अजीब नमकीन जायका था। तेज और तल्ख़ सा, और उसमें महक बहुत ज्यादा थी। शुरू में हलक से उतारने के बाद वो तल्ख़ लगा लेकिन फिर अच्छा लगा। और मैंने दोबारा मुँह उसकी चूत पर रख दिया। पेशाब फिर मेरे मुँह में भरने लगा और मैं पीने लगा। कुछ ही देर बाद, मैं उसकी चूत से टपकता पेशाब चाट चाट कर साफ कर रहा था। और कामिनी भी आँख बंद किए हुये थी। खैर फिर हम दोनों उठे।
आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 10
वो मेरी तरफ देखते हुये बोली-“प्रेम भाई कैसा जायका था। मनी जैसा था क्या?”
मैं बोला-“नहीं उससे बहुत अलग था लेकिन अच्छा था। तू पीएगी…”
वो बोली-“अरे मेरा मुँह मेरी चूत तक कैसे जाएगा?”
मैं बोला-“अरे जब मुझको पेशाब आए तो तू मेरे लंड से पी लेना…”
वो बोली-“ठीक है… लेकिन प्रेम भाई आप मेरी चूत से मनी कब निकलवाओगे। उसकी निगाहों में एक हसरत थी…”
मैं बोला-“चल अभी करते हैं फिर नहा लेंगे…”
वो बोली-“आप बीमर तो नहीं पड़ जाओगे प्रेम भाई…”
फिर बोली-“दीदी ने कहा था की ज्यादा मनी निकलना सही नहीं होता…”
मैं बोला-“यार तू भी ना। तुझको पता है दीदी ने अपनी मनी 3 या 4 बार मेरे मुँह में भरी थी, तब वो शांत हुई थीं और हमको नसीहत कर रहीं हैं…”
कामिनी हैरत से बोली-“दीदी की चूत ने इतनी मनी छोड़ी थी, और तुम वो सब पी गये…”
मैं बोला-“हाँ… इतने मजे की जो थी…”
वो बोली-“प्रेम भैया… मेरी चूत से निकली मनी मुझको भी चखाओ ना…”
वो मासूम थी, और मैं भी। हमारी बातें आपको ना जाने कैसी लग रहीं हों और आप ना जाने क्या सोच रहे हों। लेकिन आप की दुनियाँ तहज़ीब की दुनियाँ है जहाँ कुछ कानून लागू होते हैं। हम पर कोई कानून लागू ना था। हम मासूम थे। और हर वो चीज हमको दिलचस्पी प्रदान कर रही थी जो नई थी।
खैर, मैं और कामिनी नदी के करीब लगे दरख़्तों में से एक घने दरख़्त की छांव में आकर लेट गये। मैं कामिनी के मम्मों पर सिर रख लेटा था। वो मेरा सिर सहला रही थी। मैं आहिस्ता आहिस्ता उसकी चूत पर हाथ फेर रहा था। मैं बस उसकी चूत की खूबसूरती को महसूस कर रहा था। लेकिन उसकी सांसें तेज होनी लगीं और टांगें आहिस्ता आहिस्ता खुलने लगीं। मैं उठ बैठा और उसकी टांगें खोलकर दरम्यान में जाकर बैठ गया और गौर से उसकी चूत की तरफ देखने लगा।
मैं बोला-“देख कामिनी तेरी चूत कितनी हसीन है…”
यह सुनकर वो भी उठकर बैठ गई और अपनी टांगें खोलकर झुक कर अपनी चूत को देखने लगी बोली-“अब चूसोगे कब तुम या देखते ही रहोगे…”
मैंने उसको लिटाया और उसकी खुली हुई गरम चूत पर अपना मुँह रख दिया। क्या गरम और नरम थी कामिनी की चूत और दोस्तों में सच कह रहा हूँ उसका टेस्ट दीदी की चूत से बिल्कुल अलग था। मैंने जबान की नोक अंदर दाखिल की, जैसा दीदी ने सिखाया था उसकी हल्की सी सिसकियों की आवाज आई।
मैं समझ गया उसको मजा आया है। मैं जबान अंदर बाहर करने लगा। मेरी नाक उसकी कोरी चूत के ऊपरी हिस्से पर टिकी थी और उसकी कुंवारेपन की हसीन महक मेरे तन मन में समाती जा रही थी। मेरी आँख बंद हुई जा रहीं थीं।
बेहद मस्त कर देने वाली चूत थी मेरी बहन कामिनी की। बहुत नशा था उसमें। मैं बेताब होकर उसके गुलाबी लब होंठों में दबाकर चूसने लगा। और जबान चूत के अंदर ही थी। उसकी मुत्ठियाँ भिन्ची हुई थीं। और फिर उसने मेरे बाल पकड़कर बिल्कुल दीदी की तरह अपनी चूत से मुझको चिपका दिया और मैंने चूसना शुरू किया।
ऐसा लगता था, उसका खून सिमटकर उसके चेहरे पर आ गया था। उसकी गिरफ़्ट मेरे बालों पर सख़्त से सख़्त होती जा रही थी। और मैं और लंबी सांसें खींच रहा था। और उसकी चूत के अन्द्रुनी हिस्सों तक से सिमट कर उसका मजेदार रस मेरे मुँह में आता जा रहा था। और फिर वो बहुत शानदार तरीके से फारिग हुई। बेहद ज्यादा मनी छोड़ी थी उसने। और एकदम ढीली पड़ गई। मैं सारी मनी पीता रहा। उसके हाथ उसके पहलू में पड़े थे, सांसें मध्यम होती जा रहीं थीं। चेहरा मामूल पर आ रहा था। आँख बंद थीं और एक लफानी मुश्कुराहट उसके लबों पर थी।
लेकिन मैं तो अभी उसकी चूत का आख़िरी क़तरा भी अपने लबों से चूसने में मगन था। जब आख़िर चूत से रस बहना बंद हुआ तो मैंने आख़िरी दफा एक जोरदार सांस खींचा और पटाखे की आवाज “चटख” के साथ चूत को अपने होंठों से छोड़ा। मेरे इतनी देर चूसने की वजह से वो सफेद हो चली थी। लेकिन फिर गुलाबी होनी लगी। मैं दोबारा कामिनी के सीने पर लेट गया उसने कोई फिराक ना की। मैंने उसको हिलाया, वो उठ गई उसकी आँख गुलाबी हो चुकी थीं।