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Incest [Completed] आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya

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मैं अपना लंड अपने हाथ से सहला रहा था अब वो दोनों एक दूसरे पर लेटी एक दूसरे की चूत चूस रहीं थीं। और फिर मेरी दोनों बहनें मेरे सामने ही फारिग हुई और एक दूसरे के मुँह में अपनी मनी छोड़ दी। कामिनी तो बहुत थक सी गई। और एक तरफ पड़ गई। लेकिन दीदी को मेरा ख्याल था। उन्होंने मेरा पानी बहाता लंड मुँह में लिया और चूसने लगीं और मैंने अपनी मनी दीदी के मुँह में उड़ेल दी। दीदी का मुँह जिसमें से पहले ही कामिनी की मनी रिस रही थी अब मेरी मनी से भर गया और मैं ना जाने किस जहाँ में खो गया। फिर मुझे कोई होश नहीं था, ना सर्दी का एहसास बाकी रह गया था। मैं नहीं जानता कब सुबह हुई, कब दिन निकला।

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 15

मैं तो जब दिन चढ़े उठा तो बिस्तर पर अकेला ही पड़ा था। बाहर निकला तो कोई नहीं था। नदी की तरफ चल पड़ा वहीं पर दीदी और कामिनी मिलीं, वो नहा रहीं थीं। कामिनी नहाकर निकली और अपनी पैंटी पहनने लगी वो कामिनी के पीरियड शुरू हो गये थे। वो और दीदी नहाकर चले गये। मैंने भी नाहया और वापिस झोंपड़े की तरफ चल पड़ा। वहाँ दोनों बहनें बैठी खाना बना रहीं थीं।

मुझको देखकर दीदी बोलीं-“क्यों क्या हुआ प्रेम इतनी जल्दी नहाकर भी आ गये…”

मैं बोला-“हाँ दीदी…”

दीदी बोलीं-“मजा आया तुमको रात को उसके बाद सर्दी तो नहीं लगी…”

मैंने कहा-“नहीं दीदी…”

दीदी बोलीं-“रात में तुम तो सो गये मुझको और कामिनी को पेशाब आया। बाहर सर्दी थी हमने वहीं किया और पता है मैंने कल कामिनी का पेशाब चखा और कामिनी ने मेरा… तुम सो रहे थे…”

मैं बोला-“दीदी कामिनी का पेशाब अच्छा है ना…”

दीदी बोलीं-“हाँ… भाई… लेकिन तूने मेरा पेशाब अभी नहीं चखा है। आज चखकर देखो कैसा है…”

मैं बोला-“कब दीदी…”

वो बोलीं-“अभी भी मैंने इसीलिए नहाते वक्त पेशाब नहीं किया और अब तो कामिनी के पीरियड शुरू हो चुके हैं तुम उसकी चूत नहीं चूस सकते…” फिर दीदी ने कहा पहले खाना खा लो फिर नदी पर चलेंगे।

हम खाना खाने लगे। खाना खाकर मैं और दीदी नदी पर गये। नदी पर पहुँच कर दीदी ने कहा-“प्रेम तुम उकड़ू बैठ जाओ, मैं पेशाब करती हूँ जब आख़िरी पेशाब आने लगे तो तुम चूत पर मुँह लगा देना…”

मैं उकड़ू बैठा और दीदी खड़े होकर टांगें खोलकर पेशाब करने लगीं। मैं देखता रहा फिर दीदी ने गर्दन से इशारा किया। पेशाब अब रुक रुक कर बाहर आ रहा था। मैंने जल्दी से चूत से मुँह लगा दिया और पेशाब पीने लगा। दीदी का पेशाब बहुत महक मार रहा था। थोड़ा सा ही पी सका मैं, वो बहुत तेज था।

मैं बोला-“दीदी तुम्हारा पेशाब तो बहुत तेज है लेकिन मजे का है…”

दीदी बोली-“अच्छा चल तू पेशाब कर…”

मैं पेशाब करने बैठा तो दीदी ने मेरा लंड हाथ में ले लिया और उसमें से पेशाब बाहर आते देखने लगीं और फिर एकदम उसको मुँह में लेकर पीने लगीं। और दोस्तों मेरे पेशाब का एक एक क़तरा तक चूस गई मेरी दीदी वो बोली-“बहुत मजेदार है तेरा पेशाब तो प्रेम…”

उसके मुँह से अब तक मेरा पेशाब बह रहा था। फिर वो मेरा लंड मुँह में लेकर चूसने लगी। मैं उसके ऊपर लेट गया और उसकी चूत चाटने लगा। उसपर अभी अभी किए पेशाब के कतरे अभी भी थे। पहले वो मैंने चूसे और फिर चूत को चूसने लगा और कुछ ही देर बाद एक बार फिर हम बहन भाई अपनी अपनी मनी निकाल चुके थे और घने दरख़्त की छांव में पड़े हांफ रहे थे।

कुछ देर बाद हम वापिस चल पड़े।

बस दोस्तों आज की दास्तान यन्हीं पर ख़तम करते हैं। आज पुरानी यादें फिर से मुझे सता रहीं हैं। मैं बेचैन हुआ जा रहा हूँ। अब चलता हूँ दोस्तों। वक्त का काम गुजरना है, यह वक्त की फितरत है। और फितरत कभी नहीं बदलती। जैसे आग की फितरत जलना है, वैसे ही इंसानी फितरत में जैसे पेट की भूख को खाने से मिटाया जाता है इसी तरह जिन्सी की भूख को औरत का जिस्म चाहिए। और फितरत अपना रास्ता खुद तलाशती है। दोस्तों आप जानिए। अगर आप कभी फितरत का रास्ता रोकने की कोशिस करेंगे तो ऐसे ऐसे खोफनाक अंजाम और रिजल्ट आपको मिलेंगे। हो सकता है आप में से कुछ लोग मेरी इस बात की मुखालीफत करें।

To be Continued

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उसके मुँह से अब तक मेरा पेशाब बह रहा था। फिर वो मेरा लंड मुँह में लेकर चूसने लगी। मैं उसके ऊपर लेट गया और उसकी चूत चाटने लगा। उसपर अभी अभी किए पेशाब के कतरे अभी भी थे। पहले वो मैंने चूसे और फिर चूत को चूसने लगा और कुछ ही देर बाद एक बार फिर हम बहन भाई अपनी अपनी मनी निकाल चुके थे और घने दरख़्त की छांव में पड़े हांफ रहे थे।

कुछ देर बाद हम वापिस चल पड़े।

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 16

मैं जानता हूँ दुनियाँ में ऐसी बहुत सी शख्सियत ऐसी गुजरी हैं जिन पर यह तारीफ़ लागू नहीं होतीं। जिनकी शख्सियत और किरदार के आगे फितरत भी अपने घुटने टेक देती है। लेकिन मैं आम लोगों की आम इंसानों की बात कर रहा हूँ। आप जानिए। आम इंसान ही फितरत की जंजीरों में बँधा हुआ है। आप अगर इस फितरत को किसी तरह कैद करने की, इसको बदलने की कोशिस करें तो हो भी सकता है की कुछ कामयाब हो जायं लेकिन जब भी इसको कोई भी कमजोर रखना नजर आया यह फितरत पूरी ताक़त से जाग उठेगी। मैं इसकी मिसाल यूँ देता हूँ की अगर आप सोचते हैं की आप सारी उमर औरत से और अगर आप औरत हैं तो मर्द से दूर रहेंगे। सेक्स के करीब भी नहीं फटकेंगे। तो क्या होगा…

आप नहीं कर सकते इसका मैं दावा करता हूँ। आप की फितरत आप की सोच पर आपके इरादों पर हावी हो जाएगी। और फिर आप वोही करेंगे जो आप का शरीर कहेगा आप शरीर की ख्वाहिशो के फकत एक गुलाम बन जाएँगे। हाँ एक ज़रिया है, जो की नफस कुशी (शरीर की इक्षाओ को मारना ) कहलाता है। इसमें आपके पास मजहब की ताक़त होती है जैसे की ईसाईयों में चर्च में नन्स होतीं हैं जो हमेशा कंवारी रहती हैं। हिंदुओं में दासियाँ होतीं हैं जो अपना जीवन भगवान के चरणों में रह कर गुज़ारती हैं। तो फिर आप अपने नफस को अपनी जबलत को अपनी फितरत को शिकस्त दे सकते हैं।

मैं और मेरी बहनें जो कुछ कर रहे थे वो शायद मजहबी, मशरती और इख्लकी तौर पर सही ना था लेकिन जहाँ हम थे वहाँ कुछ ना था सिवाए तीन इंसानों के और वह तीनों आम इन्सान थे। फितरत के गुलाम । और हम जो कर रहे थे वह आम फितरत थी इंसान की। हम अपने जिस्मों की प्यास एक दूसरे से बुझा रहे थे। और इसी तरह वक्त चलता चला गया। हम बहन भाई एक दूसरे के जिस्मों से खेलते रहे। अपनी खुराक का बेहद खयाल रखते। एक दूसरे को खूब खूब मजा देते। हमारा प्यार बढ़ता जा रहा था किसी को अगर मामूली सी चोट या जख़्म लग जाता तो हम सब यूँ महसूस करते जैसे वह तकलीफ हमारे वजूद में हो। मैं अपनी दोनों बहनों के मम्मे चुसता। उनकी निपल्स के रेशमी मसरों को मुँह में लिए रहता। उनकी नरम गरम चूतों का पानी चुसता। और उनकी मनी निकलवाता।

और वह दोनों मेरे लंड को चुसती अपने सीने पर रगड़ती, और खूब मजा करतीं। दिन यूँ ही गुज़रते गये। और मेरी बहनें दिन-बा-दिन निखरती चली गईं। मुझे याद है सही तरह तो नहीं। आप जानिए अब इस उमर में याददाश्त भी कुछ ज्यादा काबिल-ए-भरोसा नहीं रह पाती लेकिन मैं याद करने की कोशिस करता हूँ। यह शायद 1947 का आख़िर या 1948 का शुरू था। सर्दियाँ जोरों पर थी, हमें यहाँ आए हुये तकरीबन 10 साल हो चुके थे। अब तो हम दुनियाँ को भूल चुके थे। खास तौर पर कामिनी तो कुछ जानती ही ना थी की असली दुनियाँ क्या होती है। उसके लिए तो यह जज़ीरा ही उसकी दुनियाँ थी जहाँ वह अपने भाई से प्यार करती और बड़ी बहन से लिपट कर अपनी जिस्म की आग बुझाती।

अब मैं तकरीबन 19 साल का हो चुका हूँ एक भरपूर जवान, की अपनी दोनों बहनों की चूत पर अपने होंठों को लगाकर अपने मजबूत बाजुओं से जब मैं उनकी गान्ड को जकड़ता था तो वह मनी छोड़ते वक्त कितना ही तड़पती रहे लेकिन अपनी चूत मेरे मुँह से हटा नहीं पातीं थीं। उनके मम्मे जब मेरे बड़े बड़े हाथों में दबते तो मैं उनको निचोड़ कर लाल गुलाबी कर डालता था। जब उनको अपनी बाहों में जकड़ लेता तो वो अपने आपको छुड़ा नहीं पातीं थीं।

मेरी बहन राधा-25 साल की हो चुकी थी या होने वाली थी उसके मम्मे बिल्कुल गोल, निप्पल्स डार्क ब्राउन, कमर पतली और रंग साँवलाया हुआ, गान्ड बाहर को निकली हुई और गोल, रानों के बीच से झाँकती खूबसूरत चूत, बीलशुब्बा बहुत हसीन थी। कोमल किनारे चूत के। और जब इन नरम लबों को खोलें तो… अंदर से गरम गुलाबी रेशम का घिलाफ जिसको बस मुँह में रखें और चूसें जहाँ से बेहद मजेदार रस निकलता था। जिसको चूसना शायद हर मर्द की आरजू हो।

मेरी बहन कामिनी-जिसको मैंने ही चूसकर जवान कर दिया था अब वह ** साल की हो चुकी थी। उसके मम्मे मेरे हाथों से मसल मसल कर काफी उभर आए थे और जब वह भागती थी तो बहुत हसीन तरीके से हिलते थे। और उनका अजीब हुश्न यह था के वह ऊपर की जानिब उठे हुये थे। उनकी निप्पल गुलाबी थीं। और मेरे चूसने की वजह से काफी बाहर को निकली हुई। गान्ड ज्यादा बड़ी ना थी लेकिन बहुत ही चंचल है। कमर बेहद पतली और नाजुक, और चूत… उस चूत का क्या कहना। बस मेरे लिए दुनियाँ का खजाना था। वहाँ मैं जब उसपर मुँह लगा देता तो बस फिर तीन बाज दफा 4 बार उसकी मनी छुड़वा कर ही दम लेता और वह निढाल हो जाती थी। बहुत ही खूबसूरत और कमसिन चूत थी मेरी बहन कामिनी की। तो अब मैं बाकिया वाकियात की तरफ आता हूँ अपनी दास्तान के।

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मेरी बहन कामिनी-जिसको मैंने ही चूसकर जवान कर दिया था अब वह ** साल की हो चुकी थी। उसके मम्मे मेरे हाथों से मसल मसल कर काफी उभर आए थे और जब वह भागती थी तो बहुत हसीन तरीके से हिलते थे। और उनका अजीब हुश्न यह था के वह ऊपर की जानिब उठे हुये थे। उनकी निप्पल गुलाबी थीं। और मेरे चूसने की वजह से काफी बाहर को निकली हुई। गान्ड ज्यादा बड़ी ना थी लेकिन बहुत ही चंचल है। कमर बेहद पतली और नाजुक, और चूत… उस चूत का क्या कहना। बस मेरे लिए दुनियाँ का खजाना था। वहाँ मैं जब उसपर मुँह लगा देता तो बस फिर तीन बाज दफा 4 बार उसकी मनी छुड़वा कर ही दम लेता और वह निढाल हो जाती थी। बहुत ही खूबसूरत और कमसिन चूत थी मेरी बहन कामिनी की। तो अब मैं बाकिया वाकियात की तरफ आता हूँ अपनी दास्तान के।

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 17

मैं कह चुका हूँ की सर्दियाँ अपने जोरों पर थीं।

हम बहन भाई या तो सारा दिन आग जलाए बैठे रहते। या एक दूसरे के जिस्मों से सर्दी कम करते। एक दिन हम लोग बैठे थे। दिन का सूरज अपनी अब-ओटाब से चमक रहा था। 30

दीदी बोलीं-“कहो अब खेल से दिल भर गया है क्या…”

मैं बोला-“नहीं दीदी बहुत मजा आता है हमें तो… हम सब इतने प्यार से मजा करते हैं…”

दीदी बोलीं-“प्रेम तुम्हारा दिल नहीं चाहता की तुम कुछ और करो। अपने लंड से…”

मैंने हैरत से कहा-“क्या दीदी…”

दीदी मुश्कुराते हुये-“तुम दोनों को याद है जब मैंने तुम दोनों को चूत और लंड के बारे में कुछ सालों पहले बताया था। तो यह कहकर आगे नहीं बताया था की तुम अभी छोटे हो…”

मैंने चौंक कर कहा-“हाँ… दीदी शायद आपने कहा था…”

दीदी बोलीं-“प्रेम अब वक्त आ गया है की मैं फितरत के हसीन राज तुम दोनों पर खोल दूं…”

हम दोनों उठकर दीदी के पास आ बैठे। और हम खामोश हो गये। हमारे लिए कुछ नई राहें खोलने वालीं थीं हमारी दीदी। और हमें उनके हर खेल में एक नया लुफ्त आता था। इन बिसात की चंद और नई दुनियाँ से लुफ्तअंदोज होने का मोका मिलता था। शुरूर की चंद और मंज़िल िय कर लेते थे। तो हम यानी मैं और कामिनी भी बेताब थे आगे जानने के लिए।

दीदी हमसे कहने लगी-“प्रेम और कामिनी। हमें यहाँ आए दस साल से ज्यादा होने वाले हैं। नहीं मालूम हम कभी वापिस अपनी दुनियाँ में पहुँच पाएँगे या नहीं। इसलिए क्यों ना हम अपनी दुनियाँ यहीं बना लें। अब किसी का इंतजार फुजूल है। आज से प्रेम हम तुम्हारी बहनें नहीं…”

मैं हैरत से दंग हो गया।

दीदी बोलीं-“प्रेम आज से हम तुम्हारी बीवियाँ हैं और तुम जानो बीवी का क्या करते हैं… बीवी को चोदते हैं, उससे बच्चा पैदा करते हैं, और अपनी नेश्ल आगे बढ़ाते हैं…”

मैंने हैरत से दोहराया-“चोदते हैं, बच्चा पैदा करते हैं…”

दीदी बोलीं-“हाँ… प्रेम… लड़की से सिर्फ़ इतना ही नहीं करते जो तुम कई सालों से हम दोनों के साथ करते चले आए हो। यानी उसकी सिर्फ़ चूत चूसने और चाटने के लिए नहीं होती। उसके मम्मे चूसने के लिए नहीं होते। लंड सिर्फ़ चूसने के लिए नहीं होता मनी सिर्फ़ पीने के लिए नहीं होती…”

मैं और कामिनी हैरान थे। यानी हम इतने सालों से जो कुछ करते आए थे वह कुछ भी नहीं था।

दीदी बोलीं-“प्रेम तुम दोनों ठीक सोच रहे थे हमने तो अब तक कुछ भी नहीं किया। पर अब मैं तुम दोनों को एक एक राज बता दूँगी…”

दीदी फिर बोलीं-“प्रेम यह जो तुम मेरी और कामिनी की चूत देख रहे हो। इधर आओ…” दीदी ने मुझे अपनी टांगें खोलते हुये पास बुलाया।

मैं दीदी की खुली हुई टांगों के बीच जाकर बैठ गया।

दीदी ने टांगें खोलीं और उंगलियों से अपनी चूत खोलते हुये बोली-“प्रेम यह चूत है जैसी की मेरी और कामिनी की। हम दोनों की चूत में थोड़ा बहुत फ़र्क है जाहिर है उसकी चूत अभी बहुत कमसिन है। मेरी चूत उभरी हुई है और बड़ी है। यह सुराख देखकर तुमको क्या खयाल आता है…”

मैं चुप रहा।

दीदी बोलीं-“इसी चूत को तुम इतने अरसे से चुसते आए और इसी सुराख से निकलती मनी और पेशाब तुम पीते आए हो। अब तुम अपने लंड को देखो जो हम दोनों अपने मुँह में लेकर चुसती हैं…”

मैंने अपने लंड को हाथ से पकड़ लिया जो लम्हा-बा-लम्हा तनता जा रहा था।

दीदी बोलीं-“प्रेम सोचो अगर यह लंड अगर हमारे मुँह के सुराख के बजाए हमारी चूत के सुराख में हो तो तुम्हें कितना मजा आए…”

मैं यह सुनकर हैरान रह गया।

“दीदी इतना बड़ा लंड इतने से सुराख में जाएगा कैसे…” कामिनी ने हैरत से पूछा।

दीदी बोलीं-“नहीं कामिनी अभी यह सुराख छोटा है लेकिन जैसे जैसे इसमें लंड जाता रहेगा यह खुलता जाएगा। और इस खुलने में यह और भी मजा देगा…”

फिर बोलीं-“हाँ… जब यह पहली बार खुलेगी तो थोड़ी तकलीफ होगी। थोड़ा खून भी निकलेगा। लेकिन फिर बस यह एक बार ही होगा…”

वो फिर बोलीं-“दुनियाँ का हर मर्द हर औरत के साथ यही करता है। वह उसकी चूत में अपना लंड डालता है और फिर उसकी चूत में अपनी मनी भर देता है। जिस तरह मैं और कामिनी तुम्हारी मनी पिया करते थे प्रेम। बिल्कुल वैसे ही हमारी चूतें यह मनी पीकर उसे चूसकर हमारी बच्चेदानी में पहुँचा देंगी। वहाँ यह हमारी चूत की मनी से मिलेगी और फिर बच्चा पैदा होगा…”

मैंने हैरत से पूछा-“और दीदी गान्ड का सुराख। क्या वहाँ से भी बच्चा पैदा होता है…”

दीदी हँसते हुये बोलीं-“अरे नहीं… हाँ चाहो तो तुम हम दोनों की गान्ड के सुराख में भी डाल सकते हो। लेकिन पहले तुम हमारी चूतों के मजे चख लो। फिर गान्ड के सुराख खोलना। क्योंकी गान्ड का सुराख खुलते हुये बहुत ज्यादा तकलीफ होती है…”

मैं बोला-“और दीदी बच्चा हो गया तो फिर हम क्या करेंगे…”

दीदी बोलीं-“प्रेम हर औरत की तरह हमारी भी ख्वाहिश है की हमारा भी एक बच्चा हो। जिससे हम खेलें, उससे प्यार करें। लेकिन प्रेम अब यह मुमकिन नहीं। यहाँ तुम्हारे सिवा कोई मर्द नहीं जो हमसे बच्चा पैदा कर सके…”

मैंने कामिनी की तरफ देखा, फिर दीदी से बोला-“दीदी कामिनी भी बच्चा पैदा करेगी…”

दीदी बोलीं-“अभी नहीं… पहले मैं फिर कामिनी। ताकि कामिनी हर चीज को देखकर उससे सीख सके…”

मैं बोला-“अच्छा दीदी हम यह कब करेंगे। यानी आप की चूत में लंड कब डालूंगा मैं…”

दीदी बोलीं-“आज रात को तुम मेरी चूत पहली बार खोलोगे। मैं तुम्हें हर बात सीखा दूँगी। हाँ उससे पहले हम दोनों कामिनी को फारिग करवा कर उसकी मनी चूसकर बिठा देंगे ताकि हमारी हालात देखकर वह बेचैन ना हो जाए…”

मैं बोला-“क्यों दीदी हमारी हालात क्या हो जाएगी?”

दीदी बोलीं-“प्रेम सोचो जब तुम्हारा लंड पहली बार मेरे मुँह में गया था तो तुम्हारी क्या हालात हुई थी। और अब तो वह अपनी असल जगह जाएगा तो तुम कितना लुफ्त उठाओगे खुद ही सोच लो…”

और यह हक़ीकत थी। मैं आने वाले लम्हात के बारे में सोचने लगा। हम दोनों मुख्तलिफ सवालात करने लगे दीदी से।

दीदी ने कहा-“अब जब तुम मेरी चुदाई करोगे यानी चूत में लंड डालोगे तब सारे जवाब तुम दोनों को खुद ही मिल जायेंगे…”

To be Continued

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दीदी बोलीं-“आज रात को तुम मेरी चूत पहली बार खोलोगे। मैं तुम्हें हर बात सीखा दूँगी। हाँ उससे पहले हम दोनों कामिनी को फारिग करवा कर उसकी मनी चूसकर बिठा देंगे ताकि हमारी हालात देखकर वह बेचैन ना हो जाए…”

मैं बोला-“क्यों दीदी हमारी हालात क्या हो जाएगी?”

दीदी बोलीं-“प्रेम सोचो जब तुम्हारा लंड पहली बार मेरे मुँह में गया था तो तुम्हारी क्या हालात हुई थी। और अब तो वह अपनी असल जगह जाएगा तो तुम कितना लुफ्त उठाओगे खुद ही सोच लो…”

और यह हक़ीकत थी। मैं आने वाले लम्हात के बारे में सोचने लगा। हम दोनों मुख्तलिफ सवालात करने लगे दीदी से।

दीदी ने कहा-“अब जब तुम मेरी चुदाई करोगे यानी चूत में लंड डालोगे तब सारे जवाब तुम दोनों को खुद ही मिल जायेंगे…”

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 18

फिर हम खाना बनाने लगे ताकि रात में बाहर बैठकर खाना ना तैयार करना पड़े। बाहर बड़ी सर्दी हो जाती थी। इसलिए अभी से तैयार कर लिया था की रात को सिर्फ़ खाना हो हमें। आख़िर रात आ ही गई। मेरी बहन राधा का अरमानों भरी रात। जो हर लड़की की जिंदगी में एक बार ज़रूर आती है। आज मेरी बहन की जिंदगी में वोही रात थी। वोही रात जब कोई लड़की पहली दफा अपनी टांगों के बीच का खजाना किसी मर्द के लिए खोलती है। वोही रात जब उसका जिस्म किसी मर्द के गरम आगोश में सिसकता है, तड़पता है। आज मेरी बहन की जिंदगी में भी वोही रात थी। लेकिन कितनी जुदा, कितनी अलग।

हमने रात का खाना खाया। वोही भुनी हुई मछली, चंद जंगली फ्रूट, उबली हुई एक झाड़ी जिसका जायका बिल्कुल मेथी की तरह था। यह था हमारा खाना। जो आप जानिए बेहद सेहत बख़्श था। फिर दीदी जहाज के सामान के बचे हुये संदूक से एक शराब की बोतल निकाल लाईं-“आज प्रेम तुम भी मेरे साथ पीओगे। हम दोनों शराब पीन के बाद शुरू करेंगे। क्योंकी तुम जानो… शराब से तुम मेरी चूत में काफी देर में अपनी मनी छोड़ोगे…”

“लेकिन दीदी देर से क्यों छोड़ूं मैं…”

दीदी बोलीं-“तुम जितनी देर में अपनी मनी मेरी चूत में छोड़ागे, मैं और तुम उतना ही मजा करेंगे और अगर तुमने फौरन ही छोड़ दी तो मेरी मनी छूटी ही ना होगी और तुम फारिग होकर लेटे होगे…” दीदी ने बोतल खोली और मैं और दीदी उसको घूंट घूंट पीने लगे।

दीदी कभी कभी पीती थीं। या जब हम बहुत बीमार हो जाते थे तो हमको दर्द कम करने की दवा के तौर पर कभी पिला देतीं थीं। अब भी हमारे पास काफी सारी बाटल्स बाकी थीं। मैंने तो चंद घूंट ही पिये होंगे की मेरा सिर चकराने लगा। दीदी ने भी दो घूंट और भर कर बोतल का कैप मजबूती से बंद कर दिया और बिस्तर पर जाकर लेट गईं। और टांगें खोलकर मुझे आकर अपनी टांगों के बीच में बैठने को कहा।

कामिनी भी उठकर दीदी की चूत के पास बैठ चुकी थी। और उसकी नजरें भी दीदी की खुली हुई चूत के अन्द्रुनी गुलाबी सुराख पर थीं।

दीदी मुझसे बोलीं-“प्रेम आओ पहले कामिनी की मनी निकलवा दें ताकि इसकी हालात ना खराब हो। और यह मनी क़तरा क़तरा बहाती हमें देखकर तड़पती रहे। यह कहते हुये दीदी ने कामिनी की रानों के बीच हाथ डालकर उसे खोला और अपना मुँह कामिनी की चूत से चिपका दिया।

कामिनी ने मेरा लंड पकड़ा और अपने मुँह में भर कर चूसने लगी। इससे मुझे पता चला की वह काफी देर से मेरा लंड चूसना चाह रही थी।

कुछ देर बाद दीदी उठीं और उन्होंने मेरा लंड खींचकर कामिनी के मुँह से निकाला और बोलीं-“अब बस प्रेम तुम कामिनी की चूत चूसकर उसकी मनी चूसो जब तक मैं अपनी चूत कामिनी से चुसवाती हूँ, इससे यह गीली भी हो जाएगी और तुम्हें डालने में आसानी होगी। वरना तेल वगैरह तो है नहीं हमारे पास कोकनट ओयल से और भी जाम हो जायेगी चूत…”

मैं कामिनी की रानें खोलकर उसकी गरम गरम चूत चूसने लगा जो पहले ही दीदी के थूक से गीली हो रही थी। दीदी कामिनी के मुँह पर बैठी अंदर तक उससे चुसवा रहीं थीं। और फिर कामिनी की मनी से मेरा मुँह भरने लगा। हम उतर आए कामिनी पर से। अब दीदी फिर बिस्तर पर लेट चुकी थीं और उनकी टांगें खुलीं थीं। जिनसे अब भी कामिनी का थूक टपक रहा था। मैं दीदी की टांगों के दरम्यान बैठ गया। मेरा लंड दीदी की खुली चूत से चंद इंच के फासले पर था और हल्के हल्के झटके मार रहा था।

दीदी बोलीं-“देखो प्रेम यह मेरा मुँह नहीं है। यह चूत है जो पहली बार खुलेगी। मेरी चीखों की परवाह नहीं करना। लेकिन जिस तरह मेरे मुँह में दीवानों की तरह झटके मारते हो मनी छोड़ते वक्त चूत में आहिस्ता आहिस्ता करना। फिकर ना करो यह कुछ ही दिनों की बात है फिर जैसा चाहे करना। मैं नहीं रोकूंगी तुम्हें। मेरी चूत से खून निकलते देखकर घबराना नहीं… यह होता है। और इससे कोई नुकसान नहीं होता। अच्छा अब तैयार हो जाओ…”

मैंने अपना लंड हाथ से सीधा किया और उसका ऊपरी सिरा, यानी उसकी टोपी दीदी की चूत पर रख दी। आहह… आप जानिए दोस्तों। एक अजीब सी लहर मेरे जिस्म में दौड़ती चली गई। क्या गर्मी थी वहाँ। ऐसा लगता था की बाहर के सर्द मौसम का चूत के अन्द्रुनी मौसम पर कोई फ़र्क नहीं पड़ा था। सिर्फ़ टोपी ही उस नरम हल्की सी भीगी लेकिन बहुत गरम चूत पर रखने से मेरा हाल बुरा होने लगा था। अभी तो आगे बहुत मंज़िलें तय करनी थीं।

मैंने आहिस्तगी से लंड को अंदर घुसाना शुरू किया ही था दीदी बोलीं-“प्रेम अपना पूरा बोझ ना डालो सिर्फ़ लंड को आगे की तरफ डालो। वो खुद अंदर घुसता चला जाएगा।

मैंने अपनी कमर और कुल्हों को सख़्त रखा और लंड को आगे की तरफ बढ़ाने लगा। मैं हैरान था… मेरे लंड की लंबाइ दीदी की चूत की गहराइयों में खोती जा रही थीं। लंड आहिस्ता आहिस्ता गायब हो रहा था, उस रेशमी गुलाबी चूत में।

To be Continued

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मैंने आहिस्तगी से लंड को अंदर घुसाना शुरू किया ही था दीदी बोलीं-“प्रेम अपना पूरा बोझ ना डालो सिर्फ़ लंड को आगे की तरफ डालो। वो खुद अंदर घुसता चला जाएगा।

मैंने अपनी कमर और कुल्हों को सख़्त रखा और लंड को आगे की तरफ बढ़ाने लगा। मैं हैरान था… मेरे लंड की लंबाइ दीदी की चूत की गहराइयों में खोती जा रही थीं। लंड आहिस्ता आहिस्ता गायब हो रहा था, उस रेशमी गुलाबी चूत में।

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 19

बाजी का जिस्म ऐंठा हुआ था। उन्होंने अपना हाथ कामिनी के हाथों में दिया हुआ था। लेकिन आँख से आूँसू मुस्तकिल बह रहे थे। मुझको भी यही एहसास हो रहा था। मेरा लंड एक बहुत ही तंग लेकिन गरम सुराख में रेंगता हुआ आगे बढ़ रहा था। मेरा लंड आधा दीदी की चूत में जा चुका था।

अचानक दीदी की दर्द में डूबी आवाज आई-“आहह… प्रेम बस करो… आज एहसास हुआ बहुत ही लंबा है तुम्हारा लंड तो। ऐसा लगता है मर जाउन्गि। ख़तम होने का नाम ही नहीं ले रहा।

मैं बोला-“दीदी अभी तो आधा गया है…”

दीदी बोलीं-“हाई… अभी आधा गया है और मेरा दर्द से बुरा हाल है। तुम ऐसा केरो प्रेम जितना जा चुका है बस उतना ही डालकर आगे पीछे करो जब इतना सुराख खुल जाए तो फिर आगे बढ़ाना…”

मैंने सिर हिलाते हुये अपना लंड वापिस खींच लिया। वो दीदी की चूत की दीवारों से रगड़ खाता हुआ वापिस आ गया।

दीदी की एक जबरदस्त चीख निकल गई। मैंने देखा लंड पर काफी नमी लगी हुई थी। अब मैंने दोबारा डाला। दीदी की चूत अब काफी गीली हो चुकी थी, इसलिए जरा आराम से चला गया। मैं आहिस्ता आहिस्ता आगे पीछे करने लगा। लेकिन शायद दीदी यह भूल गईं थीं की यूँ आगे पीछे करने से मेरा क्या हाल होगा। यकीन जानिए दोस्तों मैं तो गोया हवा में उड़ने लगा।

मेरा बस नहीं चल रहा था की मैं अपने पूरे वजूद के साथ दीदी की चूत में घुस जाऊँ। मैंने सोचा जो होगा देखा जाएगा। और एक जबरदस्त झटके से मेरा लंड दीदी की चूत की सारी रुकावटों को तोड़ता हुआ उन गहराइयों में गुम हो गया और मैं तो पागल ही हो गया। मेरा लंड, मोटा और लंबा लंड, जो कभी कामिनी और दीदी अपने मुँह में पूरा ना ले सकी थीं।

आज दीदी की चूत में पूरा गायब हो चुका था। और दीदी की तो चीखें आसामान फाड़ रही थीं। और वो बहुत ही नंगी नंगी गालियाँ मुझे दे रही थीं। उनकी आँखों से आूँसू बह रहे थे। कामिनी अलग सहमी हुई बैठी थी। और मैं अपना लंड अंदर घुसाए मजे से दीदी के मम्मे चूसने में लगा हुआ था। दीदी की आवाजों में कमी आने लगी। वो आहिस्ता आहिस्ता मध्यम पड़ने लगीं। और मुझे भी कुछ कमी का एहसास हुआ। मैंने एक झटके से लंड को चूत से वापिस खींचा।

और दोस्तों दीदी की चूत से खून तेज़ी से बहने लगा। मेरे लंड पर भी काफी खून लगा था। दीदी की चीखें अब फिर मेरे कान फाड़े दे रहीं थीं। वो ना जाने क्या क्या बके जा रहीं थीं। रो रही थीं। लेकिन ना तो मुझे हटाया और ना टांगें बंद की। मैंने फिर अपना लंड उसी खून बहाती चूत में डाल दिया।

मैं झटके मार रहा था। मेरा बस नहीं चल रहा था। मुझे अपने लंड पर गुस्सा आ रहा था की यह इतना छोटा क्यों पड़ गया। अभी तो आगे जाना था आगे और भी गहराइयां थीं। लेकिन मेरा लंड बस इतनी ही गहराई में जा सकता था। और आप जानिए यह गहराइयां भी कमोबेश 9 इंच तक थीं।

दीदी की आवाज रुक चुकी थी। वो बे-सुध पड़ी थीं। हाँ मेरे झटके मारने से उनका जिस्म हिल रहा था वरना उनके जिस्म में कोई तहरीक (हरकत ) ना थी। और फिर मेरा फौवारा छूटा और मेरी मनी उन गहराइयों में बहती ना जाने कहाँ गई। और मैं हारे हुये खिलाड़ी की तरह दीदी के मम्मों पर गिर कर सांसें लेने लगा। और ना जाने कब सो गया।

आँख खुली तो दीदी मुझे जगा रही थी-“उठो प्रेम… जागो… मेरे ऊपर से उठो…”

मैं हड़बड़ाकर उठ बैठा। ऐसा करने से मेरा लंड जो दीदी की चूत में ही सिकुडा पड़ा था। और मनी के जमने की वजह से चूत की अन्द्रुनी दीवारों से चिपक सा गया था, खिंचता हुआ दीदी की चूत से बाहर निकला। दीदी की चीख निकल गई।

कामिनी भी जो सो चुकी थी उठ बेठी। कामिनी ने पूछा-“दीदी बहुत तकलीफ हुई क्या… मैं तो नहीं लूंगी कभी अपनी चूत में भाई का लंड…”

दीदी मुश्कुराते हुये-“अरे कामिनी तुझे क्या मालूम कितना मजा आया है मुझे…”

कामिनी बोली-“और यह क्या है दीदी…” उसका इशारा दीदी की चूत से बहे हुये जमे हुये खून की तरफ था।

“अरे यह तो बस एक बार निकलता है। अभी देखो प्रेम फिर मुझे चोदेगा…”

कामिनी बोली-“दीदी अब आप फिर चीखेंगी…”

दीदी बोलीं-“नहीं… अब नहीं, अब मैं एक नये तरीके से अपनी चूत खुलवाऊूँगी…” यह कहकर दीदी घोड़ी बन गईं…” फिर दीदी ने अपना पेट आगे झुकाते हुये गान्ड को बाहर की तरफ निकाला। ऐसा करने से उनकी चूत एकदम ऊपर की तरफ हो गई।

वो बोलीं-“प्रेम चल अब लंड डाल… हाँ अभी गान्ड के सुराख में ना डालना दोबारा चूत में ही डाल…”

मैं खड़ा हो गया। मेरा लंड तो पहले ही खड़ा हो चुका था। और मैंने अपनी घोड़ी बनी दीदी की चूत में अपना लंड डाल दिया बहुत तकलीफ हुई उन्हें लेकिन अब मैं आराम आराम से झटके दे रहा था। फिर भी हर झटके से वो अपनी गान्ड भींच लेतीं थीं। जिससे चूत और लंड को जकड़ लेती। इससे पता चलता था की लंड के उनकी चूत में चलने से उन्हें तकलीफ हो रही है।

खैर, कुछ ही देर बाद मेरी मनी दीदी की चूत में भर चुकी थी और मैं सो गया।

To be Continued

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