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Incest [Completed] आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya

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“भाई, अब तुम क्या करोगे, दीदी के तो पीरियड हैं, और मेरी चूत तो बहुत सूजी हुई है, आज कैसे चुदाई करोगे…” उसके लहजे में बहुत मासूमियत थी।

मैं रोनी शकल बनाकर बोला-“हाँ… कामिनी आज मुझसे कोई प्यार नहीं करेगा। तुझको भी दर्द है। अब पता नहीं कब तेरी यह प्यारी सी चूत मुझे मिलेगी, कब मैं इसे चूसूंगा। कब इसमें अपना लंड डालूंगा…”

वो बोली-“प्रेम भाई, क्या अब भी मुझ दर्द होगा…”

मैं बोला-“अरे नहीं पगली। दीदी को नहीं देखा। अब कैसे आराम से खड़े खड़े ही मेरा पूरा लंड अपनी चूत में ले लेतीं हैं, कुछ दिन बाद तेरी चूत जब सही होगी तो खुल चुकी होगी…”

हम कुछ देर बातें करते रहे, दीदी वापिस आती नजर आईं, वो बोलीं-“तुम दोनों को आज नहाना नहीं है क्या…”

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 25

कामिनी बोली-“दीदी मुझे तो सर्दी लग रही है…”

मैं उठा और नदी की तरफ जाते हुये बोला-“दीदी मैं तो जा रहा हूँ नहाने…”

मैं नदी पर आ गया, काफी सर्दी थी। लेकिन नदी पर नहाते हुये, बड़ा मजा आया, मैं नहा कर जब वापिस पहुँचा तो क्या देखता हूँ, दीदी कामिनी की दोनों टांगें खोले बीच में बैठी थीं, कामिनी ऊपर एक पत्थर पर बैठी थी, और दीदी के बाल पकड़े हुये थी, और दीदी उसकी सूजी हुई चूत को जबान से चाट रही थीं। मैं हैरान रह गया, मैं करीब जाकर बैठ गया, और उन दोनों बहनों के मजे से भरी आवाजें सुनता रहा। मेरा लंड बेहद गरम होकर खड़ा हो चुका था।

और कुछ ही देर बाद कामिनी सुकून में आती नजर आई। और दीदी को मैंने घूँट भरते देखकर अंदाजा लगा लिया की कामिनी अभी अपनी मनी छोड़ रही है और दीदी उसे पीने में मगन हैं। जब दीदी ने कामिनी की चूत से मुँह हटाया तो मैं उनके भीगे हुये होंठ और कामिनी की चूत से टपकती एक महीन सी मनी की लकीर देखते ही समझ गया की कामिनी भरपूर तरीके से फारिग हुई है।

मैंने अपनी शरारत से मुश्कुराती दीदी को देखकर कहा-“क्यों दीदी आपने तो मुझे कामिनी की चूत को छूने से मना किया था, और खुद आप उसकी मनी पी रही हैं, चूत चाट रहीं हैं।

दीदी मुश्कुराते हुये बोलीं-“प्रेम, पता है मैं तुम्हें एक राज की बात बताती हूँ आज। तुमने कहीं किसी कुत्ते (डॉग) को कुतिया की चुदाई करते देखा है…”

मैंने नहीं में गर्दन हिला दी।

वो बोलीं-“कुत्ता जब कुतिया को चोदता है तो कुतिया की चूत में एक काँटे जैसे चीज होती है जो कुत्ते के लंड को मजबूती से पकड़ लेती है, कुत्ते का लंड उसमें फँस जाता है…”

मैं बोला-“दीदी आपको यह कैसे पता?”

वो बोलीं-“मुझे याद है हाईस्कूल में हम सारी दोस्तों का पसंदीदा काम कुत्ते और कुतिया की चुदाई देखना होता था, अगर हममें से कोई एक भी यह मंजर देखता तो अगले दिन स्कूल में सारे दोस्तों से खूब नमक मिर्च लगाकर बयान करता…”

वो बात आगे बढ़ाते बोलीं-“पता है जब कुत्ता अपनी मनी कुतिया की चूत में छोड़ देता है और कुतिया जब ठंडी हो जाती है तब वो कुत्ते के लंड को छोड़ती है। और कुत्ता वहाँ से दुम दबाकर भाग जाता है, फिर पता है। कुतिया, अपनी चूत चाट्ती है। पता है वो ऐसा क्यों करती है…”

“वो इसलिए ऐसा करती है की अपनी फटी हुई चूत से दर्द को ख़तम कर सके, और तुम लोग जान लो थूक एक कुदरती दवा है। जब मेरी चूत तुमने खोली थी तो मैं भी कामिनी से खूब चुसवाती थी और मुझे बड़ा सुकून मिलता था। तो यही मैं भी अपनी छोटी बहन की चूत चाट चाटकर उसका दर्द कम कर रही हूँ, तुम भी ऐसा कर सकते हो, लेकिन सिर्फ़ चूत चूसना, बस अंदर उंगली भी नहीं जानी चाहिए…”

मैं बोला-“लेकिन दीदी मेरे लंड की हालात खराब नहीं होगी क्या…” मैंने अपने लंड की तरफ इशारा किया जहाँ से चंद चमकती हुई बूँदें, मुँह से बाहर निकले किसी के मुँह या गरम चूत में जाने को बेताब नजर आती थीं।

दीदी बोलीं-“अरे मेरे प्यारे भाई। मैं हूँ ना…” यह कहकर वो करीब आईं, मेरी टांगें खोलकर बीच में बैठ गईं और मेरा लंड उनके गुलाबी होंठों में से होता उनके हलक की सैर करने लगा और वो उसे तेज़ी से चूसने लगीं, और कुछ ही लम्हों बाद दीदी के बाल मजबूती से जकड़े मैं उनके हलक में अपनी मनी निकाल रहा था।

मैं ठंडा हो चुका था। कामिनी ठंडी हो चुकी थी। दीदी को फिलहाल ठंडा नहीं किया जा सकता था। उनके पीरियड की वजह से।

तो दोस्तों, वक्त की रस्सी को थोड़ा सा खींचते हैं, क्योंकी वाकियात की रफ़्तार से आप यकीनन बोर हो गये होंगे। तो अब दीदी की डेट्स ख़तम हो चुकी हैं, कामिनी की चूत की सूजन ख़तम हो चुकी है, और आज रात हमारा प्रोग्राम चुदाई का है। रात का हम तीनों को इंतजार है, रात आई, हमने खाना खाया, थोड़ी शराब पी, और फिर अंदर आ गये।

To be Continued

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मैं ठंडा हो चुका था। कामिनी ठंडी हो चुकी थी। दीदी को फिलहाल ठंडा नहीं किया जा सकता था। उनके पीरियड की वजह से।

तो दोस्तों, वक्त की रस्सी को थोड़ा सा खींचते हैं, क्योंकी वाकियात की रफ़्तार से आप यकीनन बोर हो गये होंगे। तो अब दीदी की डेट्स ख़तम हो चुकी हैं, कामिनी की चूत की सूजन ख़तम हो चुकी है, और आज रात हमारा प्रोग्राम चुदाई का है। रात का हम तीनों को इंतजार है, रात आई, हमने खाना खाया, थोड़ी शराब पी, और फिर अंदर आ गये।

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 26

फिर दीदी ने शुरुआत की, कामिनी का जिस्म चूमना शुरू कर दिया। उनकी देखा देखी मैं भी कामिनी के नोकीले ऊपर को उठे हसीन मम्मे चूसने लगा। दीदी उसकी चूत के मजे लूट रहीं थीं। और कामिनी की तो, उसकी तो बस आवाजें गूंज रहीं थीं, पूरे झोंपड़े में, क्योंकी हम इस जजीरे पर तन्हा थे, इसलिए हमारी मस्ती में भरी आवाजें बहुत बुलंद हुआ करती थीं, शायद इस तरह हम अपनी तन्हाई को कम करने की एक हल्की सी कोशिस किया करते थे। तो इस वक्त भी यकीनन कामिनी की ज़ज्बात से भरी आवाजें हवाओं के दोर पर बहुत दूर तक जा रही होंगी।

हम यूँ ही कामिनी के जिस्म को चूमते, काटते रहे। फिर मैंने दीदी के मम्मों पर मुँह मारना शुरू किया, दीदी मेरा शौक देखकर बिस्तर पर जाकर लेट गईं। हम दोनों दीदी को चिपक गये, मैं चूत का रस अपने मुँह में समेटने लगा। और कामिनी अपनी चूत खड़े खड़े दीदी से चुसवाने लगी, और दीदी के मम्मों से भी खेल रही थी, कुछ देर चूत चूसने के बाद मैं दीदी के ऊपर आ गया और उनकी भूखी चूत में अपना लंड दाखिल कर दिया, और दीदी की साँस खारिज हुई। उनको बहुत सुकून का एहसास हुआ था, शायद उनको उनकी मनपसंद चीज काफी अरसे बाद मिली थी, और फिर दीदी जिस दीवानगी से चुदवाने लगीं, मेरे तो पशीने ही छूट गये, साथ ही कामिनी की चूत भी मुसीवत में आ गई। दीदी ने उसे अपने होंठों में दबा रखा था, हम दोनों दीदी की गर्मी कम करते रहे, मैं चोदता रहा, मम्मे दबाता रहा, कामिनी चूत मुँह में दिए बालों पर हाथ फेरती रही। फिर कहीं जाकर दीदी की चूत ठंडी हुई, लेकिन तब तक उनकी चूत मेरी गरम मनी से लबालब भरी हुई थी।

वो निढाल हो चुकी थीं, लेकिन कामिनी को बहुत गरम कर दिया था, कामिनी मेरा लंड चूसने लगी, जो पहले ही मेरी और दीदी की मनी से भरा हुआ था। उसने चाटकर उससे साफ कर दिया, फिर बोली-“भाई, चूत खोलो अब मेरी…”

उसके लहजे में एक मासूम सी इल्तिजा थी, ज़ज्बात की फरवानी थी, जिस्म की तलब उसकी लरजती आवाज से ही जाहिर थी। लेकिन दीदी उठ बैठी-“नहीं प्रेम आज तुम कामिनी की गान्ड चोदो…”

मैं और कामिनी चौंक पड़े।

दीदी बोलीं-“मैं कामिनी के नीचे लेटती हूँ, कामिनी घोड़ी बनेगी, मैं नीचे से इसकी चूत चाटूंगी और तुम ऊपर से इसकी गान्ड का सुराख खोल दो…”

मैं बोला-“दीदी वो तो बहुत नन्हा सा और तंग है…”

दीदी बोलीं-“तो मेरे भाई, उसी को तो खुला और कुशादा करना है तुम्हें…”

बहस के कुछ देर बाद हम तीनों उसी पोज़ीशन में आ गये, जैसा दीदी ने हमें बताया था, दीदी और कामिनी तो एक दूसरे की चूत चूसने लगे। और मैं अपनी घोड़ी बनी बहन के पीछे खड़ा अपना लंड सहला रहा था, समझ में नहीं आ रहा था की शुरुआत कहाँ से करं। दीदी ने मेरी मुश्किल हल की, मुझे करीब बुलाकर मेरे लंड का टोपा कामिनी की बंद गान्ड पर रखा।

और बोलीं-“खोल दो इसे…” यह कहकर फिर चूत की रस भरी दुनियाँ में गुम हो गईं, मैंने अपना लंड कामिनी की गान्ड के सुराख पर रखा हुआ था, और एक हाथ से गान्ड खोली हुई थी। मैं अपना पूरा जोर लगा रहा था, लेकिन लंड बार बार मुड़ जाता था। दीदी ने एक दो बार चूत से मुँह हटाकर मेरा लंड चूसकर तर कर दिया था, आख़िर टोपा अंदर चला गया।

अब रास्ता मिल गया था, और फिर मेरे बेपनाह दबाव पर लंड अंदर अंधेरी गहराइयों में जाने लगा, और कामिनी जैसे उसकी गर्दन पर छुरी फिर रही हो, ऐसे तड़पने लगी। लेकिन दीदी ने उसकी गान्ड के गिर्द हाथ डालकर उसको लाक कर दिया था, और चूत से मुँह चिपकाए हुये थी। कामिनी निकलकर भागने की कोशिस कर रही थी, लेकिन हम दोनों इसके लिए तैयार नहीं थे। वो चीख रही थी, हम दोनों को बुरा भल्ला कह रही थी, लेकिन मैं सुन नहीं रहा था, और ना मेरा लंड सुन रहा था। वो तो खून की बूँदें अपने पीछे छोड़ता नामालूम मंज़िलें तय कर रहा था।

और फिर डालने को कुछ ना रहा, पूरा लंड जड़ तक कामिनी की गान्ड में था, और वो, उसकी आँख बाहर उबली हुई थीं, चीख चीखकर आवाज बैठ गई थी, अब सिर्फ़ बेमानी सी आवाजें आ रहीं थीं। वो रो रही थी, उसका जिस्म झटके ले रहा था, शदीदी तरीन तकलीफ के बाइस, वो बेहोश हो गई। उसका सिर ढलक गया। मैंने लंड वापिस खींचा, और यकीन जानिए, क्या ही चीख की आवाज थी। जो लोग अपनी बीवियों की गान्ड का सुराख खोलने की कोशिस कर चुके हैं और कामयाब हो चुके हैं, वो इस वक्त की तकलीफ को बहुत बेहतर जानते हैं। या वो औरतें जिनकी गान्ड का सुराख किसी लंड से खुल चुका है, वो भी इस बात से आगाही रखती होंगी।

कामिनी की बेहोशी टूट गई थी। इतनी शदीद तरीन तकलीफ का अमल था यह। मेरे लंड के बाहर निकलते ही खून बहने लगा। यह खून अंदर से ही बहा था। जैसे की चूत खुलने पर अंदर से आया था। यह खून तो गान्ड के सुराख की सिकुड़न से उनमें पड़ी दरजों से बह रहा था, और मैं उसी खून अलोदा सुराख में झटके देने लगा और कुछ ही देर बाद मेरी मनी खून में मिलती हुई दीदी के चेहरे पर गिरने लगी।

अब दीदी ने कामिनी की चूत से मुँह हटाया, और कामिनी को एक तरफ लिटा दिया। वो बेहोश थी, दीदी ने शराब की बोतल ली और शराब उसकी गान्ड के सुराख पर डालने लगीं, जिससे खून रुक गया। लेकिन जलन से कामिनी की बेहोशी ख़तम होने लगी। दीदी ने शराब उसके मुँह से लगा दी, और वो पीने लगी और एक ही साँस में काफी सारी अपने हलक में उंड़ेल गई, और फिर एकदम होश में आ गई, और साथ ही चीखने लगी-“निकालो इसे… प्रेम भाई, मैं मर जाउन्गि, दीदी मेरी गान्ड फट गई है, दीदी जल्दी निकालो, मुझे जाने दो…” वो दीवानों की तरह चिल्ला रही थी।

मैं उसकी टांगें पकड़ा हुआ था। और दीदी ने उसे सीने से लगाया हुआ था। आख़िर कुछ देर बाद उसपर शायद नशा चढ़ने लगा, और वो सो गई।

To be Continued

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अब दीदी ने कामिनी की चूत से मुँह हटाया, और कामिनी को एक तरफ लिटा दिया। वो बेहोश थी, दीदी ने शराब की बोतल ली और शराब उसकी गान्ड के सुराख पर डालने लगीं, जिससे खून रुक गया। लेकिन जलन से कामिनी की बेहोशी ख़तम होने लगी। दीदी ने शराब उसके मुँह से लगा दी, और वो पीने लगी और एक ही साँस में काफी सारी अपने हलक में उंड़ेल गई, और फिर एकदम होश में आ गई, और साथ ही चीखने लगी-“निकालो इसे… प्रेम भाई, मैं मर जाउन्गि, दीदी मेरी गान्ड फट गई है, दीदी जल्दी निकालो, मुझे जाने दो…” वो दीवानों की तरह चिल्ला रही थी।

मैं उसकी टांगें पकड़ा हुआ था। और दीदी ने उसे सीने से लगाया हुआ था। आख़िर कुछ देर बाद उसपर शायद नशा चढ़ने लगा, और वो सो गई।

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 27

दोस्तों, अगली सुबह हस्ब-ए-मामोल थी, वो नाराज थी मुझसे, अब तो उससे बैठा भी नहीं जा रहा था, लेकिन कुछ दिन में सब कुछ ठीक हो गया। मुझे याद है की उसके दो दिन बाद कामिनी के पीरियड शुरू होंगये। फिर जब दीदी के पीरियड शुरू हुये तो मैं कामिनी की खूब चुदाई किया करता था, और उसकी गान्ड मारता था, अब काफी खुल गये थे उसके दोनों ही सुराख।

बहुत खूबसूरत दिन थे। हम नये नये तरीकी ढूँढते मजा करने के लिए, कभी दीदी मुझे लेटकर मेरा लंड लिए बैठ जातीं और कामिनी मेरा लंड चूस चूसकर दीदी की चूत में डालती। कभी कामिनी यही करती। दीदी की गान्ड का सुराख अभी तक बंद था। मैंने कई बार चुदाई के वक्त उनकी गान्ड के सुराख में उंगली डाली, बहुत ही गरम था, और बहुत टाइट, लेकिन दीदी ने मना कर दिया। ना जाने क्यों अभी वो अपनी गान्ड का सुराख खुलवाना नहीं चाहती थीं, जब की कामिनी की गान्ड अब काफी बड़ी हो चुकी थी, उसकी चाल अब बेहद मस्तानी हो गई थी। घोड़ी बनते ही उसकी चूत और गान्ड का खुला सुराख सामने आ जाता, चूत भी काफी मोटी हो चली थी।

और मम्मे वैसे ही हसीन थे, बस और उभर आए थे, लेकिन ना जाने क्या बात थी, दो साल हो चले थे, मुझे अपनी दोनों बहनों को चोदते, लेकिन दोनों में से कोई भी प्रेगनेंट ना हो सकी थी, और आख़िर 1951 सेप्टेंबर में दीदी प्रेगनेंट हो गई, उसको हमल ठहर गया था, और महीने गुजरने के साथ उसका पेट फूलता जा रहा था। अब वो 5 महीने की हमला है। कामिनी को अभी हमल नहीं हुआ है, इसलिए वो और मैं बहुत चुदाई करते थे, दीदी भी शरीक होती थी अपने मोटे पेट को लिए। कामिनी उनको आराम से मेरे लंड पर बिठाकर उनकी चूत में लंड डाल देती थी और फिर उन्हें आराम से फारिग करवाया करते थे हम दोनों।

मेरे दोस्तों मेरी यह दास्तान अब निहायत ही अहम मोड़ पर आ चुकी है और अब शायद बहुत जल्द मैं आपको अपनी पूरी दास्तान सुनाकर आपसे विदा लूंगा और फिर वक्त की तारीखों में कहीं खो जाऊँगा लेकिन मुझे

यकीन है की मैं चाहे रहूँ ना रहूँ, मेरे अल्फ़ाज़ ज़रूर जिंदा रहेगे। मेरी मुहब्बत की दास्तान दुनियाँ के कानों तक ज़रूर पहुँचेगी। जो मुझे अपनी दोनों बहनों से थी और अब भी है। यह कहने में मैं कोई शरम महसूस नहीं करता की मैं अपनी बहनों से बेहद मुहब्बत करता हूँ।

हमें यहाँ आए अब 14 साल हो रहे हैं। दीदी को हमल ठहर चुका है, मेरे लंड से वह हमला हो चुकी है। मेरी मनी से उसका पेट फूल चुका है। तो इन कामों का जो अंजाम होना था वोही हुआ था। चूत तो सिर्फ़ मनी मांगती है दोस्तों। वह मनी किसके भी लंड से क्यों ना छूटी हो, उसका जो काम है, चूत का जो फंक्सन है। वो तो एक मशीन है।

उसने अपना फंक्सन पूरा करना है, अब आप चाहे इस मशीन में मेटीररयल कहीं से ही लाकर क्यों ना डालें। चाहे अपने घर से लाकर या कहीं बाहर से लाकर, उसका तो काम प्रोडेक्सन करना है। और दीदी की चूत पूरी तरह फंक्सनल थी। उसने मेरी मनी से आ रहा मेटीररयल आक्सेप्ट कर लिया था । वह नहीं जानती थी की यह इसके भाई के लंड से निकली मनी थी। यह तो एक ही माँ के दो बच्चों का काम था। और दीदी की चूत अब दिन ब दिन खुलती जा रही थी। पेट के फूलने से वह बाहर को आती जा रही थी। दीदी के मम्मे अब सीने पर ढलके आ रहे थे। इस वक्त भी दीदी मजे लेने का कोई मोका हाथ से नहीं जाने देतीं थीं। उनके हमल को 8 माह हो गये थे।

अब वह चूत में तो ना लेतीं थीं। लेकिन मैं कामिनी को चोद रहा होता था तो मेरा लंड चुसती। या कामिनी से अपनी मोटी सी चूत चुसवा लिया करती थीं। मैं और कामिनी मगन थे। दीदी को अभी चोदा नहीं जा सकता था। कामिनी आजकल खूब चुद रही थी। उसका हुश्न अब खिल कर मुकम्मल हो चुका था वो भरपूर जवान हो चुकी थी। उसके बदन में बिजलियाँ भर चुकी थीं।

उसकी उमर अब 20 साल थी, और 20 साल में ही उसकी चूत काफी खुल गई थी, लब गुलाबी और बाहर को लटक से गये थे। गान्ड का सुराख भी गुलाबी था और खुला हुआ था। और मम्मे अब पूरी तरह उभर आए थे। बेहद टाइट और ऊपर को उठे हुये। बहुत मजा देती थी मेरी बहन मुझे। अब उसके पीरियड का मसला भी नहीं रहा था। पीरियड के दिनों में मैं उसकी गान्ड चोदा करता था या लंड चुसवा लिया करता था। उन दिनों बस हमारी यही मसरूफ़ियत थीं।

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उसकी उमर अब 20 साल थी, और 20 साल में ही उसकी चूत काफी खुल गई थी, लब गुलाबी और बाहर को लटक से गये थे। गान्ड का सुराख भी गुलाबी था और खुला हुआ था। और मम्मे अब पूरी तरह उभर आए थे। बेहद टाइट और ऊपर को उठे हुये। बहुत मजा देती थी मेरी बहन मुझे। अब उसके पीरियड का मसला भी नहीं रहा था। पीरियड के दिनों में मैं उसकी गान्ड चोदा करता था या लंड चुसवा लिया करता था। उन दिनों बस हमारी यही मसरूफ़ियत थीं।

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 28

और आख़िरकार 1952 शुरू हुआ। और दीदी ने एक रात एक सेहतमंद लड़के को जनम दिया। क्या ही खूबसूरत लड़का था। वह मुझ पर और दीदी पर ही गया था। यह हम दोनों का बेटा था, मैं उसका बाप और मम्मी दोनों था। दीदी की चीखें मुझ आज भी याद हैं। मैं और कामिनी घबरा गये थे। यह हम ही जानते हैं की किस तरह हमने दीदी की चूत को खोलकर वह बच्चा बाहर खींचा। और दीदी की चूत से बाहर आयी नली को अंदर धकेला जो बच्चे के साथ ही बाहर आ गई थी।

और फिर कुछ दिन गुजर गये। अब दीदी काफी संभल गईं थीं। हमारे पास वक्त गुजारने का एक नया खिलौना आ गया था। हम उस बच्चे के साथ ही लगे रहते यहाँ तक की मैं आजकल कामिनी की चुदाई भी नहीं कर रहा था। कामिनी भी हर वक्त बच्चे के साथ खेलती रहती।

हमने उसका नाम अक्षय रखा। मेरा और राधा दीदी का बेटा हमारा बेटा तेज़ी से बड़ा होने लगा। दीदी उसको दूध पिलाया करती थीं। मैं और कामिनी भी उसे कभी-2 घुमाने ले जाते लेकिन वह अभी बेहद छोटा था। फिर दीदी की छठ्ठी हमने मनाई। दीदी नहा धोकर साफ सुथरी होकर आईं। बच्चे को हमने हमारे बचाए हुये कपड़ों में लपेट रखा था। दीदी निखरी निखरी सामने बैठी थीं। रात का वक्त था। आग जलाकर हम साहिल पर ही बैठे हुये थे। गर्मी की रात थी। बेहद धीमी और मस्त हवा चल रही थी समुंदर की तरफ से। मैं और कामिनी मछली भून रहे थे, एक दूसरे से मजाक कर रहे थे।

दीदी अक्षय को लिए बैठी थीं। वह उनकी गोद में हुमक रहा था, दीदी के चेहरे पर एक अंजाना सुकून था एक चमक थी। मैं और कामिनी एक दूसरे से मजाक करते रहे, एक दूसरे के पीछे भागते, दीदी हमें मुश्कुरा कर देख रहीं थीं। अचानक कामिनी ने मुझे एक जोरदार हाथ मारा और भाग खड़ी हुई। मैं उसके पीछे भगा। हम कुछ दूर तक भागे की कामिनी का पाँव फिसल गया और वो नीचे जा गिरी। मैं भी नहीं संभला और उसके कोमल जिस्म पर गिरा। कई दिनों से मैंने अपने लंड की आग अपनी दोनों बहनों में से किसी की चूत से नहीं बुझाई थी। उसके जिस्म की रगड़ खाकर मेरा लंड एकदम ही तन गया। और फिर मैं भला क्यों रुकता। कुछ ही देर बाद कामिनी की लज़्जत से भरी बहकी बहकी आवाजें ठंडे साहिल की भीगी रेत पर हवाओं की दोर पर काफी दूर तक जा रही थी। वो सिसक रही थी, मनी छोड़ रही थी।

लेकिन मेरा लंड तो उसकी गुलाबी चूत से इंतकाम लेने पर तुला हुआ था। वह अंदर गहराइयों से हो आता बिना उसे सुकून दिए, उसकी नैय्या को पार लगाए, और उसकी बेकली बढ़ती जा रही थी। वह काट रही थी मुझे झंझोड़ रही थी। लेकिन मैं उसके मम्मे पकड़े उसकी चूत में समाया हुआ था। बस हमारी तेज चलती सांसों की आवाजें। समुंदर की मोजों का धीमा सा शोर या कुछ देर बाद कामिनी की हल्की सी नखड़ा भरी आवाज सुनाई दे जाती थी। रात तेज़ी से भागति जा रही थी। दीदी भी शायद हमारा इंतजार करके अब झोंपड़े में जा चुकी थीं। और मैं और कामिनी ठंडी रेत पर लेटे अपने जिस्मों की आग को एक दूसरे के जिस्मों में उड़ेल रहे थे। और फिर हमारे जिस्म सर्द पड़ गये, ज़ज्बात की रवानी को करार आ गया। हम एक दूसरे से लिपटे पड़े थे। चाँदनी हमारे जिस्मों को चूम रही थी।

हमारे एक दूसरे में पेवस्त जिस्म जैसे यूँ ही तखलीक किए गये थे जैसे वह कभी अलग ही ना हुये थे। और फिर ना जाने कब, सूरज की शरारती किरणों ने हमें गुदगुदा दिया और मैं आँख मलता उठ बैठा। सामने ही सूरज तूलू हो रहा था। बहुत ही हसीन नजारा था। लेकिन मैं यह मंजर तो 14 साल से देखता आ रहा था। अब मेरे लिए इसमें कोई काशिस ना थी। मैंने कामिनी के जिस्म पर नजर डाली। वह एक हाथ आँखों पर रखे बेसूध सो रही थी। मैंने उसके मम्मे प्यार से सहलाए और उसके होंठ चूमते हुये उससे उठाने लगा।

उसकी मधुर आवाज आई-“क्या है प्रेम भाई, अब तो सोने दो…”

मैं अपनी नाजुक सी कमसिन बहन को अपनी बाहों में उठाकर झोंपड़े की तरफ चल दिया और अंदर लेजाकर उसे एक घास से बने बिस्तर पर आराम से लिटा दिया। उसने उनींदी आँखों से मेरी तरफ देखा और मुश्कुरा कर आँख बंद कर लीं। वह नींद की खूबसूरत दुनियाँ में खो चुकी थी। नींद की नरम आगोश उसके लिए वहां थी, जहाँ एक खूबसूरत दुनियाँ उसकी मुंतजीर थी, जहाँ कोई हदें नहीं थी, जहाँ रास्ते की दीवार यह समुंदर नहीं था, जहाँ रास्ते दूर तक जाते थे। जहाँ सब कुछ था। लेकिन हम ना थे।

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मैं अपनी नाजुक सी कमसिन बहन को अपनी बाहों में उठाकर झोंपड़े की तरफ चल दिया और अंदर लेजाकर उसे एक घास से बने बिस्तर पर आराम से लिटा दिया। उसने उनींदी आँखों से मेरी तरफ देखा और मुश्कुरा कर आँख बंद कर लीं। वह नींद की खूबसूरत दुनियाँ में खो चुकी थी। नींद की नरम आगोश उसके लिए वहां थी, जहाँ एक खूबसूरत दुनियाँ उसकी मुंतजीर थी, जहाँ कोई हदें नहीं थी, जहाँ रास्ते की दीवार यह समुंदर नहीं था, जहाँ रास्ते दूर तक जाते थे। जहाँ सब कुछ था। लेकिन हम ना थे।

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 29

और मैं बाहर चला आया, नदी की तरफ जाने के इरादे से। फ़िज़ा गरम होने लगी थी। नदी पर मुझे दीदी बैठी नजर आई और मैं दिल ही दिल में शर्मिंदा सा हुआ। मैंने दीदी को अब नोटिस करना ही छोड़ दिया था। यहाँ तक की मैंने यह भी नहीं देखा की दीदी झोंपड़े में मौजूद हैं या नहीं। मैं तो बस कामिनी के जिस्म के हसीन नजारे लेता हुआ बाहर आ गया। वाकई यह ज़्यादती है दीदी के साथ। बेचारी ने कितने ही दिनों से मेरे लंड का जायका तक नहीं चखा था। उनकी चूत अब अंदर जा चुकी थी। मम्मे दूध आ जाने की वजह से बोझिल हो गये थे।

और गान्ड तो काफी गोल और बड़ी हो गई थी। और फिर मुझे एक ख्याल आया। अब तक दीदी की गान्ड नहीं चोद सका था। मैं दीदी की गान्ड का सुराख, उसकी नरमाहटें, उसकी गरमाहटें, उसकी गहराइयां अब तक अजनबी थीं मेरे लिए। अब तक अंजान था मैं उस हसीन दुनियाँ से, और मेरा लंड खड़ा होने लगा। दीदी मुझे गौर से देख रहीं थीं और मेरा लंड खड़ा होते देखकर मुश्कुरा उठीं। बोलीं-“अरे यह क्या कामिनी को चोदा नहीं था क्या रात में, या चूत बंद कर ली थी उसने…”

अब तक दीदी की गान्ड नहीं चोद सका था। मैं दीदी की गान्ड का सुराख, उसकी नरमाहटें, उसकी गरमाहटें, उसकी गहराइयां अब तक अजनबी थीं मेरे लिए। अब तक अंजान था मैं उस हसीन दुनियाँ से, और मेरा लंड खड़ा होने लगा। दीदी मुझे गौर से देख रहीं थीं और मेरा लंड खड़ा होते देखकर मुश्कुरा उठीं। बोलीं-“अरे यह क्या कामिनी को चोदा नहीं था क्या रात में, या चूत बंद कर ली थी उसने…”
मैं दाँत निकालता दीदी की तरफ बढ़ा, और जाकर दरख़्त की सायादार छांव में बैठ गया। काफी ठंडक थी यहाँ। मेरी टांगों के बीच लटका मेरा लंड हर लम्हा अपनी लंबाई बढ़ा रहा था और मेरे इरादों का सबूत था। मैं जाकर दीदी के पास बैठा। अक्षय कुछ दूर लेटा था। मैं दीदी के होंठों पर झुक गया। दीदी ने मेरे होंठ दबा लिए और चूसने लगीं। उनकी सांसें गरम होती मैं बखोबी महसूस कर रहा था। मैं उनके बेहद गोलाई लिए मम्मों पर आहिस्ता आहिस्ता हाथ फेर रहा था। और फिर मैंने उन बड़े मम्मों पर अपने तपते हुये लब रखे और चूसने लगा ही था की मेरे मुँह में दूध आने लगा। दूध का जायका अब अंजान हो गया था मेरे लिए। मैंने उसे थूक दिया।

दीदी बोलीं-“क्यों मजा नहीं आया…”

मैंने दूसरे मम्मे की निप्पल दबाई तो वह भी उबल पड़ी। अब मैं कुछ दूध हलक से उतार गया। लेकिन जायका पसंद नहीं आया।
इसलिए जल्द ही मुँह हटाकर अपना मुँह अपनी पसंद की जगह यानी चूत पर ले गया। दीदी की चूत जो काफी मोटी हो गई थी पिछले दिनों, अब वापिस अपनी जगह जा चुकी थी। मैं उसके लब खोलकर उसे चूसने लगा। और दीदी मजे से लेटी चुसवाती रहीं। और कुछ देर बाद मेरा लंड दीदी की चूत में आ जा रहा था। मुझे काफी तंग लगी। दीदी ने भी एक दो बार जोर से सिसकी सी ली लेकिन फिर चूत में मेरे थूक की नमी और चूत से छूटे पानी की वजह से आसानी हो गई।

दीदी ने ज़ज्बात से लरजती आवाज में कहा-“प्रेम अब मनी अंदर ना छोड़ना। वरना में दोबारा प्रेगनेंट हो जाउन्गि…”

मैंने फुलती सांसों में कहा-“दीदी फिर कहाँ निकालूं…”

दीदी बोलीं-“मेरी गान्ड का सुराख खोल दो प्रेम़…”

और मैं एकदम से सुन्न हो गया। और जल्दी से निकाल लिया अपना लंड। क्योंकी अभी तो इसको अंजान राहों का मुसाफिर बनना था। और दीदी फौरन ही घोड़ी बनकर गान्ड निकाल कर तैयार हो गईं। सुराख सामने था मेरे, बिल्कुल बंद, कंवारा, टाइट, हल्का गुलाबी और मैं बेइखतियार गान्ड के सुराख में अपनी जबान चलाने लगा। जबान की नोक थोड़ी सी अंदर जा पा रही थी। वाकई बेहद बंद था वोह, हालांकी मैंने पूरी कुवि से गान्ड को दोनों जानिब खोल रखा था।

खैर, मैं खड़ा हुआ और दीदी की गान्ड में उंगली घुसा दी बहुत ही बेदर्दी से। दीदी की चीख सुनकर दरख़्त पर बैठे परिंदे उड़ गये। मैं कुछ देर तक उंगली गान्ड के सुरख में चलाता रहा फिर अपने लंड पर हाथ फेरा। दीदी ने उसे मुँह में ले लिया और फिर थोड़ी देर बाद दीदी का थूक मेरे लंड से टपक रहा था। और इसी से मुझे दीदी की गान्ड का तंग सुराख खोलना था। मैं तैयार था और फिर वह जंगल, वहाँ का सुकून, वहाँ की खामोश फ़िज़ा, दीदी की भयानक चीखों से गूंज रही थी। और मेरा लंड गान्ड के सुराख में धंसता जा रहा था। दीदी रो रही थी, मदद को चीख रही थी, मुझे रुकने का बोल रही थी, लेकिन मेरा लंड सारी रुकावटें सारी दीवारें पार करता गहराइयों में उतरता गया। और फिर कुछ ना रह गया। सिवाए दर्द से भरी आवाजों और सिसकियाँ, जो दीदी के मुँह से निकल रहीं थीं।

फिर मैंने झटके मारने शुरू किए। खून की धार रानों से होती घास के सब्ज़ फर्श को रंगीन बनाने लगी। और दीदी दर्द से बेहाल, चीखें जा रहीं थीं। कामिनी भी आ गई वो घबरा गई थी लेकिन जब उसने दीदी को घोड़ी बने देखा और मुझे उनपर सवार गान्ड में लंड डालते देखा तो खामोशी से अक्षय को उठाकर उसको टहलाने लगी। बेचारा मासूम अपनी माँ की चीखों से परेशान था। मैं कितनी ही देर गान्ड के सुराख को चोदता रहा। मेरा लंड बुरी तरह दर्द कर रहा था। और फिर खून भरी मनी गान्ड से उबलने लगी और मैं धप से गिर गया और मेरे साथ दीदी भी।

गान्ड खुल चुकी थी दीदी की। दीदी काफी देर बाद उठीं और नदी में जाकर नहाने लगीं। फिर दीदी ने आज फिर वह दिन याद दिला दिए। दीदी-“याद है जब तुमने पहली बार मेरी चूत खोली थी। कितना दर्द हुआ था मुझे। आज तो बहुत ही तकलीफ है। और फिर दोस्तों… यह एक मामूल बन गया। अब कामिनी और दीदी दोनों ही चुदवाति थीं। फरक सिर्फ़ इतना था की दीदी अब चूत में मनी छोड़ने को मना करतीं, जबकी कामिनी की चूत मेरी मनी से भरी रहती।

To be Continued

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