मदन को अब भी विश्वास नही हो रहा था, की ये सब इतनी आसानी से हो रहा है। कहाँ, तो वो प्लान बना रहा था, की रात में साड़ी उठा कर अन्दर का माल देखेगा…यहां तो दसो उगँलियाँ घी में और पूरा सिर कढ़ाई में घुसने जा रहा था।

गरदन नीचे झुकाते हुए, मदन ने अपना मुंह खोल भीगे ब्लाउज के ऊपर से चूची को निप्पल सहित अपने मुंह में भर लिया। हल्का सा दांत चुभाते हुए, इतनी जोर से चुसा की माया देवी के मुंह से आह भरी सिसकारी निकल गई। मगर मदन तो अब पागल हो चुका था। एक चूची को अपने हाथ से दबाते हुए, दूसरी चूची पर मुंह मार मार के चूसने, चुमने लगा। माया देवी केलिए ये नया अनुभव था, सदानन्द एक अनुभवी मर्द की तरह उससे प्यार से पेश आता था धीरे धीरे आगे बढ़कर अपनी प्रचन्ड काम शक्ति और धैर्य के साथ उसे सन्तुष्ट करता था मगर आज एक जमाने के बाद जब उसकी चूचियों को एक नव जवान के हाथ और मुंह की नोच खसोट मिली तो उसे अपनी नवजवानी के दिन याद आ गये जब वो सदानन्द और दूसरे लड़कों के साथ ऐसी नोच्खसोट करती थी । मुंह से सिसकारियां निकलने लगी, उसने अपनी जांघो को भींचते हुए , मदन के सिर को अपनी चूचियों पर भींच लिया।

गीले ब्लाउज के ऊपर से चूचियों को चूसने का बड़ा अनुठा मजा था। गरम चूचियों को गीले ब्लाउज में लपेट कर, बारी-बारी से दोनो चूचियों को चूसते हुए, वो निप्पल को अपने होठों के बीच दबाते हुए चबाने लगा। निप्पल एकदम खड़े हो चुके थे और उनको अपने होठों के बीच दबा कर खींचते हुए, जब मदन ने चुसा तो माया देवी छटपटा गई।

मदन के सिर को और जोर से अपने सीने पर भींचती सिसयायी,

“इससस्स्स्,,,,,, उफफफ्फ्,,,,,,। धीरे…आराम से, आम चु…स…”

दोनो चूचियों की चोंच को बारी-बारी से चूसते हुए, जीभ निकाल कर छाती और उसके बीच वाली घाटी को ब्लाउज के खुले बटन से चाटने लगा। फिर अपनी जीभ आगे बढ़ाते हुए, उसकी गरदन को चाटते हुए अपने होठों को उसके कानो तक ले गया, और अपने दोनो हाथों में दोनो चूचियों को थाम, फुसफुसाते हुए बोला,

“बहुत मीठा है, तेरा आम…छिलका,,,, (!!?) उतार के खाउं…??।"

माया देवी भी उसकी गरदन में बांहे डाले, अपने से चिपकाये फुसफुसाती हुई बोली,

“हाय,,,,,, छिलका…उतार के…? ”

“हां,,,,, शरम आ रही है,,,, क्या ?"

“शरमाती तो,,,,, आम हाथ में पकड़ाती…?”

“तो उतार दुं,,,,, छिलका…?”

“उतार दे, हरामी,,,,, तू बक-बक बहुत करता है ??”

मदन ने जल्दी से गीले ब्लाउज के बटन चटकाते हुए खोल दिये, ब्लाउज के दोनो भागों को दो तरफ करते हुए, उसकी काले रंग की ब्रा को खोलने के लिये अपने दोनो हाथों को चौधराइन की पीठ के नीचे घुसाया, तो उसने अपने आप को अपने चूतड़ों और गरदन के सहारे बिस्तर से थोड़ा सा ऊपर उठा लिया। चौधराइन की दोनो चूचियाँ मदन की छाती में दब गई। चूचियों के कठोर निप्पल मदन की छाती में चुभने लगे तो मदन ने पीठ पर हाथों का दबाव बढ़ा कर, चौधराइन को और जोर से अपनी छाती से चिपका लिया और उसकी कठोर चूचियों को अपनी छाती से पीसते हुए, धीरे से ब्रा के हुक को खोल दिया। कसमसाती हुई चौधराइन ने उसे थोड़ा सा पीछे धकेला और गीले ब्लाउज से निजात पाई और तकिये पर लेट मदन की ओर देखने लगी। चौधराइन की आंखे नशे में डूबी लग रही थी। मदन ने कांपते हाथों से ब्रा उतारी तो उनके बड़े बड़े दूध से सफेद उरोज ऐसे फड़फड़ाये जैसे दो बड़े बड़े सफेद कबूतरों हों । मदन ने मदन ने दोनो हाथों में थाम उन कबूतरों को काबू में किया। मदन ने देखा कि उसके हाथों मे चौधराइन के स्तन इतनी देर दबाने मसलने से लाल हो दो बड़े बड़े कटीले लंग़ड़ा आम से लग रहे हैं उन्हें हल्के से दबाते हुए धीरे से बोला,

“बड़े…मस्त आम है !”

“तो खाले न” चौधराइन की आवाज आई।

ये सुनते ही मदन ने हलके भूरे रंग का निप्पल अपने मुँह मे दबा लिया और चूसने लगा । थोड़ी ही देर में मदन की उत्तेजना काबू के बाहर होने लगी और वो पहले तो उनके निप्पलो को बदल बदलकर होंठों में दबा चुभलाने चूसने लगा। फ़िर उनके गदराये जिस्म पर जॅहा तॅहा मुंह मारने लगा। उसने चौधराइन के बगल में लेटते हुए उन्हें अपनी तरफ घुमा लिया, और उनके रस भरे होठों को अपने होठों में भर, नंगी पीठ पर हाथ फेरते हुए, अपनी बाहों के घेरे में कस जोर से चिपका लिया। करीब पांच मिनट तक दोनो मुँह बोले चाची-भतीजे एक दूसरे से चिपके हुए, एक दूसरे के मुंह में जीभ ठेल-ठेल कर चुम्मा-चाटी करते रहे। जब दोनो अलग हुए तो हांफ रहे थे ।

मदन का जोश और चूसने का तरीका चौधराइन को पागल बना रहा था। छिनाल औरतों की दी हुई ट्रेनिंग़ का पूरा फायदा उठाते हुए, मदन ने चौधराइन की चूचियों को फिर से दोनो हाथों में थाम लिया और उसके निप्पल को चुटकी में पकड़ मसलते हुए, एक चूची के निप्पल से अपनी जीभ को लड़ाने लगा। चौधराइन भी अपने एक हाथ से चूची को पकड़ मदन के मुंह में ठेलने की कोशिश करते हुए, सिसयाते हुए चूसवा रही थी। बारी-बारी से दोनो चूचियों को मसलते चूसते हुए, उसने दोनो चूचियों को चूस-चूस कर लाल कर दिया। चूचियों के निपल दांतों में दबा चूसते हुए बोला,

“चौधराइन चाची…आप,,,,ठीक कहती… थीं…तेरे पेड़ के…आम…उफफ्,,,,,पहले क्यों…अभी तक तो पूरा चूस चूस कर…सारा आम-रस पी डालता ।”

चौधराइन कभी उसके सिर के बालो को सहलाती, कभी उसकी पीठ को, कभी उसके चूतड़ों तक हाथ फेरती बोली,

“अभी…चूसने को मिला न …खूब चूस…भतीजे…।”

तभी मदन ने अपने दांतो को उसकी चूचियों पर गड़ाते हुए निप्पल को खींचा, तो दर्द से कराहती बोली,

“बदमाश…चूसने वाला…आम है,,,,,,,,,न कि खाने वाला …उन रण्डियों…का होगा,,,,,,, जिनको…उफफफ्…। धीरे से चूस…चूस कर…उफफफ्,,,.. बेटा,,,…निप्पल को…होठों के बीच दबा…के…धीरे से…नही तो छोड़…दे…”

इस बात पर मदन ने हँसते हुए चौधराइन की चूचियों पर से मुंह हटा, उसके होठों को चुम धीरे से कान में बोला,

“इतने जबरदस्त,,,,,,,आम पहले नही चखाये, उसी की सजा…”

चौधराइन भी मुस्कुराती हुई धीरे से बोली,

“कमीना…गन्दा लड़का।”

“गन्दी औरत …गन्दी चाची का गन्दा भतीजा…”,

बोलते बोलते मदन रुक गया।

गन्दी औरत बोलता है,,,,? चौधराइन ने दाँत पीसते दोनो हाथों में मदन के चेहरे को भरती हुई, उसके होठों और गालो को बेतहाशा चुमती हुई, उसके होठों पर अपने दांत गड़ा दिये. मदन सिसया कर कराह उठा। हँसती हुई बोली, “अब बोल कैसा लगा,,,,? खुद, वैसे भी तू मेरा भान्जा हुआ वो भी मुँह बोला, क्योंकि चौधरी साहब को को तेरी माँ भाई कहती है ।" मदन ने भी अपन गाल छुडा कर, उनके गुदाज संगमरमरी कंधे पर

दांत गड़ा दिये और बोला, -“मैं तो शुरू से चाची ही कहता हूँ”

चल मामी कम चाची सही अपनी चाची के साथ गन्दा काम…? चौधराइन की मुस्कान और चौड़ी हो गई।

“तू भी तो अपने भान्जे कम भतीजे के साथ…।" मदन ने जवाब दिया।

दोनो अब बेशरम हो चुके थे। मदन अपना एक हाथ चूचियों पर से हटा, नीचे जांघो पर ले गया और टटोलते हुए, अपने हाथ को जांघो के बीच डाल दिया। चूत पर पेटिकोट के ऊपर से हाथ लगते ही चौधराइन ने अपनी जांघो को भींचा, तो मदन ने जबरदस्ती अपनी पूरी हथेली जांघो के बीच घुसा दी और चूत को मुठ्ठी में भर, पकड़ कर मसलते हुए बोला,

“अब तो अपना बिल दिखा ना,,,,,!!!”

पूरी चूत को मसले जाने पर कसमसा गई चौधराइन, फुसफुसाती हुई बोली,

“तू,,,,, आम…चूस…मेरा बिल …देखेगा तो तेरा मन करेगा फ़िर……चाची कम मामीचोद…बन…”

मदन समझ गया की गन्दी बाते करने में चौधराइन चाची को मजा आ रहा है।

“अगर डण्डा डालूँगा,,,,,!!। तभी,,,,,,, चाची कम मामीचोद कहलाऊँगा… मैंने तो खाली दिखानेको बोला है… तू क्या चुदवाना चाहती है!।”,
कहते हुए, चूत को पेटिकोट के ऊपर से और जोर से मसलते, उसकी पुत्तियों को चुटकी में पकड़ जोर से मसला।

“हाय…हरामी, क्या बोलता है मेरे…बिल… में डंडा…घुसायेगा ??।”

चौधराइन ने जोश में आ उसके गाल को अपने मुँह में भर लिया, और अपने हाथ को सरका, कमर के पास ले जाती लुंगी के भीतर हाथ घुसाने की कोशिश की। हाथ नहीं घुसा, मगर मदन के दोनो अंडकोश उसकी हथेली में आ गये। जोर से उसी को दबा दिया, मदन दर्द से कराह उठा।

कराहते हुए बोला,

“उखाड़ लेगी,,,,,क्या,,,???… क्या चाहिये,,,!!? ”

चौधराइन ने जल्दी से अंडकोश पर पकड़ ढीली की,

“हथियार,,,(!),,, दिखा.....?”

“थोड़ा ऊपर नही पकड़ सकती थी…? पेड़ पर तो सब देख लिया था…?”

“तुझे, पता…था ?तो तू जान-बुझ के दिखा रहा था, वैसे पेड़ पर… तो तूने भी… देखा था…”

“तो तू भी…जान-बुझ कर दिखा रही थी ! …”,

कहते हुए चौधराइन का हाथ पकड़ अपनी लुंगी के भीतर डाल दिया दिया।

खड़े लण्ड पर हाथ पड़ते ही चौधराइन का बदन सिहर गया। गरम लोहे की राड की तरह तपते हुए लण्ड को मुठ्ठी में कसते ही, लगा जैसे चूत पनियाने लगी हो। मुँह से निकला –हय साल्ला! सदानन्द की औलाद का लौड़ा मारूँ!”

ये सुन मदन चुका –“ क्या मतलब चाची!”

चौधराइन –“ कहाँ की चाची किसका भाई मेरे बचपन का यार है तेरा बाप पहले भी चुदवाती थी अब भी लगभग रोज दोपहर को……?

मदन –“ तेरी माँ की आँख चाची! वाह चाची मैं तो आप को सीधा समझ रहा था”

मदन के लण्ड को हथेली में कस कर, जकड़ मरोड़ती हुई बोली,

“तो क्या सारी दुनियाँ में तू ही एक चुदक्कड़ है हम भी कुछ कम नहीं ऐसा ही वो(सदानन्द) भी है जैसा बाप वैसा बेटा । जैसे गधे का…उखाड़ कर लगा लिया हो ?”

“है, तो…तेरे भतीजे काही…मगर…गधे के…जैसा !!!”,

बोलते हुए चूत की दरार में पेटिकोट के ऊपर से उँगली चलाते हुए बोला,

“पानी…फेंक रही है…”

“चाचीकम मामीचोद बने,,,,गा,,,,,,,,क्या,,,?”

“तू,,,,भतीजे कम भांजे की … रखैल बनेगी?....”

“जल्दी कर! अब रहा नही जा रहा…”

“पर पूरी नंगी करूँगा…????”

“जो चाहे कर हां! पर जल्दी,,,,,”

To be Continued

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चौधराइन की रंगीन दुनियाँ | Choudharayin Ki Rangin Duniya
भाग 11 – चौधराइन के प्लान की सफ़लता | Choudharayin Ke Plan Ki Safalta

झट से बैठते हुए, अपनी लुंगी खोल एक तरफ फेंकी, तो कमरे की रोशनी में उसका दस इंच का तमतमाता हुआ लण्ड देख चौधराइन को झुरझुरी आ गई। उठ कर बैठते हुए, हाथ बढ़ा उसके लण्ड को फिर से पकड़ लिया और चमड़ी खींच उसके पहाड़ी आलु जैसे लाल सुपाड़े को देखती बोली,

“हाय,,,,,,,बेला ठीक बोलती थी…तु बहुत बड़ा,,,,,, हो गया है…तेरा…केला तो…। मेरी…तो फ़ाड़ ही देगा.........”

पेटिकोट के नाड़े को हाथ में पकड़ झटके के साथ खोलते हुए बोला,

“भगवान बेला का भला करे जिसने मेरी इतनी तारीफ़ की कि तू ललचा गई

कहती हुई चौधराइन अपने भारी भारी संगमरमरी गुदाज चूतड़ उठा, पेटिकोट को चूतड़ों से सरका और शानदार रेशमी मांसल जांघों से नीचे से ठेल निकाल दिया। इस काम में मदन ने भी उसकी मदद की और सरसराते हुए पेटिकोट को उसके पैरों से खींच दिया। कमरे की ट्यूबलाइट की रोशनी में चौधराइन के भारी संगमरमरी गुदाज चूतड़, शानदार चमचमाती रेशमी मांसल जांघो को देख मदन की आंखें एक बार तो चौंधियागयी फ़िर फ़टी की फ़टी रह गईं।

चौधराइन लेट गई, और अपनी दोनो टांगो को घुटनो के पास से मोड़ कर फैला दिया। दोनो मुँहबोले चाची-भतीजे अब जबर्दस्त उत्तेजना में थे. दोनो में से कोई भी अब रुकना नही चाहता था। मदन ने चौधराइन की चमचमाती जांघो को अपने हाथ से पकड़, थोड़ा और फैलाया और उनके ऊपर हपक के मुँह मारकर चुमते हुए, फ़िर उसकी झाँटदार चूत के ऊपर एक जोरदार चुम्मा लिया, और बित्ते भर की चूत की दरार में जीभ चलाते हुए, बुर की टीट को झाँटों सहित मुंह में भर कर खींचा, तो चौधराइन लहरा गई। चूत की दोनो पुत्तियों ने दुप-दुपाते हुए अपने मुंह खोल दिये। सिसयाती हुई बोली,

“इसस्स्,,,,,,,!!! क्या कर रहा है…???”

दरार में जीभ चलने पर मजा तो आया था मगर लण्ड, बुर में लेने की जल्दी थी। जल्दी से मदन के सिर को पीछे धकेलती बोली,
“…। क्या…करता…है ??…जल्दी कर…।”

पनियायी चूत की दरार पर उँगली चला उसका पानी लेकर, लण्ड की चमड़ी खींच, सुपाड़े की मुन्डी पर लगा कर चमचमाते सुपाड़े को चौधराइन को दिखाता बोला, “चाची,,,,,,देख मेरा…डण्डा…तेरे छेद…पर…”

“हां…जल्दी से…। मेरे छेद में…।“

लण्ड के सुपाड़े को चूत के छेद पर लगा, पूरी दरार पर ऊपर से नीचे तक चला, बुर के होठों पर लण्ड रगड़ते हुए बोला,

“हाय,,,,, पेल दुं,,,,पूरा…???”

“हां,,,,,,!! चाची…चोद बन जा…”

“फ़ड़वाये,,,गी…?????”हाय,,,,,,फ़ाड़ दूँ…”

“बकचोदी छोड़,,,,, फ़ड़वाने के,,,,,लिये तो,,,,,खोल के,,,,नीचे लेटी हूँ…!! जल्दी कर…”, वासना के अतिरेक से कांपती झुंझुलाहट से भरी

आवाज में चौधराइन बोली।

लण्ड के लाल सुपाड़े को चूत के गुलाबी झांठदार छेद पर लगा, मदन ने धक्का मारा। सुपाड़ा सहित चार इंच लण्ड चूत के कसमसाते छेद की दिवारों को कुचलता हुआ घुस गया। हाथ आगे बढ़ा, मदन के सिर के बालो में हाथ फेरती हुई, उसको अपने से चिपका, भराई आवाज में बोली,

“हाय,,,, पूरा…डाल दे…“हाय,,,,, ,,,!!!…फ़ाड़…! मेरी मदन बेटा…शाबाश।"

मदन ने अपनी कमर को थोड़ा ऊपर खींचते हुए, फिर से अपने लण्ड को सुपाड़े तक बाहर निकाल धक्का मारा। इस बार का धक्का जोरदार था। चौधराइन की चूतड़ों फट गई। पिछले दो दिनों से सदानन्द नहीं आया था सो उसने चुदवाया नही था जिससे उसकी चूत सिकुड़ी हुई थी। चूत के अन्दर जब तीन इंच मोटा और दस इंच लम्बा लण्ड, जड़ तक घुसने की कोशिश कर रहा था, तो चूत में छिलकन हुई और दर्द की हल्की सी लहर ने उसको कंपा दिया।

“उईईई आआ,,,,,, शाबाश फ़ाड़ दी,,,,,, ,,,,,,चौधराइन चाची की आह…।”,

करते हुए, अपने हाथों के नाखून मदन की पीठ में गड़ा दिये।

“बहुत,,,,, टाईट…है…तेरा,,,,छेद…”

चूत के पानी में फिसलता हुआ, पूरा लण्ड उसकी चूत की जड़ तक उतरता चला गया।

“बहुत बड़ा…है,,,,तेरा,,,,केला…उफफफ्…। मेरे,,,,,, आम चूसते हुए,,,,,चोद शाबाश”

मदन ने एक चूची को अपनी मुठ्ठी में जकड़ मसलते हुए, दूसरी चूची पर मुंह लगा कर चूसते हुए, धीरे-धीरे एक-चौथाई लण्ड खींच कर धक्के लगाता पुछा,

“पेलवाती,,,, नही… थी…???”

“नही,,,। किस से पेलवाती,,,,,,?”

“क्यों,,,,?…चौधरी चाचा…!!!।”

“उसका मूड…बहुत कम… कभी कभी ही बनता है।”

“दूसरा…कोई…”

“हरामी,,,,, कहे तो तेरे बाप से चुदवा लूँ ,,,,,,तुझे अच्छा…लगेगा…??।”, ताव में से चूतड़ पर मुक्का मारती हुई बोली।

“बात तो सुन लिया कर पूरी,,,,, सीधा गाली…देने…”,

झल्लाते हुए, मदन चार-पांच तगडे धक्के लगाता हुआ बोला।

तगडे धक्को ने चौधराइन को पूरा हिला दिया। चूचियाँ थिरक उठीं। मोटी जांघो में दलकन पैदा हो गई। थोड़ा दर्द हुआ, मगर मजा भी आया, क्योंकि चूत पूरी तरह से पनिया गई थी, और लण्ड गच-गच फिसलता हुआ अन्दर-बाहर हुआ था। अपने पैरों को मदन की कमर से लपेट उसको भींचती सिसयाती हुई,

“उफफफ्,,,,,,,, सीईई,,,,हरामी,,,,, दुखा…दिया…आरम,,,से,,,,भी बोल शकता…था…”

मदन कुछ नही बोला. लण्ड अब चुंकी आराम से फिसलता हुआ अन्दर-बाहर हो रहा था, इसलिये वो अपनी चौधराइन चाची कि टाईट, गद्देदार, रसिली चूत का रस अपने लण्ड की पाईप से चूसते हुए, गचा-गच धक्के लगा रहा था। चौधराइन को भी अब पूरा मजा आ रहा था. लण्ड सीधा उसकी चूत के अखिरी किनारे तक पहुंच कर ठोकर मार रहा था। धीरे धीरे चूतड़ों उंचकाते हुए सिसयाती हुई बोली,

“बोलना,,,,,तो, जो बोल…रहा…”

“मैं तो…बोल रहा था,,,,,, की अच्छा हुआ…जो किसी और से…नही…करवाया …नही तो,,,,,,,,मुझे…तेरे टाईट…छेद की जगह…ढीला…छेद…”

“हाय…हरामी…तुझे,,,,छेद की…पड़ी है…इस बात की नही, की मैं दूसरे आदमी…”

“मैं तो…बस एक,,,,बात बोल रहा…था की…

“चुप कर…कमीने…दूसरे से करवा कर मैं बदनाम होती…साले…तेरी मेरी घरेलू बात घर की बात…”

तब तो…मेरे बाप से चुदवाने का आइडिया बुरा नहीं, घरेलू मामला घर की बात घर में जैसे मैं चाची चोद वो बहन चोद”

“वैसे ठीक किया तूने…बचा कर रखा…मजा आ रहा,,,,,अब तुझे खूब मजे… दस इंच के हथियार वाला भतीजा किस दिन…काम आयेगा…”

“हाय…बहुत मजा…आ…चोदे जा…मेरा जवान भतीजा…। गांव भर की हरामजादिया मजे लुटे, और मैं…”

“हाय,,,, अब…गांववालीयों को छोड़…अब तो बस तेरी…ही…सीईईइ उफफ्…बहुत मजेदार छेद है…”,

गपा-गप लण्ड पेलता हुआ, मदन सिसयाते हुए बोला।

लण्ड बुर की दिवारों को बुरी तरह से कुचलता हुआ, अन्दर घुसते समय चूत के धधकते छेद को पूरा चौड़ा कर देता था, और फिर जब बाहर निकलता था तो चूतके मोटे होठ और पुत्तियां अपने आप करीब आ छेद को फिर से छोटा बना देती थी। मोटी जाँघों और बड़े होठों वाली, फ़ूली पावरोटी सी गुदाज चूत होने का यही फायदा था। हंमेशा गद्देदार और टाईट रहती थी। ऊपर के रसीले होठों को चूसते हुए, नीचे के होठों में लण्ड धंसाते हुए मदन तेजी से अपनी चूतड़ों उछाल कर चौधराइन के ऊपर कुद रहा था।

“हाय,,, तेरा केला भी…!! बहुत मजेदार…है, मैंने आजतक इतना लम्बा…डण्डा…सीसीसीईईईईईईई…हाय डालता रह…। ऐसे ही…उफफ्…पहले दर्द किया,,,,,मगर…अब…। आराम से…। हाय…। अब फ़ाड़ दे…डाल…। सीईईईई…पूरा डाल…कर…। हाय मादर,,,,,चोद…बहुत पानी फेंक रही…है मेरी …चु…।”

नीचे से चूतड़ों उछालती, मदन के चूतड़ को दोनो हाथों से पकड़ अपनी चूत के ऊपर दबाती, गप गप लण्ड खा रही थी, चौधराइन। कमरे में बारिश की आवाज के साथ चौधराइन की चूत की पानी में फच-फच करते हुए लण्ड के अन्दर-बाहर होने की आवाज भी गुंज रही थी। इस सुहाने मौसम में खलिहान के विराने में दोनो चौधराइन चाची-भतीजे जवानी का मजा लूट रहे थे। कहाँ मदन अपनी चोरी पकड़े जाने पर अफसोस मना रहा था, वहीं अभी खुशी से चूतड़ों कुदाते हुए, अपनी चौधराइन चाची की टाईट पावरोटी जैसी फुली चूत में लण्ड पेल रहा था। उधर चौधराइन जो सोच रही थी की मदन बिगड़ गया है, अब नंगी अपने भतीजे के नीचे लेट कर, उसके तीन इंच मोटे और दस इंच लम्बे लण्ड को कच-कच खाते हुए अपने भतीजे के बिगड़ने की खुशियां मना रही थी। आखिर हो भी क्यों ना, जिस लण्ड के पीछे गांव भर की औरतो की नजर थी अब उसके कब्जे में था, अपने खलिहान या घर के अन्दर, जितनी मरजी उतना चुदवा सकती थी।

“हाय,,,, बहुत…। मजेदार है, तेरे आम…तेरा छेद…उफफ्…हाय,,,, अब तो…हाय, चौधराइन चाची,,,, मजा आ रहा है, इस भतीजे का डण्डा बिल में घुसवाने में ???…। सीएएएएएए…। हाय, पहले ही बता दिया होता तो…अब तक…कितनी बार तेरा आम-रस पी लेता…। तेरी सिकुड़ी चूत फ़ाड़ के भोसड़ा बना देता …सीईईईई ले भतीजे का…। लण्ड…। हाय…बहुत मजा,, हाय,,…तूने तो खेल-खेल कर इतना…तड़पा दिया है…अब बरदाश्त नही हो रहा…मेरा तो निकल जायेगा……सीईईईईई… तेरी … चु…त में,,,,???।,

सिसयाते हुए मदन बोला।

नीचे से धक्का मारती, धका-धक लण्ड लेती, चौधराइन भी अब चरम-सीमा पर पहुंच चुकी थी। चूतड़ों को उछालती हुई, अपनी टांगो को मदन की कमर पर कसते हुए चिल्लाई…,

”मार,,,,,मार ना,,,, भोसड़ीवाले… छोटे पण्डित हाय…सीईईईई,,,, अपने घोड़े जैसे…।लण्ड से,,,…मार… चौधराइन…की चूत…फ़ाड़ दे…। हाय,,,…। बेटा,, मेरा भी अब झड़ेगा…पूरा लण्ड…डाल के चोद दे… चाची…की चूत…। पेल देएएए…। चौधराइन चाची के लण्ड …। चोद्द्द्द्……मेरी चूऊत में…।”

यही सब बकते हुए उसने मदन को अपनी बाहों में कस लिया।

उसकी चूत ने पानी फेंकना शुरु कर दिया था। मदन के लण्ड से भी तेज फौवारे के साथ पानी निकलना शुरु हो गया था। मदन के होंठ चौधराइन के होठों से चिपके हुए थे, दोनो का पूरा बदन अकड़ गया था। दोनो आपस में ऐसे चिपक गये थे की तिल रखने की जगह भी नही थी। पसीने से लथ-पथ गहरी सांस लेते हुए। जब मदन के लण्ड का पानी चौधराइन की चूत में गिरा, तो उसे ऐसा लगा जैसे उसकी बरसों की प्यास बुझ गई हो। तपते रेगीस्तान पर मदन का लण्ड बारिश कर रहा था और बहुत ज्यादा कर रहा था, आखिर उसने अपनी चौधराइन चाची को चोद ही दिया। करीब आधे घन्टे तक दोनो एक दूसरे से चिपके, बेसुध हो कर वैसे ही नंगे लेटे रहे. मदन अब उसके बगल में लेटा हुआ था। चौधराइन आंखे बन्द किये टांगे फैलाये बेसुध लेटी हुई थी, ।

आधे घन्टे बाद जब माया देवी को होश आया, तो खुद को नंगी लेटी देख हडबड़ाकर उठ गई। बाहर बारिश अपने पूरे शबाब पर थी। बगल में मदन भी नंगा लेटा हुआ था। उसका लटका हुआ लण्ड और उसका लाल सुपाड़ा, उसके मन में फिर से गुद-गुदी पैदा कर गया। मन ही मन बोली लो पंडित सदानन्द आज मैंने तेरे छोटे पंडित को भी निबटा दिया , देख बारिश भी छोटे पंडित और बड़ी चौधराइन की चुदाई की खुशी मना रही आज से गाँव के दोनो पण्डित मेरी चूत से बंधे रहो।

मन ही मन ऐसी ऊल जलूल बातें सोचते, मुस्कुराते उन्होंने आहिस्ते से बिस्तर से उतर अपने पेटिकोट और ब्लाउज को फिर से पहन लिया और मदन की लुंगी उसके ऊपर डाल, जैसे ही फिर से लेटने को हुई की मदन की आंखे खुल गई। अपने ऊपर रखी लुंगी का अहसास उसे हुआ, तो मुस्कुराते हुए लुंगी को ठीक से पहन ली। थोड़ी देर तक तो दोनो में से कोई नही बोला पर, फिर मदन धीरे से सरक कर माया देवी की ओर घुम गया, और उसके पेट पर हाथ रख दिया और धीरे धीरे हाथ चला कर सहलाने लगा। फिर धीरे से बोला,

“कैसी हो चौधराइन चाची,,,,,, ,,,,?”

चौधराइन –“ एक एक जोड़ दुख रहा है।”

मदन फिर बोला,

“इधर देखो ना…।”

माया देवी मुस्कुराते हुए उसकी तरफ घुम गई। मदन उसके पेट को हल्के-हल्के सहलाते हुए, धीरे से उसके पेटिकोट के लटके हुए नाड़े के साथ खेलने लगा। नाड़ा जहां पर बांधा जाता है, वहां पर पेटिकोट आम तौर पर थोड़ा सा फटा हुआ होता है । नाड़े से खेलते-खेलते मदन ने अपना हाथ धीरे से अन्दर सरकाकर उनकी फ़ूली चूत जो अभी अभी चुदने से और भी फ़ूल गई थी हाथ फ़ेर दिया, तो गुदगुदी होने पर उसके हाथ को हटाती बोली,

“क्या करता है,,,,,? हाथ हटा…”

मदन ने हाथ वहां से हटा, कमर पर रख दिया और थोड़ा और आगे सरक कर उनकी आंखो में झांकते हुए बोला,

“,,,,,,मजा आया…!!!???”

झेंप से चौधराइन का चेहरा लाल हो गया. उसकी छाती पर के मुक्का मारती हुई बोली,-“,,,,,,,चुप…गधा कहीं का…!!!!”

मदन -“मुझे तो बहुत मजा,,,,,,,आया…बता ना, तुझे कैसा लगा…?”

“हाय, नही छोड़…तू पहले हाथ हटा…”

“क्यों,,,,अभी तो…बताओ ना,,,,,, चाची,,,?”

“धत,,,,,छोड़,,,वैसे, आज कोई आम चुराने वाली नही आई ?”,

माया देवी ने बात बदलने के इरादे से कहा।

“तूने इतनी मोटी-मोटी गालियां दी…थी, वो सब…”

“चल,,,,,,मेरी गालियों का,,,,,असर…उनपे कहाँ से…होने वाला…?”

“क्यों,,,!!,,,? इतनी मोटी गालियां सुन कर, कोई भी भाग जायेगा,,,,,,मैंने तो तुझे पहले कभी ऐसी गालियां देते नही सुना”

“वो तो,,,,,,,,वो तो तेरी झिझक दूर करने के लिए …बस,,,,…वरना रात बेकार जाती…”

“अच्छा, तो आप पहले से प्लान बनाये थी मैं तो अपने को बड़ा अकलमन्द समझ रहा था…? वैसे, बड़ी…मजेदार गालियां दे रही थी,,,,,,,,मुझे तो पता ही नही था…”

“…! चल हट, बेशरम…”

“…!! उन बेचारियों को तो तूने…।”

“अच्छा,,,,,,वो सब बेचारी हो गई,,,!!! सच-सच बता,,,, लाजो थी, ना…?”

आंखे नचाते हुए चौधराइन ने पुछा।

हँसते हुए मदन बोला,

“तुझे कैसे पता…? तूने तो उसका बेन्ड बजा…”,
कहते हुए, उनके होठों को हल्के से चुम लिया।

माया देवी, उसको पीछे धकेलते हुए बोली,

“हट,,,,,। बदमाश,,,, बजाई तो तूने है सबकी, सच सच बता अब तक गांव में कितनों की बजाई…???”

मदन एक पल खामोश रहा, फिर बोला,

“क्या,,,,,चौधराइन चाची,,,?…कोई नही.....”

“चल झूठे,,,,,,,,मुझे सब पता…है. सच सच बता....”.

कहते हुए. फिर उसके हाथ को अपने पेट पर से हटाया।

मदन ने फिर से हाथ को पेट पर रख. उसकी कमर पकड़ अपनी तरफ खींचते हुए कहा.

“सच्ची-सच्ची बताउं......?”

“हां, सच्ची…कितनो के साथ…?”,

कहती हुई, उसकी छाती पर हाथ फेरा।

मदन, उसको और अपनी तरफ खींचा तो चौधराइन उस्की तरफ़ घूम गईं, मदन अपनी कमर को उसकी कमर से सटा, धीरे से फुसफुसाता हुआ बोला,

“याद नही, पर....करीब बारह-तेरह …।"

“बाप रे,,,,!!!…इतनी सारी ???…कैसे करता था, मुए,,??,,,,मुझे तो केवल लाजो और बसन्ती का पता था…”,
कहते हुए उसके गाल पर चिकोटी काटी।

“वो तो तुझे तेरी जासुस बेला ने बताया होगा इसीलिए कल मैंने बेला को भी इसी बिस्तर पे पटक के चोद दिया… बाकियों को तो मैंने इधर-उधर कहीं खेत में, कभी पास वाले जंगल में, कभी नदी किनारे निपटा दिया था…।”

“कमीना कहीं का,,,,,तुझे शरम नही आती…बेशरम…”,
उसकी छाती पर मुक्का मारती बोली।

मदन(ताल ठोंक के) -“अब जब गाँव की चौधराइन चाची की ही निपटा दी तो…॥”,

कहते हुए, उसने चौधराइन को कमर से पकड़ कस कर भींचा। उसका खड़ा हो चुका लण्ड, सीधा चौधराइन की जांघो के बीच दस्तक देने लगा।
चौधराइन उसकी बाहों से छुटने का असफल प्रायास करती, मुंह फुलाते हुए बोली,

“छोड़,,,,बेशरम,,,,,बदमाश… तू तो कितना सीधा था, कहाँ सीखी इतनी बदमाशी?”

मदन –“अगर एक बार और करने दो तो बताऊँ।”

चौधराइन गरम तो थी हीं उसका लण्ड अपनी दोनों माँसल रेशमी जाँघों के बीच दबा के मसलते हुए बोलीं –“अगर सच सच बतायेगा तो… वरना नहीं।”

मदन –“मंजूर। तो फ़िर सुनिये”

ये कह मदन ने चौधराइन के ब्लाउज में हाथ डाल उनकी विशाल छाती थाम ली और सहलाते हुए अपनी आप बीती सुनानी शुरू की। 

यहाँ चौधराइन का प्रथम सोपान समाप्त हुआ।

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