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चौधराइन की रंगीन दुनियाँ | Choudharayin Ki Rangin Duniya

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और लण्ड थाम अपनी चूत के होठों पर रगड़ती हुई बोली,

"वैसे छोटे मालिक, एक बात बोलुं,,,,,,,???"

"हां बोल,,,,,,,,,पर ज्यादा खेल मत कर छेद पर लगा दे, मुझ से रुका न जायेगा ।"

"सोने की चैन बहुत महेंगी आती है, क्या??"

चौधराइन की रंगीन दुनियाँ | Choudharayin Ki Rangin Duniya

भाग 4 – मदन की इन्द्र सभा | Madan Ki Indra Sabha

मदन समझ गया की, साली को पायल मिल गयी है. अब मुझे बसन्ती बिना चैन नही और इसे सोने की चैन बिना। लण्ड पर से उसके हाथ को हटा, चूत के मुहाने पर लगा धक्का मारता हुआ बोला,

"महेंगी आये, चाहे सस्ती तुझे क्या,?,,,,आम खाने से मतलब रख गुठली, मत गीन."

इतना सुनते ही, जैसे लाजो एकदम गनगना गई. दोनो बाहों का हार मदन के गले में डालती बोली,

"हाय मालिक,,,,मैं कहाँ,?,,,,मैं तो सोच रही थी, कहीं आपका ज्यादा खर्चा ना हो जाये,,,,,,सम्भल के मालिक, जरा धीरे-धीरे आपका बड़ा मोटा है।"

"मोटा है, तभी तो तेरे जैसी छिनाल की चूत में भी टाईट जाता है,,,,?"
जोर जोर से धक्के लगाता हुआ मदन बोला।

"हाय मालिक, चोदो अब ठीक है,,,,,मालिक अपने लण्ड के जैसी मोटी चैन लेना,,,,,जैसे आपका मोटा लण्ड खा कर चूत को मजा आ जाता है, वैसे ही चैन पहन कर,,,,,"

"ठीक है भौजी, तु चिन्ता मत कर,,,,,,,सोने से लाद दूँगा,,,,,,,,।"

मदन ने लाजो की धुंआधार चुदाई की और उसके भोसड़े की प्यास अपने माल से बुझा दी लाजो भी जीभर के झड़ी। मदन ने झड़ने के बाद लण्ड निकाल कर उसके पेटीकोट में पोंछ कर पैन्ट पहन लिया। लाजो उठती हुई बोली,

"मालिक, जगह का उपाय करना होगा। बसन्ती की अभी अनचुदी बुर है। पहली बार लेगी, वो भी आपका हलब्बी लण्ड, तो बिदकेगी और चिल्लायेगी। ऐसे खेत में जल्दी का काम नही है। उसकी तो आराम से लेनी होगी..."

मदन हँस के बोला बोला,

"अरे अब कोई फ़िकर नहीं ये जो अपने चौधरी चाचा का आम का बागीचा है न, ये आज से मेरी देख रेख में है बगीचे वाले मकान की चाबी भी मेरे पास है बस अब अपनी ऐशगाह वहीं रहेगी अब बोलो कैसा रहेगा वो?"

लाजो ने हां में सिर हिलाते हुए कहा,

"हां मालिक, ठीक रहेगा,,,,,ज्यादा दूर भी नही, फिर रात में किसी बहाने से मैं बसन्ती को खिसका के लेते आऊँगी...."

"चल फिर ठीक है, जैसे ही बसन्ती मान जाये मुझे बता देना."

फिर दोनो अपने अपने रास्ते चल पडे।

घर जा के मदन ने पन्डित सदानन्द से कहा,

“पिताजी रात में रखवाले सो जाते हैं सोचता हूँ अगर मैं वहाँ सोऊँगा तो मेरे डर से जाग कर रख्वाली करेंगे ।”
पन्डित सदानन्द बहुत खुश हुए कि लड़का जिम्मेदार हो रहा है बोले –“ठीक है वहीं सो जाना।”

फ़िर तो दो रातो तक मदन ने चौधरी के बगीचे वाले मकान में उनके मोटे गद्दे वाले विशाल बिस्तर पर खूब जम के लाजो की जवानी का रस चुसा और उसे नंगाकर चिपट के सोया। आखिर पायल की कीमत जो वसुलनी थी। तीसरे दिन लाजो ने बता दिया की रात में बसन्ती को ले कर आऊँगी। मदन बाबू पूरी तैयारी से बगीचे वाले मकान पर पहुंच गये। करीब आधे घंटे के बाद ही दरवाजे पर खट-खट हुई।

मदन ने दरवाजा खोला सामने बनी ठनी लाजो खड़ी थी। मदन ने धीरे से पुछा,

“भौजी, और बसन्ती...???"

लाजो ने अन्दर घुसते हुए, आंखो से अपने पीछे इशारा किया। दरवाजे के पास बसन्ती सिर झुकाये खड़ी थी। मदन के दिल को करार आ गया। बसन्ती को इशारे से अन्दर बुलाया। बसन्ती धीरे-धीरे शरमाती-संकुचती अन्दर आ गई। मदन ने दरवाजा बंद कर दिया, और अन्दर वाले कमरे की ओर बढ़ चला। लाजो, बसन्ती का हाथ खींचती हुई पीछे-पीछे चल पड़ी। अन्दर पहुंच कर मदन ने अंगड़ाई ली। उसने लुंगी पहन रखी थी। लाजो को हाथों से पकड़ अपनी ओर खींच लिया, और बाहों में कसते हुए उसके होठों पर चुम्मा ले बोला,

“क्या बात है भौजी, आज तो कयामत लग रही हो”

“हाय छोटे मालिक, हाय मेरी,,,,,,,हड्डीयां तोड़ोगे क्या,,,,,,,,,,,"आप तो ऐसे ही,,,,,,,,बसन्ती को ले आई।”

बसन्ती बेड के पास चुप चाप खड़ी थी।

“हां, वो तो देख ही रहा हुँ,”

“हां मालिक, लाजो अपना किया वादा नही भुलती,,,,,,,,,लोग भुल जाते है,” 

“आते ही अपनी औकात पर आ गई”

कहते हुए मदन ने पास में पड़े कुर्ते में हाथ डाल कर एक डिब्बा निकाला, और लाजो के हाथों में थमा दिया। फिर उसको कमर के पास से पकड़ कर अपने से चिपका कर, उसके बड़े बड़े चूतड़ों को कस कर दबाता हुआ बोला,

"खोल के देख ले।”

लाजो ने खोल के देखा, तो उसकी आंखो में चमक आ गई।

“हाय मालिक, मैं आपके बारे में कहाँ बोल रही थी ??,,,,,,,,,मैं क्या आपको जानती नहीं।”

लाजो की चूतड़ों की दरार में साड़ी के ऊपर से उँगली चलाते हुए, उसके गाल पर दांत गड़ा उसकी एक चूची पकड़ और कस कर चिपकाया।
लाजो “आह मालिक आआआअ उईईई”

बसन्ती एक ओर खड़ी होकर उन दोनो को देख रही थी। मदन ने लाजो को बिस्तर पर पटक दिया। बिस्तर इतना बड़ा था की, चार आदमी एक साथ सो सकें। दोनो एक दूसरे से गुत्थम-गुत्था हो कर बिस्तर पर लुढकने लगे। होठों को चूसते हुए कभी गाल कटता कभी गरदन पर चुम्मी लेता। इस खींचतान उठापटक में साड़ी कब खुल के अजमीण पे जा गिरी पता ही नहीं चला अब लाजो सिर्फ़ पेटीकोट ब्लाउज में बिस्तर पर पड़ी थी मदन ने ब्लाउज में हाथ डालने की कोशिश की तो चुटपुटिया वाले बटन चौपट खुल गये और मदन ने एकदम से ब्लाउज उतारकर एक तरफ़ डाल दिया लाजो जैसी बेशरम ने भी लजा कर बिस्तर पर पलट सीने के बल हो अपना सीना छिपा लिया, अब उसकी पीठ मदन की तरफ़ थी ।

मदन ने पीठ पर लगा अंगिया का हुक खोल दिया। चौंक के लाजो के मुँह से निकला –

“ अरे मालिक रुको तो”

और वो उठके बैठगई मदन ने उसे और गोद में खीच लिया और अंगिया भी उतार के फ़ेक दी दो बड़े बड़े खरबूजों जैसे गोल स्तन उछल के बाहर आ गये। मदन ने उन गोलों को दोनों हाथों में दबोच जोर से दबाया फ़िर उनपर मुँह मारने लगा।

लाजो के मुंह से “आ हा अह,,,,,,,,उईईईईईइ, मालिक.."

तभी लाजो फुसफुसा के बोली,

“मेरे पर ही सारा जोर निकालोगे क्या,?,,,,,बसन्ती तो,,,,,,,,,,”

मदन भी फुसफुआते हुए बोला,

“अरे खड़ी रहने दे, तुझे एक राउण्ड चोद दूँ तो कुछ चैन पड़े, चुदाई देख के खुद ही गरम हो जायेगी।” 

मदन की चालाकी समझ, वो भी चुप हो गई।

फिर मदन ने जल्दी से लाजो का पेटी कोट ऊपर समेट दिया जिससे वो लगभग पूरी नंगी लगने लगी। अपनी ननद के सामने पूरी नंगी होने पर शरमा कर बोली,

“हाय मालिक, कुछ तो छोड़ दो,,,,,,,,।”

मदन अपनी लुंगी खोलते हुए बोला,

“पेटीकोट पहने तो हो, भौजी”

मदन का दस इंच लम्बा लण्ड देख कर बसन्ती एकदम सिहर गई। मगर लाजो ने लपक कर अपने दोनों हाथों में थाम लिया, और सहलाने लगी। फ़िर एक हाथ में हथौड़े की तरह लण्ड पकड़ सुपाड़े को दूसरे हाथ की गदेली पर मारते हुए बोली,

“मालिक, बसन्ती ऐसे ही खड़ी रहेगी क्या,,,,,,,,,???”

“अरे, मैंने कब कहा खड़ी रहने को ??,,,,,,,बैठ जाये,,,,,,,,,”

“ऐसी क्या बेरुखी मालिक ?,,,,,,,बेचारी को अपने पास बुला लो ना,” ,

लाजो मदन के बगल में बैठ लण्ड पर अपनी जाँघ चढ़ा कर रगड़ते हुए बोली।

“हाय, बहुत अच्छा भौजी मैं कहाँ बेरुखी दिखा रहा हुं. वो तो खुद ही दूर खड़ी है,,,,,,,”

“हाय मालिक, जब से आई है, आपने कुछ बोला नही है,अरे, बसन्ती आ जा, अपने मदन बाबू बहुत अच्छे है,शहर से पढ़ लिख कर आये है,गांव के उजड्ड गंवारो से तो लाख दरजे अच्छे हैं ।"

बसन्ती थोड़ा सा हिचकी तो, लण्ड छोड़ कर लाजो उठी और हाथ पकड़ उसे बेड पर खींच लिया। मदन ने एक और मसनद लगा, उसको थप थपाते हुए बैठने का इशारा किया। बसन्ती शरमाते हुए मदन के बगल में बैठ गई।
लाजो ने मदन का लण्ड पकड़ हिलाते हुए दिखाया,

“देख कितना अच्छा है !?, अपने मदन बाबू का,,,,एकदम घोड़े के जैसा है,,,,,ऐसा पूरे गांव में किसी का नही,,,,,,,।"

झुकी पलकों के नीचे से बसन्ती ने मदन का हलब्बी लण्ड देखा, दिल में एक अजीब सी कसक उठी। हाथ उसे पकड़ने को ललचाये, मगर शर्म और हलव्वी आकार का डर नही छोड़ पाई।

मदन ने बसन्ती की कमर में हाथ डाल अपनी तरफ खींचा,

“शरमाती क्यों है ? आराम से बैठ,,,,,,,आज तो बड़ी सुन्दर लग रही है,,,,,,,,,खेत में तो तुझे अपना लण्ड दिखाया था ना,,,,,तो फिर क्यों शरमा रही है ?।”

बसन्ती ने शरमा कर गरदन झुका ली। उस दिन के मदन और आज के मदन में उसे जमीन आसमान का अन्तर नजर आया। उस दिन मदन उसके सामने गिड़गिड़ा रहा था. उसको लहंगे का तोहफा दे कर ललचाने की कोशिश कर रहा था, और आज का मदन अपने पूरे रुआब में था.

“हाय् मालिक,,,,,,,,मैंने आज तक कभी,,,,,,,,”

“अरे, तेरी तो शादी हो गई है. दो महीने बाद गौना हो कर जायेगी, तो फिर तेरा पति तो दिखायेगा ही,,,,,,,”

“धत् मालिक,,,,,,,,,,”

“तेरा लहंगा भी लाया हूँ,,,,,,,,,,लेती जाना,,,,,,,,सुहागरात के दिन पहनना,,,,,,,,”

कह कर अपने पास खींच कर, उसकी एक चूची हल्के थाम ली । बसन्ती शरमा कर और सिमट गई। मदन ने उसे अपने से सटा ठुड्डी से पकड़ कर उसका चेहरा ऊपर उठाते हुए कहा,

“बड़ी नशीली लग रही है.”

और उसके होठों से अपने होंठ सटा कर चूसने लगा। बसन्ती की आंखे मुंद गई। मदन ने उसके होठों को चूसते हुए, उसकी चोली में हाथ डाल उसके कटीले आमों को सहलाते हुए दबाने लगा । बसन्ती सिसकारियाँ भरने लगी।

“सीईई,,,,,,, आह मालिक,”

मदन ने धीरे से उसकी चोली के बटन खोलने की कोशिश की, तो बसन्ती ने शरमा कर मदन का हाथ हल्के से हटा दिया। लाजो की विशाल चूची को पकड़ दबाते हुए मदन बोला,

“देखो भौजी, कैसे शरमा रही है ?,,,,,,,,पहले तो चुप-चाप वहां खड़ी रही, अब छूने भी नही दे रही,,,,,,,,,”

लाजो बसन्ती की ओर खिसकी, और उसके गालो को चुटकी में मसल बोली,

“हाय मालिक पहली बार है बेचारी का, शरमा रही है,,,,,,,,,लाओ मैं खोल देती हुं,,,,,”

“मेरे हाथों में क्या बुराई है,,,,,,,,”

“मालिक बुराई आपके हाथों में नही, लण्ड में है,इतना हलव्वी देख कर डर गई है.”

लाजो हाथ बढ़ा बसन्ती की ब्लाउज खोलने लगी तो मदन लाजो की सहूलियत के लिए बीच में से हट गया और घूम कर दोनों औरतों के सामने आ गया। उसने दोनों पर नजर डाली । बसन्ती और उसकी भौजी दोनो सिल्की चमकते हुए ताँम्बई गेहुंये रंग की है। मदन देख रहा था कि लाजो बसन्ती की अंगिया का हुक खोलने की कोशिश कर रही थी जिससे उसके उत्तेजना से खड़े निपल वाले बड़े बड़े स्तन थिरक रहे थे। ये देख मदन ने झपटकर लाजो के बड़े खरबूजे(स्तन) को दोनों हाथों मे दबोच लिया और उसके जामुन जैसे निपल को होठों मे दबा चूसने लगा। लाजो के मुँह से सिसकारियाँ फ़ूट रहीं थी और उसे बसन्ती की अंगिया खोलने में दिक्कत हो रही थी किसी प्रकार बसन्ती की अंगिया निकाल लाजो बोली –

“इस्स्स्स्स्स्स्स्स्स आह!!!! मालिक ये लो”

बसन्ती के दोनो स्तन बड़े कटीले लंगड़ा आम जैसे थे। निप्पल गुलाबी और छोटे-छोटे थे । एकदम अछूते कठोर और नुकिले। मदन ने एक स्तन को हल्के से थाम लिया।

“उफ़्फ़!!”

कहकर मदन ने चूची पर अपना मुंह लगा, जीभ निकाल कर निप्पल को छेड़ते हुए चारों तरफ घुमाने लगा। बसन्ती सिहर उठी। पहली बार जो था।

सिसकते हुए मुंह से निकला, “उई भौजीईईईईईई”

अब मदन के एक हाथ में लाजो का बायाँ और दूसरे में बसन्ती का दायाँ स्तन था और वो उत्तेजना से पागलों की तरह कभी एक पर कभी दूसरे पर पर मुँह मारता कभी जीभ से निपल छेड़ता, कभी चाटता कभी उन कभी दोनों को एक दूसरे से मिला एक साथ दोनों मुँह में भर लेता।

मदन –“ हाय ! भौजी तेरे ये खरबूजे और बसन्ती के लंगड़ा आम जैसी चूचियाँ तो कमाल की हैं।” 

दोनों औरतों के मुँह से निकल रहा था-
इस्स्स्स्स्स्स्स्स्स उई आह!!!! ईईईईईई”
लाजो ने बसन्ती का हाथ पकड़ कर मदन के लण्ड पर रख दिया, और उसके गाल को चुम बोली,

“इस्स्स्स्स्स्स्स्स्स आह!!!! मदन बाबू तो अपने खिलौनों से खेल रहे है, तु भी पकड़ के खेल, मसल, ,,,,,,,ये हम लोगों का खिलौना है.”

मदन को दोनो औरतों की चुचियों को बारी बारी से चूसने में बड़ा मजा आ रहा था ।

कुछ देर बाद उसने लाजो को अपनी गोद में खींच अपने लण्ड पर बैठा बोला –
“आओ भौजी, अपने राकेट पर तो बैठो”

मदन का खड़ा लण्ड उसके बड़े बड़े गद्देदार चूतड़ों में चुभने लगा। लाजो ने कमर हिला मदन का लण्ड चूतड़ों की दरार के बीच में दबा लिया और मदन उसके गुदाज कन्धों को थाम आगे पीछे कर चूतड़ों के बीच लण्ड रगड़ने लगा । मदन के हाथ कंधों से सरकते हुए लाजो के दोनो बड़े बड़े खरबूजों जैसे स्तनों पर आकर उन्हें सहलाने लगे। तभी उसने सामने शरमाती बैठी बसन्ती के गाल और गरदन को चुमते हुए कहा –“ देख बसन्ती हैं शरमायेगी तो सारा मजा तेरी भाभी लूट लेगी, यही तो उमर है मजा लेने की चल आ भौजी के खरबूजों के साथ मुझे अपने लंगड़ा आम (चूची) भी चूसवा ।”

और मदन ने हांथ बढ़ा बसन्ती के नये कटीले आम पकड़ अपनी तरफ़ खींचे और चूसने लगा तो बसन्ती ने सिसकारी भरी –“इस्स्स्स्स्स्स्स्स्स।”
और मदन के सर के पीछे हाथों से सहारा दे चूसने मे सहूलियत कर दी । ये देख मदन ने एक साथ चार चूचियों का मजा लेने के लिए, उसकी चूचियाँ छोड़ लाजो के दोनो बड़े बड़े खरबूजों जैसी चूचियाँ फ़िर से थाम लीं और दबाने लगा । अब मदन जन्नत में था. दोनो हाथ में लाजो के बड़े बड़े खरबूजे और मुँह में बसन्ती की चूचियाँ जिन्हें बसन्ती खुद से उसके मुंह में बारी बारी से ठेल-ठेल कर चूसवा रही थी । लाजो भौजी अपने बड़े बड़े गद्देदार चूतड़ और चूत मदन के फ़ौलादी लण्ड पर रख के बैठी उसकी गरमी से अपनी चूत सेंक रहीं थी। मदन का विशाल लण्ड उसके चूतड़ों की दरार में फ़ँस के चूत तक साँप की तरह फ़ैला हुआ था वो कमर हिला हिला के सिसकारियाँ भर रहीं थी –

“ इस्स्स्स्स्स्स्स्स्स उई आह!!!! ईईईईईई।”

थोड़ी ही देर में उसने दो चुचियों को मसल-मसल कर और दो को चूस-चूस कर लाल कर दिया। चूची चूसवा कर लाजो एकदम गरम हो गई. अपने हाथ से अपनी चूत को रगड़ने लगी। मदन ने देखा तो मुस्कुरा दिया और बसन्ती को दिखाते हुए बोला,

“देख. तेरी भौजी कैसे गरमा गई है, हाथी का भी लण्ड लील जायेगी।”

देख कर बसन्ती शरमा कर. “धत् मालिक,आपका तो खुद घोड़े जैसा,,,,,,,,”

इतनी देर में वो भी थोड़ा बहुत खुल चुकी थी।

“अच्छा है ना ?”

“आपका बहुत मोटा.....!!!धत् मालिक………………………”

To be Continued

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थोड़ी ही देर में उसने दो चुचियों को मसल-मसल कर और दो को चूस-चूस कर लाल कर दिया। चूची चूसवा कर लाजो एकदम गरम हो गई. अपने हाथ से अपनी चूत को रगड़ने लगी। मदन ने देखा तो मुस्कुरा दिया और बसन्ती को दिखाते हुए बोला,

“देख. तेरी भौजी कैसे गरमा गई है, हाथी का भी लण्ड लील जायेगी।”

देख कर बसन्ती शरमा कर. “धत् मालिक,आपका तो खुद घोड़े जैसा,,,,,,,,”

इतनी देर में वो भी थोड़ा बहुत खुल चुकी थी।

“अच्छा है ना ?”

“आपका बहुत मोटा.....!!!धत् मालिक………………………”

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भाग 5 मदन की इन्द्र सभा | Madan Ki Indra Sabha | 2

“मोटे और लम्बे लण्ड से ही मजा आता है,,,,,,,,,क्यों भौजी.....?”
मदन ने लाजो को आवाज दी।
“हां मदन बाबू, आपका तो बड़ा मस्त लण्ड है,,,,,,,,,मेरे जैसी चुदी चूत भी फ़टने लगती है।”
तभी लाजो मदन की गोद से उठ घुटनों के बल हो अपनी खरबूजे सी चूची का निपल मदन के होठों मे देते हुए बोली -“हाय मालिक, दबा मसल के आपने लाल कर दी बहुत दर्द कर रही है थोड़ा चूस के अपनी इस छिनाल भौजी की चूची को कुछ आराम दें। आह मदन चूसने लगा।
आह,,,,,,,,ह सीईईएए,,,,,,,,,,,ह सीईईएए,,,

मदन ““भौजी, जरा अपनी ननद के की नन्ही बिलैय्या(बिल्ली यानि बुर) के दर्शन तो करवाओ।”

“हाय मालिक, नजराना लगेगा…!!। एक दम कोरा माल है, आज तक किसी ने नही…”

“तुझे तो दिया ही है…अपनी बसन्ती रानी को भी खुश कर दूँगा…मैं भी तो देखु कोरा माल कैसा…।”

“हाय मालिक, देखोगे तो बिना चोदे ही निकाल दोगे…इधर आ बसन्ती, अपनी ननद रानी को तो मैं गोद मैं बैठा कर…”,
कहते हुए बसन्ती को खींच कर अपनी गोद मैं बैठा लिया और उसके लहन्गे को धीरे-धीरे कर उठाने लगी।
शरम और मजे के कारण बसन्ती की आंखे आधी बन्द थी। मदन उसकी दोनो टांगो के बीच बैठा हुआ, उसके लहन्गे को उठता हुआ देख रहा था। बसन्ती की गोरी-गोरी जांघे बड़ी कोमल और चिकनी थी। बसन्ती ने लहन्गे के नीचे एक कच्छी पहन रखी थी, जैसा गांव की कुंवारी लड़कियाँ आम तौर पर पहनती है।

लहँगा पूरा ऊपर उठाने के बाद, बसन्ती को शरमाते देख लाजो कच्छी के ऊपर हाथ फेरते हुए बोली,
“चल अच्छा जरा सा कच्छी हटाकर दिखा देती हूँ।”

“हाय, चाहे जैसे परदा हटा…, परदा हटने के बाद फ़ाड़ूँगा तो मैं फिर भी...”

लाजो ने कच्छी के बीच में बुर के ठीक ऊपर हाथ रखा और मयानी मे अपने दो उन्गलियाँ फ़ँसा एक तरफ़ सरका के बसन्ती की कोरी बुर से परदा हटा दिया।
उसकी १६ साल की बुर मदन की भुखी आंखो के सामने आ गई। हल्के-हल्के झाँटों वाली, एकदम कचौड़ी के जैसी फुली बुर देख कर मदन के लण्ड को एक जोरदार झटका लगा।

मदन ने लाजो को इशारा किया तो उसने बसन्ती की कच्छी उतार दोनो टांगे फैला दी और बसन्ती की बुर के ऊपर हाथ फेर उसकी बुर के गुलाबी होंठो पर उँगली चलाते हुए बोली,
“हाय मदन बाबू, देखो हमारी ननद रानी की लालमुनिया…”

नंगी बुर पर उँगली चलने से बसन्ती के पूरे बदन में सनसनी दौड़ गई। सिसकार कर उसने अपनी आंखे पूरी खोल दी। मदन को अपनी बुर की तरफ भूखे भेडिये की तरह से घूरते देख उसका पूरा बदन सिहर गया, और शरम के मारे अपनी जांघो को सिकोड़ने की कोशिश की मगर, लाजो के हाथों ने ऐसा करने नही दिया। वो तो उल्टा बसन्ती की बुर के गुलाबी होंठो को अपनी उंगलियों से खोल कर मदन को दिखा रही थी,

“हाय मालिक, देख लो कितना खरा माल है !!!…ऐसा माल पूरे गांव में नही है…वो तो आपकी मोहब्बत में, मैं आपको मना नही कर पाई…। नही तो ऐसा माल कहाँ मिलता है ?!!…”

“हां रानी, सच कह रही है तु…। मार डाला तेरी ननद की बुर ने…लगता है जैसे दो सन्तरे की फ़ाँके सी जुड़ी हैं!!!!!”

“खाओगे ये सन्तरा मालिक ?…चख कर तो देखो...”

“हाय रानी, खिला,,,,,कोरी बुर का स्वाद कैसा होता है ?…”

लाजो ने बसन्ती की दोनो जांघें फैला दीं।
मदन आगे सरक कर, अपने चेहरे को उसकी बुर के पास ले गया और सन्तरे की फ़ाँके होठों मे दबा लीं जीभ निकाल कर फ़ाँकों के बीच डालने लगा।

“ऊऊफफ्फ्……। भौजी…।
बसन्ती –“सीएएएए मालिक…॥”

बुर के गुलाबी होंठो के बीच जीभ घुसते ही मदन का लण्ड अकड़ के अप-डाउन होने लगा। मदन सन्तरे की फ़ाँके अपने मुंह में भर खूब जोर जोर से चूसने, और फिर बीच में जीभ डाल कर घुमाने लगा। बसन्ती की अनचुदी बुर ने पानी छोड़ना शुरु कर दिया। जीभ को बुर के छेद में घुमाते हुए, उसके भगनसे को अपने होंठो के बीच कस कर चुमलाने लगा। लाजवन्ती उसकी चुचियों को सहला रही थी।

बसन्ती के पूरे तन-बदन में आग लग गई। मुंह से सिसकारियाँ निकलने लगी। लाजो ने पुछा,
“बिट्टो, मजा आ रहा है…?"

“हाय मालिक,…ओओओओ ऊउस्स्स्स्सीईई भौजी, बहुत…उफफ्फ्फ्…भौजी, बचा लो मुझे कुछ हो जायेगा…उफह्फ्फ्फ् बहुत गुद-गुदी…सीएएएए मालिक को बोलो, जीभ हटा ले…हायएए।”

लाजो समझ गई की, मजे के कारण सब उल्टा पुल्टा बोल रही है। उसकी चुचियों से खेलती हुई बोली,
“हाय मालिक,,…चाटो…अच्छे से…अनचुदी बुर है, फिर नही मिलेगी…पूरी जीभ पेल कर घुमाओ...गरम हो जायेगी तब खुद…”
मदन भी चाहता था की, बसन्ती को पूरा गरम कर दे. फिर उसको भी आसानी होगी अपना लण्ड उसकी चूत में डालने में यही सोच, वो टीट के ऊपर अपनी जीभ चलाने लगा।

जीभ ने बुर की दिवारों को ऐसा रगड़ा की, उसके अन्दर आनन्द की एक तेज लहर दौड़ गई। ऐसा लगा जैसे बुर से कुछ निकलेगा, मगर तभी मदन भगनशे पर एक जोरदार चुम्मा ले, उठ कर बैठ गया।

मजे का सिलसिला जैसे ही टुटा, बसन्ती की आंखे खुल गई। मदन की ओर आशा भरी नजरो देखा।

“मजा आया, बसन्ती रानी…!!?”

“हाय मालिक…सीएएएए”, करके दोनो जांघो को भींचती हुई बसन्ती शरमाई।

“अरे, शरमाती क्यों है ?,…मजा आ रहा है तो खुल के बता…और चाटु,,,??”

“हाय मालिक…,! मैं नही जानती...”,
कह कर अपने मुंह को दोनो हाथों से ढक कर, लाजो की गोद में एक अन्गडाई ली।

“तेरी चूत तो पानी फेंक रही है.”

बसन्ती ने जांघो को और कस कर भींचा, और लाजो की छाती में मुंह छुपा लिया।
मदन समझ गया की, अब लण्ड खाने लायक तैयार हो गई है। दोनो जांघो को फिर से खोल कर, चूत की फांको को चुटकी में पकड़ कर, मसलते हुए बुर के भगनशे को अंगुठे से कुरेदा और आगे झुक कर बसन्ती का एक चुम्मा लिया। लाजो दोनो चुचियों को दोनो हाथों में थाम कर दबा रही थी। मदन फिर से टीट के ऊपर अपनी जीभ चलाने लगा। बसन्ती सिसकने लगी। 

“हाय मालिक, निकल जायेगा,,!!??… सीएएएए. हाय मालिक...“

“क्या निकल जायेगा…???,,, पेशाब करेगी क्या…??”

“हां मालिक,,,,, सीएएएए, पेशाब निकल…”

”ठीक है, जा पेशाब कर के आ जा,,,… मैं तब तक भौजी को चोद देता हुं …”
लाजो ने बसन्ती को झट से गोद से उतार दिया, और बोली,
“हां मालिक,,,,, बहुत पानी छोड़ रही है…”

उँगली के बाहर निकालते ही, बसन्ती आसमान से धरती पर आ गई। पेशाब तो लगा नही था, चूत अपना पानी निकालना चाह रही थी. ये बात उसकी समझ में तुरन्त आ गई। मगर तब तक तो पासा पलट चुका था।

उसने देखा की लाजो अपनी ताम्बई चमकती हुई मोटी मोटी केले के खम्बे जैसी जाँघे फैला कर लेट गई थी ।मदन, उसकी दोनो जांघो के बीच बैठ गया और अपने दोनों हाथों से उसकी फ़ूली हुई चुदक्क्ड़ चूत के मोटे मोटे होठों को फ़ैला अपने फ़ौलादी लण्ड का सुपाड़ा टिका, उसकी बड़ी चूचियों को दोनो हाथों में थाम कर बसन्ती की तरफ़ देख बोला –“ अब देख बसन्ती भौजी कैसे मजे से चुदवाती है। बसन्ती एकदम जल-भुन कर कोयला हो गई। उसका जी कर रहा था की लाजो को धकेल कर हटा दे, और खुद मदन के सामने लेट जाये, और कहे की मालिक मेरी में डाल दो।

तभी लाजो ने बसन्ती को अपने पास बुलाया,
“हाय बसन्ती, आ इधर आ कर देख, कैसे मदन बाबू मेरा भोसड़ा चोदते है…?। तेरी भी ट्रेनिंग़…।”

बसन्ती मन मसोस कर सरक कर, मन ही मन गाली देते हुए लाज्वन्ती के पास गई, तो उसने हाथ उठा उसकी चूची को पकड़ लिया और बोली,
“देख, कैसे मालिक अपना लण्ड मेरी चूत में डालते है ?!, ऐसे ही तेरी बुर में भी…उई!”
तभी मदन ने जोर का धक्का मारा. एक ही झटके में पक से पूरा लण्ड उतार दिया। लाजो कराह उठी,
“हाय मालिक, एक ही बार में पूरा …!!… सीएएएएए,,,”

“साली. इतना नाटक क्यों चोदती है? अभी भी तुझे दर्द होता है …??”

“हाय मालिक, आपका बहुत बड़ा है …!।” फिर बसन्ती की ओर देखते हुए बोली,
“…तु चिन्ता मत कर. तेरी में धीरे-धीरे खुद हाथ से पकड़ के डलवाउन्गी… तु मालिक को अपनी चूची चुसा।”

मदन अब धचा-धच धक्के मार रहा था। कमरे में लाजो की सिसकारियाँ और धच-धच फच-फच की आवज गुंज रही थी।

“ले मेरी छिनाल भौजी, ले अपना इनाम तेरी तो आज फ़ाड़ ही दूँगा…। बहुत खुजली है ना तेरी चूत में !!?…ले रण्डी…खा मेरा लण्ड…सीएएएए कितना पानी छोड़ती है !!?……कन्जरी.”

“हाय मालिक .आज तो आप कुछ ज्यादा ही जोश में…। हाय, फ़ाड़ दी मालिक,,”

“हाय भौजी, मजा आ गया…। तूने ऐसी सन्तरेकी फ़ाँको के(जैसी बुर) के दर्शन करवाये हैं, की बस…लण्ड लोहा हो गया है…ऐसा हाय मजा आ रहा है ना भौजी…आज तो तेरी चूत फ़ाड़ मारुन्गा…।
“हाय मालिक, और जोर से चोदो मालिक और जोरसे फ़ाड़ दो …। ……हाय सीएएएएएए,,, सीईईईईईईहयेएएएए,,,”
बसन्ती देख रही थी, की उसकी भाभी अपने चूतड़ उछाल उछाल कर मदन का लण्ड अपनी चूत में ठुँकवा रही थी, और मदन भी कमर उठा-उठा कर उसकी चूत में लण्ड ठोक रहा था। मन ही मन सोच रही थी की, साला जोश में तो मेरी बुर को देख कर आया है, मगर चोद भाभी को रहा है। पता नही मेरी चोदेगा भी कि नही।

करीब पंद्रह मिनट की धका-पेल चोदा-चोदी के बाद लाजो ने पानी छोड़ दिया, और बदन अकड़ा कर मदन की छाती से लिपट गई। मदन रुक गया, वो अपना पानी आज बसन्ती की अनचुदी बुर में ही छोड़ना चाहता था। अपनी सांसो को स्थिर करने के बाद। मदन ने उसकी चूत से लण्ड खींचा। पक की आवाज के साथ लण्ड बाहर निकल गया। चूत के पानी में लिपटा हुआ लण्ड अभी भी तमतमाया हुआ था. लाल सुपाड़े पर से चमड़ी खिसक कर नीचे आ गई थी। पास में पड़ी साड़ी से पोंछने के बाद, वहीं मसनद पर सिर रख कर लेट गया। उसकी सांसे अभी भी तेज चल रही थी। लाजो को तो होश ही नही था। आंखे मूंदे, टांगे फैलाये, बेहोश पड़ी थी। उसकी चूत इतनी देर की ठुकाई से और सूझ गई थी।
बसन्ती ने जब देखा की, मदन अपना खड़ा लण्ड ले कर ऐसे ही लेट गया, तो उस से रहा नही गया। सरक कर उसके पास गई, और उसकी जांघो पर हल्के से हाथ रखा. मदन ने आंखे खोल कर उसकी तरफ देखा और पूछा –“क्या इरादा है?”
तो बसन्ती ने मुस्कुराते हुए कहा,
“हाय मालिक, मुझे बड़ा डर लग रहा है,,? ...आपका बहुत लम्बा !!…”

मदन समझ गया की, साली को चुदास लगी हुई है। तभी खुद उसके पास आ कर बाते बना रही है कि, मोटा और लम्बा है। मदन ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया,
“अरे, लम्बे और मोटे लण्ड से ही तो मजा आता है. एक बार डलवा लेगी, फिर जिन्दगी भर याद रखेगी चल, थाम इसे”
कहते हुए, बसन्ती का हाथ पकड़ के खींच कर अपने लण्ड पर रख दिया।

बसन्ती ने शरमाते-सकुंचते अपने सिर को झुका दिया. मदन ने कहा,
“अरे, शरमाना छोड़ रानी !।”
लाजो वहीं पास पड़ी, ये सब देख रही थी। थोड़ी देर में जब उसको होश आया, तो उठ कर बैठ गई और अपनी ननद के पास आ कर, उसकी चूत अपने हाथ से टटोलती हुई बोली,
“बहुत हुआ रानी, इस मूसल को कितना सहलायेगी ? … अब जरा इससे कुटाई करवा ले,,”

और बसन्ती के हाथ को मदन के लण्ड पर से हटा दिया. और मदन का लण्ड पकड़ के हिलाती हुई बोली.
“ हाय मालिक,,,… जल्दी करिये…बुर एकदम पनिया गई है ।"

“अच्छा भौजी,,,… क्यों बसन्ती डाल दे ना ?…”

“हाय मालिक, मैं नही जानती,,,”

“… चोदे ना,,,??!!??”

“हाय,,…मुझे नही…जो आपकी मरजी हो,,…”

“अरे आप भी क्या मालिक ? …। चल आ बसन्ती, यहां मेरी गोद में सिर रख कर लेट..”
इतना कहते हुए लाजो ने बसन्ती को खींच कर, उसका सिर अपनी गोद में ले लिया और उसको लिटा दिया।
बसन्ती अपनी आंखें बन्द किये किये ही दोनो पैर पसारकर लेट गई थी। मदन उसके पैरों को फैलाते हुए उनके बीच बैठ गया। तभी लाजवन्ती बोली,
“मालिक, इसके चूतड़ों के नीचे तकिया लगा दो … आराम से घुस जायेगा ।"

मदन ने लाजवन्ती की सलह मान कर मसनद उठाया, और हाथों से थप-थपा कर, उसको पतला कर के बसन्ती के चूतड़ों के नीचे लगा दिया। बसन्ती ने भी आराम से चूतड़ों उठा कर तकिया लगवाया। दोनो जांघो के बीच उसकी अनचुदी, हल्के झाँटों वाली बुर चमचमा रही थी। बुर की दोनो नारंगी फांके आपस में सटी हुई थी। मदन ने अपना फनफनाता हुआ लण्ड, एक हाथ से पकड़ कर बुर के थरथराते हुए छेद पर लगा दिया और रगड़ने लगा।

To be Continued

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“मालिक, इसके चूतड़ों के नीचे तकिया लगा दो … आराम से घुस जायेगा ।"

मदन ने लाजवन्ती की सलह मान कर मसनद उठाया, और हाथों से थप-थपा कर, उसको पतला कर के बसन्ती के चूतड़ों के नीचे लगा दिया। बसन्ती ने भी आराम से चूतड़ों उठा कर तकिया लगवाया। दोनो जांघो के बीच उसकी अनचुदी, हल्के झाँटों वाली बुर चमचमा रही थी। बुर की दोनो नारंगी फांके आपस में सटी हुई थी। मदन ने अपना फनफनाता हुआ लण्ड, एक हाथ से पकड़ कर बुर के थरथराते हुए छेद पर लगा दिया और रगड़ने लगा।

चौधराइन की रंगीन दुनियाँ | Choudharayin Ki Rangin Duniya
भाग 6 मदन की इन्द्र सभा | Madan Ki Indra Sabha | 3

बसन्ती गनगना गई। गुदगुदी के कारण अपनी जांघो को सिकोड़ने लगी। लाजो उसकी दोनो चूचियों को मसलते हुए, उनके निप्पल को चुटकी में पकड़ मसल रही थी।
“मालिक, क्रीम लगा लो.”, लाजो बोली.

“चूत तो पानी फेंक रही है… इसी से काम चला लूँगा.”

“अरे नही. मालिक आप नही जानते. … आपका सुपाड़ा बहुत मोटा है … नही घुसेगा … लगा लो.”

मदन उठ कर गया, और टेबल से क्रीम उठा लाया। फिर बसन्ती की जांघो के बीच बैठ कर हाथ में क्रीम लेकर उसकी बुर की फांको को थोड़ा फैला कर अन्दर तक थोप दी।

“अपने सुपाड़े और लण्ड पर भी लगा लो मालिक.” लाजो ने कहा।

मदन ने अपने लण्ड के सुपाड़े पर क्रीम थोप ली।

“बहुत नाटक हो गया भौजी, अब डाल देता हुं....”

“हां मालिक, डालो.....” ,

कहते हुए लाजो ने बसन्ती की अनचुदी बुर के छेद की दोनो फांको को, दोनो हाथों की उंगलियों से फ़ैलाया और छेद पर, सुपाड़े को रख कर हल्का-सा धक्का दिया। कच से सुपाड़ा कच्ची बुर को चीरता आधा घुस कर अड़स गया। बसन्ती तड़प कर मचली, पर तब तक लाजो ने अपना हाथ बुर पर से हटा उसके कंधो को मजबूती से पकड़ लिया था। मदन ने भी उसकी जांघो को मजबूती से पकड़ फैलाये रखा, और अपनी कमर को एक और झटका दिया। अबकी पक की आवाज के साथ सुपाड़ा अन्दर धँस गया।

बसन्ती को लगा, बुर में कोई गरम मूसल घुस गया हो. मुंह से चीख निकल गई, “आआआ,,, ई मरररर, गईईईईई,,, ।"

लाजो उसके ऊपर झुक कर, उसके होठों और गालों को चुमते हुए, बोली,

“कुछ नही हुआ बिट्टो, कुछ नही ! … बस दो सेकंड की बात है.।"

बसन्ती का पूरा बदन अकड़ गया था। खुद मदन को लग रहा था, जैसे किसी जलते हुए लकड़ी के गोले के अन्दर लण्ड घुसा रहा है. सुपाड़े की चमड़ी पूरी उलट गई थी। उसे भी दर्द हो रहा था क्योंकि आज के पहले उसने किसी अनचुदी चूत में लण्ड नहीं डाला था। जिसे भी चोदा था, वो चुदा हुआ भोसड़ा ही था। सो उसने बसन्ती के होठों को, अपने होठों के नीचे कस कर दबा लिया. सुपाड़े को आगे पीछे कर धीरे धीरे चोदने लगा..”

कुछ देर में मदन के सुपाड़े की चमड़ी दुखनी बन्द हो गई और बसन्ती भी चूतड़ उचकने लगी। उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई। सुपाड़ा आराम से चूत के पानी में फिसलता हुआ, सटा-सट अन्दर बाहर होने लगा। दोनों इतने मस्त हो गये दोनों को पता ही नहीं चला कि कब मदन का पूरा लण्ड बसन्ती की बुर में आराम से आने जाने लगा। बसन्ती की बुर चुद के चूत बन गई।

उस रात भर खूब रासलीला हुई। बसन्ती दो बार चुदी। नई नई चूत बनी बुर सूज गई थी मगर, दूसरी बार में उसको खूब मजा आया। पहली चुदाई के बाद बुर से निकले खून को देख बसन्ती थोड़ा सहम गई थी , पर समझाने से मान गई और फिर दूसरी बार उसने खुब खुल कर चुदवाया। सुबह चार बजे जब अगली रात फिर आने का वादा कर दोनो बिदा हुई, तो बसन्ती थोड़ा लँगड़ा कर चल रही थी मगर उसकी आंखो में अगली रात के इन्तजार का नशा थ। मदन भी अपने आप को फिर से तरो ताजा कर लेना चाहता था, इसलिये घोड़े बेच कर सो गया।

आम के बगीचे में मदन की कारस्तानियाँ एक हफ्ते तक चलती रही। मदन के लिये, जैसे मौज-मजे की बहार आ गई थी। तरह तरह के कुटेव और करतूतों के साथ उसने लाजो और बसन्ती का खूब जम के भोग लगाया। पर एक ना एक दिन तो कुछ गड़बड़ होनी ही थी, और वो हो गई।

एक रात जब बसन्ती और लाजो अपनी चूतों की कुटाई करवा कर अपने घर में घुस रही थी, की बेला मालिन की नजर पड़ गई। वो उन दोनो के घर के पास ही रहती थी। उसके शैतानी दिमाग को एक झटका लगा की कहाँ से आ रही है, ये दोनो ?। लाजो के बारे में तो पहले से पता था की, गांव भर की रण्डी है। जरुर कहीं से चुदवा कर आ रही होगी। मगर जब उसके साथ बसन्ती को देखा तो सोचने लगी की, ये छोकरी उसके साथ कहाँ गई थी।

दूसरे दिन जब नदी पर नहाने गई तो, संयोग से लाजो भी आ गई। लाजो ने अपनी साड़ी, ब्लाउज उतारा और पेटीकोट खींच कर छाती पर बांध लिया। पेटीकोट उंचा होते ही बेला की नजर लाजो के पैरों पर पड़ी। देखा पैरों में नयी चमचमाती हुयी पायल। और लाजो भी ठुमक-ठुमक चलती हुई, नदी में उतर नहाने लगी।

“अरे बहुरिया, मरद का क्या हाल चल है ?…”

“ठीक ठाक है चाची, …। परसो चिट्ठी आई थी....”

“बहुत प्यार करता है… और लगता है, खूब पैसे भी कमा रहा है..”

“का मतलब चाची …?”

“वह बड़ी अन्जान बन रही हो बहुरिया, ? … अरे, इतनी सुंदर पायल कहाँ से मिली ये तो ??…”

“कहाँ से का क्या मतलब चाची, …!। जब आये थे, तब दे गये थे...”

“अरे, तो जो चीज दो महिने पहले दे गया था, उसको अब पहन रही है....”

लाजो थोड़ा घबरा गई, फिर अपने को संभालते हुए बोली,

“ऐसे ही रखी हुई थी…। कल पहनने का मन किया तो…”

बेला के चेहरे पर कुटील मुस्कान फैल गई.

“किसको उल्लु बना…???। सब पता है, तु क्या-क्या गुल खिला रही है…??, हमको भी सिखा दे, लोगो से माल ऐठने के गुन..”

इतना सुनते ही लाजो के तन-बदन में आग लग गई।

“चुप साली, तु क्या बोलेगी ?…हरमजादी, कुतनी, खाली इधर की बात उधर करती रहती है …।”

बेला का माथा भी इतना सुनते घुम गया, और अपने बांये हाथ से लाजो के कन्धे को पकड़, धकेलते हुए बोली,

“हरामखोर रण्डी,,,,…चूत को टकसाल बना रखा है…॥ मरवा के पायल मिली होगी, तभी इतनी आग लग रही है ।"

“हां, हां, मरवा के पायल ली है ॥ और भी बहुत कुछ लिया है…तेरी चूतड़ों में क्यों दर्द हो रहा है, चुगलखोर…?”

जो चुगली करे, उसे चुगलखोर बोल दो तो फिर आग लगना तो स्वाभाविक है।

“साली भोसड़चोदी, मुझे चुगलखोर बोलती है. सारे गांव को बता दूँगी । तु किससे-किससे से चुदवाती फिरती है !!?”

इतनी देर में आस-पास की नहाने आई बहुत सारी औरते जमा हो गई। ये कोई नई बात तो थी नही, रोज तालाब पर नहाते समय किसी ना किसी का पंगा होता ही था, और अधनंगी औरते एक दूसरे के साथ भिड़ जाती थी. दोनो एक दूसरे को नोच ही डालती, मगर तभी एक बुढिया बीच में आ गई। फिर और भी औरते आ गई, और बात सम्भल गई। दोनो को एक दूसरे से दूर हटा दिया गया।

नहाना खतम कर, दोनो वापस अपने घर को लौट गई. मगर बेला के दिल में तो कांटा घुस गया था। इस गांव में और कोई इतना बड़ा दिलवाला है नही, जो उस रण्डी को पायल दे। तभी ध्यान आया की, पन्डित सदानन्द का बेटा मदन उस दिन खेत में पटक के जब लाजो की ले रहा था, तब उसने पायल देने की बात कही थी. कहीं उसी ने तो नही दी होगी ?!। फिर रात में लाजो और बसन्ती जिस तरफ से आ रही थी, उसी तरफ तो चौधरी का आम का बगीचा है।

बस फिर क्या था, दोपहर ढलते ही बेला अपने भारी भरकम पिछवाडे को मटकाते हुए चौधरी के बगीचे कि तरफ़ टोह लेने के ख्याल से जा निकली पर उसकी किस्मत कहें या बदकिस्मती कि नदी पर हुए झगड़े की खबर मदन को पहले ही लग गई थी क्योंकि गाँव में ऐसी बाते छिपती ही कहाँ हैं। सो मदन भी बेला की टोह लेता घूम ही रहा था। बगिया के पास दोनों की मुलाकात हुई।

“ राम राम बेला चाची” –मदन ने बेला के भारी चूतड़ों और पपीते सी विशाल चूचियों पे हँसरत भरी नजर डाल के कहा।

“राम राम बेटा” –बेला मदन को देख थोड़ा सकपकाई पर उसकी नजरें अपनी चूचियों चूतड़ों पर देख मन ही मन खुश हो सहज हो गई।

“इधर कहाँ जा रही हो चाची” –मदन ने बेला से पूछा।

ऐसे ही बेटा थोड़ा पेट भारी था सो सोचा थोड़ा टहल लूँ।” – बेला फ़िर थोड़ा हड़बड़ाई पर ऐन मौके पर उसे बहाना सूझ ही गया । अरे चाची आप तो जानती हैं मेरे पिताजी वैद्य हैं मेरे पास उनका अचूक चूरन है क्योंकि मेरा भी पेट गड़बड करता ही रहता है सो मैंने यहीं बगिया वाले मकान पर ही रख रखा है क्योंकि मेरा अधिक समय यहीं गुजरता है आप एक मिनट चली चलो मैं आप को चूरन दे दूंगा तुरन्त आराम हो जायेगा चाची” –मदन ने बेला से बोला।

पहले तो बेला घबराई फ़िर सोचा ये शायद मेरी इसलिए चापलूसी कर रहा है कि मुझे खुश कर लाजो बसन्ती के बारे में मेरा मुँह बन्द करवाना चाहता है इसीलिए मुझे मुफ़्त चूरन देने को कह रहा है। मौका अच्छा है इस समय इससे अचार के लिये बगिया से आम भी ऐंठे जा सकते हैं। सो वो फ़टा फ़ट बगिया वाले मकान में जाने को तैयार हो गईं। मदन उसे आगे आगे कर पीछे से उसके हिलते चूतड़ देखते हुए चल दिया उसका शैतानी दिमाग तेजी से आगे की योजना बना रहा था। मकान के अन्दर पहुँच मदन ने दरवाजा बन्द करते हुए कहा –“ चाची ये दो तरह के चूरन हैं अगर पेट गरम हो तो एक और ठण्डा हो तो दूसरा, जरा पेट तो दिखाइये।”

बेला ने धोती का पल्लू हटा दिया। मदन के सामने उसकी पपीते सी विशाल चूचियाँ और पेट नंगा हो गया। गोरी चिट्टी बेला ने साड़ी पेटीकोट आधे पेट से नाभी के ऊपर बाँधा हुआ था। मदन ने अपनी हथेली उसके मांसल गोरे पेट पर रख दबाई फ़िर चारो तरफ़ दबा दबा के उसकी माँसलता का आनन्द लेने लगा । जवान मर्द का हाथ बेला को भी अपने पेट पर अच्छा लग रहा था। अचानक बेला को छोड़ अलमारी से चूरन की शीशी निकालते हुए मदन बोला –“पेट में गरमी है।”

फ़िर उसे चूरन और पानी का गिलास दे कर कहा –“तुम ये चूरन खालो मैं अभी दो मिनट में तुम्हा्रे पेट का भारीपन ठीक किये देता हूँ।”
बेला ने सोचा चूरन खाने में वैसे भी कोई हर्ज नहीं सो उसने चूरन खाके पानी पी लिया। इधर मदन बिना बेला से कुछ कहे फ़िर अपनी हथेली उसके मांसल गोरे पेट पर चारो तरफ़ दबा दबा के उसकी माँसलता का आनन्द लेने लगा । बेला ने ऐसा दिखाया जैसे वो मदन के इस अचानक व्यवहार के लिए तैयार नहीं थी सो थोड़ी सी लड़खड़ाई और गिरने से बचने के लिए मदन के कन्धे पर हाथ रख दिया।

मदन –“देखो गिरना नहीं मेरे गले में हाथ डाल लो मैं पेट की मालिश कर अभी दो मिनट में तुम्हा्रे पेट का भारीपन ठीक किये देता हूँ।”

बेला –“सचमुच बड़ा आराम मिल रहा है बेटा ।”

और बेला ने मजे से मदन के गले में बाँह डाल दी अब उसका भारी सीना मदन के सीने से टकरा रहा था और वो अपने पेट पर उसके मर्दाने हाथ का मजा लेने लगी। अचानक मदन ने पेटीकोट के नाड़े में हाथ डाल नाभी में उंगली डाल के घुमाई जवान मर्द की मोटी खुर्दुरी उंगली नाभी मे घुसते ही बेला के मुँह से सिसकी निकाल गई। मदन ने बेला चाची की प्रतिक्रिया जानने के लिए उसकी तरफ़ देखा बेला का चेहरा उत्तेजना की लाली से थोड़ा तमतमाया सा लगा।

मदन –“अब पेट कैसा है चाची”

बेला – “आह! काफ़ी आराम है बेटा।”

अचानक मदन का हाथ पेटीकोट के अन्दर ही नाभी से सरक के उसकी चूत पर पहुँच गया और मदन ने महसूस किया बेला की चूत पनिया गई है बस उसने पावरोटी सी फ़ूली चूत सहला दी। मदन ने सुनाकि बेला मालिन के मुँह से सिसकी निकली । बस मदन ने उसी क्षण आर या पार का फ़ैसला कर लिया और अचानक उसने बेला को उठा के बिस्तर पर पटक दिया। और खुद उसके ऊपर कूद गया। बेला अरे अरे ही कहती रह गई तब तक मदन ने एक हाथ से अपने पैंट की चैन खोलते हुए दूसरे हाथ से उसकी साड़ी पेटीकोट उलट दिया और बोला –“ बहुत दिनों से तेरे मटकते चूतड़ों ने परेशान कर रखा था आज मौका लगा है।”

मन ही मन खुश होती बेला मालिन अपनी मोटी मोटी जाँघे फ़ैला दी पर ऊपरी मन से बोली –“ अरे ये क्या बेटा तू मुझे चाची कहता है ।”
मदन ने देखा बेला मालिन की चूत, पावरोटी सी फ़ूली हुई, करीब एक बित्ते के आकार की मोटे मोटे मजबूत होठों वाला भोसड़ा थी । मदन उसकी मोटी मोटी जाँघों के बीच बैठ गया और अपने फ़ौलादी लण्ड का हथौड़े सा सुपाड़ा उसके भोसड़े के मोटे मोटे होठों के बीच रखकर बोला –

“तो ले आज तेरा ये भतीजा तुझे खुश कर देगा।”

बेला ने हाथ बढ़ाकर उसका नौ इन्ची लण्ड थामा तो सिहर उठी और अपनी चूत से हटाने की बेमन या कमजोर सी कोशिश करते हुए बोली –“अरे नहीं! अरे ठहर!

मदन ने एक हाथ बेला मालिन के ब्लाउज में हाथ डाला और दूसरे से बेला चाची का हाथ पकड़ उससे अपना लण्ड छुड़ाने लगा । चुटपुटिया वाले बटन एक दम से खुल गये मदन ने ब्रा भी नोचली हुक टूट गया और बेला के विशाल स्तन लक्का कबूतरों से फ़ड़फ़ड़ा के बाहर आ गये स्तनों को हाथों से ढकने के बहाने चुदासी बेला मालिन ने फ़ौरन लण्ड छोड़ दिया पर इस नानुकुर के बीच उसने लण्ड का सुपाड़ा अपनी चूत की पुत्तियों के बीच सही ठिकाने पर लगा दिया था। मदन ने दोनों हाथों मे उसकी सेर सेर भर की चूचियाँ थाम धक्का मारा और एक ही बार मे पूरा लण्ड ठाँस दिया।

बेला के मुँह से निकला –“शाबाश बेटा।“

फ़िर क्या था मदन हुमच हुमच के चोद रहा था और बेला मालिन किलकारियाँ भर रही थी मदन ने उसे आगे पीछे अगल बगल अटक पटक तरह तरह से मन भर चोदा यहाँ तक कि खुद लेट के उसको अपनी गोद में बैठा उसकी चूचियाँ चूसते हुए भी चोदा। जब मदन चोद के और बेला मालिन चुदवा के अघा गये, तो मदन उसे अचार के लिए उसकी मन पसन्द ढेर सारी अमियाँ दे कर बिदा कर मुस्कुराते हुए बोला –“बेला चाची जब पेट भारी हो तो आती रहना ।”

बेला(मुस्कुराते हुए) –“ हाँ बेटा तुझसे अच्छा वैद्य मुझे कहाँ मिलेगा।”

ये बोल और एक अर्थ भरी मुस्कुराहट मदन पर डाल अपनी चुदाई से मस्त हुई बेला चाची वहाँ से चलती बनी।

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फ़िर क्या था मदन हुमच हुमच के चोद रहा था और बेला मालिन किलकारियाँ भर रही थी मदन ने उसे आगे पीछे अगल बगल अटक पटक तरह तरह से मन भर चोदा यहाँ तक कि खुद लेट के उसको अपनी गोद में बैठा उसकी चूचियाँ चूसते हुए भी चोदा। जब मदन चोद के और बेला मालिन चुदवा के अघा गये, तो मदन उसे अचार के लिए उसकी मन पसन्द ढेर सारी अमियाँ दे कर बिदा कर मुस्कुराते हुए बोला –“बेला चाची जब पेट भारी हो तो आती रहना ।”

बेला(मुस्कुराते हुए) –“ हाँ बेटा तुझसे अच्छा वैद्य मुझे कहाँ मिलेगा।”

ये बोल और एक अर्थ भरी मुस्कुराहट मदन पर डाल अपनी चुदाई से मस्त हुई बेला चाची वहाँ से चलती बनी।

चौधराइन की रंगीन दुनियाँ | Choudharayin Ki Rangin Duniya
भाग 7 - चौधराइन का जलवा | Choudharayin Ka Jalwa

अगले दिन बेला खुशी खुशी चौधराइन के घर की ओर दौड़ गई। उसके पेट मे अपनी ये सफ़लता पच नहीं रही थी। चौधराइन ने जब बेला को देखा तो, उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई। हँसती हुई बोली,
“क्या रे, कैसे रास्ता भुल गई ?…कहाँ गायब थी…?। थोड़ा जल्दी आती, अब तो मैंने नहा भी लिया..”

बेला बोली, -“का कहे मालकिन, घर का बहुत सारा काम …। फिर तालाब पर नहाने गई तो वहां…”

“क्यों, क्या हुआ तालाब पर…?”

“छोड़ो मालकिन, तालाब के किस्से को. आप कुर्सी पर बैठो ना, बिना तेल के ही सही थोड़ी बहुत तो सेवा कर ही दूँ ।”

“अरे कुछ नहीं, रहने दे …”

पर बेला के जोर देने पर माया देवी पर बैठ गई । बेला पास बैठ कर माया देवी के पैरों के तलवे को अपने हाथ में पकड़ हल्के हल्के मसलते हुए दबाने लगी।
 

महा बदमाश बेला ने माया देवी तालाब का जिक्र कर जिज्ञासा तो पैदाकर दी फ़िर मक्करी से इधर उधर की बकवास करने लगी । कुछ देर तक तो माया देवी उसकी बकवास सुनती रहीं फ़िर उनके पेट की खलबली ने उन्हें बेला से पूछने पर मजबूर कर दियाउन्होंने हँसते हुए पूछा –“ क्या हुआ तालाब पर…?”

 

“अरे कुछ नहीं मालकिन,,पता नही… जरा सी गलत्फ़हमी में बात कहाँसे कहाँ पहुँच जाती है । मैंने तो जो कुछ देखा उससे जो समझ में आया वो किया अब मुझे क्या पता था बात इतनी बढ़ जायेगी कि……!

“अरे कुछ बतायेगी भी या यों ही बक बक किये जायेगी……!”
चौधराइन ने डाँटा।

बेला –“ अब क्या बताऊँ मालकिन कल सुबह मैंने मदन बाबू को आम के बगीचे की तरफ से आते हुए देखा था, तो फिर…॥”

माया देवी चौंक कर बैठती हुई बोली,

“क्या मतलब है तेरा…? वो क्यों जायेगा सुबह-सुबह बगीचे में !?”

“अब मुझे क्या पता क्यों गये थे ?… मैंने तो सुबह में उधर से आते देखा, फ़िर मैंने मैंने लाजो और बसन्ती को भी आते हुए देखा ।… लाजो तो नई पायल पहन ठुमक-ठुमक कर चल रही थी …॥”

जब मैं नहाने तालाब पे गई वहाँ लाजो को देख मैंने पूछ दिया कि पायल कहाँ से आयी तो वो लड़ने लगी। बात आयी गई हो गई मैं तो शाम तक भूल भी गई थी शाम को जब मैं बगिया की तरफ़ से निकली तो मदन बाबू खड़े थे बहाने से मुझे बगिया वाले मकान में बुला ले गये और वही हुआ जिसका दर था। लगता है लाजो ने तालाब वाली बात मदन बाबू को बता दी थी ।”

“अरी! पर हुआ क्या ये तो बता न ।”

मेरी तो कहते जुबान कटती है कि मदन बाबू ने एक हाथ मेरी गरदन में डाला और एक मेरे चूतड़ों में और वहीं बिस्तर पर पटक के चोद दिया।”

बस इतना ही काफी था. माया देवी, नथुने फुला कर बोली,

“एक नंबर की छिनाल है तु,,, … हरामजादी,,,,, कुतिया, तु बाज नही आयी न … रण्डी … निकल अभी तु यहां से,,,,,,चल भाग …। दुबारा नजर मत आना..…”

माया देवी दांत पीस-पीस कर मोटी-मोटी गालियां निकाल रही थी। बेला समझ गई की अब रुकी तो खैर नही। उसने जो करना था कर दिया, बाकी चौधराइन की गालियां तो उसने कई बार खाई थी। बेला ने तुरन्त दरवाजा खोला, और भाग निकली।

बेला के जाने के बाद चौधराइन का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ. ठन्डा पानी पी कर बिस्तर पर धम से गिर पड़ी। बेला सच ही बोल रही होगी?… उसकी आखिर मदन से क्या दुश्मनी है, जो झूठ बोलेगी। पिछली बार भी मैंने उसकी बातो पर विश्वास नही किया था।
कैसे पता चलेगा ?

दीनू को बुलाया, फिर उसे एक तरफ ले जाकर पुछा। वो घबरा कर चौधराइन के पैरो में गिर पड़ा, और गिडगिडाने लगा,

“मालकिन, मुझे माफ कर दो …। मैंने कुछ नहीं किया …मालकिन, मदन बाबू ने चाबी लेने के बाद मुझे बगीचे पर जाने से मना कर दिया ।”

माया देवी का सिर चकरा गया। एक झटके में सारी बात समझ में आ गई।

कमरे में वापस आ कर, आंखो को बन्द कर बिस्तर पर लेट गई। मदन के बारे में सोचते ही उसके दिमाग में एक नंग्धड़ंग नवजवान लड़के की तसवीर उभर आती थी. जो किसी भरी पूरी जवान औरत के ऊपर चढ़ा हुआ होता। उसकी कल्पना में मदन एक नंगे मर्द के रुप में नजर आ रहा था। माया देवी बेचैनी से करवटे बदल रही थी।

उनको सदानन्द पर गुस्सा भी आ रहा था, कि लड़के की तरफ़ ध्यान नहीं देता । लड़का इधर-उधर मुंह मारता फिर रहा है। फिर सोचती, मदन ने किसी के साथ जबरदस्ती तो की नही. अगर गांव की औरतें लड़कियाँ खुद चुदवाने के लिये तैयार है, तो वो भी अपने आप को कब तक रोकेगा । नया खून है, आखिर उसको भी गरमी चढ़ती होगी, छेद तो खोजेगा ही अगर घरेलू छेद मिल जाय तो बाहर क्यों मुंह मारेगा। आखिर सदानन्द भी तो पहले दिन में यहाँ वहाँ मुँह मारता फ़िरता था पर जब से दिन में यहाँ मेरे पास आने लगा और मेरी चूत मिलने लगी तब से दिन में यहाँ मेरी लेता है और रात में तो घर पे रह पण्डिताइन की रगड़ता ही है। पण्डिताइन बेचारी को भी आनन्द है और आदमी घर का घर में है। ऐसे ही अगर मदन का भी कुछ इन्तजाम हो जाय तो वो गाँव की बदमाश औरतों से बचा रह सकता है वो सोच रही थी कि मेरे बचपन के दोस्त का बेटा है। मुझे ही कुछ करना होगा। मुझे ही अपनी कुर्बानी देनी होगी। वैसे भी साले सदानन्द को एक दिन में दो चूतें, दोपहर में मेरी और रात में पण्डिताइन की मिलती हैं पण्डिताइन बता रही थी कि साला रात भर रगड़ता है । मैं जब जवान थी, तब भी चौधरी ज्यादा से ज्यादा रात भर में उसकी दो बार लेता था. वो भी शुरु के एक महिने तक। फिर पता नही क्या हुआ, कुछ दिन बाद तो वो भी खतम हो गया. हफ्ते में दो बार, फिर घट कर एक बार से कभी-कभार में बदल गया। और अब तो पता नही कितने दिन हो गये। जबकी अगर बेला की बातो पर विश्वास करे तो, गांव की हर औरत कम से कम दो लंडो से अपनी चूत की कुटाई करवा रही थी। मेरी ही किस्मत फूटी हुई है। कुछ रण्डियों ने तो अपने घर में ही इन्तजाम कर रखा था। यहां तो घर में भी कोई नही, ना देवर ना जेठ । मुझे साला ले दे के दोपहर में एक लण्ड सदानन्द का मिलता है ये कहाँ का न्याय है ।

मुझे एक और लण्ड मिलना ही चाहिये बेला ठीक कहती है मदन को फ़ाँस लेने से किसी को शक नहीं होगा । अपना काम भी हो जायेगा और लड़का गन्दी औरतों से भी बचा रहेगा।

इस तरह विचार कर चौधराइन ने मदन का शिकार करने का पक्का फ़ैसला कर लिया। फ़िर सोचने लगी, क्या सच में मदन का हथियार उतना बड़ा है ?, जितना बेला बता रही थी। सदानन्द के लण्ड का ख्याल कर उसे बेला की बात का विश्वास होने लगा। सदानन्द के लण्ड के बारे में सोचते ही उसकी चूत दुपदुपाने लगती है फ़िर बेला के हिसाब से मदन का लण्ड तो और भी जबर्दस्त है उसकी कल्पना कर उसके बदन में एक सिहरन सी दौड़ गई, साथ ही साथ उसके गाल भी लाल हो गये। करीब घंटा भर वो बिस्तर पर वैसे ही लेटी हुई. मदन के लण्ड, और पिछली बार बेला की सुनाई, चुदाई की कहानियों को याद करती, अपनी जांघो को भींचती करवटें बदलती रही।

माया देवी ने सदानन्द के यहाँ नौकर भेज कर मदन को बुलवाया । मदन घर लुंगी बांधे जैसा बैठा था हड़बड़ाया सा वैसे ही चला आया।
माया देवी ने मदन को लुंगी पहने हड़बड़ाया हुआ देखा तो मन ही मन मुस्कुराई और पुछा, –“ये लुंगी कैसी बांधी हुई है आम के बगीचे पर नहीं जाना क्या आज। तू जाता भी है या योंही ।

“हाँ जाता हूँ चाची । अभी आपने बुलाया इसलिए बगैर कपड़े बदले जल्दी से चला आया अभी घर जा के बदल लूँगा तब जाऊँगा ।”

“जब तू जाता है तो इतने आम कैसे चोरी हो रहे हैं ?” इसी तरह जमीन-जायदाद की देखभाल की जाती है बेटा? तुझसे अकेले नहीं सम्हलता तो नौकरों की मदद ले लेता…

“नौकर ही तो सबसे ज्यादा चोरी करवाते हैं …सब चोर है। इसीलिए तो मैं वहां अकेला ही जाता हूँ ।”

मदन को मौका मिल गया था, और उसने तपाक से बहाना बना लिया।

तभी माया देवी गम्भीरता से बोली …“तो ये बात तूने मुझे पहले क्यों नही बताई…? कोई बात नही, मगर मुझे बता देता तो कोई भरोसे का आदमी साथ कर देती…।”

“अरे नहीं चौधचाची, उसकी कोई जरुरत नही है… मैं सब सम्भाल लूँगा।”
कहते हुए मदन उठने लगा। माया देवी मदन की मजबुत बदन को घूरती हुई बोली,

“ना ना, अकेले तो जाना ही नहीं है…। मैं चलती हूँ तेरे साथ… मैं देखती हुँ चोरों को”
इस धमाके से मदन की ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की नीचे रह गई । कुछ देर तक तो वो माया देवी का चेहरा भौचक्का सा देखता ही रह गया।

कल रात ही लाजो वादा करके गई थी, की एक नये माल को फ़ँसा कर लाऊँगी। सारा प्लान चौपट।

फिर अपने आप को सम्भालते हुए बोला,

“नहीं चौधराइन चाची, तुम वहां क्या करने जाओगी ?… मुझे अभी कपड़े भी बदलने हैं। …मैं अकेला ही…”

“नही, मैं भी चलती हुं और तेरे कपड़े ऐसे ही ठीक हैं।…बहुत टाईम हो गया…बहुत पहले गर्मीयों में कई बार चौधरी साहिब के साथ वहां पर जाती थी यहाँतक कि सोती भी थी…कई बार तो रात में ही हमने आम तोड़ के भी खाये थे…चल मैं चलती हूँ।.”

मदन विरोध नही कर पाया।

“ठहर जा, जरा टार्च तो ले लुं…”

फिर माया देवी टार्च लेकर मदन के साथ निकल पड़ी। माया देवी ने अपनी साड़ी बदल ली थी, और अपने आप को संवार लिया था। मदन ने अपनी चौधराइन चाची को नजर भर कर देखा एकदम बनी ठनी, बहुत खूबसुरत लग रही थी। मदन की नजरो को भांपते हुए वो हँसते हुए बोली,

“क्या देख रहा है…?”

हँसते समय माया देवी के गालो में गड्ढे पड़ते थे।

“ कुछ नही. मैं सोच रहा था, आपको कहीं और तो नही जाना था”

माया देवी के होठों पर मुस्कुराहट फैल गई। हँसते हुए बोली,

“ऐसा क्यों…?, मैं तो तेरे साथ बगीचे पर चल रही हूँ।”

“नहीं, तुमने साड़ी बदली हुई है, तो…”

“वो तो ऐसे ही बदल लिया…क्यों,,,अच्छा नही लग रहा…??”

“नही, बहुत अच्छा लग रहा है…आप बहुत सुंदर लग अ…”,

बोलते हुए मदन थोड़ा शरमाया तो माया देवी ने हल्के हँस दी। माया देवी के गालो में पड़ते गड्ढे देख, मदन के बदन में सिहरन दौड़ गई।

दर असल अपनी चौधराइन चाची को उस दिन मालिश देखने के दो-तीन दिन बाद तक मदन बाबू को कोई होश नही था। इधर उधर पगलाये घुमते रहते थे। हर समय दिमाग में वही चलता रहता थ। चौधरी के घर जाते तो चौधराइन से नजरे चुराने लगे थे। जब चौधराइन चाची इधर उधर देख रही होती, तो उसको निहारते। हालांकि कई बार दिमाग में आता की, अपनी चाची को देखना बड़ी गलत बात है , कच्ची उम्र के लड़के के दिमाग में ज्यादा देर ये बात टिकने वाली नही थी। मन बार-बार माया देवी के नशीले बदन को देखने के लिये ललचाता। उसको इस बात पर ताज्जुब होता की, इतने दिनो में उसकी नजर चौधराइन चाची पर कैसे नही पड़ी। फिर ये चाची ही नहीं चौधराइन भी हैं, जरा सा उंच-नीच होने पर चमड़ी उधेड के रख देगी। इसलिये ज्यादा हाथ पैर चलाने की जगह, अपने लण्ड के लिये गांव में जुगाड़ खोजना ज्यादा जरुरी है। किस्मत में होगा तो मिल जायेगा।

मदन थोड़ा धीरे चल रहा था। चौधराइन चाची के पीछे चलते हुए, उसके मस्ताने मटकते चूतड़ों पर नजर पड़ी तो, उसका मन किया की धीरे से पीछे से माया देवी को पकड़ ले, और लण्ड को चूतड़ों की दरार में लगा कर, प्यार से उसके गालो को चुसे। उसके गालो के गड्ढे में अपनी जीभ डाल कर चाट ले। पीछे से सारी उठा कर उसके अन्दर अपना सिर घुसा दे, और दोनो चूतड़ों को मुट्ठी में भर कर मसलते हुए, चूतड़ों की दरार में अपना मुंह घुसा दे।

आज तो लाजवन्ती का भी कोई चांस नही था। तभी ध्यान आया की लाजो को तो बताया ही नही। डर हुआ की, कहीं वो चौधराइन चाची के सामने आ गई तो क्या करूँगा। और वही हुआ. बगीचे पर पहुंच कर खलिहान या मकान जो भी कहिये उसका दरवाजा ही खोला था, की बगीचे की बाउन्ड्री का गेट खोलती हुई लाजो और एक ओर औरत घुसी।।

अन्धेरा तो बहुत ज्यादा था, मगर फिर भी किसी बिजली के खम्भे की रोशनी बगीचे में आ रही थी। चौधराइन ने देख लिया और चौधराइन माया देवी की आवाज गूँजी,

“कौन घुस रहा है बगीचे में,,,,,…?”

मदन ने भी पलट कर देखा, तुरन्त समझ गया कि लाजो होगी। इस से पहले की कुछ बोल पाता, कि चौधराइन की कड़कती आवाज इस बार पूरे बगीचे में गुंज गई,

“कौन है, रे ?!!!…ठहर. अभी बताती हूँ।”

इसके साथ ही माया देवी ने दौड़ लगा दी,

“ साली, आम चोर कुतिया,,,,,!। ठहर वहीं पर…!।”

भागते-भागते एक डन्डा भी हाथ में उठा लिया था। माया देवी की कड़कती आवाज जैसे ही लाजो के कानो में पड़ी, उसकी तो हवा खराब हो गई। अपने साथ लाई औरत का हाथ पकड़, घसीटती हुई बोली,

“ये तो चौधराइन…है…। चल भाग…”

दोनो औरतें बेतहाशा भागी। पीछे चौधराइन हाथ में डन्डा लिये गालियों की बौछार कर रही थी। दोनो जब बाउन्ड्री के गेट के बाहर भाग गई तो माया देवी रुक गई। गेट को ठीक से बन्द किया और वापस लौटी। मदन खलिहान के बाहर ही खड़ा था। माया देवी की सांसे फुल रही थी। डन्डे को एक तरफ फेंक कर, अन्दर जा कर धम से बिस्तर पर बैठ गई और लम्बी-लम्बी सांसे लेते हुए बोली,

“साली हरामजादियाँ,,,,,, देखो तो कितनी हिम्मत है !?? शाम होते ही आ गई चोरी करने !,,,,,अगर हाथ आ जाती तो सुअरनियों की चूतड़ों में डन्डा पेल देती…हरामखोर साली, तभी तो इस बगीचे से उतनी कमाई नही होती, जितनी पहले होती थी…। मादरचोदियां, अपनी चूत में आम भर-भर के ले जाती है…रण्डियों का चेहरा नही देख पाई…”

मदन माया देवी के मुंह से ऐसी मोटी-मोटी भद्दी गालियों को सुन कर सन्न रह गया। हालांकि वो जानता था कि चौधराइन चाची कड़क स्वभाव की है, और नौकर चाकरो को गरियाती रहती है. मगर ऐसी गन्दी-गन्दी गालियां उसके मुंह से पहली बार सुनी थी, हिम्मत करके बोला,

“अरे चौधराइन चाची, छोड़ो ना तुम भी…भगा तो दिया…अब मैं रोज इसी समय आया करूँगा ना. तो देखना इस बार अच्छी कमाई…”

“ना ना,,,,,ऐसे इनकी आदत नही छुटने वाली…जब तक पकड़ के इनकी चूत में मिर्ची ना डालोगे बेटा, तब तक ये सब भोसड़चोदीयां ऐसे ही चोरी करने आती रहेंगी…। माल किसी का, खा कोई और रहा है…”

मदन ने कभी चौधराइन चाची को ऐसे गालियां देते नही सुना था। बोल तो कुछ सकता नही था, मगर उसे अपनी वो सारी छिनाल, चुदक्कड़ औरतें याद आ गई. जो चुदवाते समय अपने सुंदर मुखड़े से जब गन्दी-गन्दी बाते करती थी, तब उसका लण्ड लोहा हो जाता था।

माया देवी के खूबसुरत चेहरे को वो एक-टक देखने लगा. भरे हुए कमानीदार होठों को बिचकाती हुई, जब माया देवी ने दो-चार और मोटी गालियां निकाली तो उनके इस छिनालपन को देख मदन का लण्ड खड़ा होने लगा। मन में आया उन भरे हुए होठों को अपने होठों में कस ले और ऐसा चुम्मा ले की होठों का सारा रस चूस ले। खड़े होते लण्ड को छुपाने के लिये जल्दी से बिस्तर पर चौधराइन चाची के सामने बैठ गया।

To be Continued

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“ना ना,,,,,ऐसे इनकी आदत नही छुटने वाली…जब तक पकड़ के इनकी चूत में मिर्ची ना डालोगे बेटा, तब तक ये सब भोसड़चोदीयां ऐसे ही चोरी करने आती रहेंगी…। माल किसी का, खा कोई और रहा है…”

मदन ने कभी चौधराइन चाची को ऐसे गालियां देते नही सुना था। बोल तो कुछ सकता नही था, मगर उसे अपनी वो सारी छिनाल, चुदक्कड़ औरतें याद आ गई. जो चुदवाते समय अपने सुंदर मुखड़े से जब गन्दी-गन्दी बाते करती थी, तब उसका लण्ड लोहा हो जाता था।

माया देवी के खूबसुरत चेहरे को वो एक-टक देखने लगा. भरे हुए कमानीदार होठों को बिचकाती हुई, जब माया देवी ने दो-चार और मोटी गालियां निकाली तो उनके इस छिनालपन को देख मदन का लण्ड खड़ा होने लगा। मन में आया उन भरे हुए होठों को अपने होठों में कस ले और ऐसा चुम्मा ले की होठों का सारा रस चूस ले। खड़े होते लण्ड को छुपाने के लिये जल्दी से बिस्तर पर चौधराइन चाची के सामने बैठ गया।

चौधराइन की रंगीन दुनियाँ | Choudharayin Ki Rangin Duniya
भाग-8 चौधराइन के आम | Choudharayin Ke Aam

माया देवी की सांसे अभी काफ़ी तेज चल रही थी, और उसका आंचल नीचे उसकी गोद में गिरा हुआ था। बड़ी बड़ी छातियाँ हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रही थी। गोरा चिकना मांसल पेट। मदन का लण्ड पूरा खड़ा हो चुका था।

तभी माया देवी ने पैर पसार अपनी साड़ी को खींचते हुए घुटनों से थोड़ा ऊपर तक चढ़ा, एक पैर मोड़ कर, एक पैर पसार कर, अपने आंचल से माथे का पसीना पोंछती हुई बोली,

“हरामखोरो के कारण दौड़ना पड़ गया…बड़ी गरमी लग रही है. खिड़की तो खोल दे, बेटा।"

जल्दी से उठ कर खिड़की खोलने गया। लण्ड ने लुंगी के कपड़े को ऊपर उठा रखा था, और मदन के चलने के साथ हिल रहा था। माया देवी की आखों में अजीब सी चमक उभर आई थी. वो एकदम खा जाने वाली निगाहों से लुंगी के अन्दर के डोलते हुए हथियार को देख रही थी। मदन जल्दी से खिड़की खोल कर बिस्तर पर बैठ गया, बाहर से सुहानी हवा आने लगी। उठी हुई साड़ी से माया देवी की गोरी मखमली टांगे दिख रही थी।

माया देवी ने अपने गरदन के पसीने को पोंछते हुए, अपनी ब्लाउज के सबसे ऊपर वाले बटन को खोल दिया और साड़ी के पल्लु को ब्लाउज के भीतर घुसा पसीना पोंछने लगी। पसीने के कारण ब्लाउज का उपरी भाग भीग चुका था। ब्लाउज के अन्दर हाथ घुमाती बोली,

“बहुत गरमी है,,,,!! बहुत पसीना आ गया ।"

मदन मुंह फेर ब्लाउज में घुमते हाथ को देखता हुआ, भोंचक्का सा बोल पड़ा,

“हां,,,,!! अह,,, पूरा ब्लाउज भीग,,,,गया...”

“तु शर्ट खोल दे ना…बनियान तो पहन ही रखी होगी…?!।"

साड़ी को और खींचती, थोड़ा सा जांघो के ऊपर उठाती माया देवी ने अपने पैर पसारे.

“साड़ी भी खराब हो…। यहां रात में तो कोई आयेगा नही…”

“नही चाची, यहां…रात में कौन…”

“पता नही, कहीं कोई आ जाये…। किसी को बुलाया तो नही...?”

मदन ने मन ही मन सोचा, जिसको बुलाया था उसको तो तुमने भगा ही दिया, पर बोला, “नही,,,नही,,,!!…किसी को नही बुलाया...!”

“तो, मैं भी साड़ी उतार देती हुं…”

कहती हुई उठ गई और साड़ी खोलने लगी।

मदन भी गरदन हिलाता हुआ बोला,

“हां चौधराइन चाची,,,,फिर पेटिकोट और ब्लाउज…सोने में भी हल्का…”

“हां, सही है…। पर, तु यहां सोने के लिये आता है ?…सो जायेगा तो फिर रखवाली कौन करेगा…???”

“मैं, अपनी नही आपके सोने की बात कहाँ कर रहा हूँ !…आप सो जाइये…मैं रखवाली करूँगा…”

“मैं भी तेरे साथ जाग कर तुझे बताऊँगी कि रखवाली कैसे करनी है नहीं तो मेरे आने का फ़ायदा ही क्या हुआ?”

“तब तो हो गया काम…तुम तो सब के पीछे डन्डा ले कर दौड़ोगी…”

“क्यों, तु नही दौड़ता डान्डा ले कर…? मैंने तो सुना है, गांव की सारी छोरियों को अपने डन्डे से धमकाया हुआ है, तूने !!!?”

चौधराइन ने बड़े अर्थपूर्ण ढंग से उसकी तरफ़ देख मुस्कुराते हुए कहा।

मदन एकदम से झेंप गया,

“धत् चाची,,,,…क्या बात कर रही हो…?”

“इसमे शरमाने की क्या बात है ?… ठीक तो करता है. अपने आम हमें खुद खानें है…। सब चूतमरानियों को ऐसे ही धमकाया दिया कर…।”
चौधराइन ने रंग बदलते गिरगिट की तरह बात का मतलब बदल दिया।

मदन की रीड की हड्डियों में सिहरन दौड़ गई। माया देवी के मुंह से निकले इस चूत शब्द ने उसे पागल कर दिया। उत्तेजना में अपने लण्ड को जांघो के बीच जोर से दबा दिया। चौधराइन ने साड़ी खोल एक ओर फेंक दिया, और फिर पेटिकोट को फिर से घुटने के थोड़ा ऊपर तक खींच कर बैठ गई, और खिड़की के तरफ मुंह घुमा कर बोली,

“लगता है, आज बारिश होगी ।"

मदन कुछ नही बोला. उसकी नजरे तो माया देवी की गोरी-गठीली पिन्डलियों का मुआयना कर रही थी। घुमती नजरे जांघो तक पहुंच गई और वो उसी में खोया रहता, अगर अचानक माया देवी ना बोल पड़ती,

“बदन बेटा, आम खाओगे…!!?”

मदन ने चौंक कर नजर उठा कर देखा, तो उसे ब्लाउज के अन्दर कसे हुए दो आम नजर आये. इतने पास, की दिल में आया मुंह आगे कर चूचियों को मुंह में भर ले. दूसरे किसी आम के बारे में तो उसका दिमाग सोच भी नही पा रहा था. हड़बडाते हुए बोला,

“आम,,,,? कहाँ है, आम…? अभी कहाँ से…?”

माया देवी उसके और पास आ, अपनी सांसो की गरमी उसके चेहरे पर फेंकती हुई बोली,

“आम के बगीचे में बैठ कर…आम नहीं दिख रहे…!!!! बावला हो रहा है क्या?”
कह कर मुस्कुराई…...।

“पर, रात में,,,,,,आम !?”,

बोलते हुए मदन के मन में आया की गड्ढे वाले गालो को अपने मुंह में भर कर चूस ले।

धीरे से बोली,

“अरे रात में ही आम खाने में मजा आता है खा ले! खा ले! वैसे भी तेरा वो बाप सदानन्द कंजूस तो तुझे आम खिलाने से रहा।”

“नहीं चाची, पिताजी आम लाते हैं।”

चौधराइन ने मन ही मन कहा –“वो भी मेरे ही आम चूसता है रोज रात को दुखते हैं।” पर ऊपर से बोलीं –“अरे मुझे न बता वो भी मेरे ही आम से काम चलाता है। चल बाहर चलते हैं।”,

कहती हुई, मदन को एक तरफ धकेलते बिस्तर से उतरने लगी।

इतने पास से बिस्तर से उतर रही थी, की उसकी नुकिली चूचियों ने अपनी चोंच से मदन की बाहों को छु लिया। मदन का बदन गनगना गया। उठते हुए बोला,

“क्या चौधराइन चाची आपको भी इतनी रात में क्या-क्या सूझ रहा है…इतनी रात में आम कहाँ दिखेंगे?”

“ये टार्च है ना,,,,,,बारिश आने वाली है…नहीं तोड़ेंगे तो जितने भी पके हुए आम है, गिर कर खराब हो जायेंगे…।”
और टार्च उठा बाहर की ओर चल दी।

आज उनकी चाल में एक खास बात थी. मदन का ध्यान बराबर उसकी मटकती, गुदाज कमर और मांसल हिलते चूतड़ों की ओर चला गया। गांव की उनचुदी, जवान लौंडियों को चोदने के बाद भी उसको वो मजा नही आया था, जो उसे औरतों (जैसे लाजो, बेला) वगैरह ने दिया था।

इतनी कम उम्र में ही मदन को ये बात समझ में आ गई थी, की बड़ी उम्र की मांसल, गदराई हुई औरतों को चोदने में जो मजा है, वो मजा दुबली-पतली अछूती अनचुदी बुरों को चोदने में नही आता । खेली-खाई औरतें कुटेव करते हुए लण्ड डलवाती है, और उस समय जब उनकी चूत फच-फच…गच-गच अवाज निकालती है, तो फिर घंटो चोदते रहो…उनके मांसल, गदराये जिस्म को जितनी मरजी उतना रगड़ो।

एकदम गदराये-गठीले चूतड़, पेटिकोट के ऊपर से देखने से लग रहा था की हाथ लगा कर अगर पकड़े, तो मोटे मांसल चूतड़ों को रगड़ने का मजा आ जायेगा। ऐसे ठोस चूतड़ की, उसके दोनो भागों को अलग करने के लिये भी मेहनत करनी पड़ेगी। फिर उसके बीच चूतड़ों के बीच की नाली बस मजा आ जाये।

पायजामा के अन्दर लण्ड फनफाना रहा था। अगर माया देवी उसकी चौधराइन चाची नही होती तो अब तक तो वो उसे दबोच चुका होता। इतने पास से केवल पेटिकोट-ब्लाउज में पहली बार देखने का मौका मिला था। एकदम गदराई-गठीली जवानी थी। हर अंग फ़ड़फ़ड़ा रहा था। कसकती हुई जवानी थी, जिसको रगड़ते हुए बदन के हर हिस्से को चुमते हुए, दांतो से काटते हुए रस चूसने लायक था। रात में सो जाने पर साड़ी उठा के चूत देखने की कोशिश की जा सकती थी, ज्यादा परेशानी शायद ना हो, क्योंकि उसे पता था की गांव की औरतें कच्छी नही पहनती।

इसी उधेड़बुन में फ़ँसा हुआ, अपनी चौधराइन चाची के हिलते चूतड़ों और उसमें फँसे हुए पेटिकोट के कपड़े को देखता हुआ, पीछे चलते हुए आम के पेड़ों के बीच पहुंच गया। वहां माया देवी फ्लेश-लाईट (टार्च) जला कर, ऊपर की ओर देखते हुए बारी-बारी से सभी पेड़ों पर रोशनी डाल रही थी।

“इस पेड़ पर तो सारे कच्चे आम है…इस पर एक-आध ही पके हुए दिख रहे…”

“इस तरफ टार्च दिखाओ तो चौधराइन चाची,,…इस पेड़ पर …पके हुए आम…।”

“कहाँ है,,,? इस पेड़ पर भी नही है, पके हुए…तु क्या करता था, यहां पर…?? तुझे तो ये भी नही पता, किस पेड़ पर पके हुए आम है…???”

मदन ने माया देवी की ओर देखते हुए कहा,

“पता तो है, मगर उस पेड़ से तुम तोड़ने नही दोगी…!।"

“क्यों नही तोड़ने दूँगी,,?…तु बता तो सही, मैं खुद तोड़ कर खिलाऊँगी..”

फिर एक पेड़ के पास रुक गई,

“हां,,,!! देख, ये पेड़ तो एकदम लदा हुआ है पके आमों से…। चल ले, टार्च पकड़ के दिखा, मैं जरा आम तोड़ती हूँ…।”

कहते हुए माया देवी ने मदन को टार्च पकड़ा दिया। मदन ने उसे रोकते हुए कहा,

“क्या करती हो…?, कहीं गिर गई तो …? तुम रहने दो मैं तोड़ देता हुं…।”

“चल बड़ा आया…आम तोड़ने वाला…बेटा, मैं गांव में ही बड़ी हुई हुं…जब मैं छोटी थी तो अपनी सहेलियों में मुझसे ज्यादा तेज कोई नही था, पेड़ पर चढ़ने में…देख मैं कैसे चढ़ती हुं…”

“अरे, तब की बात और थी…”

पर मदन की बाते उसके मुंह में ही रह गई, और माया देवी ने अपने पेटिकोट को थोड़ा ऊपर कर अपनी कमर में खोस लिया, और पेड़ पर चढ़ना शुरु कर दिया।

मदन ने भी टार्च की रोशनी उसकी तरफ कर दी। थोड़ी ही देर में काफी ऊपर चढ़ गई, और पेर की दो डालो के ऊपर पैर जमा कर खड़ी हो गई, और टार्च की रोशनी में हाथ बढ़ा कर आम तोड़ने लगी. तभी टार्च फिसल कर मदन की हाथों से नीचे गिर गयी।

“अरे,,,,,क्या करता है तु…? ठीक से टार्च भी नही दिखा सकता क्या ?”

मदन ने जल्दी से नीचे झुक कर टार्च उठायी और फिर ऊपर की…

“ठीक से दिखा,,,इधर की तरफ…”

टार्च की रोशनी चौधराइन जहां आम तोड़ रही थी, वहां ले जाने के क्रम में ही रोशनी माया देवी के पैरो के पास पड़ी तो मदन के होश ही उड़ गये...॥

माया देवी ने अपने दोनो पैर दो डालो पर टिका के रखे हुए थे. उसका पेटिकोट दो भागो में बट गया था. और टार्च की रोशनी सीधी उसके दोनो पैरो के बीच के अन्धेरे को चीरती हुई पेटिकोट के अन्दर के माल को रोशनी से जगमगा दिया।

पेटिकोट के अन्दर के नजारे ने मदन की तो आंखो को चौंधिया दिया। टार्च की रोशनी में पेटिकोट के अन्दर कैद, चमचमाती मखमली टांगे पूरी तरह से नुमाया हो गई. रोशनी पूरी ऊपर तक चूत की काली काली झाँटों को भी दिखा रही थी। टार्च की रोशनी में कन्दली के खम्भे जैसी चिकनी मोटी जांघो और चूत की झाँटों को देख, मदन को लगा की उसका लण्ड पानी फेंक देगा. उसका गला सुख गया और हाथ-पैर कांपने लगे।

तभी माया देवी की आवाज सुनाई दी,

“अरे, कहाँ दिखा रहा है ? यहां ऊपर दिखा ना…!!।

हकलाते हुए बोला,

“हां,,,! हां,,,!, अभी दिखाता…वो टार्च गिर गयी थी…”

फिर टार्च की रोशनी चौधराइन के हाथों पर फोकस कर दी। चौधराइन ने दो आम तोड़ लिये फिर बोली,

“ले, केच कर तो जरा…”

और नीचे की तरफ फेंके, मदन ने जल्दी से टार्च को कांख में दबा, दोनो आम बारी-बारी से केच कर लिये और एक तरफ रख कर, फिर से टार्च ऊपर की तरफ दिखाने लगा…और इस बार सीधा दोनो टांगो के बीच में रोशनी फेंकी. इतनी देर में माया देवी की टांगे कुछ और फैल गई थी. पेटिकोट भी थोड़ा ऊपर उठ गया था और चूत की झाँटें और ज्यादा साफ दिख रही थी। मदन का ये भ्रम था या सच्चाई पर माया देवी के हिलने पर उसे ऐसा लगा, जैसे चूत के लाल लपलपाते होठों ने हल्का सा अपना मुंह खोला था। लण्ड तो लुंगी के अन्दर ऐसे खड़ा था, जैसे नीचे से ही चौधराइन की चूत में घुस जायेगा। नीचे अन्धेरा होने का फायदा उठाते हुए, मदन ने एक हाथ से अपना लण्ड पकड़ कर हल्के से दबाया। तभी माया देवी ने कहा,

“जरा इधर दिखा…।”

मदन ने वैसा ही किया. पर बार-बार वो मौका देख टार्च की रोशनी को उसकी टांगो के बीच में फेंक देता था। कुछ समय बाद माया देवी बोली,

“और तो कोई पका आम नही दिख रहा।…चल मैं नीचे आ जाती हुं. वैसे भी दो आम तो मिल ही गये…। तु खाली इधर उधर लाईट दिखा रहा है, ध्यान से मेरे पैरों के पास लाईट दिखाना।"

कहते हुए नीचे उतरने लगी।

मदन को अब पूरा मौका मिल गया. ठीक पेड़ की जड़ के पास नीचे खड़ा हो कर लाईट दिखाने लगा। नीचे उतरती चौधराइन के पेटिकोट के अन्दर रोशनी फेंकते हुए, मस्त चौधराइन माँसल, चिकनी जांघो को अब वो आराम से देख सकता था. क्योंकि चौधराइन का पूरा ध्यान तो नीचे उतरने पर था, हालांकि चूत की झाँटों का दिखना अब बन्द हो गया था, मगर चौधराइन का मुंह पेड़ की तरफ होने के कारण पीछे से उसके मोटे-मोटे चूतड़ों का निचला भाग पेटिकोट के अन्दर दिख रहा था। गदराई गोरी चूतड़ों के निचले भाग को देख लण्ड अपने आप हिलने लगा था।

एक हाथ से लण्ड पकड़ कस कर दबाते हुए, मदन मन ही मन बोला, “हाय ऐसे ही पेड़ पर चढी रह उफफ्फ्…क्या चूतड़ हैं ?…किसी ने आज तक नही रगड़ा होगा एकदम अछूते चूतड़ों होंगे…। हाय चौधराइन चाची…लण्ड ले कर खड़ा हूँ, जल्दी से नीचे उतर के इस पर बैठ जा ना…”

ये सोचने भर से लण्ड पनिया गया था। तभी चौधराइन का पैर फिसला और हाथ छुट गया। मदन ने हडबड़ा कर नीचे गिरती चौधराइन को कमर के पास से लपक के पकड़ लिया। मदन के दोनो हाथ अब उसकी कमर से लिपटे हुए थे और चौधराइन के दोनो पैर हवा में और मदन का लण्ड सीधा चौधराइन की मोटे गुदाज चूतड़ों को छु रहा था। हडबड़ाहट में दोनो की समझ में कुछ नही आ रहा था, कुछ पल तक मदन ने भी उसके भारी शरीर को ऐसे ही थामे रखा और माया देवी भी उसके हाथों को पकड़े अपनी चूतड़ों को उसके लण्ड पर टिकाये झुलती रही।
कुछ देर बाद, धीरे से शरमाई आवज में बोली,

“हाय,,,,, बच गई,,,,,, अभी गिर जाती. अब छोड़, ऐसे ही उठाये रखेगा क्या,,,,??”

मदन उसको जमीन पर खड़ा करता हुआ बोला

“मैंने तो पहले ही कहा था…”

माया देवी का चेहरा लाल पर गया था। हल्के से मुस्कुराती हुई, कनखियों से लुंगी में मदन के खड़े लण्ड को देखने की कोशिश कर रही थी। अन्धेरे के कारण देख नही पाई मगर अपनी चूतड़ों पर, अभी भी उसके लण्ड की चुभन का अहसास उसको हो रहा था। अपने पेट को सहलाते हुए धीरे से बोली,

“कितनी जोर से पकड़ता है तु ?,,,,लगता है, निशान पड़ गया…”

मदन तुरन्त टार्च जला कर, उसके पेट को देखते हुए बुदबुदाते हुए बोला,

“…वो अचानक ही…।”

मुस्कुराती हुई माया देवी धीरे कदमों से चलती मदन के एकदम पास पहुंच गई…इतने पास की उसकी दोनो चूचियों का अगला नुकिला भाग लगभग मदन की छातियों को टच कर रहा था, और उसकी बनियान में कसी छाती पर हल्के से हाथ मरती बोली,

“पूरा सांड़ हो गया है…तु… मैं इतनी भारी हुं…मुझे ऐसे फ़ूल सा टांग लिया…। चल आम उठा ले।"

To be Continued

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