आज कामिनी ने बहुत ही जल्दी अपनी मनी छोड़ दी थी, वो बहुत ही गरम थी आज। मनी छोड़ते ही उसने दोबारा मेरा मुँह चूत से लगाना चाहा, मैंने फिर मुँह लगाया ही था, की अचानक मेरा मुँह भरने लगा। कामिनी का गरम पेशाब उसकी चूत के छोटे से मुँह को चीरता हुआ मेरे मुँह को भिगो रहा था। जवानी की महक से महकता मेरी बहन का नशीला पेशाब वो काफी देर बाद मेरा मुँह भिगोता रहा और मैं सरशार हो गया। और फिर पेशाब के आख़िरी कतरे तक मैंने उस नन्हें से सुराख से चूस लिए। अब फिर उसने मेरा मुँह अपनी चूत से सख्ती से चिपकाना चाहा।
मैंने मुँह हटाया और कहा-“कामिनी चूत चुदवाएगी नहीं…”
आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 23
वो हैरत से बोली-“अभी भाई, बहुत दर्द होगा अभी तो…”
मैं बोला-“दर्द तो बाद में भी होगा, दीदी को देखा अब कितने मजे से जाता है मेरा लंड… पहली बार कितनी मुश्किल से घुस्सा था…”
वह बोली-“चलो ठीक है प्रेम भाई… अब मेरी चूत अपने लंड से खोलो ना…”
मैं बोला-“कामिनी तू अपनी टांगें खोलकर चूत को उंगलियों से खोल ले, मैं अंदर डालने की कोशिस करूँगा, दर्द हो तो बता देना…”
उसने सिर हिलाया और जो मैंने बताया था वैसे ही किया। और मैंने अपना लंड सहलाया, जो बहुत ही टाइट हो रहा था। कामिनी की चूत में जाने का खयाल ही इतना खूबसूरत था। मैं उकड़ू बैठ गया और कामिनी की चूत के ऊपरी सिरे पर उभरे हल्के गुलाबी रंग के दाने पर अपना लंड हल्के हल्के फेरने लगा। वह बहुत लज़्जत महसूस कर रही थी, फिर आहिस्ता आहिस्ता मैंने अपनी टोपी उसकी नम चूत में आगे पीछे करने लगा। इससे शायद वह बहुत लुफ्त हाँसिल कर रही थी, उसकी गान्ड हिलने लगी और वह उचक उचक कर टोपी को चूमने लगी, क्या खाश मंजर था, जब चूत का अन्द्रुनी गुलाबी हिस्सा मेरे लंड की टोपी को चूम कर पीछे जाता तो उसका मधुर रस का हल्का सा नम धब्बा मेरे लंड की टोपी पर होता, अब मैंने टोपी को थोड़ा सा अंदर धकेला, और कामिनी का जिस्म बेचैन हुआ। उसके मजे में कमी आई थी, उसने अपनी मदहोश आँखों को खोला और चूत की तरफ देखा।
“अरे प्रेम भाई आपने अभी तक अंदर नहीं डाला मैं तो समझी चूत खुल गई मेरी…”
मैं बोला-“नहीं कामिनी अभी तो मेरा लंड तेरी चूत को चूम रहा था…”
वह बोली-“भाई जल्दी से पूरा अंदर गायब करें ना जैसे दीदी के करते हैं…”
मैंने सिर हिलाया। और थोड़ा सा दबा दिया लंड को। वह एक इंच अंदर घुसता चला गया।
कामिनी की घुटी-घुटी आवाज सुनाई दी-“हाय… मैं मर गई…”
यह एक कली की आवाज थी जो गुल्लाब बनने जा रहा था, यह कमसिनी की आवाज थी जिसका हुश्न वोही लोग जानते हैं जो इन माहौल से गुजर चुके हैं। अब मैं अंदर बाहर कर रहा था लंड को और वह बेचनी से सिर को इधर उधर पटक रही थी।
मैंने फिर हिम्मत की और लंड फिसलता हुआ उस तंग सुराख में और अंदर चला गया, कामिनी की हालात गैर होने लगी, लेकिन अब मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकता था। मैंने उसके मम्मों पर हाथ रखे, और एक जबरदस्त झटके से मेरा लंड उस रेशमी घेरे को पार कर गया, मेरा लज़्जत के मारे और कामिनी का दर्द के मारे बुरा हाल हो गया, क्या ही चीख थी उसकी। दरख़्तों से चिड़ियाँ डर कर उड़ गईं। भला उन्होंने ऐसी खूबसूरत चीख पहले कब सुनी थी। एक सुरीली चीख, एक लड़की की औरत बनने की चीख। और वह चीखती ही जा रही थी, और मैं सख़्त पड़ा था। कुछ देर बाद उससे थोड़ा सुकून मिला, तो मैंने लंड बाहर खींचा। और फिर एक बार हलचल मच गई, उसकी चीखें रुक ही नहीं रहीं थीं।
और खून से तो पूरी घास तर हो गई, रंगीन हो गई, बेहद खून बह रहा था उसकी चूत से, और वह चूत पर हाथ रखे उसी तरह रो रही थी, चिल्ला रही थी, भाई क्या कर दिया। भाई मेरी चूत फट गई है कुछ करो, दीदी को बुलाओ, मैं मर रही हूँ भाई। मैंने एक लम्हे इंतजार किया और फिर उस खून बहती चूत में अपना लंड दोबारा डाल दिया, वह चीखी लेकिन इस बार उस चीख में वह दर्द ना था, और मैं जबरदस्त झटके देने लगा। वह थोड़ी देर चूत पर हाथ रखे पड़ी रही फिर हटा लिया और सख़्त पड़ी थी। अब हर झटके से उसका जिस्म खिंच जाता, और चेहरे पर तकलीफ के आसार नजर आते, और फिर मेरी मनी छूटी। उस चूत ने पहली बार मनी को चखा, पहली बार गरम गरम मनी चूत की गहराइयों में नदी के पानी की तरह बहती कहीं गायब हो गई, और मैं उसके सीने पर गिरा, उसके हसीन निप्पलस को दबाने और मम्मे चूसने लगा, क्या ही गुलाबी निपल्स थे मेरी बहन के। कुछ देर बाद मेरा लंड सिकुड़ने लगा तो मैंने आहिस्तगी से बाहर खींच लिया, और कामिनी के बराबर ही लेट गया।
कामिनी ने करवट बदली और मेरे सीने से बच्चे की तरह लिपट कर रोने लगी-“भाई बहुत दर्द हुआ है मुझे और आप निकाल ही नहीं रहे थे, अंदर डाले ही जा रहे थे…”
कामिनी अगर मैं नहीं डालता तो और दर्द होता अब देखो आराम हो गया ना, चलो अब नदी पर चलें वहाँ तुम अपनी चूत धोओगी ना तो सुकून मिलेगा…”
वह बोली-“नहीं भाई मुझसे तो चला भी नहीं जाएगा, मेरी रानें चूत को छूती हैं तो दर्द होता है…”
मैंने अपनी नाजुक सी हसीन बहन को अपने बाजुओं पर उठाया और नदी की तरफ चल पड़ा। वहाँ जाकर वह पानी में उतर गई और मैं उसकी हसीन चूत देखता रहा, किनारे पर बैठा। मैंने भी अपना खून से भरा लंड धोया, कुछ देर बाद वह अपनी चूत लिए पानी से बाहर आई, वह अजीब तरह गान्ड निकाल कर चल रही थी।
मैं बोला-“चल कामिनी अब घोड़ी बन जा मैं तुझे एक बार और चोदता हूँ तेरा दर्द बिल्कुल ख़तम हो जाएगा…”
वह घबरा गई-“नहीं भैया… अब आज नहीं… मेरी चूत सो गई है। कल चोद लेना…”
मैं बोला-“नहीं कामिनी कल तेरी चूत और सूज जाएगी, आज ही अपने सुराख को और बड़ा करवा ले दर्द कल तक कम हो जाएगा…”
वह कुछ देर बाद बहस करके आख़िर वहीं घास पर घोड़ी बन गई-“भाई अब आहिस्ता चोदना…” वह बोली।
और मैं अपनी हसीन घोड़ी के पीछे आ खड़ा हुआ, उसकी गान्ड का सुराख भी सामने था, ना जाने कब यह सुराख भी खोलूँगा मैं, अभी कितना नाजुक और बंद है, मैं बेइखतियार होकर उसकी गान्ड का सुराख चाटने लगा, उसको भी मजा आया, और वह पालतू ब्रबल्ली की तरह गान्ड हिला हिला कर चटवाने लगी। मैं खड़ा हुआ और उसकी चूत को उंगलियों से खोला, वाकई बहुत तबाही मचाई थी मेरे लंड ने वहाँ। गुलाबी रंग लाली में बदल गया था।
लेकिन दीदी की चूत भी तो ऐसी ही हुई थी। बाद में सब ठीक हो जाता है, यह सोचकर मैं पीछे उकड़ू बैठा और बगैर इंतजार किए पूरा लंड अंदर घुस्सा दिया। वह फिर दर्द से चीखने लगी, अबकी दफा वह तीनन बार अपनी मनी छोड़कर निढाल हो गई थी। मैं अभी तक झटके मार रहा था, और फिर मेरी मनी मेरी बहन की चूत को सराबोर करने लगी और हम दोनों घास के फर्श पर निढाल गिर गये। मेरी खूबसूरत बहन जवान हो गई थी, आज बहुत खूबसूरत दिन था मेरे लिए, और यह मजे मैं अब रोज लूट सकता था। अब उसकी चूत का रास्ता हमेशा के लिए मेरे लंड के लिए खुल चुका था, हम लेटे थे की दीदी हमें तलाश करती आ पहुँची, हमें यूँ पड़ा देखकर वह चौंकीं। और कामिनी की रानें खोलकर उसकी चूत के लब खोल दिए।
और खून के धब्बे देखकर बोली-“यह क्या प्रेम, चोद दिया तुमने कामिनी को…”
मैं मुश्कुराने लगा।
दीदी भी हँस पड़ीं-“शैतान एक दिन भी बगैर चूत के नहीं रह सकता था। बेचारी बच्ची की इतनी नाजुक सी चूत को फाड़ दिया, चीखी नहीं यह…”
“बहुत दर्द हुआ दीदी, भाई ने इतना बड़ा लंड पूरा डाल दिया और मैं तड़पती रही…”
दीदी कामिनी की छोटी सी चूत सहलाने लगीं, और बोलीं-“खबदाफर प्रेम… अगर तुम दो दिन तक कामिनी की चूत के पास अपना लंड लेकर गये, बच्ची है अभी… तुमने तो एक ही दिन में दो दफा उसकी चूत खोल दी, बीमार हो गई तो…”
और वाकई कामिनी को रात में दर्द से बुखार आ गया, मैं शर्मिंदा था अब। मैंने अपनी छोटी बहन की चूत किस बेददी से खोली थी, खैर अब क्या हो सकता था, अब तो खुल चुकी थी, अब तो दुनियाँ की कोई ताक़त उस चूत को पहले जैसा नहीं कर सकतीं थी, दूर से देखने से ही उसकी चूत के लब कुछ फासले पर हटते नजर आ रहे थे।
तो दोस्तों, आप मेरे साथ मेरे दास्तान के उस हिस्से पर आ गये हैं, जहाँ से मैंने अपनी जिंदगी का बेहतरीन दौर गुजारा, अब आगे के वाकियात मैं आपको बाद में क्यों ना सूनाऊूँ। मैं जरा अपने बीते दिन याद कर लूं और अपने खयालों में वापिस उसी जजीरे पर जा पहुँचू जहाँ मेरे सामने मेरी छोटी बहन कामिनी अपनी चूत पहली बार खुलवा कर साकित पड़ी थी,