सगा देवर चाहे मेरा न हो लेकिन ममरे चचरे गांव के देवरों की कोयी कमी नहीं थी. खास कर फागुन लगने के बाद से सब उसे देख के इशारे करते, सैन मारते गंदे गंदे गाने गाते । और उनमें सुनील सबसे ज्यादा. उसका चचेरा देवर लगता था सटा हुआ घर था उन लोगों के घर के बगल में ही. गबरु पठ्ठा जवान और क्या मछलियां थी हाथों में, खूब तगडा, । सारी लडकियां, औरतें उसे देख के मचल जाती थीं. एक दिन फागुन शुरु ही हुआ । था,फगुनाट वाली बयार चल रही थी की गन्ने के खेत की बीच की पगडंडी पे उसने मुझे रोक लिया और गाते हुए गन्ने के खेत की ओर इशारा कर के बोला,
बोला, बोला, भौजी देबू देबू की जईबू थाना में.''
होली में खोली चोली | Holi Me Kholi Choli | Part 21
अगले दिन पनघट पे जब मैने जिकर किया तो मेरी क्या ब्याही अन ब्याही ननदों और जेठानीयों की सासें रुकी रह गयी.
एक ननद बेला बोली, अरे भौजी आप मौका चूक गयी. फागुन भी था और रंगीला देवर का रिशता भी आपकी अच्छी होली की शुरुआत हो जाती.” फिर तो ..एक्दम खूल के एक ननद बोली,जो सब्से ज्यादा चालू थी गांव में, अरे क्या लंड है उसका भाभी एक बार ले लोगी तो..
.चंपा भाभी ( जो मेरी जेठानीयों में सबसे बड़ी लगती थीं और जिन्का ‘खुल के गाली देने में हर ननद पानी मांग लेती, दीर्घ स्तना, ४०डी साइज के चूतड) बोली हां हां ये एक दम सही कह रही है, ये इसके पहले बिना कुत्ते से चुदवाये इसे नींद नहीं आती थी लेकिन एक बार इसने जो सुनील से चुदवा लिया तो फिर उसके बाद कुत्तों से चुदवाने की आदत छूट गयी. बेचारी ननद वो कुछ बोलती उसके पहले ही वो बोलीं और भूल गयी, जब सुनील से गांड मरवायी थी सबसे पहले तो मैं ही ले के गयी थी मोची के पास ..सिलवाने.
तब तक हे भौजी की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा, सुनील ही था अपने दो तीन दोस्तों के साथ मुझे होली खेलने के लिये नीचे बुला रह था.
मैने हाथ के इशारे से उसे मना किया. दरवाजा बंद था इस लिये वो तो अंदर आ नहीं सकता था. लेकिन मन तो मेरा भी कर रहा था, उसने उंगली के इशारे से चूत और लंड बना के चुदाई का निशान बनाया तो उसकी बहन गुडिया का नाम लेके मैंने एक गंदी सी गाली दी और साडी सुखाने के बहाने आंचल ठूलका के उसे अपने जोबन का दरसन भी करा दिया. अब तो उस बेचारे की हालत और खराब हो गयी. दो दिन पहले जब वह फिर मुझे खेतों के बीच मिला था तो अबकी उसने सिर्फ हाथ ही नहीं पकड़ा बल्कि सीधे बाहों में भर लिया था उर खींच के गन्ने के खेत के बीच में ...छेड़ता रहा मुझे, “अरे भौजी तोहरी कोठरिया हम झाडब, अरे आगे से झाडब, पीछे से झाडब, उखियों में झाडब रहरियो में झाडब, अरे तोहरी कुठरिया..”
अखिर जब मैने वायदा कर लिया की होली के दिन दूंगी सच मुच में एक दम मना नहीं करूंगी तो वो जाके माना. जब उसने नीचे से बहोत इशारे किये तो मैने कहा की अपने दोस्तों को टाओ तो बाहर आउंगी होली खेलने. वो मान गया. मैं नीचे उतर के पीछे के दरवाजे से बाहर । निकली. मैने अपने दोनो हाथों में गाढा पेंट लगाया और कमर में रंगों का पैकेट खोंसा.
सामने से वो इशारे कर रहा था. दोनो हाथ पीछे किये मैं बढी. तब तक पीछे से उसके दोनो दोस्तों ने, जो दीवाल के साथ छिप के खडे थे, मुझे पीछे से आके पकड़ लिया. मैं । छटपटाती रही. वो दोनो हाथों में रंगपोत के मेरे सामने आके खड़ा हो गया और बोला, क्यों डाल दिया जाय की छोड़ दिया जाय बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाय.
मैं बड़ी अदा से बोली, तुम तीन हो ना तभी...छोडो तो बताती हूं. जैसे ही उसके इशारे पे उसके साथियों ने मुझे छोडा, होली है कह के कस के उसके गालों पे रंग मल दिया.
अच्छा बताता हूं, और फिर उसने मेरे गुलाबी गालों को जम के रगड़ रगड के रंग लगाया. मुझे पकड के खींचते हुये वो पास के गन्ने के खेत में ले गया और बोली असली होली तो अब होगी. हां मंजूर है।
लेकिन एक एक करके पहले अपने दोस्तों को तो हटाओ. उसके इशारे पे वो पास मेंही कहीं बैटः गये. पहले ब्लाउज के उपर से और फिर कब बटन गये कब मेरा साडी उपर सरक गयी ...थोड़ी देर में ही मेरी गोरी रसीली जांघे पूरी तरह फैली थीं, टांगें उसके कंधे पे और वो अंदर. मैं मान गयी की जो चंपा भाभी मेरी ननद को चिढ़ा रही थीं वो ठीक ही रहा होगा. उसका मोटा कडा सुपाडा जब रगड के अंदर जाता तो सिसकी निकल जाती. वो किसी कुत्ते की गांठ से कम मोटा नहीं लग रहा था. और क्या धमक के धक्के मार रहा था, हर चोट सीधे बच्चे दानी पे. साथ में उसके रंग लगे हाथ मेरी मोटी मोटी चूचीयों पे कस के रंग भी लगा रहे थे. पहली बार मैं इस तरह गन्ने के खेत में चुद रही थी मेरे चूतड कस कस के मिट्टी पे, मिट्टी के बडे बडे ढेलों से रगड़ रहे थे. लेकिन बहोत मजा आ रहा था और साथ में मैं उसके बहन का नाम ले ले के और गालियां भी दे रही थी,