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Incest [Completed] अद्भुत संजोग प्यार का | Adbhut Sanjog Pyaar Ka

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वो मुझे देखने आई, जैसी मैने उम्मीद की थी कि वो आएगी, जैसे मेरा दिल चाहता था कि वो आए.

मैं अपने कंप्यूटर पर काम नही कर रहा था इसलिए पिछली बार का बहाना नही बना सकता था. मैं बेड पर बैठा हुआ था और सोच रहा था.

"बेटा तुम ठीक तो हो" उसने नरम स्वर में पूछा.

"हां, मैं ठीक हूँ माँ. बस थोड़ी थकावट सी महसूस हो रही है"

वो थोड़ी असमंजस में नज़र आ रही थी. मैं लेटा हुआ नही था जैसा कि मुझे होना चाहिए था अगर मैं वाकाई में बहुत थका हुआ होता. मैं तो बस बेड पर आराम से बैठा हुआ था. उसके चेहरे पर चिंता के बादल मंडराने लगे और मैं बता नही सकता था कि वो चिंता किस विषय में कर रही है. मैं उसके हाव-भाव पढ़ने की कोशिशकर रहा था कि शायद मुझे कुछ संकेत मिल जाए. मगर मुझे कुछ ना मिला.

अद्भुत संजोग प्यार का | Adbhut Sanjog Pyaar Ka | Update 6

Blink me kiss me

अद्भुत संजोग प्यार का | Adbhut Sanjog Pyaar Ka | Update 6

मुझे ऐसा लग जैसे वो कुछ कहना चाहती थी मगर वो अल्फ़ाज़ कहने के लिए वो खुद को तैयार ना कर सकी. मैं भी कुछ कहना चाहता था मगर क्या कहूँ ये मेरी समझ में नही आ रहा था. अंततः वो डोर की ओर मूडी और बिना गुडनाइट बोले जाने लगी.

उसका इस तरह बिना कुछ बोले जाना खुद में एक खास बात थी. मैं शायद उसके साथ ज़्यादती कर रहा था. मैने उसको इस समस्या से उबारने का फ़ैसला किया. मैने खुद को भी इस समस्या से बच निकलने का मौका दिया.

"अगर तुम थोड़ा सा समय दोगि तो मैं अभी आता हूँ. फिर मिलकर टीवी देखेंगे माँ" हमारी दूबिधा, हमारा संकोच, हमारी शरम, अगर हम ये सब महसूस करते थे तो इसे ख़तम करने और वापस पहले वाले हालातों में लौटने का सबसे बढ़िया तरीका यही था कि हम सब कुछ भूल कर ऐसे वार्ताव करते जैसे कुछ हुआ ही ना हो.

मैं देख सकता था कि उसके कंधों से एक भारी बोझ उतर गया था क्योंकि वो एकदम से खिल उठी थी, मुझे भी एकदम से अच्छा महसूस होने लगा. पिछली रात कुछ भी घटित नही हुआ था. हम ने कुछ भी नही किया था, और हमने ग़लत तो बिल्कुल भी कुछ नही किया था.

हम ने टीवी ऑन किया. इस बार हम ने एक दो विषयों पर हल्की फुल्की बातें भी की. किसी कारण हमारे बीच पहले के मुक़ाबले ज़्यादा हेल-मेल था. हम में कुछ दोस्ताना हो गया था. हालांकी हमारा रात्रि मिलन छोटा था मगर पहले के मुकाबले ज़्यादा अर्थपूर्ण था. हम ने इसे एक दूसरे को गुडनाइट बोल ख़तम किया और एक दूसरे के होंठो पे हल्का सा चुंबन लिया- एक हल्का, सूखा और नमालूम पड़ने वाला चुंबन. उसके बाद हम दोनो अपने अपने कमरों में चले गये.

उसके बाद के आने वाले दिनो में मैने उसके चुंबन के उस मीठे स्वाद को अपनी यादाश्त में ताज़ा रखने की बहुत कोशिश की. हमने अपनी रोज़ाना की जिंदगी वैसे ही चालू रखी जिसमे हम इकट्ठे बैठकर टीवी देखते, कुछ बातचीत करते और फिर रात का अंत एक रात्रि चुंबन से करते- एक हल्के, सूखे और नमालूम चलने वाले चुंबन से.

मैं इतना ज़रूर कहूँगा कि हमारे बीच गीले चुंबनो के पहले की तुलना में अब हेल-मेल बढ़ गया था. हमारे बीच एक ऐसा संबंध विकसित हो रहा था जिसने हमे और भी करीब ला दिया था. हम अब वास्तव में एक दूसरे से और एक दूसरे के बारे में खुल कर ज़्यादा बातचीत करने लगे थे. ऐसा लगता था जैसे उसके पास कहने के लिए बहुत कुछ था क्योंकि मैं बहुत देर तक बैठा उसकी बातें सुनता रहता जो आम तौर पर रोजमर्रा की जिंदगी की साधारण घटनायों पर होती थीं.

अब इस पड़ाव पर मैं दो चीज़ें ज़रूर बताना चाहूँगा. पहली तो यह कि बिना अपने पिता का ध्यान खींचे हमारे लिए ये कैसे मुमकिन था इतना समय एकसाथ बैठ पाना? दूसरा, अपनी दिनचर्या उसकी पिताजी के साथ दिनचर्या से अलग रखना हमारे लिए कैसे मुमकिन था?

हमारा घर इंग्लीश के यू-शॅप के आकर में बना हुआ है. मेरे पिताजी का बेडरूम लेफ्ट लेग के आख़िरी कोने पे है, जबकि किचन राइट लेग के आख़िरी कोने पे है. किचन के बाद ड्रॉयिंग रूम है जिसमे हम टीवी देखते हैं. ड्रॉयिंग रूम के बाद मेरा कमरा है. मेरे कमरे के बाद एक और कमरा है. उसके बाद पिताजी के साइड वाली लेफ्ट लेग सुरू होती है, जहाँ एक कमरा है और उसके बाद मेरे माता पिता का बेडरूम. मेरे पिताजी की साइड के कॉरिडर मे एक बड़ा ग्लास डोर था जो एक वरान्डे में खुलता था जिसके दूसरे सिरे पर मेरी तरफ के कॉरिडर और किचन के बीचो बीच था. दिन के समय माँ अपने कॉरिडर से उस ग्लास डोर का इस्तेमाल कर किचन में आती जाती थी. रात के समय वरामदे के डोर बंद होते थे इसलिए पहले उसे किचन से ड्राइंग रूम जाना पड़ता था और वहाँ से कॉरिडर में जो मेरे रूम के सामने से गुज़रता था फिर मेरे रूम के साथ वाला कमरा, फिर दूसरी तरफ का कमरा और अंत में पिताजी का कमरा.

पिताजी के कमरे से ड्रॉयिंग रूम की दूरी काफ़ी लंबी थी जिससे उनके लिए घर की इस साइड पर क्या हो रहा है, सुन पाना या देख पाना नामुमकिन था. हम कम आवाज़ में बिना उनको परेशान किए टीवी देख सकते थे जा बातचीत कर सकते थे क्योंकि टीवी की आवाज़ कभी भी उन तक नही पहुँच सकती थी और ना ही टीवी या किचन की लाइट उनके लिए परेशानी का सबब बन सकती थी. इसके बावजूद हम अपनी आवाज़ बिल्कुल धीमी रखते ता कि वो जाग ना सके. हमें देखने का एक ही तरीका था कि वो खुद ड्रॉयिंग रूम में चलकर आते मगर मेरे माता पिता के पास उनकी एक अपनी छोटी फ्रिड्ज थी और साथ ही मे चाइ और कॉफी मेकर भी उनके पास था. इसलिए जब वो खाने के बाद एक बार अपने कमरे में चले जाते थे तो उनको कभी भी इस और वापस आने की ज़रूरत नही पड़ती थी.

मैं सुबेह कॉलेज जाता था. कॉलेज से दोपेहर को लौटता था और फिर रात को ट्यूशन जाता था जबके मेरे पिता सुबह आठ से पाँच तक काम करते थे. वो सुबह छे बजे के करीब निकलते थे क्योंकि उनको थोड़ा दूर जाना पड़ता था. वो शाम को सात बजे के करीब लौट आते, खाना खाते, कुछ टाइम टीवी देखते और लगभग नौ बजे के करीब अपने रूम में चले जाते. जब मैं ट्यूशन से वापस आता तब तक पिताजी सो चुके होते. मैं नहा धोकर खाना ख़ाता और फिर टीवी देखने बैठ जाता जिसमे अब मेरी माँ भी मेरा साथ निभाने आ जाती. इससे मेरी माँ को इतना समय मिल जाता कि उसकी दिनचर्या का एक हिस्सा पिताजी के साथ गुज़रता और दूसरा हिस्सा वो मेरे साथ टीवी देख कर गुज़रती. इस दिनचर्या से उसे ना तो पिताजी की चिंता रहती और ना ही जल्द सोने की.

जैसे जैसे मैं और मेरी माँ दोनो ज़्यादा से ज़्यादा समय एक साथ बिताने लगे, धीरे धीरे हमारी आत्मीयता बढ़ने लगी. कभी कभी माँ उसी सोफे पर बैठती जिस पर मैं बैठा होता, हालांके वो दूसरी तरफ के कोने पर बैठती. यह सिरफ़ समय की बात थी कि हममे से कोई एक फिर से हमारे चुंबनो में कुछ और जोड़ने की कोशिश करता. अब सवाल यह था कि पहल कौन करेगा और दूसरा उसका जवाब कैसे देगा.

एक वार वीकेंड पर मेरे पिताजी एक सेमिनार मे हिस्सा लेने शहर से बाहर गये हुए थे. उनके जाने से हम एक दूसरे के साथ और भी खुल कर पेश आ रहे थे. मैं एक नयी फिल्म बाज़ार से खरीद लाया. हम दोनो आराम से बेफिकर होकर फिल्म देख रहे थे क्योंकि आज उसको जाने की कोई जल्दी नही थी. हम दोनो उस रात और रातों की तुलना में बहुत देर तक एक दूसरे के साथ बैठे रहे. जहाँ तक कि दिन मे खरीदी फिल्म ख़तम होने के बाद हम टीवी पर एक दूसरी फिल्म देखने लगे. उस रात वाकाई हम बहुत देर तक ड्रॉयिंग रूम में बैठे रहे. अंत में खुद मैने, और माँ ने कहा के अब हमे सोना चाहिए.

मैने डीवीडी प्लेयर से डीवीडी निकाली उसको उसके कवर में वापस डाला और फिर;टीवी बंद कर दिया. जबकि वो किचन में झूठे बर्तन सींक मे डालने लगी ताकि सुबेह को उन्हे धो सके.

अब जैसा के मैं पहले ही बता चुका हूँ हमारे घर के कॉरिडर ड्रॉयिंग रूम से सुरू होते थे, सबसे पहले मेरे रूम के सामने से गुज़रते थे, उसके बाद दो गेस्ट रूम और अंत में उसके बेडरूम पे जाकर ख़तम होता था.

मैने ड्रॉयिंग रूम का वरामदे मे खुलने वाला डोर बंद किया जबकि उसने किचन और ड्रॉयिंग रूम की लाइट्स बंद की. उसके बाद हम नीम अंधेरे में चलते हुए कॉरिडर में आ गये.

To be Continued

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एक वार वीकेंड पर मेरे पिताजी एक सेमिनार मे हिस्सा लेने शहर से बाहर गये हुए थे. उनके जाने से हम एक दूसरे के साथ और भी खुल कर पेश आ रहे थे. मैं एक नयी फिल्म बाज़ार से खरीद लाया. हम दोनो आराम से बेफिकर होकर फिल्म देख रहे थे क्योंकि आज उसको जाने की कोई जल्दी नही थी. हम दोनो उस रात और रातों की तुलना में बहुत देर तक एक दूसरे के साथ बैठे रहे. जहाँ तक कि दिन मे खरीदी फिल्म ख़तम होने के बाद हम टीवी पर एक दूसरी फिल्म देखने लगे. उस रात वाकाई हम बहुत देर तक ड्रॉयिंग रूम में बैठे रहे. अंत में खुद मैने, और माँ ने कहा के अब हमे सोना चाहिए.

मैने डीवीडी प्लेयर से डीवीडी निकाली उसको उसके कवर में वापस डाला और फिर;टीवी बंद कर दिया. जबकि वो किचन में झूठे बर्तन सींक मे डालने लगी ताकि सुबेह को उन्हे धो सके.

अब जैसा के मैं पहले ही बता चुका हूँ हमारे घर के कॉरिडर ड्रॉयिंग रूम से सुरू होते थे, सबसे पहले मेरे रूम के सामने से गुज़रते थे, उसके बाद दो गेस्ट रूम और अंत में उसके बेडरूम पे जाकर ख़तम होता था.

मैने ड्रॉयिंग रूम का वरामदे मे खुलने वाला डोर बंद किया जबकि उसने किचन और ड्रॉयिंग रूम की लाइट्स बंद की. उसके बाद हम नीम अंधेरे में चलते हुए कॉरिडर में आ गये.

अद्भुत संजोग प्यार का | Adbhut Sanjog Pyaar Ka | Update 7

Couple Kiss

अद्भुत संजोग प्यार का | Adbhut Sanjog Pyaar Ka | Update 7

आम तौर पर हमारे रात्रि चुंबन के समय मैं सोफे पर बैठा थोड़ा आगे को झुकता था और वो मेरे सामने खड़ी होकर नीचे झुक कर मेरे होंठो पर चुंबन देती थी मगर उस दिन वो उस जेगह होना था जहाँ कॉरिडर से वो अपने रूम में चली जाती और मैं अपने रूम में जो के मेरे बेडरूम के सामने होना था. हम दोनो मेरे बेडरूम के दरवाजे के आगे एक दूसरे को सुभरात्रि बोलने के लिए रुक गये. अब हमे वो चुंबन हम दोनो के एक दूसरे के सामने खड़े होकर करना था जिसमे कि उसे अपना चेहरा उपर को उठाना था जबके मुझे अपना चेहरा नीचे को झुकाना था.

उस चुंबन की आत्मीयता और गहराई पहले चुंबनो के मुक़ाबले खुद ब खुद बढ़ गयी थी, रात के अंधेरे की सरसराहट उसे रहास्यपूर्ण बना रही थी. हम इतने करीब थे कि मैं उसके मम्मो को अपनी छाती के नज़दीक महसूस कर सकता था, यह पहली वार था जब हम ऐसे इतने करीब थे. मुझे नही मालूम कि उसके मामए वाकाई मुझे छू रहे थे या नही मगर वो मेरी पसलियों के बहुत करीब थे, बहुत बहुत करीब! उसके माममे हैं ही इतने बड़े बड़े!

हम दोनो ने उस दिन काफ़ी वाक़त एकसाथ गुज़ारा था, खूब मज़ा किया था, एक दूसरे के साथ का बहुत आनंद मिला था. मन में आनंद की तरंगे फूट रही थी और जो अतम्ग्लानि मैने पिछले गीले चुंबनो को लेकर महसूस की थी वो पूरी तेरह से गायब हो चुकी थी. महॉल की रोमांचिकता में तब और भी इज़ाफा हो गया जब उसने अपना हाथ (असावधानी से) मेरे बाएँ बाजू पर सहारे के लिए रख दिया.

जब उसने उपर तक पहुँचने के लिए खुद को उपर की ओर उठाया तो मैने निश्चित तौर पे उसके भारी मम्मो को अपनी छाती से रगड़ते महसूस किया. मैने खुद को एकदम से उत्तेजित होते महसूस किया और फिर ना जाने कैसे, खुद बा खुद मेरी जीब बाहर निकली और मेरे होंठो को पूरा गीला कर दिया जब वो उसके होंठो को लगभग छूने वेल थे. वो मुझे इतने अंधेरे में होंठ गीले करते नही देख पाई होगी.

जैसे ही हमारे होंठ एक दूसरे से छुए, प्रतिकिरिया में खुद बा खुद उसका दूसरा हाथ मेरे दूसरे बाजू पर चला गया और इसे संकेत मान मेरे होंठो ने खुद बा खुद उसके होंठो पर हल्का सा दबाब बढ़ा दिया.

यह एक छोटा सा चुंबन था मगर लंबे समय तक अपना असर छोड़ने वाला था.

उसके होंठ भी नम थे. उसने उन्हे नम किया था जैसे मैने अपने होंठ नम किए थे. क्योंकि मैं उसके उपर झुका हुआ था, इसलिए जब हमारे होंठ आपस में मिले और उन्होने एक दूसरे पर हल्का सा दवाब डाला तो दोनो की नमी के कारण उसका उपर का होंठ मेरे होंठो की गहराई में फिसल गया जबकि मेरा नीचे वाला होंठ उसके होंठो की गहराई में फिसल गया. और सहजता से दोनो ने एक दूसरे के होंठो को अपने होंठो में समेटे रखा. मैने उसका मुखरस चखा और वो बहुत ही मीठा था. मुझे यकीन था उसने भी मेरा मुख रस चखा था.

जैसे ही उसको एहसास हुआ के हमारा शुभरात्रि का वो हल्का सा चुंबन एक असली चुंबन में तब्दील हो चुका है तो वो एकदम परेशान हो उठी. उसके हाथों ने मुझे धीरे से दूर किया और उसने अपना मुख मेरे मुख से दूर हटा लिया. हमारा चुंबन थोड़ा हड़बड़ी में ख़तम हुया, वो धीरे से गुडनाइट बुदबुदाई और जल्दी जल्दी अपने रूम को निकल गयी.

मैं कम से कम वहाँ दस मिनिट खड़ा रहा होऊँगा फिर थोड़ा होश आने पर खुद को घसीटता अपने बेडरूम में गया और जाकर अपने बेड पर लेट गया.

मेरे लिए यह स्वाभाविक ही था कि मैं अगले दिन कुछ बुरा महसूस करते हुए जागता. हम ने एक दूसरे को ऐसे चूमा था जैसा हमारे रिश्ते में बिल्कुल भी स्विकार्य नही था और फिर यह बात कि वो लगभग वहाँ से भागते हुए गयी थी, से साबित होता था कि हम ने कुछ ग़लत किया था. मुझे समझ नही आ रहा था कि हम एक दूसरे का सामना कैसे करेंगे

हम इसे एक बुरा हादसा मान कर भूल सकते थे और अपनी ज़िंदगी की ओर लौट सकते थे, मगर असलियत में यह कोई हादशा नही था. हम ने इसे स्वैच्छा से किया था इसमे कोई शक नही था.

1. मैने वास्तव में अपनी सग़ी माँ को चूमा था और वो जानती थी कि मैने उसे जिस तरह चूमा था वैसे मैं उसे चूम नही सकता था. यह बात कि वो लगभग वहाँ से भागती हुई गयी थी, साबित करती थी कि मेरा उसे चूमना ग़लत था और वो खुद यह जानती थी कि यह ग़लत है इसलिए उसने इस पर वहीं विराम लगा दिया इससे पहले के हम इस रास्ते पर और आगे बढ़ते.

मगर हम ने इस समस्या से निजात पाने का आसान तरीका चुना. हम ने ऐसे दिखावा किया जैसे कुछ हुआ ही नही था. वैसे भी ऐसा कुछ कैसे घट सकता था? वो मेरी माँ थी और मैं उसका बेटा. कुछ ग़लत नही घट सकता था. जो भी पछतावा था जा शरम थी वो सिर्फ़ हमारी चंचलता और शरारत की वेजह से थी.

मुझे जल्द ही समझ में आ गया के इंसानी दिमाग़ की यही फ़ितरत होती है कि वो किसी ग़लती की वेजह से होने वाली आत्मग्लानी को यही कह कर टाल देता है कि ग़लती की वेजह अवशयन्भावि थी. हम ने एक सुखद, आत्मीयता से भरपूर शाम बिताई थी इसलिए यह स्वाभाविक ही था हम एक दूसरे को खुद के इतने नज़दीक महसूस कर रहे थे कि वो चुंबन स्वाभाविक ही था. इसके इलावा इतना गहरा अंधेरा था कि हमे कुछ दिखाई भी तो नही दे रहा था.

जब एक बार पछतावे की भावना दिल से निकल गयी और उस 'शरारत' को न्यायोचित ठहरा दिया गया तो मेरे लिए माँ को नयी रोशनी में देखना बहुत मुश्किल नही रह गया था. मैं वाकाई में माँ को एक नयी रोशनी में देख रहा था. मैं उसे ऐसे रूप में देख रहा था जिसकी ओर पहले कभी मेरा ध्यान ही नही गया था.

मैने ध्यान दिया कि वो नये और आधुनिक कपड़ों की तुलना में पुराने कपड़ों में कहीं ज़्यादा अच्छी लगती है. वो नयी और महँगी स्कर्ट्स की तुलना में अपनी पुरानी फीकी पड़ चुकी जीन्स में कहीं ज़यादा अच्छी दिखती थी. वो ब्लाउस के मुक़ाबले टी-शर्ट में ज़्यादा सुंदर लगती थी. उसके बाल चोटी में बँधे ज़्यादा अच्छे लगते थे ना कि जब वो हेर सलून से कोई स्टाइल बनवा कर आती थे. यहाँ जिस खास बिंदु की ओर मैं इशारा करना चाहता हूँ वो यह है कि वो मुझे वास्तव में बहुत सुंदर नज़र आने लगी थी-----एक सुंदर नारी की तरह.

To be Continued  

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मुझे जल्द ही समझ में आ गया के इंसानी दिमाग़ की यही फ़ितरत होती है कि वो किसी ग़लती की वेजह से होने वाली आत्मग्लानी को यही कह कर टाल देता है कि ग़लती की वेजह अवशयन्भावि थी. हम ने एक सुखद, आत्मीयता से भरपूर शाम बिताई थी इसलिए यह स्वाभाविक ही था हम एक दूसरे को खुद के इतने नज़दीक महसूस कर रहे थे कि वो चुंबन स्वाभाविक ही था. इसके इलावा इतना गहरा अंधेरा था कि हमे कुछ दिखाई भी तो नही दे रहा था.

जब एक बार पछतावे की भावना दिल से निकल गयी और उस 'शरारत' को न्यायोचित ठहरा दिया गया तो मेरे लिए माँ को नयी रोशनी में देखना बहुत मुश्किल नही रह गया था. मैं वाकाई में माँ को एक नयी रोशनी में देख रहा था. मैं उसे ऐसे रूप में देख रहा था जिसकी ओर पहले कभी मेरा ध्यान ही नही गया था.

मैने ध्यान दिया कि वो नये और आधुनिक कपड़ों की तुलना में पुराने कपड़ों में कहीं ज़्यादा अच्छी लगती है. वो नयी और महँगी स्कर्ट्स की तुलना में अपनी पुरानी फीकी पड़ चुकी जीन्स में कहीं ज़यादा अच्छी दिखती थी. वो ब्लाउस के मुक़ाबले टी-शर्ट में ज़्यादा सुंदर लगती थी. उसके बाल चोटी में बँधे ज़्यादा अच्छे लगते थे ना कि जब वो हेर सलून से कोई स्टाइल बनवा कर आती थे. यहाँ जिस खास बिंदु की ओर मैं इशारा करना चाहता हूँ वो यह है कि वो मुझे वास्तव में बहुत सुंदर नज़र आने लगी थी-----एक सुंदर नारी की तरह.

अद्भुत संजोग प्यार का | Adbhut Sanjog Pyaar Ka | Update 8

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अद्भुत संजोग प्यार का | Adbhut Sanjog Pyaar Ka | Update 8

माँ कैसी दिखती है, मैं इसमे ख़ासी दिलचस्पी लेने लगा. मेरी नज़रें चोरी चोरी उसके बदन का मुआईना करने लगी जैसे वो मुझे सुंदर नज़र आने वाली किसी सुंदर लड़की क्या करती. मुझे माँ को, उसके बदन और उसके बदन की विशेषताओ का इस तरह चोरी चोरी अवलोकन करने में बहुत आनंद आने लगा. वो मुझे हर दिन ज़्यादा, और ज़्यादा सुंदर दिखने लगी और मैं भी खुद को अक्सर उत्तेजित होते महसूस करने लगा.

माँ की तरफ से भी कुछ बदलाव देखने को मिल रहा था. मैने महसूस किया कि वो अब ज़्यादा हँसमुख हो गयी थी. वो पहले की अपेक्षा ज़्यादा मुस्कराती थी, उसकी चाल मे कुछ ज़्यादा लचक आ गयी थी, और तो और मैने उसे कयि बार कुछ गुनगुनाते भी सुना था. उसके स्वभाव मैं हमारी 'उस मज़े की रात' के बाद निश्चित तौर पर बदलाव आ गया था. चाहे उसने उस रात मुझे दूर हटा दिया था और जो कुछ हमारे बीच हो रहा था उसे रोक दिया था इसके बावजूद हमारे बीच घनिष्टता पहले के मुक़ाबले बढ़ गयी थी. हम एक दूसरे के नज़दीक आ गये थे- अध्यात्मिक दृष्टिसे भी और शारीरिक दृष्टि से भी.

वो मुझे अच्छी लगने लगी थी और मैने उसे एक दो मौकों पर बोला भी था कि वो बहुत अच्छी लग रही है. उसने भी दो तीन बार मेरी प्रशंसा की थी, मतलब एक तरह से मुझे विश्वास दिलाया था कि हमारे बीच जो कुछ भी हो रहा था वो दोनो और से था ना कि सिर्फ़ मेरी और से. कम से कम मेरी सोच अनुसार तो ऐसा ही था, मैं पूरा दिन माँ के ख़यालों में ही गुम रहने लगा था. एक दिन उमंग में मैने उसके लिए चॉक्लेट्स भी खरीदे.

मैने उसके मम्मे देखने के हर मौके का फ़ायदा उठाया. उसके मम्मे इतने बढ़िया, इतने बड़े-बड़े और इतने सुंदर थे कि मेरा मन उनकी प्रशंसा से भर उठता. हो सकता है इस बात का तालुक्क इस बात से हो कि कभी उन पर मेरा हक़ था मगर वो थे बहुत सुंदर. मैं नही जानता उसका ध्यान मेरी नज़र पर गया कि नही मगर अगर उसने ध्यान दिया था तो उसने मेरी तान्क झाँक को स्वीकार कर लिया था और इसकी आदि हो गयी थी.

मेरा ध्यान उसकी पीठ पर भी गया जब भी वो मुझसे विपरीत दिशा की ओर मुख किए होती. उसकी पीठ बहुत ही सुंदर थी. उसकी गंद का आकर बहुत दिलकश था, उभरी हुई और गोल मटोल, बहुत ही मादक थी. और उसे उस मादक गान्ड का इस्तेमाल करना भी खूब आता था. उसकी चाल मैं एसी कामुक सी लचक थी कि मैं अक्सर उससे सम्मोहित हो जाता था.

एक दिन मुझे देखने का अच्छा मौका मिला, मेरा मतलब पूरी तरह खुल कर उसका चेहरा देखने का मौका. वो कुछ कर रही थी और उसकी आँखे कहीं और ज़मीन हुई थीं, इस तरह से कि वो मुझे अपनी ओर घूरते नही देख सकती थी. मैने उसका चेहरा, उसके गाल, उसके होंठ और उसकी तोढी देखी और मेरा मन उसकी सुंदरता से मोहित हो उठा. मैने ध्यान दिया कि माँ के होंठ बड़ी खूबसूरती से गढ़े हुए थे जो अपने आप में बहुत मादक थे. उन्हे देख कर चूमने का मन होता था. इनसे हमारे चुंबनो को लेकर मेरी भावनाएँ और भी प्राघड़ हो गयी थीं जब मेरे दिल में यह ख़याल आया कि हमारे रात्रि चुंबनो के समय यही वो होंठ थे जिन्हे मेरे होंठो ने स्पर्श किया था. वो याद आते ही मुँह में पानी आ गया.

मैने इस बात पर भी ध्यान दिया कि वो बहुत प्यारी, बहुत आकर्षक है. वो अक्सर कुछ न कुछ ऐसा करती थी कि मैं अभिभूत हो उठता. किचन में कुछ ग़लत हो जाने पर जिस तरह वो मुँह फुलाती थी, जब कभी किसी काम में व्यस्त होने पर फोन की घंटी बजती थी और उसकी थयोरियाँ चढ़ जाती थीं, जब वो बगीचे में किसी फूल को देखकर मुस्कराती थी. मुझे उसमे एक बहुत ही प्यारी और बहुत ही सुंदर नारी नज़र आने लगी थी.

जितना ज़्यादा मेरी उसमे दिलचपसी बढ़ती गयी उतना ही ज़्यादा मैं उसके प्रेम में पागल होता गया. 'पागल' यही वो लगेज है जो मैं समझता हूँ मेरी हालत को सही बयान कर सकता है. मगर मैं नही जानता था कि उसकी भावनाएँ कैसी थी जा वो क्या महसूस करती थी.

यह जैसे अवश्यंभावी था कि मेरे पिता को फिर से शहर से बाहर जाना था और लगता था जैसे वो इसी मौके का इंतेज़ार कर रही थी. इस बार खुद उसने हमारे रात को देखने के लिए फिल्म खरीदी थी और मैं उस फिल्म को उसके साथ देखने के लिए सहमत था. हम ने रात के खाने को बाहर के एक रेस्तराँ से मँगवाया और दोनो ने एकसाथ उस खाने का बहुत आनंद लिया. हम दोनो ने सोफे पर बैठकर फिल्म देखी, जिसमे मैं सोफे की एक तरफ बैठा हुया था और वो दूसरी तरफ. फिल्म ख़तम होने के बाद हम ने टीवी पर थोड़ा समय कुछ और देखा, अंत में हम टीवी देख देख कर थक गये. अपने कमरों में जाने की हमे कोई जल्दबाज़ी नही थी और ना ही सुभरात्रि कहने की कोई जल्दबाज़ी थी. हम तभी उठे जब और बैठना मुश्किल हो गया था और हमे उठना ही था.

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मैने इस बात पर भी ध्यान दिया कि वो बहुत प्यारी, बहुत आकर्षक है. वो अक्सर कुछ न कुछ ऐसा करती थी कि मैं अभिभूत हो उठता. किचन में कुछ ग़लत हो जाने पर जिस तरह वो मुँह फुलाती थी, जब कभी किसी काम में व्यस्त होने पर फोन की घंटी बजती थी और उसकी थयोरियाँ चढ़ जाती थीं, जब वो बगीचे में किसी फूल को देखकर मुस्कराती थी. मुझे उसमे एक बहुत ही प्यारी और बहुत ही सुंदर नारी नज़र आने लगी थी.

जितना ज़्यादा मेरी उसमे दिलचपसी बढ़ती गयी उतना ही ज़्यादा मैं उसके प्रेम में पागल होता गया. 'पागल' यही वो लगेज है जो मैं समझता हूँ मेरी हालत को सही बयान कर सकता है. मगर मैं नही जानता था कि उसकी भावनाएँ कैसी थी जा वो क्या महसूस करती थी.

यह जैसे अवश्यंभावी था कि मेरे पिता को फिर से शहर से बाहर जाना था और लगता था जैसे वो इसी मौके का इंतेज़ार कर रही थी. इस बार खुद उसने हमारे रात को देखने के लिए फिल्म खरीदी थी और मैं उस फिल्म को उसके साथ देखने के लिए सहमत था. हम ने रात के खाने को बाहर के एक रेस्तराँ से मँगवाया और दोनो ने एकसाथ उस खाने का बहुत आनंद लिया. हम दोनो ने सोफे पर बैठकर फिल्म देखी, जिसमे मैं सोफे की एक तरफ बैठा हुया था और वो दूसरी तरफ. फिल्म ख़तम होने के बाद हम ने टीवी पर थोड़ा समय कुछ और देखा, अंत में हम टीवी देख देख कर थक गये. अपने कमरों में जाने की हमे कोई जल्दबाज़ी नही थी और ना ही सुभरात्रि कहने की कोई जल्दबाज़ी थी. हम तभी उठे जब और बैठना मुश्किल हो गया था और हमे उठना ही था.

अद्भुत संजोग प्यार का | Adbhut Sanjog Pyaar Ka | Update 9

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अद्भुत संजोग प्यार का | Adbhut Sanjog Pyaar Ka | Update 9

उसने किचन की लाइट्स बंद की और दरवाजे चेक किए कि वो सही से बंद हैं जा नही जबके मैने डीवीडी से फिल्म निकाल कर उसके कवर में डाली और रिमोट्स के साथ दूसरी जगह रखी और सभी एलेकट्रॉनिक उपकर्नो को बंद कर दिया. पिछली बार की अचानक और रूखी समाप्ति के बावजूद, हमारे बीच कोई अटपटापन नही था. सब कुछ सही, सहज और शांत लग रहा था. जब हम ड्रॉयिंग रूम से उठकर कॉरिडोर की ओर चलने लगे तो मेरा दिल थोड़ी तेज़ी से धड़कने लगा. मैं आस लगाए बैठ था कि शायद आज फिर से मुझे हमारी और रातों के चुंबनो की तुलना मे थोड़ा गहरा, थोड़ा ठोस चुंबन लेने को मिलेगा. हमारी पिछली रात जब मेरे पिता घर से बाहर गये हुए थे, बहुत आत्मीयता से गुज़री थी और हमारा सुभरात्रि चुंबन हमारे आमतौर के चुंबनो से ज़्यादा ठोस था. मैं उम्मीद कर रहा था कि अगर पिछली रात से ज़्यादा नही तो कम से कम हमारे चुंबन की गहराई उस रात जितनी तो होगी, मैं उम्मीद कर रहा था कि शायद मुझे उसके मुखरस का स्वाद चखने को मिलेगा जा हो सकता है मुझे उसके होंठो के अन्द्रुनि हिस्से को महसूस करने का मौका भी मिल जाए.

चलते चलते जब हम मेरे बेडरूम के डोर के आगे रुके, तो मेरे दिल की धड़कने बहुत तेज़ हो गयी थीं. मेरी साँसे उखाड़ने लगी थीं. मगर हाए! उसने मुझे कुछ करने का मौका नही दिया. वो मेरे ज़्यादा नज़दीक भी नही आई. मैने ध्यान दिया उसने हमारे बीच एक खास दूरी बनाए रखी थी.

मुझे बहुत निराशा हुई. उसने हमारे बीच आत्मीयता को एक हद्द तक रखने का जो फ़ैसला किया था, मुझे उसका सम्मान करना था. यह मानते हुए कि हम दोनो में ऐसी आत्मीयता संभव नही हो सकती, उसके लिए अपने होंठ सूखे रखना आसान था ताकि वो चुंबन सिरफ़ सुभरात्रि की सूभकामना मात्र होता. मगर फिर भी कम से कम मैं, उसके साथ बिताई उस सुखद रात के आनंद की लहरों में खुद को तैरता महसूस कर सकता था. कम से कम हमारा साथ पहले की तुलना में ज़्यादा अर्थपूर्ण था, ज़्यादा दोस्ताना हो गया था.

वो अपने कमरे में चली गयी और मैं अपने.

सब कुछ सही था. पहले भी कुछ ग़लत घटित नही हुआ था और ना ही अब हुआ था. यह बहुत बड़ी राहत थी के हम ने शाम और रात का अधिकतर समय एक साथ बिताया था और मर्यादा की रेखा ना तो छुई गयी थी, ना ही पार की गयी थी और ना ही उसे मिटाया गया था. और हम ने पूरा समय खूब मज़ा भी किया था!

मैं राहत महसूस कर रहा था और शांति भी कि हम ने मिलकर पूरा समय अच्छे से बिताया था और इस बार उसे ना तो मुझे धकेलना पड़ा था और नही अपने रूम की ओर भागना पड़ा था. हमारा रिश्ता लगता था और भी परिपक्व हो गया था जिसने ठीक ऐसी ही पिछली रात को हुई ग़लतियों से बहुत कुछ सीख लिया था, और साथ ही उन ग़लतियों को नज़रअंदाज़ करना भी सीख लिया था .

कोई पँद्रेह बीस मिनिट बाद मेरे दरवाजे पर दस्तक हुई.

"कम इन" मैं बोला तो उसने दरवाजा खोला और अंदर दाखिल हुई.

उसने कपड़े बदल कर नाइटी पहन ली थी और तभी मुझे एहसास हुया कि हमारी रात भिन्न होने का एक कारण यह भी था कि फिल्म देखने के समय उसने जीन्स और टी-शर्ट पहनी हुई थी ना कि नाइटी जैसे वो आम तौर पर रात को हमारे इकट्ठे समय बिताने के समय पहनती थी.

मैने उसे उस नाइटी में पहले कभी नही देखा था. वो देखने में नयी लग रही थी. वो उसके मम्मो पर बड़ी खूबसूरती से झूल रही थी. नाइटी की डोरियाँ उसे इतनी अच्छे से नही संभाले हुई थीं जितने अच्छे से उसके मम्मे उसे संभाले हुए थे. उसके नंगे काढ़े और अर्धनगन जंघे मेरी आँखो के सामने अपने पुर शबाब पर थी और उसकी पतली सी नाइटी से झँकता उसका गड्राया बदन बहुत कामुक लग रह था.

"मुझे नींद नही आ रही" वो बोली. "मैने सोचा मैं तुम्हारे साथ थोड़ा और समय बिता लूँ"

“मुझे नींद नही आ रही” वो बोली “मैने सोचा क्यों ना तुम्हारे साथ कुछ और समय बिता लूँ”

उसने कहा कि उसे नींद नही आ रही और मेरा ध्यान एकदम से उसकी उस बात पर चला गया जिसमे उसने कहा था के कभी कभी वो इतनी कामोत्तेजित होती है के उसे नींद भी नही आती. क्या यह संभव था कि मेरी माँ उस समय उस पल कामोत्तेजित थी? मैं जानता था अगर वो कामोत्तेजित है तो निश्चित तौर पर मेरी वेजह से है. यह विचार कि मेरी माँ मेरे कारण इतनी कामोत्तेजित है कि वो सो भी नही सकती , ने मेरे अंदर जल रही कामोत्तेजना की आग को और भड़का दिया.

"हां, हां माँ! क्यों नही! मुझे बहुत अच्छा लगेगा. मुझे खुद नींद नही आ रही!" मैने उसे कहा.

“थॅंक्स” उसे मेरे जबाब से काफ़ी खुशी महसूस हुई लगती थी. वो मेरे कंप्यूटर वाली कुर्सी पर बैठ गयी. मुझे ऐसा लगा जैसे वो कुछ परेशान सी है. वो कुर्सी को अपने कुल्हों से दाईं से बाईं और बाईं से दाईं ओर घूमती मेरे कमरे में इधर उधर देख रही थी. मैं अपने बेड पर बैठा बस उसे देख रहा था. वो मुझे नही देख रही थी.

कुछ समय बाद उसने पूछा “तुम्हे फिल्म कैसी लगी?” उसकी साँस थोड़ी सी उखड़ी हुई थी.

“अच्छी थी. मुझे बहुत मज़ा आया” मैने उसे जबाब दिया. मुझे अच्छे से याद था वो सवाल हम कुछ समय पहले ड्रॉयिंग रूम में एक दूसरे से पूछ चुके थे मगर फिर भी मैने उससे पूछा “तुम्हे कैसी लगी माँ”

जब भी वो कुछ बोलती तो उसकी साँस उखड़ी हुई महसूस होती. मेरी साथ भी अब यही समस्या थी, मगर उतनी नही जितनी उसके साथ. जब हम वहाँ खामोशी से बैठे थे तब मुझे ध्यान आया कि उसने मेरे साथ सिरफ़ और ज़्यादा समय ही नही बिताना बल्कि उसके मन में इसके इलावा और भी कुछ था. मगर तकलीफ़ इस बात की थी इस ‘और कुछ’ का कोई सुरुआती बिंदु नही था. मैं कोई ग़लत अंदाज़ा लगाने का ख़तरा उठाना नही चाहता था और वो अंदाज़ा लगाने मैं मेरी मदद करने के लिए अपनी तरफ से कोई संकेत कोई इशारा कर नही रही थी.

To be Continued

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कुछ समय बाद उसने पूछा “तुम्हे फिल्म कैसी लगी?” उसकी साँस थोड़ी सी उखड़ी हुई थी.

“अच्छी थी. मुझे बहुत मज़ा आया” मैने उसे जबाब दिया. मुझे अच्छे से याद था वो सवाल हम कुछ समय पहले ड्रॉयिंग रूम में एक दूसरे से पूछ चुके थे मगर फिर भी मैने उससे पूछा “तुम्हे कैसी लगी माँ”

जब भी वो कुछ बोलती तो उसकी साँस उखड़ी हुई महसूस होती. मेरी साथ भी अब यही समस्या थी, मगर उतनी नही जितनी उसके साथ. जब हम वहाँ खामोशी से बैठे थे तब मुझे ध्यान आया कि उसने मेरे साथ सिरफ़ और ज़्यादा समय ही नही बिताना बल्कि उसके मन में इसके इलावा और भी कुछ था. मगर तकलीफ़ इस बात की थी इस ‘और कुछ’ का कोई सुरुआती बिंदु नही था. मैं कोई ग़लत अंदाज़ा लगाने का ख़तरा उठाना नही चाहता था और वो अंदाज़ा लगाने मैं मेरी मदद करने के लिए अपनी तरफ से कोई संकेत कोई इशारा कर नही रही थी.

अद्भुत संजोग प्यार का | Adbhut Sanjog Pyaar Ka | Update 10

Nighty Woman

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मैं फिर भी खुश था, वो वहाँ मेरे पास मोजूद थी और मैं उसे उस नाइटी में देख पा रहा था. उसके मम्मे वाकई में बहुत सुंदर थे. मैं उनसे अपनी नज़रें नही हटा पा रहा था. मुझे ताज्जुब था अगर उसने ध्यान भी नही था के किस तेरह मेरी नज़रें उसके बदन की तारीफ कर रही थी. उसने अपनी नज़रें फरश पर ज़माई हुई थी और अपने पाँव मोड़ कर कुर्सी के नीचे रखे हुए थे.

एक बार जब खामोशी बर्दाशत से बाहर हो गयी , वो कुर्सी से उठ खड़ी हो गयी और मेरे कमरे की दीवार पर लगे पोस्टर्स को देखने लगी और फिर वो मेरे बुक्ससेल को देखने लगी जिसमे मेरी कुछ किताबें पड़ी थीं. उसके कमरे में टहलने से उसकी ओर से कुछ हवा मेरी तरफ आई और वो हवा अपने साथ एक बहुत मनमोहक सी सुगंध लेकर आई जिसे मेरी इंद्रियों ने महसूस किया. मैने उससे उसी पल पूछा “माँ, तुमने आज नया पर्फ्यूम लगाया है?”

वो मेरी तरफ मूडी. उसके चेहरे पर मुस्कराहट थी और मैं नही जानता उस मुस्कराहट का कारण क्या था. लगता था जैसे मैं बस उसके बदन पर नये पर्फ्यूम की पहचान करके ही उसे खुश कर सकता था. “हां, नया है. तुम्हे अच्छा लगा?”

उसका स्वाल स्वाभाविक ही था. “हुउँ माँ, बहुत अच्छा है” मैने उसे ज्वाब दिया.

“थॅंक्स” वो बोली. वो मेरे नज़दीक आई, जो मैं यकीन से कह सकता हूँ कि उसकी कोशिश थी कि मैं उसके पर्फ्यूम की महक अच्छे से ले सकूँ. वो मेरे बेड के साथ रखे नाट्स्टॉंड के पास आई तो नाइट्स्टॉंड के टेबल लॅंप से निकलती रोशनी से उसका जिस्म नहा उठा. तब जाकर मैने ध्यान दिया कि उसके चेहरे पर हल्का सा शृंगार लगा हुया था.

अब जाकर मुझे एहसास हुया कि वो अपने कमरे में खुद को तैयार करने के लिए गयी थी क्योंकि उसे मेरे कमरे में आना था. उसने मेरे कमरे में आने की योजना पहले से बना रखी थी और आने से पहले उसने खुद को थोड़ा सा सजाया था, सँवारा था. चेतन या अचेतन मन से, उसने कोशिश की थी कि वो अच्छी लगे, जाहिर था उसने मुझे अच्छी लगने लिए किया था. और यह विचार के उसने इस लिए शृंगार किया था कि मुझे सुंदर लग सके बहुत बहुत उत्तेजक था, कामुक था.

हमारे बीच कुछ घट रहा था. इतना मैं पूरे विश्वास से कह सकता था कि हमारे बीच कुछ खास घट रहा था. मैं उसके पर्फ्यूम की सुगंध नज़दीक से लेने के बहाने उस पर थोड़ा सा झुक सकता था और हो सकता था हमारे बीच वो “कुछ खास” होने का सुरुआती बिंदु बन जाता. मगर मुझे तब सुघा जब वो नाइट्स्टॉंड से दूर हॅट गयी. मैने एक बेहतरीन मौका गँवा दिया था जो शायद उसने मुझे खुद दिया था.

तब मैने फ़ैसला किया कि मुझे बेड से उठ जाना चाहिए और उसके थोड़ा नज़दीक होने की कोशिश करनी चाहिए, सही मैं मुझे ऐसा ही करना चाहिए था. मैं जानता था अगर मैने उसके नज़दीक जाने की कोशिश की तो कुछ ना कुछ होना तय था. मुझे एक बहाना चाहिए था उठने का और बेड से उतरने का. तब हम जिस्मानी तौर पर एक दूसरे के करीब आ जाते और कौन जानता है तब क्या होता. मैं सिरफ़ एक ही बहाना बना सकता था; बाथरूम जाने का.

जब मैं बाथरूम से बाहर आया तो देखा वो फिर से उसी कुर्सी पर बैठी हुई है और मेरे बाहर आने का इंतेज़ार कर रही है. जिस अंदाज़ में वो बैठी थी, बड़ा ही कामुक था. वो कुर्सी के किनारे पर बैठी हुई थी, उसके हाथ कुर्सी को आगे से और जाँघो के बाहर से पकड़े हुए थे, उसकी टाँगे सीधी तनी हुई थी, और उसका जिस्म थोड़ा सा आगे को झुका हुआ था. उसकी नाइटी उसके घुटनो से थोड़ा सा उपर उठी हुई थी और उसकी जाँघो का काफ़ी हिस्सा नग्न था, उसकी जांघे बहुत ही सुंदर दिख रही थी.

To be Continued

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