कोक शास्त्र का उदय | Kok Shastra Ka Uday
एक बार ब्रज भूमि मैं एसी एक कामुक ओरात पैदा हुई जिस'की चूत मैं हमैशा आग लगी रहती थी. उस'की सदैव एक ही इच्च्छा रहती थी कि उस'की चूत मैं दिन रात मोटा और तगरा लंड रहे. वह हमैशा मर्दों की सोहबत मैं रहती. उसने अपने कई प्रेमी बनाए लेकिन कोई भी उसकी चूत की ज्वाला को शांत नहीं कर पाया. जब उस'की कामाग्नि और बढ़ गई तो उसने अपने सारे वस्त्र उतार दिए और रास्तों पर नंगी ही फिरने लगी.
लोग उस'से तरह तरह के सवाल पूच्छने लगे, जिस'के जबाब मैं वह कहती, "मैं'ने अप'ने सारे कप'रे उतार दिए हैं और जो चाहे मुझे ले सक'ता है और अप'नी मर्दान'जी साबित करे. मैं कसम खाती हूँ मैं जब तक नंगी घूम'ती रहूंगी तब तक की मुझे एसा मर्द न मिल जाए जो मेरी काम की ज्वाला को पूर्ण रूप से शांत कर सके."
एसा कह कर वह ब्रज भूमि के समस्त शहरों मैं घूम'ने लगी. कई लोगों ने उस'की प्यास बुझाने की चेस्टा भी की पर कोई भी सफल न हुआ. इस'से उस'की हिम्मत और बढ़ गई और वह ब्रज की राज'धानी मथुरा के दर'बार मैं नंगी ही पहून्च गई.
यह देख'कर पूरी राज सभा अचम्भित हो गई और एक दर'बारी ने पूचछा,"अरे हरामजादी कुतिया तुम कौन हो और कहाँ से आई हो? इस तरह से राज दर'बार में आने में तुम्हें ज़रा भी लज्जा नहीं आई."
तब वह पूरी सभा की और बिल्कुल निडर'ता से मूडी और बोली,"अरे हराम'जादे मुझे तुम क्या कुत्ती बोल रहे हो. तुम तो साले सब के सब हिंज'रे हो. क्या यहाँ एक भी एसा मर्द मौजूद है जो मेरी वास'ना शांत कर सके. अरे तुम लोगों ने तो अप'ने रनिवास और हारमों मैं रंडिया पाल रखी है जिन'की आग तुम आप'ने लौरों से नहीं बल्कि उन्हें धन दौलत और जेवर देकर बूझाते हो." वह अप'ने चुत्तऱ पर हाथ रखे हुए और अप'नी मस्त चूचियों को आगे उभार'ती हुई पूरी सभा को लल'कारे जा रही थी.
फिर उस'ने अप'नी टाँगें फैलाई और इस प्रकार पूरी सभा को अप'नी भोस'री ठीक से दिखाई और कहा, "अरे मथुरा के दर'बार के हिंज'रों देखो, तुम सारे के सारे चूतिए हो, अगर किसी मैं दम है तो मेरे पास आ जाए."
सारे के सारे दर'बारी आपस मैं चर्चा कर'ने लगे. "इस बेशर्म रन्डी का क्या उपा'य किया जा'य जो सरे आम हमारी बेइजाती कर रही है."
तभी सभा मैं से एक रंजीत सिंग नाम के राजपूत ने दर'बारियों से कहा,"मेरे दर'बारी दोस्तों! मैं अप'ने आप को इस दर'बार की इज़्ज़त बचाने के लिए समर्पित कर'ता हूँ. मैं अलग अलग जाती की 10 ओरटों के साथ रहा हूँ और मुझे काम का अच्च्छा ख़ासा अनुभव है. मुझे आगे बढ़'ने दीजिए मैं इस'की चुनौती स्वीकार कर'ता हूँ."
यह सुन'कर दर'बारियों के चह'रे खिल गये और रंजीत सिंग ने राजा से आग्या माँगी की उसे इस ओरात के साथ एक रात बिताने दी जा'य. उसे आग्या मिल गई और वह उसे अप'ने महल मैं ले गया. रात मैं उस'ने हर तरह से कोशीस की पर वह उस ओरात की काम अग्नि शांत न कर सका. उस ओरात ने उसे बूरी तरह से निचौऱ लिया.
दूसरे दिन वह बहुत ही थका हुआ राज'दरबार मैं पाहूंचा और अप'नी हार स्वीकार कर ली. "महाराज! मुझे क्षमा करें. मैं अप'नी हार स्वीकार कर'ता हूँ. यह ओरात मेरे बस की नहीं."
वह ओरात भी वहाँ मौजूद थी और दुगुने जोश से कहे जा रही थी,"अरे राजपूतों तुम पर शर्म है. तुम केवल बऱी बऱी बातें कर'ना जान'ते हो. इस सभा मैं एक भी मर्द का बच्चा नहीं है. अरे तुम से तो हिंज'रे ही भले. यह सिद्ध हो गया कि राजपूत लंड एक कम'ज़ोर लंड है."
राज'दरबार मैं सन्नट छा गया और दर'बारियों ने अप'ने सर झुका लिए. किसी के मूँ'ह से बोल नहीं फूट रहा था. तभी राजा ने सभा का सनाट भंग कर'ते हुए कहा, "हे रंजीत सिंग तुम'ने पूरी राजपूत जाती की नाक कटा दी. अब हम क्या कर सक'ते हैं? अब यह ओरात और शोर मचाएगी और पूरी राजपूत जाती की बाद'नामी करेगी. इस'की तुम्हें सज़ा मिलेगी."
"महाराज! क्षमा करें, क्षमा करें. यह ओरात एक नंबर की रन्डी और कुत्ती है. मैने अप'ने जीवन मैं एसी कामिनी ओरात नहीं देखी. पता नहीं इस'की चूत मैं क्या है, शायद कोई जादू टोना जान'ती हो."
यह सुन कर एक दूसरा राजपूत हीरो आगे आया, जिस'का नाम मान सिंग था. वह आप'नी जवानमर्दी के लिए विख्यात था. उस'ने उस ओरात के साथ एक रात बिताने की इच्च्छा जाहिर की. उस'ने दावा किया कि वह उस'की एसी चुदाई करेगा की रन्डी आने वाले 10 दिनों तक चल भी नहीं पाएगी. सारे दर'बारी बहुत खुस हुए और एक स्वर से महाराज से वीं'टी की कि मान सिंग को एक मौका दिया जा'य.
"ठीक है मान सिंग हम तुम्हें यह मौका देते हैं. पर ख़याल रहे यदि तुम काम'याब नहीं हुए तो हम तुम्हें देश निकाला दे देंगे."
"महाराज यदि मैं अस'फल रहा तो राज'सभा को अप'ना मूँ'ह नहीं दिखऊन्ग." एसा कह कर मान सिंग उस ओरात को आप'ने साथ ले गया.
उस रात मान सिंग ने उस'की कस के चुदाई क़ी. मान सिंग ने उस के अंदर 3 बार अप'ना वीर्या झाड़ा पर वह ओरात फिर भी सन्तुश्ट नहीं हुई. वह चोथी बार मान सिंग को चुदाई कर'ने के लिए उक्'साने लगी, पर उस'में और ताक़त नहीं बची थी. वह सुबह उस ओरात को सोता छोड़ के ही न जाने कहाँ चला गया.
दूस'रे दिन वह ओरात अकेली और बिल'कुल नंगी फिर दर'बार मैं पाहूंची. उस ओरात को दरबार मैं देख'ते ही राजा के साथ साथ सारे दर'बारी भी सक'ते मैं आ गये. वह कह'ने लगी,
"महाराज! मैने आप राजपूतों की ताक़त देख ली. आप'का लौंडा तो न जाने कहाँ चला गया. किसी राजपूत लंड मैं और ताक़त बची है तो ज़ोर आज'मा ले."
सारे दर'बारियों के सर शर्म से झुक गये. तभी एक दुबला पतला ब्राह्मण आगे आया. उस ब्राह्मण का नाम कोका ज्योत्शी ( राज शर्मा )था और वह दर'बार का ज्योत्शी था. उस'ने कहा,
"महाराज आप एक अव'सर मुझे दें. यदि मेरी हार हो जाती है तो सारे दर'बार की हार मान ली जाएगी."
इस पर सारे राजपूत बहुत क्रोधित हुए. यह दुब'ला पात'ला ज्योत्शी अप'ने आप को क्या समझ'ता है. इस उम्र में इस'की मति क्यों फिर गई है. एक दर'बारी चिल्ला कर बोला,
"अरे जब बड़े बड़े राजपूत लंड इस ओरात की चूत की गर्मी ठन्डी नहीं कर सके तो तेरा छोटा सा ज्योत्शी लंड क्या कर लेगा. यह तो सब जान'ते हैं कि क्षत्रिया लंड के मुकाब'ले ब्राह्मण लंड छ्होटा और कम'ज़ोर होता है."
चारों तरफ से लोग उस'के सुर मैं सुर मिलाने लगे. और उस ब्राह्मण का हंस हंस के उप'हास उड़ाने लगे. पर ब्राह्मण शांत था और राजा के बोल'ने का इंत'ज़ार कर रहा था. जब दर'बारी शांत हो गये तो राजा ने कहा,
"राजपूत जाती के श्रेस्ठ व्यक्ति भी इस ओरात की प्यास बुझाने मैं असफल रहे हैं. हम अब'तक असफल रहे हैं और यदि अब हम'ने इस ओरात को एसे ही जाने दिया तो हम अप'ने सर कभी भी उँचे नहीं उठा सकेंगे. हम मैं से कोई भी ब्रज की नारी को छ्छूने की कभी भी हिम्मत नहीं जुट पाएगा. अब यदि इस ज्योत्शी के अलावा और कोई इस ओरात के साथ रात बिताना चाह'ता है तो वह आगे आए. नहीं तो इस ज्योत्शी को मौका नहें देना अन्याय होगा."
राजा की यह बात सुन'कर सभा मैं एक बार फिर सन्नाटा छा गया. कोई भी आप'नी बेइज़्ज़ती के डर से आगे नहीं आ रहा था. तब राजा ने कोका पंडित को आग्या दे दी. कोका उस ओरात को अप'ने घर ले गया.
कोका पंडित ने सारी समस्या पर गंभीर'ता से विचार किया और उस'ने ठान लिया कि वह जल्द बाजी से काम नहीं लेगा. रात मैं वे दोनों एकांत मैं अप'ने कम'रे मैं आए और कोका ने अप'नी धोती उतारी. धोती के उतार'ते ही कोका के लंड और उस'के शरीर की कम'ज़ोर बनावट को देख वह ओरात हंस पड़ी और कह'ने लगी, "पागल ज्योत्शी तुम्हारा लंड तो दूस'रे राजपूतों के लंड, जिन्हों ने मुझे चोदा, उनसे आधा भी नहीं है. अरे तुम से तो सीधा खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा है फिर भी तुम सोच रहे हो मेरी प्यास बुझा दोगे. तुम पागल ही नहीं पूरे अक्खऱ और सन'की भी हो."
कोका ने कहा, "हराम'जादी कुतिया आज तुम्हे तुम्हारे लायक कोई आद'मी मिला है. अरे ओरात को शांत कर'ने के लिए लंड का आकार और शरीर का तगड़ा होना ही केवल ज़रूरी नहीं है. मर्द को काम कला आनी चाहिए. मेरा लंड छोटा है तो यह कोई भी योनि मैं आराम से समा जाता है. अब तुम'ने बहुत बातें कर ली. चलो अब अप'नी टाँगें फैलाओ, वैश्या कहीं की."
तब वह बिस्तर पर चित होके लेट गई और अप'नी टाँगें फैला दी. कोका काम कला का जान'कार था जो राजपूत नहीं जान'ते थे. सब'से पह'ले उस'ने चुंबन लेने प्रारंभ किए. वह उस'की जीभ और उपर नीचे के होठों को चूस'ने लगा. वह उस'के होठों को पूरी तरह से जाकड़ उस'का पूरा साँस अप'ने फेफ'रों में ले लेता जिस'से वह बिना साँस के व्याकुल हो छट'पटाने लग'ती और जब कोका उसे छोड़ता तो ज़ोर ज़ोर से साँस भर'ने लग'ती. यह क्रिया काफ़ी देर तक चली, जिस'से वह शिथिल पड़'ने लगी.
फिर वह उस'के स्तनों पर आ गया. पह'ले उस'ने धीरे धीरे स्तन मर'दन कर'ना प्रारंभ किया. फिर चूचुक पर धीरे धीरे जीभ फेर'नी शुरू की. इस'से उस ओरात की काम ज्वाला भड़क के सात'वें आस'मान पर जा पाहूंची. वह चूत मैं लंड लेने के लिए व्याकुल हो उठी. पर इधर कोका को कोई जल्दी नहीं थी.
तब कोका उस'की नाभी के इर्द गिर्द जीभ फेर'ने लगा. कभी कभी बीच मैं उस'के पेऱू (पेल्विस) पर झांतों मैं हल्के से अंगुली फिरा देता. साथ मैं वह उस'के नितंबों के नीचे अप'नी हथैली ले जा उन्हे सहलाए भी जा रहा था और उस'के भारी चुट्टरों पर कभी कभी हल'के से नाख़ून भी गाढ रहा था. इन क्रियाओं के फल'स्वरूप वह चुड़ैल ज़ोर ज़ोर से साँस लेने लगी और कोका से चोद'ने के लिए विनती कर'ने लगी.
तब कोका ने आख़िर में उस'की चूत मैं एक अंगुली डाली. कोका धीरे धीरे उस'के चूत के दाने पर अंगुली की टिप का प्रहार कर रहा था. फिर उस'ने दो अंगुल डाली और अंत मैं तीन अंगुल उस'की चूत मैं डाल दी. वह काफ़ी देर तक उस'की अंगुल से चुदाई कर'ता रहा. वह ओरात भी गान्ड उपर उठा उठा के झट'के देने लगी मानो उस'का पूरा हाथ ही अप'नी चूत मैं समा लेना चाह'ती हो.
आधी से अधिक रात्री बीत चुकी थी. ओरात की साँसे उखाड़'ने लगी थी. तब कोका ने बहुत ही शान्ती के साथ उस'की योनि मैं अप'ना लिंग प्रवेश किया. वह ताबाद तोड़ चुदाई के मूड मैं कतई न था. वह लंड को घूमा फिराकार उस'की चूत के अंदर की हर जगह को छ्छू रहा था, उस'की चूत की हर दीवार का घर्सन कर रहा था. जब भी ओरात अप'नी चूत से लंड को कस के निचोड़ना चाह'ती. कोका लंड बाहर निकाल लेता और आसान बदल लेता. उस रात कोका ने 64 बार आसान बद'ले जो काम सुत्र मैं वर्णित हैं. उस'ने हर आसान से उस'की शान्ती पूर्वक चुदाई की. जेसे ही भोर होने को हुआ वह ओरात पूरी तरह से पस्त हो चुकी थी. अब उस मैं हिल'ने डुल'ने की भी ताक़त नहीं बची थी.
बहुत ही धीमी आवाज़ मैं वह कह रही थी, "हे ज्योत्श मेरी जिंद'गी मैं तुम पह'ले आद'मी हो जिस'ने मुझे पूर्ण रूप से तृप्त किया है. किसी ने भी मेरे साथ इस तरह नहीं किया जेसा तुम'ने किया. और तुम्हारी चुदाई हा'य क्या कह'ना. इत'ने तरीकों से भी किसी ओरात को चोदा जा सक'ता है मैं अभी तक आश्चयचकित हूँ. तुम'ने सच कहा था ओरात को सन्तुश्ट कर'ने के लिए बड़े लंड की दर'कार नहीं बल्कि तरीका आना चाहिए. पंडित मैं तुम'से हार गई हूँ और आज से मैं तुम्हारी दासी हूँ. तुम मेरे मालिक हो और इस दासी पर तुम्हारा पूर्ण अधिकार है."
यह सुन'कर कोका ने उसे नित्य कर्म से निवृत हो स्नान कर आने को कहा.
कुच्छ सम'य बाद कोका और वह कम'रे मैं फिर आम'ने साम'ने थे. कोका ने उसे आप'ने पास बैठाया. उसके पाओं मैं पाजेब पहनाई, हाथों मैं चूरियाँ पहनाई फिर सुंदर सी सारी और अंगिया दी. जब वह अच्छी तरह से वस्त्र पहन आई तब कोका ने अप'ने हाथों से उस'का शृंगार कर'ना प्रारंभ किया. हाथों मैं मेहंदी रचाई, पाँव मैं आल'ता, आँखों मैं काजल और फिर हर अंग के आभुश्ण.
फिर कोका ने कहा,
"जो ओरात नंगी रहती है वह एक नंगे छोटे बच्चे के समान है, काम के सुख से सर्वथा अन्भिग्य. तुम नंगी होके सारी दुनिया मैं फिर'ती रही, और तुम्हारे अंदर की नारी समाप्त हो गई. तुम्हारे काम अंगों की सर'सराहट ख़त्म हो गई. अब जो भी तुम्हारी चुदाई कर'ता तुम सन्तुश्ट नहीं होती थी. ओरात वस्त्रा केवल अप'ने अंगों को ढक'ने के लिए नहीं पहन'ती बल्कि अच्छे वस्त्र पहन के बनाव शृंगार कर'के वह अप'नी काम क्षम'ता को बढाती है. इस'से पुरुश उस'की ओर आकर्शित होते हैं. यह बात नारी बहुत अच्छी तरह से समझ'ती है कि वह आकर्शण दे रही है. और इसी मनोस्थिति मैं नारी जब स्वयं आकर्शित होके किसी पुरुश को अप'ना देह सौंप'ती है तभी उसे सच्ची संतुष्टि मिल'ती है."
"आप'ने आज मेरी आँखें खोल दी. पह'ले तो लोग मुझे खिलौना समझ'ते थे. मेरी जेसी अकेली नारी को जिस'ने चाहा जेसे चाहा आप'ने नीचे सुलाया. बात यहाँ तक पाहूंछ गई क़ी मैं स्वयं अप'नी चूत मैं हरदम लंड चाह'ने लगी. जब मैं इस'के लिए आगे बढ़ी तो जो पह'ले जिस काम के लिए मुझे बहलाते फूस'लाते थे वही मुझे देख कर दूर भाग'ने लगे. इस'से मैं विद्रोह'नी हो गई और उस'का चर्म राज'सभा तक पहून्च कर हुआ."
फिर वे दोनों राजसभा मैं पहून्चे. राजा और दर'बारी उसे सजी धजी और लज्जा की प्रतिमूरती बनी देख द्न्ग रह गये. कल की नंगी घूम'ने वाली बेशर्म रन्डी आज एक सभ्रान्त महिला नज़र आ रही थी. तब कोका ने उसे बोल'ने के लिए इशारा किया,
"महाराज मैं अप'नी हार स्वीकार कर'ती हूँ. जिस ज्योत्शी का सब उप'हास उड़ा रहे थे उसी ने मुझे जीवन का सब'से आद'भूत काम सुख दिया है." उस'ने सर पर पल्लू ठीक कर'ते हुए कहा.
इस पर राजा ने कोका पंडित को आदर मान देते हुए कहा, "इस दर'बार की मान मर्यादा बचाने के लिए आप'का बहुत बहुत धन्यवाद. फिर भी मेरी उत्सुक'ता यह जान'ने के लिए बढ़ी जा रही है कि जिसे हट्टे कट्टे राजपूत नहीं कर सके वो आप किस तरह कर पाए."
"राजन यह कार्य मैने अप'ने काम शास्त्रा के ग्यान के आधार पर पूरा किया. पर राजन उन सब'का इस सभा मैं एसे वर्णन कर'ना शिश्टाचार के विरुद्ध होगा." तब राजा ने एकांत की व्यवस्था कर दी और कोका पंडित ने विस्तार से कई दिनों मैं राजा के सम्मुख उस'का वर्णन किया. तब राजा ने आग्या दी की वह इस'को एक ग्रंथ का रूप दे. तब कोका पंडित अप'ने कार्य मैं जुट गये और परिणाम एक महान ग्रंथ "रतिरहस्य" या "कोक-शास्त्र" के रूप मैं दुनिया के समक्ष आया.