और लण्ड थाम अपनी चूत के होठों पर रगड़ती हुई बोली,
"वैसे छोटे मालिक, एक बात बोलुं,,,,,,,???"
"हां बोल,,,,,,,,,पर ज्यादा खेल मत कर छेद पर लगा दे, मुझ से रुका न जायेगा ।"
"सोने की चैन बहुत महेंगी आती है, क्या??"
चौधराइन की रंगीन दुनियाँ | Choudharayin Ki Rangin Duniya
भाग 4 – मदन की इन्द्र सभा | Madan Ki Indra Sabha
मदन समझ गया की, साली को पायल मिल गयी है. अब मुझे बसन्ती बिना चैन नही और इसे सोने की चैन बिना। लण्ड पर से उसके हाथ को हटा, चूत के मुहाने पर लगा धक्का मारता हुआ बोला,
"महेंगी आये, चाहे सस्ती तुझे क्या,?,,,,आम खाने से मतलब रख गुठली, मत गीन."
इतना सुनते ही, जैसे लाजो एकदम गनगना गई. दोनो बाहों का हार मदन के गले में डालती बोली,
"हाय मालिक,,,,मैं कहाँ,?,,,,मैं तो सोच रही थी, कहीं आपका ज्यादा खर्चा ना हो जाये,,,,,,सम्भल के मालिक, जरा धीरे-धीरे आपका बड़ा मोटा है।"
"मोटा है, तभी तो तेरे जैसी छिनाल की चूत में भी टाईट जाता है,,,,?"
जोर जोर से धक्के लगाता हुआ मदन बोला।
"हाय मालिक, चोदो अब ठीक है,,,,,मालिक अपने लण्ड के जैसी मोटी चैन लेना,,,,,जैसे आपका मोटा लण्ड खा कर चूत को मजा आ जाता है, वैसे ही चैन पहन कर,,,,,"
"ठीक है भौजी, तु चिन्ता मत कर,,,,,,,सोने से लाद दूँगा,,,,,,,,।"
मदन ने लाजो की धुंआधार चुदाई की और उसके भोसड़े की प्यास अपने माल से बुझा दी लाजो भी जीभर के झड़ी। मदन ने झड़ने के बाद लण्ड निकाल कर उसके पेटीकोट में पोंछ कर पैन्ट पहन लिया। लाजो उठती हुई बोली,
"मालिक, जगह का उपाय करना होगा। बसन्ती की अभी अनचुदी बुर है। पहली बार लेगी, वो भी आपका हलब्बी लण्ड, तो बिदकेगी और चिल्लायेगी। ऐसे खेत में जल्दी का काम नही है। उसकी तो आराम से लेनी होगी..."
मदन हँस के बोला बोला,
"अरे अब कोई फ़िकर नहीं ये जो अपने चौधरी चाचा का आम का बागीचा है न, ये आज से मेरी देख रेख में है बगीचे वाले मकान की चाबी भी मेरे पास है बस अब अपनी ऐशगाह वहीं रहेगी अब बोलो कैसा रहेगा वो?"
लाजो ने हां में सिर हिलाते हुए कहा,
"हां मालिक, ठीक रहेगा,,,,,ज्यादा दूर भी नही, फिर रात में किसी बहाने से मैं बसन्ती को खिसका के लेते आऊँगी...."
"चल फिर ठीक है, जैसे ही बसन्ती मान जाये मुझे बता देना."
फिर दोनो अपने अपने रास्ते चल पडे।
घर जा के मदन ने पन्डित सदानन्द से कहा,
“पिताजी रात में रखवाले सो जाते हैं सोचता हूँ अगर मैं वहाँ सोऊँगा तो मेरे डर से जाग कर रख्वाली करेंगे ।”
पन्डित सदानन्द बहुत खुश हुए कि लड़का जिम्मेदार हो रहा है बोले –“ठीक है वहीं सो जाना।”
फ़िर तो दो रातो तक मदन ने चौधरी के बगीचे वाले मकान में उनके मोटे गद्दे वाले विशाल बिस्तर पर खूब जम के लाजो की जवानी का रस चुसा और उसे नंगाकर चिपट के सोया। आखिर पायल की कीमत जो वसुलनी थी। तीसरे दिन लाजो ने बता दिया की रात में बसन्ती को ले कर आऊँगी। मदन बाबू पूरी तैयारी से बगीचे वाले मकान पर पहुंच गये। करीब आधे घंटे के बाद ही दरवाजे पर खट-खट हुई।
मदन ने दरवाजा खोला सामने बनी ठनी लाजो खड़ी थी। मदन ने धीरे से पुछा,
“भौजी, और बसन्ती...???"
लाजो ने अन्दर घुसते हुए, आंखो से अपने पीछे इशारा किया। दरवाजे के पास बसन्ती सिर झुकाये खड़ी थी। मदन के दिल को करार आ गया। बसन्ती को इशारे से अन्दर बुलाया। बसन्ती धीरे-धीरे शरमाती-संकुचती अन्दर आ गई। मदन ने दरवाजा बंद कर दिया, और अन्दर वाले कमरे की ओर बढ़ चला। लाजो, बसन्ती का हाथ खींचती हुई पीछे-पीछे चल पड़ी। अन्दर पहुंच कर मदन ने अंगड़ाई ली। उसने लुंगी पहन रखी थी। लाजो को हाथों से पकड़ अपनी ओर खींच लिया, और बाहों में कसते हुए उसके होठों पर चुम्मा ले बोला,
“क्या बात है भौजी, आज तो कयामत लग रही हो”
“हाय छोटे मालिक, हाय मेरी,,,,,,,हड्डीयां तोड़ोगे क्या,,,,,,,,,,,"आप तो ऐसे ही,,,,,,,,बसन्ती को ले आई।”
बसन्ती बेड के पास चुप चाप खड़ी थी।
“हां, वो तो देख ही रहा हुँ,”
“हां मालिक, लाजो अपना किया वादा नही भुलती,,,,,,,,,लोग भुल जाते है,”
“आते ही अपनी औकात पर आ गई”
कहते हुए मदन ने पास में पड़े कुर्ते में हाथ डाल कर एक डिब्बा निकाला, और लाजो के हाथों में थमा दिया। फिर उसको कमर के पास से पकड़ कर अपने से चिपका कर, उसके बड़े बड़े चूतड़ों को कस कर दबाता हुआ बोला,
"खोल के देख ले।”
लाजो ने खोल के देखा, तो उसकी आंखो में चमक आ गई।
“हाय मालिक, मैं आपके बारे में कहाँ बोल रही थी ??,,,,,,,,,मैं क्या आपको जानती नहीं।”
लाजो की चूतड़ों की दरार में साड़ी के ऊपर से उँगली चलाते हुए, उसके गाल पर दांत गड़ा उसकी एक चूची पकड़ और कस कर चिपकाया।
लाजो “आह मालिक आआआअ उईईई”
बसन्ती एक ओर खड़ी होकर उन दोनो को देख रही थी। मदन ने लाजो को बिस्तर पर पटक दिया। बिस्तर इतना बड़ा था की, चार आदमी एक साथ सो सकें। दोनो एक दूसरे से गुत्थम-गुत्था हो कर बिस्तर पर लुढकने लगे। होठों को चूसते हुए कभी गाल कटता कभी गरदन पर चुम्मी लेता। इस खींचतान उठापटक में साड़ी कब खुल के अजमीण पे जा गिरी पता ही नहीं चला अब लाजो सिर्फ़ पेटीकोट ब्लाउज में बिस्तर पर पड़ी थी मदन ने ब्लाउज में हाथ डालने की कोशिश की तो चुटपुटिया वाले बटन चौपट खुल गये और मदन ने एकदम से ब्लाउज उतारकर एक तरफ़ डाल दिया लाजो जैसी बेशरम ने भी लजा कर बिस्तर पर पलट सीने के बल हो अपना सीना छिपा लिया, अब उसकी पीठ मदन की तरफ़ थी ।
मदन ने पीठ पर लगा अंगिया का हुक खोल दिया। चौंक के लाजो के मुँह से निकला –
“ अरे मालिक रुको तो”
और वो उठके बैठगई मदन ने उसे और गोद में खीच लिया और अंगिया भी उतार के फ़ेक दी दो बड़े बड़े खरबूजों जैसे गोल स्तन उछल के बाहर आ गये। मदन ने उन गोलों को दोनों हाथों में दबोच जोर से दबाया फ़िर उनपर मुँह मारने लगा।
लाजो के मुंह से “आ हा अह,,,,,,,,उईईईईईइ, मालिक.."
तभी लाजो फुसफुसा के बोली,
“मेरे पर ही सारा जोर निकालोगे क्या,?,,,,,बसन्ती तो,,,,,,,,,,”
मदन भी फुसफुआते हुए बोला,
“अरे खड़ी रहने दे, तुझे एक राउण्ड चोद दूँ तो कुछ चैन पड़े, चुदाई देख के खुद ही गरम हो जायेगी।”
मदन की चालाकी समझ, वो भी चुप हो गई।
फिर मदन ने जल्दी से लाजो का पेटी कोट ऊपर समेट दिया जिससे वो लगभग पूरी नंगी लगने लगी। अपनी ननद के सामने पूरी नंगी होने पर शरमा कर बोली,
“हाय मालिक, कुछ तो छोड़ दो,,,,,,,,।”
मदन अपनी लुंगी खोलते हुए बोला,
“पेटीकोट पहने तो हो, भौजी”
मदन का दस इंच लम्बा लण्ड देख कर बसन्ती एकदम सिहर गई। मगर लाजो ने लपक कर अपने दोनों हाथों में थाम लिया, और सहलाने लगी। फ़िर एक हाथ में हथौड़े की तरह लण्ड पकड़ सुपाड़े को दूसरे हाथ की गदेली पर मारते हुए बोली,
“मालिक, बसन्ती ऐसे ही खड़ी रहेगी क्या,,,,,,,,,???”
“अरे, मैंने कब कहा खड़ी रहने को ??,,,,,,,बैठ जाये,,,,,,,,,”
“ऐसी क्या बेरुखी मालिक ?,,,,,,,बेचारी को अपने पास बुला लो ना,” ,
लाजो मदन के बगल में बैठ लण्ड पर अपनी जाँघ चढ़ा कर रगड़ते हुए बोली।
“हाय, बहुत अच्छा भौजी मैं कहाँ बेरुखी दिखा रहा हुं. वो तो खुद ही दूर खड़ी है,,,,,,,”
“हाय मालिक, जब से आई है, आपने कुछ बोला नही है,अरे, बसन्ती आ जा, अपने मदन बाबू बहुत अच्छे है,शहर से पढ़ लिख कर आये है,गांव के उजड्ड गंवारो से तो लाख दरजे अच्छे हैं ।"
बसन्ती थोड़ा सा हिचकी तो, लण्ड छोड़ कर लाजो उठी और हाथ पकड़ उसे बेड पर खींच लिया। मदन ने एक और मसनद लगा, उसको थप थपाते हुए बैठने का इशारा किया। बसन्ती शरमाते हुए मदन के बगल में बैठ गई।
लाजो ने मदन का लण्ड पकड़ हिलाते हुए दिखाया,
“देख कितना अच्छा है !?, अपने मदन बाबू का,,,,एकदम घोड़े के जैसा है,,,,,ऐसा पूरे गांव में किसी का नही,,,,,,,।"
झुकी पलकों के नीचे से बसन्ती ने मदन का हलब्बी लण्ड देखा, दिल में एक अजीब सी कसक उठी। हाथ उसे पकड़ने को ललचाये, मगर शर्म और हलव्वी आकार का डर नही छोड़ पाई।
मदन ने बसन्ती की कमर में हाथ डाल अपनी तरफ खींचा,
“शरमाती क्यों है ? आराम से बैठ,,,,,,,आज तो बड़ी सुन्दर लग रही है,,,,,,,,,खेत में तो तुझे अपना लण्ड दिखाया था ना,,,,,तो फिर क्यों शरमा रही है ?।”
बसन्ती ने शरमा कर गरदन झुका ली। उस दिन के मदन और आज के मदन में उसे जमीन आसमान का अन्तर नजर आया। उस दिन मदन उसके सामने गिड़गिड़ा रहा था. उसको लहंगे का तोहफा दे कर ललचाने की कोशिश कर रहा था, और आज का मदन अपने पूरे रुआब में था.
“हाय् मालिक,,,,,,,,मैंने आज तक कभी,,,,,,,,”
“अरे, तेरी तो शादी हो गई है. दो महीने बाद गौना हो कर जायेगी, तो फिर तेरा पति तो दिखायेगा ही,,,,,,,”
“धत् मालिक,,,,,,,,,,”
“तेरा लहंगा भी लाया हूँ,,,,,,,,,,लेती जाना,,,,,,,,सुहागरात के दिन पहनना,,,,,,,,”
कह कर अपने पास खींच कर, उसकी एक चूची हल्के थाम ली । बसन्ती शरमा कर और सिमट गई। मदन ने उसे अपने से सटा ठुड्डी से पकड़ कर उसका चेहरा ऊपर उठाते हुए कहा,
“बड़ी नशीली लग रही है.”
और उसके होठों से अपने होंठ सटा कर चूसने लगा। बसन्ती की आंखे मुंद गई। मदन ने उसके होठों को चूसते हुए, उसकी चोली में हाथ डाल उसके कटीले आमों को सहलाते हुए दबाने लगा । बसन्ती सिसकारियाँ भरने लगी।
“सीईई,,,,,,, आह मालिक,”
मदन ने धीरे से उसकी चोली के बटन खोलने की कोशिश की, तो बसन्ती ने शरमा कर मदन का हाथ हल्के से हटा दिया। लाजो की विशाल चूची को पकड़ दबाते हुए मदन बोला,
“देखो भौजी, कैसे शरमा रही है ?,,,,,,,,पहले तो चुप-चाप वहां खड़ी रही, अब छूने भी नही दे रही,,,,,,,,,”
लाजो बसन्ती की ओर खिसकी, और उसके गालो को चुटकी में मसल बोली,
“हाय मालिक पहली बार है बेचारी का, शरमा रही है,,,,,,,,,लाओ मैं खोल देती हुं,,,,,”
“मेरे हाथों में क्या बुराई है,,,,,,,,”
“मालिक बुराई आपके हाथों में नही, लण्ड में है,इतना हलव्वी देख कर डर गई है.”
लाजो हाथ बढ़ा बसन्ती की ब्लाउज खोलने लगी तो मदन लाजो की सहूलियत के लिए बीच में से हट गया और घूम कर दोनों औरतों के सामने आ गया। उसने दोनों पर नजर डाली । बसन्ती और उसकी भौजी दोनो सिल्की चमकते हुए ताँम्बई गेहुंये रंग की है। मदन देख रहा था कि लाजो बसन्ती की अंगिया का हुक खोलने की कोशिश कर रही थी जिससे उसके उत्तेजना से खड़े निपल वाले बड़े बड़े स्तन थिरक रहे थे। ये देख मदन ने झपटकर लाजो के बड़े खरबूजे(स्तन) को दोनों हाथों मे दबोच लिया और उसके जामुन जैसे निपल को होठों मे दबा चूसने लगा। लाजो के मुँह से सिसकारियाँ फ़ूट रहीं थी और उसे बसन्ती की अंगिया खोलने में दिक्कत हो रही थी किसी प्रकार बसन्ती की अंगिया निकाल लाजो बोली –
“इस्स्स्स्स्स्स्स्स्स आह!!!! मालिक ये लो”
बसन्ती के दोनो स्तन बड़े कटीले लंगड़ा आम जैसे थे। निप्पल गुलाबी और छोटे-छोटे थे । एकदम अछूते कठोर और नुकिले। मदन ने एक स्तन को हल्के से थाम लिया।
“उफ़्फ़!!”
कहकर मदन ने चूची पर अपना मुंह लगा, जीभ निकाल कर निप्पल को छेड़ते हुए चारों तरफ घुमाने लगा। बसन्ती सिहर उठी। पहली बार जो था।
सिसकते हुए मुंह से निकला, “उई भौजीईईईईईई”
अब मदन के एक हाथ में लाजो का बायाँ और दूसरे में बसन्ती का दायाँ स्तन था और वो उत्तेजना से पागलों की तरह कभी एक पर कभी दूसरे पर पर मुँह मारता कभी जीभ से निपल छेड़ता, कभी चाटता कभी उन कभी दोनों को एक दूसरे से मिला एक साथ दोनों मुँह में भर लेता।
मदन –“ हाय ! भौजी तेरे ये खरबूजे और बसन्ती के लंगड़ा आम जैसी चूचियाँ तो कमाल की हैं।”
दोनों औरतों के मुँह से निकल रहा था-
इस्स्स्स्स्स्स्स्स्स उई आह!!!! ईईईईईई”
लाजो ने बसन्ती का हाथ पकड़ कर मदन के लण्ड पर रख दिया, और उसके गाल को चुम बोली,
“इस्स्स्स्स्स्स्स्स्स आह!!!! मदन बाबू तो अपने खिलौनों से खेल रहे है, तु भी पकड़ के खेल, मसल, ,,,,,,,ये हम लोगों का खिलौना है.”
मदन को दोनो औरतों की चुचियों को बारी बारी से चूसने में बड़ा मजा आ रहा था ।
कुछ देर बाद उसने लाजो को अपनी गोद में खींच अपने लण्ड पर बैठा बोला –
“आओ भौजी, अपने राकेट पर तो बैठो”
मदन का खड़ा लण्ड उसके बड़े बड़े गद्देदार चूतड़ों में चुभने लगा। लाजो ने कमर हिला मदन का लण्ड चूतड़ों की दरार के बीच में दबा लिया और मदन उसके गुदाज कन्धों को थाम आगे पीछे कर चूतड़ों के बीच लण्ड रगड़ने लगा । मदन के हाथ कंधों से सरकते हुए लाजो के दोनो बड़े बड़े खरबूजों जैसे स्तनों पर आकर उन्हें सहलाने लगे। तभी उसने सामने शरमाती बैठी बसन्ती के गाल और गरदन को चुमते हुए कहा –“ देख बसन्ती हैं शरमायेगी तो सारा मजा तेरी भाभी लूट लेगी, यही तो उमर है मजा लेने की चल आ भौजी के खरबूजों के साथ मुझे अपने लंगड़ा आम (चूची) भी चूसवा ।”
और मदन ने हांथ बढ़ा बसन्ती के नये कटीले आम पकड़ अपनी तरफ़ खींचे और चूसने लगा तो बसन्ती ने सिसकारी भरी –“इस्स्स्स्स्स्स्स्स्स।”
और मदन के सर के पीछे हाथों से सहारा दे चूसने मे सहूलियत कर दी । ये देख मदन ने एक साथ चार चूचियों का मजा लेने के लिए, उसकी चूचियाँ छोड़ लाजो के दोनो बड़े बड़े खरबूजों जैसी चूचियाँ फ़िर से थाम लीं और दबाने लगा । अब मदन जन्नत में था. दोनो हाथ में लाजो के बड़े बड़े खरबूजे और मुँह में बसन्ती की चूचियाँ जिन्हें बसन्ती खुद से उसके मुंह में बारी बारी से ठेल-ठेल कर चूसवा रही थी । लाजो भौजी अपने बड़े बड़े गद्देदार चूतड़ और चूत मदन के फ़ौलादी लण्ड पर रख के बैठी उसकी गरमी से अपनी चूत सेंक रहीं थी। मदन का विशाल लण्ड उसके चूतड़ों की दरार में फ़ँस के चूत तक साँप की तरह फ़ैला हुआ था वो कमर हिला हिला के सिसकारियाँ भर रहीं थी –
“ इस्स्स्स्स्स्स्स्स्स उई आह!!!! ईईईईईई।”
थोड़ी ही देर में उसने दो चुचियों को मसल-मसल कर और दो को चूस-चूस कर लाल कर दिया। चूची चूसवा कर लाजो एकदम गरम हो गई. अपने हाथ से अपनी चूत को रगड़ने लगी। मदन ने देखा तो मुस्कुरा दिया और बसन्ती को दिखाते हुए बोला,
“देख. तेरी भौजी कैसे गरमा गई है, हाथी का भी लण्ड लील जायेगी।”
देख कर बसन्ती शरमा कर. “धत् मालिक,आपका तो खुद घोड़े जैसा,,,,,,,,”
इतनी देर में वो भी थोड़ा बहुत खुल चुकी थी।
“अच्छा है ना ?”
“आपका बहुत मोटा.....!!!धत् मालिक………………………”