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Incest [Completed] आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya

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अजीब नमकीन जायका था। तेज और तल्ख़ सा, और उसमें महक बहुत ज्यादा थी। शुरू में हलक से उतारने के बाद वो तल्ख़ लगा लेकिन फिर अच्छा लगा। और मैंने दोबारा मुँह उसकी चूत पर रख दिया। पेशाब फिर मेरे मुँह में भरने लगा और मैं पीने लगा। कुछ ही देर बाद, मैं उसकी चूत से टपकता पेशाब चाट चाट कर साफ कर रहा था। और कामिनी भी आँख बंद किए हुये थी। खैर फिर हम दोनों उठे।

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 10

वो मेरी तरफ देखते हुये बोली-“प्रेम भाई कैसा जायका था। मनी जैसा था क्या?”

मैं बोला-“नहीं उससे बहुत अलग था लेकिन अच्छा था। तू पीएगी…”

वो बोली-“अरे मेरा मुँह मेरी चूत तक कैसे जाएगा?”

मैं बोला-“अरे जब मुझको पेशाब आए तो तू मेरे लंड से पी लेना…”

वो बोली-“ठीक है… लेकिन प्रेम भाई आप मेरी चूत से मनी कब निकलवाओगे। उसकी निगाहों में एक हसरत थी…”

मैं बोला-“चल अभी करते हैं फिर नहा लेंगे…”

वो बोली-“आप बीमर तो नहीं पड़ जाओगे प्रेम भाई…”

फिर बोली-“दीदी ने कहा था की ज्यादा मनी निकलना सही नहीं होता…”

मैं बोला-“यार तू भी ना। तुझको पता है दीदी ने अपनी मनी 3 या 4 बार मेरे मुँह में भरी थी, तब वो शांत हुई थीं और हमको नसीहत कर रहीं हैं…”
कामिनी हैरत से बोली-“दीदी की चूत ने इतनी मनी छोड़ी थी, और तुम वो सब पी गये…”

मैं बोला-“हाँ… इतने मजे की जो थी…”

वो बोली-“प्रेम भैया… मेरी चूत से निकली मनी मुझको भी चखाओ ना…”

वो मासूम थी, और मैं भी। हमारी बातें आपको ना जाने कैसी लग रहीं हों और आप ना जाने क्या सोच रहे हों। लेकिन आप की दुनियाँ तहज़ीब की दुनियाँ है जहाँ कुछ कानून लागू होते हैं। हम पर कोई कानून लागू ना था। हम मासूम थे। और हर वो चीज हमको दिलचस्पी प्रदान कर रही थी जो नई थी।

खैर, मैं और कामिनी नदी के करीब लगे दरख़्तों में से एक घने दरख़्त की छांव में आकर लेट गये। मैं कामिनी के मम्मों पर सिर रख लेटा था। वो मेरा सिर सहला रही थी। मैं आहिस्ता आहिस्ता उसकी चूत पर हाथ फेर रहा था। मैं बस उसकी चूत की खूबसूरती को महसूस कर रहा था। लेकिन उसकी सांसें तेज होनी लगीं और टांगें आहिस्ता आहिस्ता खुलने लगीं। मैं उठ बैठा और उसकी टांगें खोलकर दरम्यान में जाकर बैठ गया और गौर से उसकी चूत की तरफ देखने लगा।

मैं बोला-“देख कामिनी तेरी चूत कितनी हसीन है…”

यह सुनकर वो भी उठकर बैठ गई और अपनी टांगें खोलकर झुक कर अपनी चूत को देखने लगी बोली-“अब चूसोगे कब तुम या देखते ही रहोगे…”

मैंने उसको लिटाया और उसकी खुली हुई गरम चूत पर अपना मुँह रख दिया। क्या गरम और नरम थी कामिनी की चूत और दोस्तों में सच कह रहा हूँ उसका टेस्ट दीदी की चूत से बिल्कुल अलग था। मैंने जबान की नोक अंदर दाखिल की, जैसा दीदी ने सिखाया था उसकी हल्की सी सिसकियों की आवाज आई।

मैं समझ गया उसको मजा आया है। मैं जबान अंदर बाहर करने लगा। मेरी नाक उसकी कोरी चूत के ऊपरी हिस्से पर टिकी थी और उसकी कुंवारेपन की हसीन महक मेरे तन मन में समाती जा रही थी। मेरी आँख बंद हुई जा रहीं थीं।

बेहद मस्त कर देने वाली चूत थी मेरी बहन कामिनी की। बहुत नशा था उसमें। मैं बेताब होकर उसके गुलाबी लब होंठों में दबाकर चूसने लगा। और जबान चूत के अंदर ही थी। उसकी मुत्ठियाँ भिन्ची हुई थीं। और फिर उसने मेरे बाल पकड़कर बिल्कुल दीदी की तरह अपनी चूत से मुझको चिपका दिया और मैंने चूसना शुरू किया।

ऐसा लगता था, उसका खून सिमटकर उसके चेहरे पर आ गया था। उसकी गिरफ़्ट मेरे बालों पर सख़्त से सख़्त होती जा रही थी। और मैं और लंबी सांसें खींच रहा था। और उसकी चूत के अन्द्रुनी हिस्सों तक से सिमट कर उसका मजेदार रस मेरे मुँह में आता जा रहा था। और फिर वो बहुत शानदार तरीके से फारिग हुई। बेहद ज्यादा मनी छोड़ी थी उसने। और एकदम ढीली पड़ गई। मैं सारी मनी पीता रहा। उसके हाथ उसके पहलू में पड़े थे, सांसें मध्यम होती जा रहीं थीं। चेहरा मामूल पर आ रहा था। आँख बंद थीं और एक लफानी मुश्कुराहट उसके लबों पर थी।

लेकिन मैं तो अभी उसकी चूत का आख़िरी क़तरा भी अपने लबों से चूसने में मगन था। जब आख़िर चूत से रस बहना बंद हुआ तो मैंने आख़िरी दफा एक जोरदार सांस खींचा और पटाखे की आवाज “चटख” के साथ चूत को अपने होंठों से छोड़ा। मेरे इतनी देर चूसने की वजह से वो सफेद हो चली थी। लेकिन फिर गुलाबी होनी लगी। मैं दोबारा कामिनी के सीने पर लेट गया उसने कोई फिराक ना की। मैंने उसको हिलाया, वो उठ गई उसकी आँख गुलाबी हो चुकी थीं।

To be Continued

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लेकिन मैं तो अभी उसकी चूत का आख़िरी क़तरा भी अपने लबों से चूसने में मगन था। जब आख़िर चूत से रस बहना बंद हुआ तो मैंने आख़िरी दफा एक जोरदार सांस खींचा और पटाखे की आवाज “चटख” के साथ चूत को अपने होंठों से छोड़ा। मेरे इतनी देर चूसने की वजह से वो सफेद हो चली थी। लेकिन फिर गुलाबी होनी लगी। मैं दोबारा कामिनी के सीने पर लेट गया उसने कोई फिराक ना की। मैंने उसको हिलाया, वो उठ गई उसकी आँख गुलाबी हो चुकी थीं।

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 11

वो बोली-“बहुत मजा आया प्रेम भाई…”

मैं बोला-“तू ने मेरा लंड तो चूसा नहीं…”

वो बोली-“अब चूसूं?”

मैं बोला-“कुछ देर आराम कर ले फिर दोनों एक दूसरे को चूसेंगे…”

वो सिर हिलाकर खामोश हो गई और आँख बंद कर लीं।

थोड़ी देर बाद मैं दोबारा उसकी चूत पर मुँह रखे मजे से उसका रस चूस रहा था लेकिन अबकी दफा वो खुद भी मेरा लंड मुँह में लिए हुए थी। हम करवट के बल पड़े थे, मेरा मुँह उसकी चूत पर था और उसका मुँह मेरे लंड पर, मैं उससे लंबा था इसलिए उसकी चूत को मुँह में लेने के लिए मुझको थोड़ा सा टेढ़ा लेटना पड़ा। वो बहुत आराम से मेरा लंड चूस रही थी और बिल्कुल दीदी की कापी कर रही थी मेरे नीचे लटकते हुये टट्टे भी चाट रही थी, और हलक तक मेरा लंड लेने की कोशिस करती, लेकिन नाकाम रहती। उसके लिए वो बड़ा था। खैर वो दोबारा फारिग हुई, अबकी दफा कम मनी छोड़ी। लेकिन मेरी मनी भी उसके साथ ही निकली और उसके हलक में एक धार की सूरत में गई।

हालांकी मैंने मनी छोड़ते हुये उसका मुँह अपनी रानों में दबा लिया था और फिर उसके मुँह में मनी छोड़ी थी। लेकिन पहली मनी की धार ने उसको बोखला दिया और उसको गंदा लग गया और मनी उछलकर उसके चेहरे पर फैल गई। उसको खासी हो रही थी, और वो मेरी पूरी मनी ना पी सकी। बाद में उसने निकली हुई मनी चाटकर देखी लेकिन अब वो जमती जा रही थी। फिर हम दोनों नहा कर बाहर आए।

मैं कामिनी से बोला-“कामिनी पेशाब आ रहा है मुझको पीएगी…”

वो बोली-“हाँ… प्रेम भाई। मनी तो पी नहीं सकी पेशाब ही पी कर देख लेती हूँ…”

मैं खड़ा होकर पेशाब करने लगा।

वो मेरे पास बैठ गई उकड़ू और लंड से पेशाब निकलते देखने लगी। जब पेशाब की धार हल्की हुई तो उसने लंड को हाथों में पकड़कर अपने मुँह में ले लिया, पेशाब की धार उसके मुँह में गायब हो गई। कुछ उसकी बगलों से बाहर आने लगा और जितना उसके हलक से उतर सकता था। वो पीने लगी। आख़िर पेशाब आना बंद हो गया। उसने मुँह को बंद किया, मेरा लंड मुँह में दबाकर चुसते हुये छोड़ दिया।

वो कहने लगी-“अच्छा था प्रेम भाई। लेकिन मनी ज्यादा अच्छी थी। तुम सही कह रहे थे…”

मैं बोला-“अब तुझे तेरी चूत से निकली मनी चखाऊूँगा किसी दिन…”

वो सिर हिलाते हुई चल पड़ी और हम दोनों झोंपड़े की तरफ बढ़ने लगे। जब हम पहुँचे तो दीदी खाना बनाकर हमारा इंतिजार कर रहीं थीं। हमको देखकर बोलीं-“कहाँ मजे कर रहे थे तुम दोनों…”

कामिनी फौरन बोली-“दीदी अभी भाई ने मेरा पेशाब पिया था और मैंने उनका…”

दीदी ने चौंक कर कहा-“क्यों प्रेम… तू ने पेशाब क्यों पिया कामिनी का। किसने सिखाया तुझको…”

मैं बोला-“दीदी कामिनी की चूत से निकलता पेशाब देखकर मैंने सोचा की मनी भी तो चूत से निकलती है वो इतनी मजेदार थी तो पेशाब भी मजे दार होगा…”

दीदी बोली-“पागल आयन्दा नहीं पीना। बीमार हो जाओगे। मनी पीना बुरी बात नहीं और ना ही उसको पीकर बीमार होते हैं लेकिन पेशाब तो गंदगी है…”

मैं बोला-“लेकिन दीदी कामिनी का पेशाब तो इतने मजे का था…”

दीदी ने कामिनी की तरफ देखा और कहा-“तू ने भी पिया इसका पेशाब कामिनी…”

कामिनी ने सिर हिला दिया।

दीदी बोलीं-“अच्छा देखो कभी कभी जब बहुत ही मन करे तो पेशाब बस चख लिया करो, सिर्फ़ चखना पीना मत। ठीक है, वरना मनी ही चूसा करो एक दूसरे की…”

मैं बोला-“दीदी मैंने अभी कामिनी की मनी दो बार चूसी है और कामिनी ने मेरी एक बार…”

दीदी बोलीं-“अच्छा तो तुम दोनों वहाँ यह खेल खेल रहे थे…”

हम दोनों मुश्कुराने लगे। दीदी बोलीं-“अच्छा अब खाना खा लो, भूखे होगे तुम दोनों। मैं जरा नहाकर आ जाऊूँ नदी से, प्रेम की मनी मेरे सीने पर और मेरी चूत से निकली मनी अब खारिश कर रही है…” यह कहते हुये वो नदी की तरफ चली गई।

To be Continued

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दीदी बोलीं-“अच्छा देखो कभी कभी जब बहुत ही मन करे तो पेशाब बस चख लिया करो, सिर्फ़ चखना पीना मत। ठीक है, वरना मनी ही चूसा करो एक दूसरे की…”

मैं बोला-“दीदी मैंने अभी कामिनी की मनी दो बार चूसी है और कामिनी ने मेरी एक बार…”

दीदी बोलीं-“अच्छा तो तुम दोनों वहाँ यह खेल खेल रहे थे…”

हम दोनों मुश्कुराने लगे। दीदी बोलीं-“अच्छा अब खाना खा लो, भूखे होगे तुम दोनों। मैं जरा नहाकर आ जाऊूँ नदी से, प्रेम की मनी मेरे सीने पर और मेरी चूत से निकली मनी अब खारिश कर रही है…” यह कहते हुये वो नदी की तरफ चली गई।

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 12

आप सब जानते हैं अब हमारी जिंदगी बेहद हसीन थी। हम यानी मेरी दीदी राधा, मेरी छोटी बहन कामिनी और मैं प्रेम। जिंदगी का शायद हसीन तरीन वक्त गुजार रहे थे। उस दिन मैंने अपनी दोनों बहनों की चूतें चूसी, उनका रस पिया। उन दोनों ने मेरा लंड चूसा और आख़िर में मैंने और कामिनी ने एक दूसरे का पेशाब पिया।

अब हम तीनों इसी तरह दिन-ओ-रात गुज़ारते। दीदी रात में कामिनी को सामने बिठाकर मुझसे मजे लेतीं और मेरी मनी चूसकर सो जातीं और जाहिर है मेरी उमर इतनी ज्यादा ना थी की मैं अपनी दोनों बहनों की गर्मी दूर कर पाता।

फिर सुबह उठकर मैं नदी पर कामिनी के साथ वक्त गुज़ारता और उसके वजूद में सुलगती आग को उसकी चूत का रस पीकर बुझाता और हम दोनों हँसते मुश्कुराते नहा कर नदी से वापिस आ जाते। यूँ ही शब-ओ-रोज गुजरने लगे।

यह सर्दियों के दिन थे, मुझे याद है। यानी डिसेंबर था शायद और साल था 1945। इस हिसाब से यहाँ आए हमें 8 साल होने को थे। काफी अरसा हो गया था हमें यहाँ आए। मेरा जिस्म अब मजबूत होता जा रहा था। और फिर अब यह चूत चूसना और लंड चुसवाना यानी जिस्म की जिन्सी ज़रूरतें भी बहुत खूबी से पूरी हो रहीं थीं।

और फिर उम्दा और अच्छी खुराक, खुली और सेहतबख़्श फ़िज़ा और फिर तन आसानी। कोई खास काम काज तो था नहीं सारा दिन बस फ़ुर्सत ही फ़ुर्सत। इन्हीं चीजों ने मुझको अपनी उमर से बड़ा बना दिया था शायद और मैं जो ** साल का होने को था अपनी उमर से कई गुना बड़ा 20 साल का लगता था। और मेरी दीदी राधा अब 23 साल की हो रही थी। और उसी हिसाबसे भरपूर जवान और उमंगों भरी थी। मेरी छोटी बहन कामिनी की उमर ** की होने वाली थी लेकिन अब उसका जिस्म तेज़ी से खूबसूरत होने लगा था। पिछले 8 या 9 महीनों से हम जो खेल खेल रहे थे यानी एक दूसरे की चूत और लंड चूसने का वो अपना रंग दिखा रहा था। मेरी दीदी राधा का जिस्म भरपूर और बहुत हसीन था, गान्ड भारी बिल्कुल गोल और टाइट थी। और चलते सेमय बेहद मधुर तरीके से हिलती थी।

मम्मे गोल और टाइट, उनके निप्पल जो पहले बिल्कुल गुलाबी थे अब मेरे मुस्तकिल चूसने से वो थोड़े ब्राउनिश हो गये थे। और मम्मों का झुकाव बहुत ही खूबसूरत था। इतने हसीन मम्मों के नीचे पतली कमर जो चलते हुये बल खा जाती थी। हल्का सांवला रंग जिसको धूप ने झुलसा कर बेहद हसीन बना दिया था। और खोबसूरत रानों के बीच वो हसीन तरीन, नरम गरम जगह जिस पर मरता था मैं, जहाँ से मुँह को सुकून मिलता था, जिसको प्यार से चूमता था चुसता था मैं। हाँ… मेरी दीदी की चूत जो मेरे चूसने की वजह से अब कुछ बाहर निकल आई थी। जिसके लबों के दरमिया से अब चूत का अन्द्रुनी हिस्सा झाकने लगा था। एक मुकम्मल और जवान चूत, भरपूर, मस्ती भरी रसभरी बेहद खूबसूरत।

मेरी दीदी की चूत जो मेरे चूसने की वजह से अब कुछ बाहर निकल आई थी। जिसके लबों के दरमिया से अब चूत का अन्द्रुनी हिस्सा झाकने लगा था। एक मुकम्मल और जवान चूत, भरपूर, मस्ती भरी रसभरी बेहद खूबसूरत।

और दूसरी तरफ मेरी छोटी बहन कामिनी, जो अपनी उमर की बेहतरीन साल में थी। यानी ** साल, उसके खूबसूरत मम्मे जो अब काफी उभर चुके थे मेरे चूसने और सहलाने से और उनकी नोकें गुलाबी और ऊपर को उठी हुई थी। उसकी कमर बेहद पतली और नाजुक थी। जिस्म की लचक तो इतनी की डर लगे कहीं टूट ही ना जाए। गान्ड गोल और बाहर निकलती हुई, और फिर इंतिहा नाजुक चूत। जब खुलती थी तो अंदर का मंजर, ताव लाना मुश्किल हो जाए। जब रस छोड़ती थी तो उस रस का मुकाब्बला ढूँढना नामुमकिन हो जाए। मुझको बहुत पसंद था अपनी बहनों की चूत चूसना।

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मेरी दीदी की चूत जो मेरे चूसने की वजह से अब कुछ बाहर निकल आई थी। जिसके लबों के दरमिया से अब चूत का अन्द्रुनी हिस्सा झाकने लगा था। एक मुकम्मल और जवान चूत, भरपूर, मस्ती भरी रसभरी बेहद खूबसूरत।

और दूसरी तरफ मेरी छोटी बहन कामिनी, जो अपनी उमर की बेहतरीन साल में थी। यानी ** साल, उसके खूबसूरत मम्मे जो अब काफी उभर चुके थे मेरे चूसने और सहलाने से और उनकी नोकें गुलाबी और ऊपर को उठी हुई थी। उसकी कमर बेहद पतली और नाजुक थी। जिस्म की लचक तो इतनी की डर लगे कहीं टूट ही ना जाए। गान्ड गोल और बाहर निकलती हुई, और फिर इंतिहा नाजुक चूत। जब खुलती थी तो अंदर का मंजर, ताव लाना मुश्किल हो जाए। जब रस छोड़ती थी तो उस रस का मुकाब्बला ढूँढना नामुमकिन हो जाए। मुझको बहुत पसंद था अपनी बहनों की चूत चूसना।

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 13

शायद इसलिए की उस वक्त मुझको अपनी खुशियों की तकमील का सिर्फ़ यही एक रास्ता पता था। यानी चूत चूसना और लंड चुसवाना। और फिर जिंदगी में मजीद कुछ तब्दीली हुई। उस रात बेहद सर्दी थी। हम तीनों एक दूसरे के जिस्म में घुसे सोने की कोशिस कर रहे थे। झोंपड़े के एक कोने में आग जल रही थी। हमने अपने ऊपर घास-फूस डाल रखा था। लेकिन फिर भी हमारे जिस्म बुरी तरह काँप रहे थे।

आख़िर दीदी उठ बैठी, बोलीं-“तुम दोनों को सर्दी लग रही है ना…”

हम दोनों ने असबात में जवाब दिए।

दीदी ने कुछ सोचा। फिर बोलीं-“आओ आज हम एक नये तरीके से एक खेल खेलते हैं…”

हम दोनों दिलचस्पी से उठकर बैठ गये।

वो बोलीं-“आज तक हम लोग अलग अलग एक दूसरे को चुसते रहे, आज हम तीनों एक साथ एक दूसरे को प्यार करेंगे और सब एक दूसरे की मनी छुड़वाएूँगे…”

वाकई अच्छा खयाल था यह तो।

दीदी बोलीं-“प्रेम मैं नीचे लेटती हूँ। तुम इस तरह मेरे ऊपर लेट जाओ की तुम्हारा लंड मेरे मुँह पर हो…” यह कहकर दीदी लेट गईं और टांगों को खोल दिया। मैं उनके ऊपर लेट गया अब मेरा मुँह दीदी की खुली हुई चूत पर था। और मेरी नाक में उनकी चूत की खुशगवार महक घुस्सी जा रही थी और मैं बेताब था उसको मुँह में लेने के लिए।

दीदी फिर बोलीं-“अब कामिनी तुम्हारी टांगों में बैठकर अपनी चूत मेरी चूत से मिला लो…” कामिनी आगे आई और दीदी की खुली हुई टांगों के बीच अपनी टांगें खोल कर बैठ गई और आगे की तरफ खिसकने लगी। यहाँ तक की उसकी चूत दीदी की चूत से बिल्कुल मिल गई। अब मैं जलती हुई आग की हल्की सी रोशनी में दो जवान और हसीन चूतों को देख रहा था। दोनों थोड़ी थोड़ी खुली हुई थीं, दोनों बेताब थीं चूसने के लिए। दोनों में अंदर आग थी, दोनों में मधुर रस भरा था और वो दोनों मेरे सामने थीं।

अब दीदी बोलीं-“प्रेम तुम मेरी और कामिनी की चूत चूसो और कामिनी के मम्मे भी साथ ही चुसते रहना मैं तुम्हारा लंड चुसती हूँ…”

मैंने बेताबी से दीदी की चूत पर अपने होंठ रख दिए। बहुत गरम थी और नमकीन। कुछ देर चूसा फिर कामिनी की चूत से मुँह लगा दिया। आह… क्या समा था… क्या हसीन वक्त था… आज भी उस वक्त के लिए मैं अपनी पूरी जिंदगी देने को तैयार हूँ। काश वो वक्त लौट आए। काश…

कुछ देर यूँ ही चलिा रहा उन दोनों की सांसें तेज हो चुकीं थीं। और दीदी मेरा लंड मुँह में लिए उसे चाट रहीं थीं, चूस रहीं थीं, उसको मुँह में घुमा रहीं थीं, बहुत मजे में था मैं। अब कामिनी झुकी थोड़ा सा और अपने मम्मे मेरे होंठों से लगा दिए और मैं उसके जवान मम्मों के अनौखे स्वाद में खो सा गया। मैं उसके निप्पल चुसता रहा। फिर उसने खींचकर मेरे मुँह से निप्पल निकाला और मेरा मुँह दीदी की चूत पर रख दिया। दीदी की चूत रस छोड़ने लगी थी, मैं उसको चूसने लगा।

अचानक मुझे एक खयाल आया। मैंने कामिनी से कहा-“कामिनी तुम भी चूसो दीदी की चूत। देखो मनी छोड़ रही है यह पीकर देखो कितनी मजे की होती है…”

वो हिचकिचाई फिर अगले ही लम्हे उसके नरम लब दीदी की चूत पर थे। दीदी एक लम्हे को चौंकी गर्दन उठाकर अपनी चूत पर झुकी कामिनी को देखा और फिर मुश्कुरा कर आँख बंद कर, मेरा लंड मुँह में घुसा लिया। जैसे इस सारी दुनियाँ में इस लंड के सिवा उन्हें कुछ अजीज ही ना हो। मैं गर्दन उठाए कुछ देर कामिनी को दीदी की चूत चुसते देखता रहा। फिर खुद भी दीदी की रानों पर झुक कर प्यार करने लगा और चाटने लगा। और दीदी की चूत पर मुँह मारने लगा।

कुछ देर बाद कामिनी अपना मुँह मेरे होंठों से टकरा देती थी। और मैं जबान से उसके लबों को चाटने लगता जो दीदी की चूत के रस से नमकीन हो रहे होते थे। इसी तरह अचानक दीदी की चूत एक दम फैलने लगी। मैं समझ गया अब दीदी की मनी निकलने का टाइम आ गया था। मैंने कामिनी का मुँह दीदी की चूत से चिपका दिया और उसके कान में बोला-दीदी मनी छोड़ने वालीं हैं उसको चूसो खूब जोर से। उधर दीदी मेरा पूरा लंड अपने मुँह में लिए अब निहायत ही तेज़ी से अंदर बाहर कर रहीं थीं, उसको होंठों से दबा रहीं थीं। बस वो छूटने को थीं।

और फिर दीदी ने अपना रस छोड़ा, कामिनी को एक झटका सा लगा क्योंकी मेरे कहने की वजह से उसने अपनी पूरी साँस खींचकर दीदी की चूत को प्रेसर लाक किया हुआ था। दीदी की मनी चूत से निकलते ही गोली की तरह कामिनी की हलक तक पहुँची होगी। कामिनी ने पूरी मनी चाटकर जब अपने लब दीदी की चूत से खींचकर अलग किए तो उसके होंठों से दीदी की मनी अब तक टपक रही थी। दीदी शांत हो चुकी थी।

अब वह उठी, मुझको ऊपर से उठाया और बोली-“वाह मेरी बहन ने तो आज काम कर दिखाया…”

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और फिर दीदी ने अपना रस छोड़ा, कामिनी को एक झटका सा लगा क्योंकी मेरे कहने की वजह से उसने अपनी पूरी साँस खींचकर दीदी की चूत को प्रेसर लाक किया हुआ था। दीदी की मनी चूत से निकलते ही गोली की तरह कामिनी की हलक तक पहुँची होगी। कामिनी ने पूरी मनी चाटकर जब अपने लब दीदी की चूत से खींचकर अलग किए तो उसके होंठों से दीदी की मनी अब तक टपक रही थी। दीदी शांत हो चुकी थी।

अब वह उठी, मुझको ऊपर से उठाया और बोली-“वाह मेरी बहन ने तो आज काम कर दिखाया…”

आखिर वो दिन आ ही गया | Aakhir Wo Din Aa Hi Gaya | Part 14

अब उन्होंने हमें फिर हिदायत दीं। अबकी दफा मैं नीचे लेटा फिर दीदी ने कामिनी को अपनी चूत खोलकर उकड़ू मेरे मुँह पर बैठ जाने को कहा, वो अपनी चूत मेरे मुँह पर रखकर बैठ गई। मैंने अपने हाथ उसकी कमर में डालकर उसकी चूत अपने मुँह पर लाक की और उसका सारा रस पीने लगा। वो उकड़ू बैठे बैठे हल्के हल्के अपनी चूत को मेरे मुँह पर रगड़ने लगी। लगता था इस तरीके से चुसवा कर उसको वाकई बहुत लुफ्त मिल रहा था। बैठने की वजह से क्योंकी उसकी चूत खुल गई थी और मेरे चूसने की वजह से उसकी चूत ऊपर उभरी हुई गुठली सी मेरे मुँह में लटकी थी और पूरा गुलाबी घिलाफ की सूरत मेरे मुँह में मेरे हर साँस के साथ मेरे मुँह में आ जाता।

और साँस छोड़ने के साथ वापस सिमट कर उसकी चूत में वापिस चला जाता। वो बहुत मजे में थी और मैं भी उसकी चूत का बेहतरीन मजा लूट रहा था और उसकी चूत से टपकने वाले रस का एक एक क़तरा मेरे हलक में गिरता और मैं फौरन ही उसे हलक से नीचे उतार लेता। अब दीदी ने एक नई फिराक की। वो पहले तो बैठी मेरा लंड चुसती रहीं। फिर मेरी टांगों के बीच में बैठकर मेरे मुँह पर बैठी कामिनी के मम्मे चूसने लगीं और दीदी भी चूंकी उकड़ू ही बैठी थीं तो उसकी चूत मेरे लंड से रगड ने लगी। एक अजीब नशा, एक अजीब सुरूर मेरे रगों में उतरने लगा।

वो अपनी खुली हुई चूत जो अभी तक गीली थी और टांगें खोलकर उकड़ू बैठने की वजह से पूरी तरह खुली हुई थी, यानी चूत के दोनों लब तो उन दोनों गुलाबी लबों ने मेरे लंड पर एक गुलाबी रेशमी घलाफ सा चढ़ाहा दिया और दीदी उन लबों को मेरे लंड पर आहिस्ता आहिस्ता फेरने लगीं। और कामिनी के मम्मे चुसती रहीं। उनको भी बेहद मजा आ रहा था। शायद मेरा लंड उनकी चूत को रगड़ कर उनको एक अनोखा ही मजा दे रहा था। यानी जो हाल मेरा था वोही उनका था। और मेरी तो एक आग भड़क उठी थी, मैंने उसी के जोर-ए-असर आकर कामिनी की चूत को इस बुरी तरह चूसा की उसकी सिसकियाँ पूरे झोंपड़े में गूंज उठीं। और उसकी चूत तेज़ी से पानी छोड़ने लगी, जिसको मैं मुँह भर भर कर पीने लगा। और फिर उसने दीदी को अपने सीने में भींच लिया।

दीदी ने भी उसकी हसीन निपल्स को होंठों में दबा लिया और उधर नीचे मैं अपना काम कर रहा था। और फिर कामिनी की गरम गरम मनी से मेरा मुँह भरना शुरू हुआ और क्योंकी वो मेरे ऊपर थी और बैठी हुई थी इसलिए बहुत ही भरपूर तरीके से उसकी मनी सीधे मेरे हलक में गिरने लगी। और वो एकदम ढीली पड़ गई। मैंने उसकी चूत से मनी का आख़िरी क़तरा भी खींच लिया अपने मुँह में।

वो निढाल सी मेरे बराबर ही गिर गई। लेकिन अब दीदी अपनी चूत मेरे लंड पर रगड़ कर बहुत ही गरम हो चुकी थी। और वो मेरी टांगों पर लेटी हसरत भरी निगाहों से मेरे लंड को देख रही थी, उसे सहला रही थी। उसको चूस रही थी। मैं एकदम दीदी के मुँह में झरना शुरू हो गया और मेरी मनी दीदी ने चूस चूसकर साफ कर दी। मैं अब ढीला पड़ा था लेकिन दीदी अभी और कुछ करने के मूड में थीं। उनका बदन दोबारा अकड़ने लगा था, मम्मे तन चुके थे। वो मेरे ढीले पड़े लंड को मुँह में लिए पड़ीं थीं, और एक हाथ से कामिनी की चूत सहला रही थीं। यह देखकर मेरा लंड दोबारा खड़ा होने लगा। मैं अपने हाथों से कामिनी के मम्मे सहलाने लगा फिर अपना मुँह उनपर रखकर उसकी निप्पल चूसने लगा। उसकी निप्पल अभी तक दीदी के थूक से लिथरे हुये थे। मैं उन्हें चूसने लगा।

आख़िरकार, मेरे मुसलसल चूसने पर वो खड़े होने लगे। वो उठी और दीदी से लिपट गई। अब मेरे सामने मेरी दोनों बहनें लिपटी एक दूसरे को चूम रहीं थीं। एक दूसरे के होंठों को चूसा उन्होंने, फिर मम्मे चूसने लगीं कामिनी दीदी के मम्मे चूस रही थी और दीदी उसकी चूत को उंगली से सहला रही थी। फिर दीदी कामिनी के कमसिन मम्मों को मुँह में दबाए चुसती रही और फिर अपना मुँह नीचे करके कामिनी की गीली चूत पर अपने लब रख दिए। यह सब देखकर मेरा लंड झटके खा रहा था।

मैं अपना लंड अपने हाथ से सहला रहा था अब वो दोनों एक दूसरे पर लेटी एक दूसरे की चूत चूस रहीं थीं। और फिर मेरी दोनों बहनें मेरे सामने ही फारिग हुई और एक दूसरे के मुँह में अपनी मनी छोड़ दी। कामिनी तो बहुत थक सी गई। और एक तरफ पड़ गई। लेकिन दीदी को मेरा ख्याल था। उन्होंने मेरा पानी बहाता लंड मुँह में लिया और चूसने लगीं और मैंने अपनी मनी दीदी के मुँह में उड़ेल दी। दीदी का मुँह जिसमें से पहले ही कामिनी की मनी रिस रही थी अब मेरी मनी से भर गया और मैं ना जाने किस जहाँ में खो गया। फिर मुझे कोई होश नहीं था, ना सर्दी का एहसास बाकी रह गया था। मैं नहीं जानता कब सुबह हुई, कब दिन निकला।

To be Continued

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