Notifications
Clear all

Incest [Completed] अद्भुत संजोग प्यार का | Adbhut Sanjog Pyaar Ka

19 Posts
2 Users
2 Likes
625 Views
Posts: 286
Topic starter
Reputable Member
Joined: 4 years ago

फिर से एक चुप्पी छा गयी जब वो मेरे जबाव का इंतेज़ार कर रही थी. जब मैने कोई जबाव नही दिया तो उसने मेरी ओर नज़र उठाकर देखा और इस बार अधीरता से पूछा: “क्या हमारे बीच यह संभव है”

मैं बहुत उत्तेजित होता जा रहा था, मेरी नसों में दौड़ता खून उबलने लगा था क्योंकि मेरा मन उस समय बहुत सारी संभावनाओ के बारे में सोच रहा था. उसने लगभग सब कुछ सॉफ सॉफ कह दिया था और अपनी भावनाओं और हसरातों को खुले रूप से जाहिर कर दिया था. अब मेरी तरफ से संयत वार्ताव उसके साथ अन्याय होता. मैने उसकी आँखो में झाँका और अपनी नज़र बनाए रखी. अपने लफ़्ज़ों में जितनी हसरत मैं भर सकता था, भर कर मैने कहा: “तुम्हे कैसे बताऊ माँ, मेरा तो रोम रोम इसके संभव होने के लिए मनोकामना करता है

हम दोनो फिर से चुप हो गये थे. उसकी घोसना और मेरी स्वीकारोक्ति की भयावहता हम दोनो को ज़हरीले नाग की तरह डस रही थी. हम यकायक बहुत गंभीर हो गये थे. सब कुछ खुल कर सामने आ चुका था और हम एक दूसरे से क्या चाहते थे इसका संकेत सॉफ सॉफ था मगर हम फिर भी चुप चाप बैठे थे, दोनो नही जानते थे आगे क्या करना चाहिए.

अद्भुत संजोग प्यार का | Adbhut Sanjog Pyaar Ka | Update 16

Deep Love Emotion

अद्भुत संजोग प्यार का | Adbhut Sanjog Pyaar Ka | Update 16

खामोशी इतनी गहरी थी कि आख़िरकार जब उसने मेरी ओर देखा तो मैं उसके जिस्म की हिलडुल को भी सुन सकता था. उसके चेहरे पर वो अजीब भाव देख सकता था, डर और कामना, उम्मीद और आतंक का मिला जुला रूप था वो. उसने हमारी दूबिधा को लफ़्ज़ों में बयान कर दिया; “अब?.......अब क्या?” वो बोली.

हूँ, मैं भी यही सोचे जा रहा था: अब क्या? अब इसके आगे बढ़ने की हमारी क्या संभावना थी? सामान्यतः हमारा आगे बढ़ने वाला रास्ता स्पष्ट था मगर हमारे बीच कुछ भी सामने नही था. सबसे पहले हम नामुमकिन के मुमकिन होने के इच्छुक थे और अब जब वो नामुमकिन मुमकिन बन गया था, हम यकीन नही कर पा रहे थे कि यह वास्तविक है, सच है. हम समझ नही पा रहे थे कि हम अपने भाग्य का फ़ायदा कैसे उठाएँ, क्योंकि हमारे आगे बढ़ने के लिए कोई निर्धारित योजना नही थी.

अंत में मैने पहला कदम उठाने का फ़ैसला किया. एक गहरी साँस लेकर, मैने अपनी चादर हटाई और धृड निस्चय के साथ बेड की उस तरफ को बढ़ा जिसके नज़दीक उसकी कुर्सी थी. वो संभवत मेरा इंतेज़ार कर रही थी, मैं बेड के किनारे पर चला गया और अपने हाथ उसकी ओर बढ़ा दिए. यह मेरा उसके “अब क्या?” का जवाब था.

वो पहले तो हिचकिचाई, मेरे कदम का जबाव देने के लिए वो अपनी हिम्मत जुटा रही थी. धीरे धीरे उसने अपने हाथ आगे बढ़ाए और मेरे हाथों में दे दिए.

वो हमारा पहला वास्तविक स्पर्श था जब मैने उसे हसरत से छुआ था, हसरत जो उसके लिए थी और उसके जिस्म के लिए थी. उसने इसे स्वीकार कर किया था बल्कि परस्पर मेरी हसरत का जबाव उसने अपने स्पर्श से दिया था. उसके हाथ बहुत नाज़ुक महसूस हो रहे थे. बहुत नरम, खूबसूरत हाथ थे माँ के और मेरे लंबे हाथों में पूरी तरह से समा गये थे.

हमारा स्पर्श रोमांचक था ऐसा कहना कम ना होगा, ऐसे लग रहा था जैसे एक के जिस्म से विधुत की तरंगे निकल कर दूसरे के जिस्म में समा रही थी. यह स्पर्श रोमांचकता से उत्तेजना से बढ़कर था, यह एक स्पर्श मॅटर नही था, उससे कहीं अधिक था. हम ने उंगलियों के संपर्क मॅटर से एक दूसरे से अपने दिल की हज़ारों बातें को साझा किया था. हमारे हाथों का यह स्पर्श पिछली बार के उस स्पर्श से कहीं अधिक आत्मीय था जब उसने कॉरिडोर में मेरे हाथ थामे और दबाए थे. मैने अपनी उँगुलियों को उसकी हथेलियों पर रगड़ा. वो अपनी जगह पर स्थिर खड़ी रहने का प्रयास कर रही थी क्योंकि उसका जिस्म हल्के हल्के झटके खा रहा था.

मैं उसकी उंगलियाँ उसकी हथेलियों की बॅक को अपने अंगूठो से सहला रहा था. वो गहरी साँसे ले रही थी और मैं उसके जिस्म को हल्के से काँपते महसूस कर सकता था. उसके खामोश समर्पण से उत्साहित होकर मैने बेड से उतरने और उसके सामने खड़े होने का फ़ैसला किया. मैं अभी भी उसके हाथ थामे हुए था, सो मेरे बेड से उठने के समय उसके हाथ भी थोड़ा सा उपर को उठे जिस कारण उसका बदन भी थोड़ा उपर को उठा. उसने इशारा समझा और वो भी उठ कर खड़ी हो गयी. अब हम एक दूसरे के सामने खड़े थे; हाथों में हाथ थामे हम एक दूसरे की गहरी सांसो को सुन रहे थे.

वो पहले आगे बढ़ी, वो मेरे पास आ गयी और उसने अपना चेहरा मेरी और बढ़ाया. मैने अपना चेहरा उसके चेहरे पर झुकाया और वो मुझे चूमने के लिए थोड़ा सा और आगे बढ़ी. मैने उसके हाथ छोड़ दिए और उसे अपनी बाहों में भर लिया. हमारे होंठ आपस में परस्पर जुड़ गये, हमारे अंदर कामुकता का जुनून लावे की तरह फूट पड़ने को बेकरार हो उठा.

हम एक दूसरे को थामे चूम रहे थे. कभी नर्मी से, कभी मजबूती से, कभी आवेश से, कभी जोश से. हम ने इस पल का अपनी कल्पनाओं में इतनी बार अभ्यास किया था कि जब यह वास्तव में हुआ तो यह एकदम स्वाभिवीक था. हमने पूरी कठोरता से और गहराई से एकदुसरे को चूमा. हमारे होंठ एक दूसरे के होंठो को चूस रहे थे और हमारी जिभें आपस में लड़ रही थी. बल्कि हमने एक दूसरे की जिव्हा को भी बारी बारी से अपने मुख मन भर कर चूसा उसे अपनी जिव्हा से सहलाया.

उसके होंठ बहुत नाज़ुक थे मगर उनमे कितनी कामुकता भरी पड़ी थी. उसके चुंबन बहुत नरम थे मगर कितने आनन्ददाइ थे. उसकी जिव्हा बहुत मीठी थी मगर कितनी मादक थी.

वो लम्हे अद्भुत थे और हमारा चुंबन बहुत लंबा चला था. हमने उन सभी व्यर्थ गुज़रे पलों की कमी दूर कर दी थी जब हमारे होंठ इतने नज़दीक होते थे और हम सूखे होंठो के चुंबन से कहीं अधिक करने के इच्छुक होते थे. मुझे यकीन नही हो पा रहा था हमारे चुंबन कितने आनंदमयी थे, उसके होंठ कितने स्वादिष्ट थे, और उसने अपना चेहरा कितने जोश से मेरे चेहरे पे दबाया हुआ था.

To be Continued

Reply





Posts: 286
Topic starter
Reputable Member
Joined: 4 years ago

हम एक दूसरे को थामे चूम रहे थे. कभी नर्मी से, कभी मजबूती से, कभी आवेश से, कभी जोश से. हम ने इस पल का अपनी कल्पनाओं में इतनी बार अभ्यास किया था कि जब यह वास्तव में हुआ तो यह एकदम स्वाभिवीक था. हमने पूरी कठोरता से और गहराई से एकदुसरे को चूमा. हमारे होंठ एक दूसरे के होंठो को चूस रहे थे और हमारी जिभें आपस में लड़ रही थी. बल्कि हमने एक दूसरे की जिव्हा को भी बारी बारी से अपने मुख मन भर कर चूसा उसे अपनी जिव्हा से सहलाया.

उसके होंठ बहुत नाज़ुक थे मगर उनमे कितनी कामुकता भरी पड़ी थी. उसके चुंबन बहुत नरम थे मगर कितने आनन्ददाइ थे. उसकी जिव्हा बहुत मीठी थी मगर कितनी मादक थी.

वो लम्हे अद्भुत थे और हमारा चुंबन बहुत लंबा चला था. हमने उन सभी व्यर्थ गुज़रे पलों की कमी दूर कर दी थी जब हमारे होंठ इतने नज़दीक होते थे और हम सूखे होंठो के चुंबन से कहीं अधिक करने के इच्छुक होते थे. मुझे यकीन नही हो पा रहा था हमारे चुंबन कितने आनंदमयी थे, उसके होंठ कितने स्वादिष्ट थे, और उसने अपना चेहरा कितने जोश से मेरे चेहरे पे दबाया हुआ था.

अद्भुत संजोग प्यार का | Adbhut Sanjog Pyaar Ka | Update 17

Nude Woman in bed

अद्भुत संजोग प्यार का | Adbhut Sanjog Pyaar Ka | Update 17

जब हमने अपनी भावुकता, अपनी व्याग्रता, अपने जोश को पूर्णतया एक दूसरे को जता दिया तो मैने खुद को उससे अलग किया और उसे देखने लगा. अब मैं उसे एक नारी की तरह देख सकता था ना कि एक माँ की तरह. वो उस समय मुझे असचर्यजनक रूप से सुंदर लग रही थी और मैने उसे बताया भी कि वो कितनी खूबसूरत है, कितनी मनमोहक है, कितनी आकर्षक है.

फिर मैं धीरे से उसके कान में फुसफसाया "माँ! मैं तुम्हे नंगी देखना चाहता हूँ"

एक बार फिर से वो जवाब देने में हिचकिचा रही थी. मैने उसके गाउन की डोरियाँ पकड़ी और उन्हे धीरे से खींचा. गाँठ खुलते ही उसने अपने आप को मुझसे थोड़ा सा दूर हटा लिया. वो मुझसे बाजू भर की दूरी पर थी और उसके गाउन की डोरियाँ खुल रही थी. एक बार डोरियाँ पूरी खुल गयी तो उसने उन्हे वैसे ही लटकते रहने दिया. वो अपनी बाहें लटकाए मेरे सामने बड़े ही कामोत्तेजित ढंग से खड़ी थी. उसका गाउन सामने से हल्का सा खुल गया था. 

तब मैने जो देखा........उसे देखकर मैं विस्मित हो उठा. मुझे उम्मीद थी उसने गाउन के अंदर पूरे कपड़े पहने होंगे, मगर जब मैने अपने काँपते हाथ आगे बढ़ाए और उसके गाउन को थोड़ा सा और खोला, जैसे मैं किसी तोहफे को खोल रहा था, तब मैने जाना कि उसने अंदर कुछ भी नही पहना था. 

वो उस गाउन के अंदर पूर्णतया नग्न थी. उसने वास्तव में मेरे कमरे में आने के लिए कपड़े उतारे थे, इस बात के उलट के उसे कपड़े पहनने चाहिए थे. यह विचार अपने आप में बड़ा ही कामुक था कि वो मेरे कमरे में पूरी तरह तैयार होकर एक ही संभावना के तहत आई थी, और यह ठीक वैसे ही हो भी रहा था जैसी उसने ज़रूर उम्मीद की होगी- या योजना बनाई होगी- कि यह हो.

सबसे पहले मेरी नज़र उसके सपाट पेट पर गयी. मेरी साँस रुकने लगी जब उसका पेट और उसके नीचे का हिस्सा मेरी नज़र के सामने खुल गया. पेट के नीचे मुझे उसकी जाँघो के जोड़ पे बिल्कुल छोटे छोटे से बालों का एक त्रिकोना आकर दिखाई दिया उसके बाद उसकी जांघे और उसकी टाँगे पूरी तरह से मेरी नज़र के सामने थी. इसके बाद मैने उसके गाउन के उपर के हिस्से को खोलना शुरू किया और उसके मम्मे धीरे धीरे मेरी प्यासी नज़रों के सामने नुमाया हो गये. 

वो अतुलनीय थे. मैं जानता था माँ के मम्मे बहुत मोटे हैं, मगर जब वो मेरे सामने अपना रूप विखेरते पूरी शानो शौकत में गर्व से तन कर खड़े थे, तो मैं उनकी सुंदरता देख आश्चर्यचकित हो उठा. वो भव्य थे, मादकता से लबरेज. मैं एकदम से बैसब्रा हो उठा और तेज़ी से हाथ बढ़ा कर उन्हे पकड़ लिया. मैने अपनी हथेलियाँ उसके मम्मों के इर्द गिर्द जमा दी. उसके निपल्स मेरे हाथों के बिल्कुल बीचो बीच थे. मैने उनकी कोमलता महसूस करने के लिए उन्हे धीरे से दबाया. उसके निपल एकदम आकड़े थे. उसके मम्मे विपुल और तने हुए थे. 

मेरे मम्मे दबाते ही उसने एक दबी सी सिसकी भरी जिसने मेरे कानो में शहद घोल दिया. उसे मेरे स्पर्श में आनंद मिल रहा था और मुझे उसे स्पर्श करने में आनंद मिल रहा था. जल्द ही मेरे हाथ उसके पूरे मम्मों पर फिरने लगे.

मैने ध्यान ही नही दिया कब उसने अपना गाउन अपने कंधो से सरका दिया और उसे फर्श पर गिरने दिया. वो मेरे सामने खड़ी थी, पूरी नग्न, कितनी मोहक, कितनी चित्ताकर्षक और अविश्वशनीय तौर से मादक लग एही थी. मैने उसे फिर से अपनी बाहों में भर लिया और उसे जल्दी जल्दी और कठोरता से चूमने लगा. मैं उसके मम्मों को अपनी छाती पर रगड़ते महसूस कर रहा था और मेरे हाथ उसकी पीठ से लेकर उसकी गान्ड तक सहला रहे थे. जैसे ही मेरे हाथ उसके नग्न नितंबो पर पहुँचे तो उसके साथ साथ मेरे बदन को भी झटका लगा मैं तुरंत उन्हे सहलाने लग गया. 

मैं उसे चूम रहा था, उसके मम्मो पर अपनी छाती रगड़ रहा था, उसके नितंबो को भींच रहा था, सहला रहा था, और नितंबो की दरार में अपनी उंगलियाँ फिरा रहा था. मेरे हाथ उसकी पीठ पर घूम रहे थे, उसके कुल्हों पर, उसकी बगलों पर, उसके कंधो पर, उसकी गर्दन पर, उसके चेहरे पर, उसके बालों में, और फिर अंत में वापस उसके मम्मों पर. मैं फ़ैसला नही कर पा रहा था कि मुझे उसे चूमना चाहिए, दुलारना,-पुचकारना चाहिए या सहलाना चाहिए. मैं सब कुछ एक साथ करने की कोशिश कर रहा था, इसलिए बहुत जल्दी मेरी साँस फूलने लगी.

मैं वापस होश में आया जब मैने माँ को मेरी टी-शर्ट को नीचे से पकड़ते देखा और फिर वो उसे मेरे बदन से उतारने की कोशिश करने लगी. मेरी माँ मेरे कपड़े उतार रही थी. वो मुझे पूरा नग्न करना चाहती थी ताक़ि अपनी त्वचा से मेरी त्वचा के स्पर्श के एहसास को महसूस कर सके. माँ के इस कार्य में इतनी मादकता भरी थी कि मेरी उत्तेजना और भी बढ़ गयी, मेरा लंड पहले से भी ज़्यादा कड़ा हो गया था.

जब वो मेरी टी-शर्ट को मेरे सर से निकाल रही थी तो मैं थोड़ा सा पीछे हॅट गया. जैसे ही टी-शर्ट गले से निकली मैं वापस उससे चिपक गया और इस बार उसके नग्न मम्मे मेरी नंगी छाती पर दब गये थे. हमारा त्वचा से त्वचा का वो स्पर्श अकथनीय था. मैने अपनी पूरी जिंदगी में इतना अच्छा कभी महसूस नही किया था जितना अब कर रहा था जब मेरी माँ के मम्मे मेरी छाती पर दबे हुए थे, मेरे हाथ उसके नितंबो को थामे हुए उसे थोड़ा सा उपर उठाए हुए थे और मेरे होंठ उसके होंठो को लगभग चबा रहे थे.

आख़िरकार माँ ने मेरे जनून पर विराम लगाया. उसने मुझे चूमना बंद कर दिया, मुझे उसको सहलाने से रोक दिया, और मेरे कंधे पर सर रखकर मुझसे सट गयी. मैं उसे उसी तरह अपनी बाहों में थामे खड़ा रहा और अपनी धड़कनो पर काबू पाने की कोशिश करने लगा. हम कुछ देर ऐसे ही एक दूसरे को बाहों में लिए खड़े थे और उन सुखद लम्हो का आनंद ले रहे थे.

अंत-तेह, काफ़ी समय बाद, मैने खुद को उससे थोड़ा सा दूर हटाया. मैं उसे इतने कस कर खुद से चिपटाये हुए था कि उसके मम्मे मेरी छाती में इस तरह धँस गये थे कि मुझे उन्हे झटके से अलग करना पड़ा. मैं, माँ और बेड के बीचोबीच खड़ा था. एकतरफ को हाथ कर मैने माँ को बेड पर चढ़ने का इशारा किया. 

इसके बाद उसने जो किया वो सबसे बढ़कर कामुक चीज़ होगी जो मैने अपनी पूरी ज़िंदगी में देखी होगी. वो मेरे बेड की ओर बढ़ी और मैं उसकी नंगी काया को निहारने लगा. उसने बेड पर झुकते हुए सबसे पहले अपने हाथ उस पर रखे. उसके मम्मे उसकी छाती से नीचे की ओर लटक रहे थे और उसकी पीठ और गान्ड एक बहुत ही मनमोहक सी कर्व बना रही थी. फिर उसने अपने हाथ आगे बढ़ाए और अपना दाहिना घुटना उठाकर बेड पर रख दिया जबकि बाईं टाँग पीछे को फैलाकर, उसने अपना जिस्म अत्यंत भड़कायु, मादक, कामुक और अत्यधिक उत्तेजित मुद्रा में ताना. मैने विस्मय से उसकी नग्न देह को निहारा और मेरे लंड ने उसकी उस मुद्रा की प्रतिक्रिया में एक जोरदार झटका खाया. उसने अपना बाया घुटना उठाकर उसे भी बेड पर रख दिया. अब उसकी मुद्रा बदलकर एक चौपाए की तरह हो गयी थी, वो अब अपने हाथों और घुटनो के बल बेड पर बैठी थी, 

उसकी गान्ड हवा मे उभरकर छत की ओर उठी हुई थी, उसकी पीठ एक बेहद सुंदर सी कर्व बना रही थी, और उसके मम्मे मेरे दिल की धड़कनो के साथ हिलडुल रहे थे. वो घुटनो के बल कुछ कदम आगे बढ़ाकर मेरे तकिये के नज़दीक चली गयी. फिर उसने अपने जिस्म का अग्रभाग उपर उठाया और दो तीन सेकेंड के लिए घुटनो पर बैठ गयी. फिर, वो जल्दी से मेरे तकिये पर सर रखकर मेरे बेड पर पीठ के बल लेट गयी और मुझे देखने लगी. उसके चेहरे की भाव भंगिमाएँ और उसकी आँखे जैसे पुकार पुकार कर कह रही थी ' आओ, मेरे उपर चढ़ जाओ और मुझे चोद डालो'

वो मेरी ओर देख रही थी और उसकी आँखे उसका चेहरा जैसे कह रहा था ‘आओ और मुझे चोद डालो’

To be Continued

Reply





Posts: 286
Topic starter
Reputable Member
Joined: 4 years ago

इसके बाद उसने जो किया वो सबसे बढ़कर कामुक चीज़ होगी जो मैने अपनी पूरी ज़िंदगी में देखी होगी. वो मेरे बेड की ओर बढ़ी और मैं उसकी नंगी काया को निहारने लगा. उसने बेड पर झुकते हुए सबसे पहले अपने हाथ उस पर रखे. उसके मम्मे उसकी छाती से नीचे की ओर लटक रहे थे और उसकी पीठ और गान्ड एक बहुत ही मनमोहक सी कर्व बना रही थी. फिर उसने अपने हाथ आगे बढ़ाए और अपना दाहिना घुटना उठाकर बेड पर रख दिया जबकि बाईं टाँग पीछे को फैलाकर, उसने अपना जिस्म अत्यंत भड़कायु, मादक, कामुक और अत्यधिक उत्तेजित मुद्रा में ताना. मैने विस्मय से उसकी नग्न देह को निहारा और मेरे लंड ने उसकी उस मुद्रा की प्रतिक्रिया में एक जोरदार झटका खाया. उसने अपना बाया घुटना उठाकर उसे भी बेड पर रख दिया. अब उसकी मुद्रा बदलकर एक चौपाए की तरह हो गयी थी, वो अब अपने हाथों और घुटनो के बल बेड पर बैठी थी, 

उसकी गान्ड हवा मे उभरकर छत की ओर उठी हुई थी, उसकी पीठ एक बेहद सुंदर सी कर्व बना रही थी, और उसके मम्मे मेरे दिल की धड़कनो के साथ हिलडुल रहे थे. वो घुटनो के बल कुछ कदम आगे बढ़ाकर मेरे तकिये के नज़दीक चली गयी. फिर उसने अपने जिस्म का अग्रभाग उपर उठाया और दो तीन सेकेंड के लिए घुटनो पर बैठ गयी. फिर, वो जल्दी से मेरे तकिये पर सर रखकर मेरे बेड पर पीठ के बल लेट गयी और मुझे देखने लगी. उसके चेहरे की भाव भंगिमाएँ और उसकी आँखे जैसे पुकार पुकार कर कह रही थी ' आओ, मेरे उपर चढ़ जाओ और मुझे चोद डालो'

वो मेरी ओर देख रही थी और उसकी आँखे उसका चेहरा जैसे कह रहा था ‘आओ और मुझे चोद डालो’

अद्भुत संजोग प्यार का | Adbhut Sanjog Pyaar Ka | Last Update 18

Naked sex

अद्भुत संजोग प्यार का | Adbhut Sanjog Pyaar Ka | Last Update 18

मैं यकायक जैसे नींद से जागा. मैने फुर्ती से अपना पयज़ामा और शॉर्ट्स उतार फैंके और बेड पर चढ़कर उसके पास चला गया. उसके जिस्म में जल्द से जल्द समा जाने की उस जबरदस्त कामना से मेरा लंड पत्थर की तरह कठोर हो चुका था. उसे पाने की हसरत में मेरा जिस्म बुखार की तरह तपने लगा था. मैं उस वक़्त इतना कामोत्तेजित था कि उसके साथ सहवास करने की ख्वाहिश ने मेरे दिमाग़ को कुन्द कर दिया था. मैं उसके अंदर समा जाने के सिवा और कुछ भी सोच नही पा रहा था जैसे मेरी जिंदगी इस बात पर निर्भर करती थी कि मैं कितनी तेज़ी से उसके अंदर दाखिल हो सकता हूँ.

मैं बेड पर उसकी बगल में चला गया और उसके मम्मों को मसलने लगा. उसकी बगल में जाते ही मैने उसके होंठो को अपने होंठो में भर लिया और उन्हे चूमने और चूसने लगा और फिर मैं उसके उपर चढ़ने लगा, मैने अपने होंठ उसके होंठो पर पूरी तरह चिपकाए रखे. उसके उपर चढ़ कर मैने खुद को उसकी टाँगो के बीच में व्यवस्थित किया तो मेरा लंड उसके पेट पर चुभ रहा था. उसने अपनी टाँगे थोड़ी सी खोल दी ताकि मैं उनके बीच अपने घुटने रखकर उसके उपर लेट सकूँ.

मैं उसके बदन पर लेटे लेटे आगे पीछे होने लगा, उसके मम्मो पर अपनी छाती रगड़ने लगा, मैं बिना चुंबन तोड़े अपना लंड सीधा उपरी की ओर करना चाहता था. एक बार मेरा लंड उसकी कमर पर सीधा हो गया तो मैं अपना जिस्म नीचे को खिसकाने लगा. धीरे धीरे मैं अपना जिस्म तब तक नीचे को खिसकाता रहा जब तक मैने अपना लंड उसकी चूत के छोटे छोटे बालों में फिसलता महसूस नही किया, और नीचे जहाँ उसकी चूत थी. जल्द ही मैने महसूस किया कि मेरा लंड उसकी चूत को चूम रहा है.

मैं बेसूध होता जा रहा था. मैं अपनी माँ को चोदने के लिए इतना बेताब हो चुका था कि अब बिना एक पल की भी देरी किए मैं उसके अंदर समा जाना चाहता था. मैं उसके मुख पर मुख चिपकाए, उसे चूमते, चाटते, चुस्त हुए आगे पीछे होने लगा इस कोशिश में कि मुझे उसका छेद मिल जाए. शायद उसको भी एहसास हो गया था कि मेरा इरादा क्या है, इसीलिए उसने अपने घुटने उपर को उठाए, अपनी टाँगे खोलकर अपने पेडू को उपर को मेरे लंड की ओर धकेला.

जब मैं उसे भूखो की तरह चूमे, चूसे जा रहा था, जब मेरा जिस्म इतनी उत्कंठा से उसका छेद ढूँढ रहा था, उसने अपना हाथ हमारे बीच नीचे करके मेरा लंड अपनी उंगलियों में पकड़ लिया और मुझे अपनी अपनी चूत का रास्ता दिखाया. जैसे ही मैने अपना लंड उसकी चूत के होंठो के बीच पाया, जैसे ही मैने अपने लंड के सिरे पर उसकी चूत के गीलेपान को महसूस किया, मैने अपना लंड उसकी चूत पर दबा दिया.

मैं उस समय इतना उत्तेजित हो चुका था कि कुछ भी सुन नही पा रहा था. मेरे कान गूँज रहे थे. मैं इतना कामोत्तेजित था कि उसे अपनी पूरी ताक़त से चोदना चाहता था. उसने ज़रूर मेरी अधिरता को महसूस किया होगा जैसे मुझे यकीन है उसने ज़रूर मेरी उत्तेजना की चरम सीमा को महसूस किया था. उसने मुझे अपने अंदर लेने के लिए खुद को हिल डुल कर व्यवस्थित किया. मैने महसूस किया वो मुझे अपने होंठो के बीच सही जगह दिखा रही थी. उसने मेरा लंड अपनी चूत के होंठो पर रगड़ा और फिर उसे थोड़ा उपर नीचे किया, अंत मैं मैने महसूस किया मेरे लंड की टोपी एकदम उसकी चूत के छेद के उपर थी. फिर उसने अपने नितंब उपर को और उँचे किए और उसके घुटने उसके मम्मो से सट गये. उसने अपने हाथ मेरी पीठ पर रखे और तोड़ा सा द्वब देकर मुझे घुसने का इशारा किया.

मैने घुसाया. मैं इतनी ताक़त से घुसाना चाहता था जितनी ताक़त से मैं घुसा सकता था मगर इसके उलट मैने आराम से घुसाना सुरू किया. उसके अंदर समा जाने की अपनी ज़बरदस्त इच्छा और उसमे धीरे धीरे समाने का वो फरक अविस्वसनीय था. बल्कि एक बार मैने अपने लंड को वापस पीछे को खींचा ताकि एकदम सही तरीके से डाल सकूँ, मैं माँ की चूत में पहली बार लंड घुसने को एक यादगार बना देना चाहता था.

मैने उसकी चूत को खुलते हुए महसूस किया. वो बहुत गीली थी इसलिए घुसने में कोई खास ज़ोर नही लगाना पड़ा. मैं अपने लंड को उसकी चूत में समाते महसूस कर रहा था. मैं महसूस कर रहा था किस तेरह मेरा लंड उसकी चूत में जगह बनाते आगे बढ़ रहा था. मैने अपने लंड का सिरा उसकी चूत में समाते महसूस किया. वो एकदम स्थिर थी और उसके हाथों का मेरी पीठ पर दवाब मुझे तेज़ी से अंदर घुसा देने के लिए मज़बूर कर रहा था.

मैं उसके अंदर समा चुका था. मैने अपनी पूरी जिंदगी मैं ऐसा आनंद ऐसा लुत्फ़ कभी महसूस नही किया जितना तब कर रहा था जब मेरा लंड उसकी चूत में पूरी तेरह समा चुका था. मैने उसे इतना अंदर धकेला जितना मैं धकेल सकता था और फिर मैं उसके उपर लेट गया और उसे इस बेकरारी से चूमने लगा जैसे मैं कल का सूरज नही देखने वाला था.

मैं अपनी माँ को चूमे रहा था जब मैं अपनी माँ को चोद रहा था. मैं उसके मम्मे अपनी छाती पर महसूस कर रहा था और उसकी जांघे अपने कुल्हो पर. मैं उसकी जिव्हा अपने मुख में महसूस कर रहा था और उसकी आइडियाँ अपने नितंबो पर. मैं उसके जिस्म के अंग अंग को महसूस कर रहा था, बाहर से भी और अंदर से भी. मैं उस सनसनी को बयान नही कर सकता जो मेरे लंड से मेरे दिमाग़ और मेरे पावं के बीच दौड़ रही थी.

हम बहुत बहुत देर तक ऐसे ही चूमते रहे जबके मेरा लंड उसकी चूत में घुसा हुआ था. कयि बार मैं उसे अंदर बाहर करता मगर ज़्यादातर मैं उसे उसके अंदर घुसाए बिना कुछ किए पड़ा रहा जबके मेरा मुख उसके मुख पर अपना कमाल दिखा रहा था. मैने उसके होंठ चूमे, उसके गाल चूमे, उसकी आँखे, उसकी भवें, उसका माथा, उसकी तोड़ी, उसकी गर्दन और उसके कान की लौ को चाटा और अपने मुँह में भरकर चूसा. मैने उसके मम्मे चूसने की भी कोशिश की मगर उसके गुलाबी निपल चूस्ते हुए मैं अपना लंड उसकी चूत के अंदर नही रख पा रहा था.

आधी रात के उस वक़्त जब मुझे उसकी चूत में लंड घुसाए ना जाने कितना वक़्त गुज़ार चुका था मैने ध्यान दिया हम उस व्याग्रता से चूमना बंद कर चुके थे जिस व्याग्रता से अब वो मुझे मेरा लंड उसकी चूत मैं अंदर बाहर करने के लिए उकसा रही थी. मैने धीरे धीरे अंदर बाहर करना शुरू किया, मेरी पीठ पर उसके हाथ मुझे उसकी चूत में पंप करते रहने को उकसा रहे थे. अंत-तहा उसके हाथ मुझे और भी तेज़ी से धक्के मारने को उकसाने लगे, अब मैं उसे चूम नही रहा था बस उसे चोद रहा था. मैं अपने कूल्हे आगे पीछे करते हुए, अपना लंड उसकी चूत में तेज़ी से ज़ोर लगा कर अंदर बाहर कर रहा था. उसने मेरी पीठ पर अपनी टाँगे कैंची की तरह कस कर इस बात को पक्का कर दिया कि मेरा लंड उसकी चूत के अंदर घुसा रहे और फिसल कर बाहर ना निकल जाए. उसके मम्मे मेरे धक्कों की रफ़्तार के साथ ठुमके लगा रहे थे और उसके चेहरे पर वो जबरदस्त भाव थे जिन्हे ना मैं सिर्फ़ देख सकता था बल्कि महसूस भी कर सकता था. वो हमारी कामक्रीड़ा की मधुरता को महसूस कर रही थी और उसका जिस्म बड़े अच्छे से प्रतिक्रिया मे ताल से ताल मिला कर जबाव दे रहा था.

इसी तरह प्रेमरस में भीगे उन लम्हो में एक समय ऐसा भी आया जब उसके जिस्म में तनाव आने लगा और मैं उसके जिस्म को अकड़ते हुए महसूस कर सकता था. अपने लंड के उसकी चूत में अंदर बाहर होने की प्रतिक्रिया स्वरूप मैं उसके जिस्म को अकड़ते हुए महसूस कर सकता था. असलियत में उसे चोदने के समय उसकी प्रतिक्रिया के लिए मैं तैयार नही था जब उसका बदन वास्तव में हिचकोले खाने लगा. उसने मेरी पीठ पर अपनी टाँगे और भी ज़ोर से कस दी और उपर की ओर इतने ज़ोर से धक्के मारने लगी जितने ज़ोर से मैं नीचे को नही मार पा रहा था. उसके धक्के इतने तेज़ इतने ज़ोरदार थे कि मैं आख़िरकार स्थिर हो गया जबकि वो नीचे से अपनी गान्ड उछाल उछाल कर मेरे लंड को पूरी ताक़त से अपनी चूत में पंप कर रही थी. उसकी कराह अजीबो ग़रीब थीं. वो सिसक रही थी मगर उसकी सिसकियाँ उसके गले से रुंध रुंध कर बाहर आ रही थी.

आख़िरकार मेरे खुद को स्थिर रखने के प्रयास के काफ़ी समय बाद यह हुआ. उसने कुछ समय तक बहुत ज़ोरदार धक्के लगाए. तब उसने अपनी पूरी ताक़त से खुद को उपर और मुझ पे दबा दिया और स्थिर हो गयी. फिर वो दाएँ बाएँ छटपताती हुई चीखने लगी. वो अपने होश हवास गँवा कर चीख रही थी. वो इतने ज़ोर से सखलित हो रही थी कि उसने लगभग मुझे अपने उपर से हटा ही दिया था

आख़िरकार उसका जिस्म नरम पड़ गया और मैने उसे फिर से चोदना चालू कर दिया. इस बार धीरे धीरे और एक सी रफ़्तार से. मैं अपने जिस्म में होने वाली सनसनाहट को अच्छे से महसूस कर सकता था. मैं भी अपना स्खलन नज़दीक आता महसूस कर रहा था और मैं उस चुदाई को ज़्यादा से ज़्यादा खींचना चाहता था जब वो एकदम नरम पड़ गयी थी. मुझे उसे इस तरह चोदने में ज़्यादा मज़ा आ रहा था क्योंकि अब में अपनी सनसनाहट पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकता था और उसकी चूत में अपना पूरा लंड पेलते हुए उसकी चूत से ज़्यादा से ज़्यादा मज़ा ले सकता था.

मैने अपने अंडकोषों में हल्का सा करेंट दौड़ते महसूस किया और मुझे मालूम चल गया कि अब कुछ ही पल बचे हैं. मैं और भी तेज़ी से लंड चूत में पेलने लगा क्योंकि अब वो मज़ेदार सनसनाहट का एहसास बढ़ गया था. मेरी रफ़्तार लगातार बढ़ती जा रही थी, पूरी श्रष्टी का आनंद मैं अपने लंड के सिरे पर महसूस कर रहा था और अंत में मेरी हालत एसी थी कि मैं खुद को उसके जिस्म में समाहित कर देना चाहता था.

मैं इतने ज़ोर से स्खलित होने लगा कि मेरा जिस्म बेसूध सा हो गया. वो एक जबरदस्त स्खलन था और मैं बहुत जोश से उसके अंदर छूटने लगा. पहले मेरे लंड ने थोड़े से झटके खाएँ और फिर बहुत दबाव से मेरे वीर्य की फुहारे लंड से छूटने लगी. मुझे पक्का विश्वास है उसने भी मेरे वीर्य की चोट अपनी चूत के अंदर महसूस की होगी. एक के बाद एक वीर्य की फुहारें निकलती रही. मैं लंबे समय तक छूटता रहा. मैने खुद को पूरी ताक़त से उससे चिपटाये रखा जब तक वीर्यपतन रुक ना गया. आख़िरकार मैं उसके उपर ढह गया.

मैं थक कर चूर हो चुका था और वो मुझे अपनी बाहों में थामे हुए थी. कितना सुखदायी था जब माँ मुझे अपनी बाहों में थामे हुए थी और मेरा लंड उसकी चूत में घुसा हुआ था. आख़िरकार मेरा लंड नरम पड़ कर इतना सिकुड गया कि अब मैं उसे उसकी चूत के अंदर घुसाए नही रख सकता था. वो फिसल कर बाहर आ गया. वो मेरे लिए भी संकेत था, मैं उसके उपर से फिसल कर उसकी बगल मे लेट गया.

उसने मेरी ओर करवट ले ली और मुझे देखने लगी जबकि मैं अपनी सांसो पर काबू पाने का प्रयास कर रहा था. . आख़िरकार, जब मैं खुद पर नियंत्रण पाने में सफल हो गया, वो मुस्कराई, मेरे होंठो पर एक नरम सा चुंबन अंकित कर उसने पूछा: “तो, कैसा था? कैसा लगा तुम्हे?”

“मेरे पास शब्द नही हैं माँ कि तुम्हे बता सकूँ ये कितना अदुभूत था! कितना ज़बरदस्त! एकदम अनोखा एहसास था!”

"हूँ, सच में बहुत जबरदस्त था" वो बहुत खुश जान पड़ती थी. "मैने अपनी पूरी जिंदगी में इतना अच्छा कभी महसूस नही किया जितना अब कर रही हूँ"

वो उस मिलन हमारे मिलन के कयि मौकों में से पहला मौका था. हम ने बार बार दिल खोल कर एक दूसरे को प्यार किया. हम एक दूसरे के एहसासो को, एक दूसरे की भावनाओं को अच्छे से समझे और हम एक दूसरे के प्रति अपनी गहरी इच्छाओं को अपनी ख्वाहिशों को कामनाओं को भी बखूबी जान चुके थे और एक दूसरे को जता भी चुके थे. मेरे पिताजी के आने के बाद भी हम अपनी रात्रि दिनचर्या बनाए रखने में सफल रहे बल्कि हम ने इसका विस्तार कर इसे अपनी सुबह की दिनचर्या भी बना लिया जब मेरे पिताजी के ऑफीस के लिए निकलने के बाद वो मेरे कमरे में आ जाती और हम तब तक प्यार करते जब तक मेरे कॉलेज जाने का समय ना हो जाता. यह हक़ीक़त कि हमारा प्यार हमारा रिश्ता वर्जित है, हमारे मिलन को हमारे प्रेम संबंध को आज भी इतना आनंदमयी इतना तीब्र बना देता है जितना यह तब था जब कुछ महीनो पहले हमने इसकी शुरुआत की थी...

THE END  

Reply





Page 4 / 4