Notifications
Clear all

Incest [Completed] आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya

33 Posts
3 Users
2 Likes
890 Views
Posts: 722
Topic starter
Prominent Member
Joined: 4 years ago

वो बोलीं-“प्रेम चल अब लंड डाल… हाँ अभी गान्ड के सुराख में ना डालना दोबारा चूत में ही डाल…”

मैं खड़ा हो गया। मेरा लंड तो पहले ही खड़ा हो चुका था। और मैंने अपनी घोड़ी बनी दीदी की चूत में अपना लंड डाल दिया बहुत तकलीफ हुई उन्हें लेकिन अब मैं आराम आराम से झटके दे रहा था। फिर भी हर झटके से वो अपनी गान्ड भींच लेतीं थीं। जिससे चूत और लंड को जकड़ लेती। इससे पता चलता था की लंड के उनकी चूत में चलने से उन्हें तकलीफ हो रही है।

खैर, कुछ ही देर बाद मेरी मनी दीदी की चूत में भर चुकी थी और मैं सो गया।

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 20

मुझे होश आया तो सूरज आधा सफर तय कर चुका था। मैं उठकर बाहर आया तो कामिनी और दीदी बैठी कुछ बातें कर रहीं थीं। दीदी बेहद खुश थीं। उनके चेहरे पर कोई खास बात थी। गुलाबी हो रही थीं वो।

मैं आकर बैठ गया। बोला-“दीदी अपनी चूत दिखाओ। बहुत दर्द है ना…”

दीदी ने टांगें खोल दीं-“ऊऊफफ़्… ये क्या हाल हो गया…” मैं बोला-“दीदी यह चूत इतनी सूजी हुई क्यों है।

दीदी बोलीं-“अरे अभी कुछ देर में सही हो जाएगी। अभी मैं गरम पानी से धो लूंगी ना। अभी कामिनी मुझे नहला देगी। लेकिन उससे पहले प्रेम तू मुझे एक बार फिर घोड़ी बनाकर चोद ना…”

मैं बोला-“फिर दीदी… आपको और तकलीफ तो नहीं होगी…”

दीदी बोलीं-“होगी… लेकिन इस तकलीफ का इलाज यही है की जल्दी जल्दी चुदाई की जाए वरना रात को अगर किया तो बहुत ही दर्द करेगी…”

मैं खड़ा हो गया। दीदी ने बैठे बैठे ही मेरा लंड अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगीं। फिर मुँह से निकाल कर अपने हसीन और नरम सीने के बीच की माँग में फँसा लिया और मैं आगे पीछे करने लगा। लेकिन वो मजा कहाँ जो चूत में था।

मैं बोला-“दीदी घोड़ी बनो ना…”

दीदी घोड़ी बन गई और मैंने उस सूजी हुई चूत में अपना लंड डाल दिया। दीदी चीखने लगी।

कामिनी आकर दीदी के मम्मे सहलाने लगी। उनकी गान्ड पर हाथ फेरने लगी। मुझसे बोली-“दीदी ने ही कहा था ऐसा करने को?”

फिर दीदी और कामिनी एक दूसरे के होंठ चूसने लगीं। और फिर कामिनी दीदी के मुँह के सामने उकड़ू बैठ गई और अपनी चूत चुसवाने लगी दीदी से। दीदी की भी अब चीखें रुक चुकीं थीं और मैं झटके मार रहा था। मैं और कामिनी एक साथ ही अपनी मनी छोड़कर फारिग हुये। दीदी कब फारिग होतीं थीं यह पता ही नहीं चलता था। अब तो जब मैं अपना लंड उनकी चूत से निकालता तो मेरी ही मनी बहती थी वहाँ से। दीदी उठकर लंगड़ाते हुये कामिनी का सहारा लिए सामने बैठ गई। और कामिनी उन्हें थोड़ी देर पहले गरम किए पानी से नहलाने लगी।

मैं एक तरफ बैठा खाना खा रहा था। मेरा लंड दर्द कर रहा था। मैंने कामिनी से कहा कामिनी मैं भी नहाऊंगा। मेरा पानी भी गरम कर दे। और कामिनी ने एक लकड़ी की बनी बाल्टी जो हमें जजीरे पर जहाज की बहुत सी टूटी फूटी चीजों के साथ मिली थी उसको पानी से भरकर आग पर काफी ऊपर लटका दिया। पानी गरम होने के बाद मैं नहाने बैठ गया। दीदी और कामिनी अंदर झोंपड़े में ना जाने क्या बातें कर रहे थे।

दोस्तों, अब आगे क्या कहूं… इस वक्त भी इतने सालों बाद भी मैं आपको अपनी दास्तान सुनाते हुये उस हल्के गरम पानी की हरारत अपने जिस्म पर महसूस कर रहा हूँ। ऐसा महसूस हो रहा है की बस अब मैं उठकर अपने उसी झोंपड़े में चला जाऊं जिसे अरसा हुआ मैं एक दूर दराज जजीरे पर छोड़ आया हूँ,

To be Continued

Reply





Posts: 722
Topic starter
Prominent Member
Joined: 4 years ago

मैं एक तरफ बैठा खाना खा रहा था। मेरा लंड दर्द कर रहा था। मैंने कामिनी से कहा कामिनी मैं भी नहाऊंगा। मेरा पानी भी गरम कर दे। और कामिनी ने एक लकड़ी की बनी बाल्टी जो हमें जजीरे पर जहाज की बहुत सी टूटी फूटी चीजों के साथ मिली थी उसको पानी से भरकर आग पर काफी ऊपर लटका दिया। पानी गरम होने के बाद मैं नहाने बैठ गया। दीदी और कामिनी अंदर झोंपड़े में ना जाने क्या बातें कर रहे थे।

दोस्तों, अब आगे क्या कहूं… इस वक्त भी इतने सालों बाद भी मैं आपको अपनी दास्तान सुनाते हुये उस हल्के गरम पानी की हरारत अपने जिस्म पर महसूस कर रहा हूँ। ऐसा महसूस हो रहा है की बस अब मैं उठकर अपने उसी झोंपड़े में चला जाऊं जिसे अरसा हुआ मैं एक दूर दराज जजीरे पर छोड़ आया हूँ,

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 21

दोस्तों इस वक्त जब मैं आपको यह वाकियात सुना रहा हूँ। ना वो जजीरा है, ना वो झोंपड़ा, ना राधा दीदी दुनियाँ में हैं, ना ही कामिनी, बस मैं ही बाकी हूँ। ना जाने क्यों, किस चीज का इंतजार है मुझे, बस दोस्तों अब मैं जाता हूँ अपनी दुनियाँ में जहाँ मेरी बहनें नहाने के बाद मेरा इंतजार कर रहीं हैं। बाकी दास्तान बाद में । बस मैं कह चुका, क्या सुहाने दिन थे दोस्तों, क्या हसीन मौसम था, क्या ही समा था। अब सब याद आता है तो एक टूटे हुये ख्वाब की तरह लगता है।

मेरी बहन राधा, मेरी दीवानी हो गई थी , उसका बस नहीं चलता था, की वो मुझे अपने बदन से जुदा ही ना होने दे, उसके चेहरे पर एक बेनाम सा सुकून था, एक अंजानी ख्वाहिशों की तकमील का मुकम्मल फसाना था। बहुत खुश थी वह, दिन में दो दफा तो ज़रूर हम यह चुदाई का खेल खेलते, बहुत मजा आता था, और मैं… मैं अपनी तो क्या कहूं। लगता था जैसे दुनियाँ की सारी खुशियाँ मिल गईं हों, हर चीज पा ली हो, मेरी मंज़िल सिर्फ़ यही हो। जैसे मैं आज तक जिंदा ही इसीलिए था। मैं बाज दफा अपनी गुजरी हुई जिंदगी को कोसता की आख़िर मैंने बहुत पहले ही यह लज़्जतें हाँसिल क्यों नहीं कर लीं। मैं तो आसमान पर पहुँच हुआ था, और दीदी तो हर वक्त चुदाई के लिए तैयार… मुझे याद है की हमें उन दिनों सिर्फ़ एक दूसरे के सिवा कुछ ना सूझता था, और मुझे यह कहते हुये अब बड़ा अफसोस हो रहा है की उन दिनों हम अपनी बहन कामिनी को बिल्कुल ही भूल गये थे, वो दूर किसी पत्फथर पर बैठी हमें एक दूसरे के साथ मगन देखा करती थी उसके दिल की क्या हालात थी हम दोनों ही बेखबर थे।

मुझे नहीं याद है की जिस दिन मैंने पहली बार दीदी को चोदा तो उसके बाद कामिनी की चूत चूसी या दीदी ने ही उसकी मनी निकलवाई हो। वो तो बस खामोशी से फितरत के कवानीन से वाकफियत हाँसिल कर रही थी। फितरत का सिखाया हुआ सबक याद कर रही थी। अभी पाया नहीं था उसने इस सबक को, लेकिन उस सबक को अपनी तमाम तर ख़ासूसियात के साथ देख रही थी, और फिर एक दिन जब मैं सुबह उठा तो दीदी को पैंटी पहने पाया, और इसका मतलब मैं अच्छी तरह जानता था। अब दीदी की चूत इस्तेमाल नहीं हो सकतीं थी, उनके पीरियड शुरू हो चुके थे। उस दिन जब हम नहाने गये तो दरख़्त के नीचे लेटे हुये थे। दीदी हस्ब-ए-मामूल मेरा लंड चूम रहीं थीं, उससे खेल रहीं थीं, सामने ही नदी में कामिनी का हसीन बदन बिजलियाँ चमका रहा था, पानी में आग लगा रहा था। मैं उसके गोरे बदन को पानी से निकलते और गायब होते देख रहा था। बहुत हसीन नजारा था।

अचानक दीदी बोलीं-“प्रेम लगता है मैं अभी तक पेट से नहीं हुई…”

मैंने चौंक कर पूछा-“क्यों दीदी?”

दीदी बोलीं-“अगर मैं हमला हो जाती तो मेरे पीरियड थोड़ी होते…”

मैं सिर हिलाकर रह गया।

कामिनी अब नहा कर आ चुकी थी और हमारे साथ ही बैठी थी। दीदी ने भी, मेरे लंड से खेलना बंद कर दिया था। लेकिन वो खड़ा हुआ था, भूखा था शायद।

कामिनी मेरे लंड को देखते बोली-“भाई… दीदी ने मनी नहीं निकाली तुम्हारी। देखो अभी तक खड़ा है…”

मैं बोला-“नहीं कामिनी, अभी नहीं निकली है मेरी मनी…”

और दोस्तों अब मेरी मनी ना जाने क्या हुआ था, बहुत टाइम लेती थी निकलने में, यहाँ तक की मैं दीदी की चुदाई के वक्त दीदी की चूत को तीन या चार बार दीदी की मनी से भरता महसूस करता लेकिन मेरी मनी बहुत ही देर में निकलती, और आप जानिए मर्द औरत की मनी छूटते बहुत ही आराम से महसूस कर सकता है। लंड चूत में बहुत ही फ्री हो जाता है और फिर फच… फच… की आवाजें आती हैं, कुछ देर बाद मनी खुश्क हो जाती है तो फिर औरत दोबारा साथ देती है।

दीदी दोबारा बोलीं-“अब इन पीरियड के बाद प्रेम तुम मुझको हमला ज़रूर कर देना…”

मैं बोला-“दीदी मैं कैसे करं आप बताएं। आपने जिस तरह सिखाया है, मैं तो उसी तरह आप की चूत चोदता हूँ…”

दीदी बोलीं-“हाँ… बस यूँ ही करते रहो, पीरियड के बाद चुदाई में प्रेग्नेन्सी के चान्सेस बहुत बढ़ जाते हैं…”

अचानक मुझे एक ख्ययल आया। मैंने दीदी से पूछा-“दीदी आपको यह सारी बातें कैसे पता चल गईं…”

दीदी मुस्कुरई-“प्रेम तुम और कामिनी मेरी सामने ही पैदा हुये हो, यानी जब तुम दोनों माँ के पेट में थे, जब मैं ही हुआ करती थी माँ के साथ। बहुत सी बातें तो मुझे उसी दौरान पता चलीं। फिर कामिनी की पेदाइश के वक्त तो मैं माँ के साथ कमरे में ही थी, जहाँ कामिनी पैदा हुई थी…” बाकी बातें मुझे माँ ने खुद ही यहाँ आने से कुछ साल पहले बताईं थीं, क्योंकी उनके ख्याल में मेरा यह जानना ज़रूरी था। क्योंकी मेरी शादी होने वाली थी।

मैं बोला-“दीदी, माँ ने तुम्हें यह चुदाई के और मनी चूसने के तरीके बताए थे…”

दीदी बोलीं-“नहीं पगले, यह तो मैंने एक मैगजीन में देखें हैं, आओ मैं तुम दोनों को दिखाती हूँ…”

दीदी हमें उसी संदूक की तरफ लिए जा रहीं थीं, जो हमें जहाज के सामान से मिला था। और जो दीदी के कब्ज़े में ही रहता था, दीदी ने उसे खोला और उसमें से अंदर हाथ डालकर एक मोटा सा मैगजीन निकाला-“यह देखो यह मुझे इसी सामान से मिला था। इतने साल मैंने छुपाकर रखा। तुम दोनों छोटे थे और यहाँ से निकलने की कुछ उम्मीद थी, लेकिन अब तुम दोनों हर बात जान चुके हो…”

उस मैगजीन में बहुत सी तस्वीरें थीं, ब्लैक & वाइट थीं। उसमें मर्द और औरत के ताल्लुक़ात को तस्वीरों की शकल में दिखाया गया था, और कई जगह दो औरतें एक मर्द के साथ और कहीं एक से ज्यादा मर्द दो औरतों के साथ चुदाई करते नजर आए। और कहीं कहीं औरत की गान्ड के सुराख में लंड डालते हुये दिखाया गया, औरत का दर्द से बुरा हाल था।

मैंने मैगजीन देखते पूछा-“दीदी इसमें दो औरतों को एक ही मर्द चोद रहा है, मैं आपको और कामिनी को एक साथ चोद सकता हूँ क्या?”

दीदी बोलीं-“नहीं प्रेम… यह मॉडल्स हैं। देखो नीचे क्या हिदायत लिखी हैं, इसमें चुदाई एक ही औरत की हो रही है दूसरी सिर्फ़ उन दोनों को मनी छोड़वाने में मदद कर रही है…”

“लेकिन दीदी इस तरह मैं आप दोनों के साथ कर तो सकता हूँ ना…”

दीदी बोलीं-“क्यों नहीं, हम करेंगे ऐसे ही…” फिर वो बोलीं-“अच्छा प्रेम अब तुम दोनों जाओ। आज मैं तो जा रही हूँ लेटने मेरा सिर दर्द कर रहा है कुछ देर सो जाउन्गि। तुम दोनों घूम आओ जंगल की तरफ, हाँ उस हिस्से की तरफ नहीं जाना जहाँ हम नहीं गये कभी…”

मैं और कामिनी हाथ पकड़ कर आगे बढ़ गये, और मैंने चिल्ला कर दीदी से कहा-“अरे दीदी… बच्चे नहीं हैं हम अब…”

और दीदी हँसते हुये झोंपड़े की तरफ बढ़ गईं। मैं और कामिनी बढ़ते गये एक दूसरे का हाथ थामे, नदी से आगे निकल गये।

To be Continued

Reply





Posts: 722
Topic starter
Prominent Member
Joined: 4 years ago

दीदी बोलीं-“क्यों नहीं, हम करेंगे ऐसे ही…” फिर वो बोलीं-“अच्छा प्रेम अब तुम दोनों जाओ। आज मैं तो जा रही हूँ लेटने मेरा सिर दर्द कर रहा है कुछ देर सो जाउन्गि। तुम दोनों घूम आओ जंगल की तरफ, हाँ उस हिस्से की तरफ नहीं जाना जहाँ हम नहीं गये कभी…”

मैं और कामिनी हाथ पकड़ कर आगे बढ़ गये, और मैंने चिल्ला कर दीदी से कहा-“अरे दीदी… बच्चे नहीं हैं हम अब…”

और दीदी हँसते हुये झोंपड़े की तरफ बढ़ गईं। मैं और कामिनी बढ़ते गये एक दूसरे का हाथ थामे, नदी से आगे निकल गये।

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 22

कामिनी का बदन धूप में दमक रहा था। हम दोनों बातें करते हुये जा रहे थे। वो मुझको बता रही थी, की उसने पिछले दिनों एक बहुत ही खूबसूरत चिड़िया (बर्ड) पकड़ी है, बहुत ही प्यारी आवाज है।

लेकिन मैं तो अपनी हसीन बहन के जलवों में खोया हुआ था, उसके लचकते जिस्म की मस्त और कमसिन जवानी की तड़प में गुम हुआ जा रहा था। क्या उठान थी उसके कमसिन बदन की, क्या कटाव थे, क्या लचक थी, कमर जैसे लचक लचक जाती थी, बेहद पतली और मजबूत कमर। इस कमर को पकड़ कर कामिनी की चूत में लंड डालते कितना मजा मिलेगा। मैं सोचने लगा, मेरी सोच अब एक मर्द की सोच थी, जो तमाम राज और औरत के जिस्म के सारे नशे-ओ-फराज जानता था। अब मैं 6 साल का बच्चा ना था। 20 साल का होने को था, और वो भी सत्त्रहवे (17) साल में दाखिल हो चुकी थी।

क्या नशा होगा इस की चूत में, मेरी नजर उसकी बल खाती कमर से फिसलती हुई उसकी रानों के दरम्यान दबी हुई कयामत की तरफ गई, जो भरी भरी गदराई हुई रानों से इस वक्त रगड़ खा रही थी, क्या गजब की पतली लकीर थी दोनों रानों के बीच। दोनों फैले हिस्से एक लम्हे को बाहर आये और अगले ही लम्हे छुप जाते, जैसे चंद बदलियों में कहीं खो गया हो, बहुत ही कमसिन और खूबसूरत चूत थी मेरी बहन की और उतनी ही नरम-ओ-नाजुक, अब तक मैं इस चूत को चुसता ही रहा था। लेकिन अब मैं अलग ही नज़रिए से सोच रहा था, अब तक मेरे लबों ने उसकी कंवारी चूत का पानी चूसा था, उसकी गरम मनी मेरे ही होंठों ने पहली बार चूसी थी, लेकिन वो चूत, उसकी गुलाबी रंगत। उसके कोमल लब, अंदर की हयात बख्श गर्मी, और महकती मनी अभी कंवारी थी, वो अभी कमसिन लड़की ही थी, अभी गुलाब नही बनी थी। वो तो अभी एक कली थी, जो बस खिलने को ही थी, और जब ये कली खिलेगी तो दुनियाँ महक जाएगी मेरी, कितना ही हसीन खयाल था चलते चलते ही मेरा लंड खड़ा हो गया और रानों के बीच लटकता हुआ टकराने लगा।

उससे देखकर कामिनी बोली-“क्या हुआ प्रेम दीदी की चूत याद आ रही है…”

इस वक्त हम काफी दूर आ चुके थे जंगल में। मैंने कामिनी का हाथ पकड़ कर उससे झटके से सीने से लगाते हुये कहा-“नहीं कामिनी मुझे तो बस तेरी चूत चाहिए…”

वो बोली-“मेरी चूत, तुम्हें तो दीदी की चूत पसंद है ना भाई…”

मैंने कहा-“यह तुझसे किसने कहा…”

वो बोली-“किसी ने नहीं… लेकिन तुम अब हर वक्त दीदी की चूत में ही डालते रहते हो…”

मैं बोला-“नहीं कामिनी सच कह रहा हूँ, तेरी चूत जितनी खूबसूरत और खुशबूदर है दीदी की थोड़ी है…” यह कहकर मैं घुटनों के बल बैठा और अपनी छोटी बहन की बंद चूत में जबान घुसाने लगा, उसने टांगें थोड़ी सी खोल दीं, अब जबान अंदर लपलपा रही थी।

वो एक झुरझुरी सी भरिी हुई बोली-“प्रेम भाई पता है आप कितने दिनों के बाद मेरी चूत चूस रहे हैं…”

मैंने बोला-“अच्छा चल कामिनी अब माफ कर दे और लेट जा, मैं तेरी चूत चुसूंगा अभी…”

वो लेट गई और टांगें खोलकर उंगली से चूत के दोनों लब खोल दिए, और मैं उस चूत की लज़्जत में डूब ही गया। और होश तब आया, जब अचानक गहरी साँसों के साथ कामिनी अपनी मनी से मेरा मुँह भरने लगी। आज कामिनी ने बहुत ही जल्दी अपनी मनी छोड़ दी थी, वो बहुत ही गरम थी आज। मनी छोड़ते ही उसने दोबारा मेरा मुँह चूत से लगाना चाहा, मैंने फिर मुँह लगाया ही था, की अचानक मेरा मुँह भरने लगा। कामिनी का गरम पेशाब उसकी चूत के छोटे से मुँह को चीरता हुआ मेरे मुँह को भिगो रहा था। जवानी की महक से महकता मेरी बहन का नशीला पेशाब वो काफी देर बाद मेरा मुँह भिगोता रहा और मैं सरशार हो गया। और फिर पेशाब के आख़िरी कतरे तक मैंने उस नन्हें से सुराख से चूस लिए। अब फिर उसने मेरा मुँह अपनी चूत से सख्ती से चिपकाना चाहा।

मैंने मुँह हटाया और कहा-“कामिनी चूत चुदवाएगी नहीं…”

To be Continued

Reply





Posts: 722
Topic starter
Prominent Member
Joined: 4 years ago

आज कामिनी ने बहुत ही जल्दी अपनी मनी छोड़ दी थी, वो बहुत ही गरम थी आज। मनी छोड़ते ही उसने दोबारा मेरा मुँह चूत से लगाना चाहा, मैंने फिर मुँह लगाया ही था, की अचानक मेरा मुँह भरने लगा। कामिनी का गरम पेशाब उसकी चूत के छोटे से मुँह को चीरता हुआ मेरे मुँह को भिगो रहा था। जवानी की महक से महकता मेरी बहन का नशीला पेशाब वो काफी देर बाद मेरा मुँह भिगोता रहा और मैं सरशार हो गया। और फिर पेशाब के आख़िरी कतरे तक मैंने उस नन्हें से सुराख से चूस लिए। अब फिर उसने मेरा मुँह अपनी चूत से सख्ती से चिपकाना चाहा।

मैंने मुँह हटाया और कहा-“कामिनी चूत चुदवाएगी नहीं…”

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 23

वो हैरत से बोली-“अभी भाई, बहुत दर्द होगा अभी तो…”

मैं बोला-“दर्द तो बाद में भी होगा, दीदी को देखा अब कितने मजे से जाता है मेरा लंड… पहली बार कितनी मुश्किल से घुस्सा था…”

वह बोली-“चलो ठीक है प्रेम भाई… अब मेरी चूत अपने लंड से खोलो ना…”

मैं बोला-“कामिनी तू अपनी टांगें खोलकर चूत को उंगलियों से खोल ले, मैं अंदर डालने की कोशिस करूँगा, दर्द हो तो बता देना…”

उसने सिर हिलाया और जो मैंने बताया था वैसे ही किया। और मैंने अपना लंड सहलाया, जो बहुत ही टाइट हो रहा था। कामिनी की चूत में जाने का खयाल ही इतना खूबसूरत था। मैं उकड़ू बैठ गया और कामिनी की चूत के ऊपरी सिरे पर उभरे हल्के गुलाबी रंग के दाने पर अपना लंड हल्के हल्के फेरने लगा। वह बहुत लज़्जत महसूस कर रही थी, फिर आहिस्ता आहिस्ता मैंने अपनी टोपी उसकी नम चूत में आगे पीछे करने लगा। इससे शायद वह बहुत लुफ्त हाँसिल कर रही थी, उसकी गान्ड हिलने लगी और वह उचक उचक कर टोपी को चूमने लगी, क्या खाश मंजर था, जब चूत का अन्द्रुनी गुलाबी हिस्सा मेरे लंड की टोपी को चूम कर पीछे जाता तो उसका मधुर रस का हल्का सा नम धब्बा मेरे लंड की टोपी पर होता, अब मैंने टोपी को थोड़ा सा अंदर धकेला, और कामिनी का जिस्म बेचैन हुआ। उसके मजे में कमी आई थी, उसने अपनी मदहोश आँखों को खोला और चूत की तरफ देखा।

“अरे प्रेम भाई आपने अभी तक अंदर नहीं डाला मैं तो समझी चूत खुल गई मेरी…”

मैं बोला-“नहीं कामिनी अभी तो मेरा लंड तेरी चूत को चूम रहा था…”

वह बोली-“भाई जल्दी से पूरा अंदर गायब करें ना जैसे दीदी के करते हैं…”

मैंने सिर हिलाया। और थोड़ा सा दबा दिया लंड को। वह एक इंच अंदर घुसता चला गया।

कामिनी की घुटी-घुटी आवाज सुनाई दी-“हाय… मैं मर गई…”

यह एक कली की आवाज थी जो गुल्लाब बनने जा रहा था, यह कमसिनी की आवाज थी जिसका हुश्न वोही लोग जानते हैं जो इन माहौल से गुजर चुके हैं। अब मैं अंदर बाहर कर रहा था लंड को और वह बेचनी से सिर को इधर उधर पटक रही थी।

मैंने फिर हिम्मत की और लंड फिसलता हुआ उस तंग सुराख में और अंदर चला गया, कामिनी की हालात गैर होने लगी, लेकिन अब मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकता था। मैंने उसके मम्मों पर हाथ रखे, और एक जबरदस्त झटके से मेरा लंड उस रेशमी घेरे को पार कर गया, मेरा लज़्जत के मारे और कामिनी का दर्द के मारे बुरा हाल हो गया, क्या ही चीख थी उसकी। दरख़्तों से चिड़ियाँ डर कर उड़ गईं। भला उन्होंने ऐसी खूबसूरत चीख पहले कब सुनी थी। एक सुरीली चीख, एक लड़की की औरत बनने की चीख। और वह चीखती ही जा रही थी, और मैं सख़्त पड़ा था। कुछ देर बाद उससे थोड़ा सुकून मिला, तो मैंने लंड बाहर खींचा। और फिर एक बार हलचल मच गई, उसकी चीखें रुक ही नहीं रहीं थीं।

और खून से तो पूरी घास तर हो गई, रंगीन हो गई, बेहद खून बह रहा था उसकी चूत से, और वह चूत पर हाथ रखे उसी तरह रो रही थी, चिल्ला रही थी, भाई क्या कर दिया। भाई मेरी चूत फट गई है कुछ करो, दीदी को बुलाओ, मैं मर रही हूँ भाई। मैंने एक लम्हे इंतजार किया और फिर उस खून बहती चूत में अपना लंड दोबारा डाल दिया, वह चीखी लेकिन इस बार उस चीख में वह दर्द ना था, और मैं जबरदस्त झटके देने लगा। वह थोड़ी देर चूत पर हाथ रखे पड़ी रही फिर हटा लिया और सख़्त पड़ी थी। अब हर झटके से उसका जिस्म खिंच जाता, और चेहरे पर तकलीफ के आसार नजर आते, और फिर मेरी मनी छूटी। उस चूत ने पहली बार मनी को चखा, पहली बार गरम गरम मनी चूत की गहराइयों में नदी के पानी की तरह बहती कहीं गायब हो गई, और मैं उसके सीने पर गिरा, उसके हसीन निप्पलस को दबाने और मम्मे चूसने लगा, क्या ही गुलाबी निपल्स थे मेरी बहन के। कुछ देर बाद मेरा लंड सिकुड़ने लगा तो मैंने आहिस्तगी से बाहर खींच लिया, और कामिनी के बराबर ही लेट गया।

कामिनी ने करवट बदली और मेरे सीने से बच्चे की तरह लिपट कर रोने लगी-“भाई बहुत दर्द हुआ है मुझे और आप निकाल ही नहीं रहे थे, अंदर डाले ही जा रहे थे…”

कामिनी अगर मैं नहीं डालता तो और दर्द होता अब देखो आराम हो गया ना, चलो अब नदी पर चलें वहाँ तुम अपनी चूत धोओगी ना तो सुकून मिलेगा…”

वह बोली-“नहीं भाई मुझसे तो चला भी नहीं जाएगा, मेरी रानें चूत को छूती हैं तो दर्द होता है…”

मैंने अपनी नाजुक सी हसीन बहन को अपने बाजुओं पर उठाया और नदी की तरफ चल पड़ा। वहाँ जाकर वह पानी में उतर गई और मैं उसकी हसीन चूत देखता रहा, किनारे पर बैठा। मैंने भी अपना खून से भरा लंड धोया, कुछ देर बाद वह अपनी चूत लिए पानी से बाहर आई, वह अजीब तरह गान्ड निकाल कर चल रही थी।

मैं बोला-“चल कामिनी अब घोड़ी बन जा मैं तुझे एक बार और चोदता हूँ तेरा दर्द बिल्कुल ख़तम हो जाएगा…”

वह घबरा गई-“नहीं भैया… अब आज नहीं… मेरी चूत सो गई है। कल चोद लेना…”

मैं बोला-“नहीं कामिनी कल तेरी चूत और सूज जाएगी, आज ही अपने सुराख को और बड़ा करवा ले दर्द कल तक कम हो जाएगा…”

वह कुछ देर बाद बहस करके आख़िर वहीं घास पर घोड़ी बन गई-“भाई अब आहिस्ता चोदना…” वह बोली।

और मैं अपनी हसीन घोड़ी के पीछे आ खड़ा हुआ, उसकी गान्ड का सुराख भी सामने था, ना जाने कब यह सुराख भी खोलूँगा मैं, अभी कितना नाजुक और बंद है, मैं बेइखतियार होकर उसकी गान्ड का सुराख चाटने लगा, उसको भी मजा आया, और वह पालतू ब्रबल्ली की तरह गान्ड हिला हिला कर चटवाने लगी। मैं खड़ा हुआ और उसकी चूत को उंगलियों से खोला, वाकई बहुत तबाही मचाई थी मेरे लंड ने वहाँ। गुलाबी रंग लाली में बदल गया था।

लेकिन दीदी की चूत भी तो ऐसी ही हुई थी। बाद में सब ठीक हो जाता है, यह सोचकर मैं पीछे उकड़ू बैठा और बगैर इंतजार किए पूरा लंड अंदर घुस्सा दिया। वह फिर दर्द से चीखने लगी, अबकी दफा वह तीनन बार अपनी मनी छोड़कर निढाल हो गई थी। मैं अभी तक झटके मार रहा था, और फिर मेरी मनी मेरी बहन की चूत को सराबोर करने लगी और हम दोनों घास के फर्श पर निढाल गिर गये। मेरी खूबसूरत बहन जवान हो गई थी, आज बहुत खूबसूरत दिन था मेरे लिए, और यह मजे मैं अब रोज लूट सकता था। अब उसकी चूत का रास्ता हमेशा के लिए मेरे लंड के लिए खुल चुका था, हम लेटे थे की दीदी हमें तलाश करती आ पहुँची, हमें यूँ पड़ा देखकर वह चौंकीं। और कामिनी की रानें खोलकर उसकी चूत के लब खोल दिए।

और खून के धब्बे देखकर बोली-“यह क्या प्रेम, चोद दिया तुमने कामिनी को…”

मैं मुश्कुराने लगा।

दीदी भी हँस पड़ीं-“शैतान एक दिन भी बगैर चूत के नहीं रह सकता था। बेचारी बच्ची की इतनी नाजुक सी चूत को फाड़ दिया, चीखी नहीं यह…”

“बहुत दर्द हुआ दीदी, भाई ने इतना बड़ा लंड पूरा डाल दिया और मैं तड़पती रही…”

दीदी कामिनी की छोटी सी चूत सहलाने लगीं, और बोलीं-“खबदाफर प्रेम… अगर तुम दो दिन तक कामिनी की चूत के पास अपना लंड लेकर गये, बच्ची है अभी… तुमने तो एक ही दिन में दो दफा उसकी चूत खोल दी, बीमार हो गई तो…”

और वाकई कामिनी को रात में दर्द से बुखार आ गया, मैं शर्मिंदा था अब। मैंने अपनी छोटी बहन की चूत किस बेददी से खोली थी, खैर अब क्या हो सकता था, अब तो खुल चुकी थी, अब तो दुनियाँ की कोई ताक़त उस चूत को पहले जैसा नहीं कर सकतीं थी, दूर से देखने से ही उसकी चूत के लब कुछ फासले पर हटते नजर आ रहे थे।

तो दोस्तों, आप मेरे साथ मेरे दास्तान के उस हिस्से पर आ गये हैं, जहाँ से मैंने अपनी जिंदगी का बेहतरीन दौर गुजारा, अब आगे के वाकियात मैं आपको बाद में क्यों ना सूनाऊूँ। मैं जरा अपने बीते दिन याद कर लूं और अपने खयालों में वापिस उसी जजीरे पर जा पहुँचू जहाँ मेरे सामने मेरी छोटी बहन कामिनी अपनी चूत पहली बार खुलवा कर साकित पड़ी थी,

To be Continued

Reply





Posts: 722
Topic starter
Prominent Member
Joined: 4 years ago

और वाकई कामिनी को रात में दर्द से बुखार आ गया, मैं शर्मिंदा था अब। मैंने अपनी छोटी बहन की चूत किस बेददी से खोली थी, खैर अब क्या हो सकता था, अब तो खुल चुकी थी, अब तो दुनियाँ की कोई ताक़त उस चूत को पहले जैसा नहीं कर सकतीं थी, दूर से देखने से ही उसकी चूत के लब कुछ फासले पर हटते नजर आ रहे थे।

तो दोस्तों, आप मेरे साथ मेरे दास्तान के उस हिस्से पर आ गये हैं, जहाँ से मैंने अपनी जिंदगी का बेहतरीन दौर गुजारा, अब आगे के वाकियात मैं आपको बाद में क्यों ना सूनाऊूँ। मैं जरा अपने बीते दिन याद कर लूं और अपने खयालों में वापिस उसी जजीरे पर जा पहुँचू जहाँ मेरे सामने मेरी छोटी बहन कामिनी अपनी चूत पहली बार खुलवा कर साकित पड़ी थी,

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 24

तो दोस्तों अब इजाज़त… बस मैं कह चुका। मेरे दोस्तों अब मैं आपको जो वाकियात सुनाऊंगा, हो सकता है वो आपको बहुत अजीब लगें, आपको शरम महसूस हो, तो दोस्तों उसकी वजह यह है की आप यह दास्तान अपने आरामदेह कमरे में बिस्तर में घुस्से पढ़ रहे हैं, आपके इर्दगिर्द एक मुहजीब मश्रा है, आप किसी ना किसी बस्ती, गाँव या शहर में रहते हैं, जहाँ तहज़ीब है, जहाँ रस्म-ओ-ररवाज हैं, जहाँ आपको इंसानी ज़रूरत की हर चीज मुयस्सर है, लेकिन मैं, जिन कमजोर लम्हों की दास्तान आपको सुना रहा हूँ। उन लम्हों में यह चीजें मेरे लिए एक भूली बिसरी कहानी के सिवा कुछ अहमियत नहीं रखती थीं।

और हाँ अब मैं अपनी दास्तान का तासूलसूल जोड़ते हुये अपने दोस्तों को याद दिलाता चलूं, की यह 1949 की शुरू की या 1948 की बात है जो मैंमें बयान कर रहा हूँ, हमें यहाँ आए दसवा साल गुज़रता जा रहा है, और 11 साल होने को हैं, मैं जो 9 साल की उमर में यहाँ आया था। 20 साल का होने को हूँ। मेरी बहन राधा जो 15 साल की थी अब 26 की हो रही है, और मेरी बहन कामिनी जो सिर्फ़ 6 साल की कमसिन उमर में यहाँ आई थी आज 17 साल की भरपूर जवान है, और आज वोही भरपूर जवानी मैंने मसल दी थी।

क्या मस्त रसभरी होती है यह जवानी भी, आज उमर के इस हिस्से में गुजरी जवानी को याद करना भी बेहद हसीन तजुर्बा है, आज जब मैं यह दास्तान आपको सुना रहा हूँ, मैं उमर की कई मंज़िल तय कर चुका हूँ, और ना जाने कब जिंदगी की शाम हो जाए, बस कुछ ही वक्त है मेरे पास, आज इस दुनियाँ बेसबात में ना कामिनी है और ना राधा, दोनों मुझे छोड़कर जा चुके हैं, लेकिन यह दास्तान सुनाते हुये मैं आज भी अपनी दोनों बहनों को अपने बहुत पास, बिल्कुल अपने करीब बैठे महसूस कर सकता हूँ, जैसे वो यहीं हों और दिलचस्पी से मेरी दास्तान को सुनकर मुश्कुरा रही हों । जैसे कह रही हों, देखो हमने कैसा वक्त गुजारा है, आज भी मैं अपनी दोनों बहनों की जिस्म की खुशबू महसूस कर सकता हूँ, उनके कंवारे जिस्मों की खुशबू, जिन को मैंने कुछ साल गुजरे अपने इन्हीं हाथों से आग के सुपुर्द किया था।

आज भी उनके बे-लिबास जिस्म मुझे वापिस उसी पुरीसरार जजीरे के नाम और खूबसूरत फ़िज़ा में वापिस ले जाते हैं, जहाँ मैं होता हूँ, मेरी हसीन और कमसिन बहन कामिनी की शोखियाँ होतीं हैं, या हमें फितरत के हसीन राज सिखलाती दीदी के ज़ज्बात और शरम से लरजती आवाज, आज भी मैं वो मौसम महसूस कर सकता हूँ, वो सर्दी की हसीन रातें अपने जिस्म पर वैसे ही महसूस करता हूँ जब हम तीनों एक दूसरे से लिपटे एक दूसरे की मनी से लिथरे बेसूध सो जाया करते थे। अपनी बहनों की चूत से टपकती उनकी कंवारी मनी की खुशबू आज भी मेरी सांसों में जिंदा है, वो ना रहीं तो क्या हुआ, उनकी यादें तो अभी जिंदा हैं, मैं तो अभी जिंदा हूँ, बातें बहुत हो गईं। आप भी मुझ बूढ़े से तंग आ जाते होंगे, कितनी बातें करता हूँ। लेकिन दोस्तों भला मेरे पास इन यादों के सिवा है ही क्या, तो बातों को फिर किसी वक्त के लिए उठा रखते हैं, आप आगे के वाकियात मुलाहिजा फरमायें।

आपने मेरी दास्तान का वो हिस्सा तो मुलाहिजा फरमा लिया जब मैंने अपनी कंवारी और कम-उमर बहन कामिनी को कली से फूल बना दिया, मैं बहुत मदहोश था, दीदी की चूत भी बहुत हसीन थी, बहुत तंग थी। बेहद मजा था वहाँ भी, बहुत गर्मी थी वहाँ, लेकिन जो बात कामिनी की चूत में थी उसके सामने दीदी की चूत की आग मंद पड़ने लगी थी।

कामिनी को बुखार आ गया था, चूत खुलने की वजह से। उसकी चूत पर सूजन थी, रात भर वो बुखार में तपती रही। सुबह उसकी तबीयत कुछ संभल गई। चूत की सूजन भी कम होती दिखी, सुबह जब वो अंगड़ाई लेती नींद से बेजार होकर झोंपड़े से बाहर आई, तो मैं और दीदी कुछ दूर बैठे भुने हुये साँप खा रहे थे।
यह यहाँ पानी में रहते थे, जहरीले थे। लेकिन बहुत कम, अगर काट भी लें तो थोड़ा सा नशा हो जाता था, लेकिन अगर इनकी खाल खींचकर और जहर की थैली अलग करके इन का भुना हुआ गोश्त खाया जाए तो यह बेहद लजीज होते थे। अब यह कम ही पकड़े जाते थे, होशियार हो गये थे। जिस दिन यह हाथ लगते, हम बहुत खुशी से इनको खाते थे। आज इत्तिफाक से हमने तीन साँप पकड़ लिए थे। वैसे तो दो साँप ही बहुत थे हमारे लिए लेकिन हमने तीनों ही भून लिए थे, और मजे से खा ही रहे थे। कामिनी हमें देखकर वहीं आने लगी, अजीब बेढंगी चाल चल रही थी वो।

मुझे तो हँसी आ गई उसको देखकर, चूत अभी थोड़ी सूजी हुई थी, तो दोनों रानों के बीच से चूत का मुँह बाहर को निकला महसूस हो रहा था। और क्योंकी वो अपनी रानों को मिलाकर नहीं चल रही थी, तो अजीब गान्ड निकाल कर चलती बेहद अजीब लग रही थी। मैं हँस पड़ा, लेकिन उसने मुँह बनाया और खाने लगी, यह सांप उसकी भी पहली पसंद थे। खाने के बाद, दीदी तो अपनी खून आलूदा चूत लिए नदी की तरफ चली गईं, हमें वहाँ छोड़ गईं, और जाते जाते मुझे याद भी दिला गईं की-“प्रेम कोई चुदाई नहीं आज…”

और मैं सिर हिलाकर खामोश ही बैठा रहा। उनके जाने के बाद मैं कामिनी के पास आ बैठा, उसने रुख मोड़ लिया,
क्या हुआ कामिनी, क्यों नाराज हो?”

“भाई मुझसे बात ना करो, कितना दर्द है तुम भला क्या जानो…”

“कामिनी यह दर्द कभी ना कभी तो होना ही था, अच्छा तू सच बता मजा नहीं आया था क्या तुझको…”

वो कुछ देर खामोश बैठी रही-“भाई, अब तुम क्या करोगे, दीदी के तो पीरियड हैं, और मेरी चूत तो बहुत सूजी हुई है, आज कैसे चुदाई करोगे…” उसके लहजे में बहुत मासूमियत थी।

मैं रोनी शकल बनाकर बोला-“हाँ… कामिनी आज मुझसे कोई प्यार नहीं करेगा। तुझको भी दर्द है। अब पता नहीं कब तेरी यह प्यारी सी चूत मुझे मिलेगी, कब मैं इसे चूसूंगा। कब इसमें अपना लंड डालूंगा…”

वो बोली-“प्रेम भाई, क्या अब भी मुझ दर्द होगा…”

मैं बोला-“अरे नहीं पगली। दीदी को नहीं देखा। अब कैसे आराम से खड़े खड़े ही मेरा पूरा लंड अपनी चूत में ले लेतीं हैं, कुछ दिन बाद तेरी चूत जब सही होगी तो खुल चुकी होगी…”

हम कुछ देर बातें करते रहे, दीदी वापिस आती नजर आईं, वो बोलीं-“तुम दोनों को आज नहाना नहीं है क्या…”

To be Continued

Reply





Page 5 / 7